पानी की वैश्विक राजनीति

Submitted by RuralWater on Sun, 02/22/2015 - 13:13
Source
पाञ्चजन्य, फरवरी 2015
बाढ़ व भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने, फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने व पानी को बेकार जाने से रोकने के लिए हमें भूमि के गर्भ में जलसंचय करने की तकनीक को अपनाना होगा। इजराइल में भूमि के गर्भ में जल संचयन की तकनीक के सन्दर्भ एक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे हैं डॉ. भरत झुनझनवाला।

भारत में लगभग 88 प्रतिशत पानी का उपयोग खेती के लिए किया जाता है। कर्नाटक के गुलबर्गा में अंगूर, राजस्थान के जोधपुर में लाल मिर्च तथा उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल के लिये भारी मात्रा में पानी का उपयोग किया जा रहा है जिससे भूमिगत पानी का जलस्तर गिरता जा रहा है। विलासिता की इन फसलों को उगाने के लिये हम अपने भूमिगत पानी के भण्डार को समाप्त कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि हर जिले की ‘फसल ऑडिट’ कराए। जिले में उपलब्ध पानी को देखते हुए पानी की अधिक खपत करने वाली फसलों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। इस्लामिक स्टेट द्वारा टिगरिस तथा यूफरेटिस नदियों पर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। ये नदियाँ इराक की जीवनधारा हैं। मोसुल बाँध पर इस्लामिक स्टेट ने कुछ समय के लिए कब्जा भी कर लिया था। साठ के दशक में इजराइल ने 6 दिन का युद्ध छेड़ा था जिसका उद्देश्य जार्डन नदी के पानी पर अधिकार जमाना था। हम भी पीछे नहीं हैं।

इन विषयों के जानकार ब्रह्म चेलानी के अनुसार पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के मुद्दे को लगातार उठाने का उद्देश्य उस राज्य से बहने वाली नदियों पर वर्चस्व स्थापित करना है। बांग्लादेश के साथ तीस्ता के पानी के बँटवारे का विवाद सुलझ नहीं सका है। अधिकतर बांग्लादेशी मानते हैं कि भारत ने फरक्का बैराज के द्वारा पानी को हुगली में मोड़कर दादागिरी दिखाई है।

चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र पर बाँध बनाने से भारत चिन्तित हैं। अरुणाचल पर चीन की पैनी नजर रहने का एक कारण उस राज्य के प्रचुर जल संसाधन हैं। नेपाल द्वारा बाँधों से पानी छोड़े जाने को बिहार की बाढ़ का कारण माना जाता है। इन विवादों को शीघ्र निपटाने में ही हमारी जीत है।

सर्वप्रथम ऐसे तकनीकी हल खोजने चाहिए कि दोनों देशों के लिए लाभदायक हों। फरक्का बैराज की वर्तमान समस्या तलछट की है। फरक्का के तालाब में तलछट जम जाती है। ऊपरी सतह से पानी निकालकर हुगली में मोड़ दिया जाता है। नीचे बैठी तलछट को निथारकर पद्मा में बहा दिया जाता है जो कि बांग्लादेश को चली जाती है।

परिणाम है कि पानी का बँटवारा तो आधा-आधा होता है परन्तु अनुमानित 90 प्रतिशत तलछट बांग्लादेश को जाती है। तलछट के इस अप्राकृतिक बँटवारे से दोनों देश त्रस्त हैं। बांग्लादेश में अधिक मात्रा में तलछट पहुँचने से पद्मा का पाट ऊँचा होता जा रहा है और बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है।

हुगली में तलछट कम पहुँचने से समुद्र की तलछट की भूख शान्त नहीं हो रही है और वह हमारे तट को खा रहा है। गंगासागर द्वीप छोटा होता जा रहा है। लोहाचारा और गोडामारा द्वीपों से लगभग एक लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। इस दोहरी समस्या का हल है कि फरक्का के आकार में बदलाव किया जाए जिससे पानी के साथ-साथ तलछट का भी बराबर बँटवारा हो।

