पानी नहीं रहा तो कुछ नहीं रहेगा

Submitted by Hindi on Thu, 12/06/2012 - 15:58
Source
कादम्बिनी, जून 2012
अगले कुछ सालों में दुनिया के कुछ हिस्सों में पानी को लेकर बहुत गहरा संकट उठने वाला है। कई नदियां इतनी प्रदूषित हो चुकी हैं कि उनका जल पिया नहीं जा सकता। ले-देकर बारिश का रास्ता बचता है। ऐसे में अगर हमें खुद को बचाना है तो बारिश के पानी को बचाना होगा।
हमें बड़े स्तर पर छोटे-छोटे तालाबों, कुओं, झीलों और नहरों का निर्माण करना होगा। बड़े तालाब, बांध और जलाशय उतने लाभदायक नहीं होते जितने छोटे-छोटे तालाब और जलाशय। उन्हें बनाना भी आसान है और उनके लाभ भी ज्यादा हैं। बड़े तालाब, बांध और जलाशयों पर जितना खर्च होता है उतने में कई छोटे तालाब, बांध और जलाशय बनाए जा सकते हैं। ये छोटे तालाब बांध और जलाशय बाढ़ के समय भी बहुत कारगर रहते हैं। जब पृथ्वी बनी थी तब उस पर कुछ नहीं था, एक शून्य था बस। न कोई जीव-जंतु थे, न पेड़-पौधे। यह स्थिति हजारों-लाखों सालों तक बनी रही। फिर एक ऐसा समय आया जब बारिश और तूफान आने शुरू हुए और फिर धीरे-धीरे धरती पर जीवन की शुरुआत हुई। पानी इस ग्रह के लिए बेहद जरूरी था और अब इस पर रहने वाले जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों के जीवन के लिए बी अनिवार्य है। अगर दुनिया में सिर्फ एक साल बारिश न हो तो इस ग्रह का सारा जीवन नष्ट हो जाएगा। कारण कि छोटे-से-छोटे जंतुओं से लेकर बड़े-बड़े जानवरों और मनुष्यों तक के लिए पानी जरूरी है। अगर पानी नहीं रहा तो सबसे पहले छोटे जीव-जंतु मरेंगे फिर पूरा पारिस्थितिकीय तंत्र बिगड़ जाएगा और सब कुछ नष्ट हो जाएगा। अगले कुछ सालों में दुनिया के कुछ हिस्सों में पानी को लेकर बहुत गहरा संकट उठने वाला है। कई-नदियां जैसे-गंगा, यमुना और टेम्स पहले ही काफी प्रदूषित हो चुकी हैं। आदमी इन नदियों का पानी पी नहीं सकता, यहां तक कि अगर वह इनसे हाथ भी धो ले तो वह संक्रमित हो सकता है। ले-देकर रास्ता बारिश के पानी का ही बचता है। हमें बारिश के पानी को बचाना होगा और ऐसा विज्ञान विकसित करना होगा ताकि कृत्रिम वर्षा करवाई जा सके। बहुत गहरे ट्यूबवेल लगाना कोई हल नहीं है। इसकी जगह हमें बारिश के पानी को ही संग्रहीत करना होगा जहां भी वह बरसे। तुरंत हमें ढेर सारे तालाब, नहरें, बांध और झीलें बनानी होंगी जहां बारिश का पानी ठहरे और उसे पीने लायक बनाया जाए। यही एक मात्र रास्ता है पानी के संकट को खत्म करने और आने वाले समय में मानवता पर आने वाले खतरे से निपटने का भी यही हल है।

इस दुनिया में आने वाली आपदाएं दो तरह की होती हैं। एक तो प्राकृतिक आपदाएं हैं जैसे- सूनामी, चक्रवात, भूकंप, बाढ़, सूखा आदि। दूसरी मानव निर्मित आपदाएं हैं। ज्यादातर आपदाएं मानव निर्मित हैं। मानव निर्मित आपदाओं में विश्व युद्धों को ले सकते हैं, भारत-पाक और बांग्लादेश के बंटवारे को ले सकते हैं, इसराइल-फिलीस्तीन युद्ध को ले सकते हैं और भी ऐसी तमाम बातों को ले सकते हैं। दूसरी तरह की मानव निर्मित आपदाएं वे हैं, जिसमें हम जंगलों को नष्ट कर रहे हैं। जंगल नष्ट होने का नतीजा यह हुआ है कि बादल बनने कम हो गए हैं और बारिश अनियमित हो गई है। यही कारण है बंगाल की खाड़ी में बनने वाले बादल पूरे भारत की यात्रा करके अरब सागर में गिरते हैं। जो बारिश मगध में होनी चाहिए वह अरब सागर में होती है। इसलिए अरब सागर में तो पानी का स्तर बढ़ गया है लेकिन बंगाल की खाड़ी में वह और नमकीन हो गया है। इसलिए भारत के तटीय इलाकों में तो जलस्तर बढ़ गया है लेकिन उसके मध्य के इलाकों में लगातार घट रहा है और मिट्टी का क्षरण बढ़ा रहा है।

पर्यावरण असंतुलन का दूसरा बड़ा कारण है प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन। कोयला खदानों को जब खोदा जाता है तो गड्ढे छोड़ दिए जाते हैं जिसके कारण भूकंप आते हैं। कुछ देशों में इन गड्ढों को बाकायदा भरा जाता है लेकिन जहां नहीं भरा जाता वहां भूकंप की संभावना ज्यादा रहती है। दरअसल, ये गड्ढे धरती में मिट्टी की परतों को कमजोर कर देते हैं जिससे भूकंप की संभावना बढ़ जाती है। कुछ अरब देशों में तेल के कुओं से निकले तेल ने अथाह धन पैदा किया है। पहले वहां के लोग समझते थे कि तेल के ये कुएं कभी खत्म होने वाले नहीं हैं, लेकिन अब उन्हें समझ आ रहा है कि ऐसा नहीं है उन्हें अपने यहां जलस्तर को बढ़ाना होगा और रेगिस्तान कम करने होंगे। इसके लिए उन्होंने उर्वरा मिट्टी और पानी का आयात करना शुरू किया ताकि रेगिस्तान कम हों। अब वहां भी पेड़ लग रहे हैं और बारिश हो रही है। जबकि एक जमाना था कि लोगों ने वहां कभी बारिश देखी ही नहीं थी।

अब बात करें कि सूखा पड़ता क्यों है? इसके तीन मुख्य कारण हैं – पहला तो जंगलों का अंधाधुंध कटाव और दूसरा समुद्र और महासागरों के ऊपर कम दबाव वाली प्रक्रिया तीसरा सूर्य