नेपाल द्वारा नदियों पर बड़े बाँध बना कर पानी को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। इनसे ज्यादा मात्रा में पानी छोड़ दिया जाता है जिससे बिहार में बाढ़ का प्रकोप बढ़ जाता है। इस समस्या का समाधान भूमि के गर्भ में उपलब्ध जल संचयन की क्षमता के माध्यम से निकल सकता है। धरती के नीचे तालाब एवं नदियाँ होती है। सेण्ट्रल ग्राउण्ड वाटर बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश की भूमि के भूगर्भ में जलसंचयन भण्डारण क्षमता 76 बिलियन क्यूबिक मीटर है जो कि टिहरी बाँध से 25 गुना ज्यादा है।

इसी प्रकार के जल संचयन की क्षमता नेपाल में भी है। हमें साझा नीति बनाकर नेपाल को प्रेरित करना चाहिए कि पानी का भण्डारण भूमि के गर्भ में करे। इजराइल ने इस तकनीक का बखूबी विकास किया है। बाँधों के तालाबों से वाष्पीकरण के कारण 10-20 प्रतिशत पानी का नुकसान हो जाता है। यह पानी बच जाएगा। बड़े बाँधों में निहित विस्थापन तथा भूकम्प जैसी समस्याओं से निहित विस्थापन तथा भूकम्प जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाएगा।

सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, तीस्ता तथा गंगा के पानी के बँटवारे को लेकर चीन, पाकिस्तान, नेपाल तथा बांग्लादेश के साथ हमारा तनाव बना रहता है। इन नदियों के ऊपरी हिस्से में स्थित देश का प्रयास रहता है कि अधिक-से-अधिक पानी रोक ले जबकि निचला देश चाहता है कि अधिक-से-अधिक पानी को बहने दिया जाए।

चीन तथा नेपाल के सन्दर्भ में हम निचले देश हैं जबकि पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के सन्दर्भ में ऊपरी देश है। यहाँ एक देश की हानि दूसरे देश का लाभ है जैसे तीस्ता में अधिक पानी छोड़ने से भारत को हानि और बांग्लादेश को लाभ है। इसका हल है कि लाभ पाने वाला निचला देश हानि झेलने वाले ऊपरी देश को मुआवजा दे। जैसे मान लीजिए तीस्ता के एक क्यूबिक लीटर पानी को छोड़ने से भारत को 10 रुपए की हानि होती है जबकि बांग्लादेश को 20 रुपए का लाभ होता है।

ऐसे में बांग्लादेश को चाहिए कि भारत को 15 रुपए का मुआवजा दे। तब पानी छोड़ना दोनों देशों के लिए लाभकारी हो जाएगा। भारत को 10 रुपए की हानि के सामने 15 रुपए का मुआवजा मिलेगा। बांग्लादेश को 20 रुपए के लाभ में 15 रुपए का मुआवजा देना होगा- 5 रुपए का फिर भी लाभ होगा। यह फार्मूला हमें ऊपरी तथा निचले दोनों देशों के साथ लागू करना चाहिए।

जनसंख्या के साथ-साथ पानी की माँग भी बढ़ेगी। इसे पूरा करने के लिए पानी की बचत करनी होगी। भारत में लगभग 88 प्रतिशत पानी का उपयोग खेती के लिए किया जाता है। कर्नाटक के गुलबर्गा में अंगूर, राजस्थान के जोधपुर में लाल मिर्च तथा उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल के लिये भारी मात्रा में पानी का उपयोग किया जा रहा है जिससे भूमिगत पानी का जलस्तर गिरता जा रहा है। विलासिता की इन फसलों को उगाने के लिये हम अपने भूमिगत पानी के भण्डार को समाप्त कर रहे हैं।

सरकार को चाहिए कि हर जिले की ‘फसल ऑडिट’ कराए। जिले में उपलब्ध पानी को देखते हुए पानी की अधिक खपत करने वाली फसलों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। गुलबर्गा में रागी, जोधपुर में बाजरा और उत्तर प्रदेश में चावल और गेहूँ की खेती करने से हमारे जल संसाधन सुरक्षित रहेंगे और देश की खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी। रागी और बाजरा खाने से जनता का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा।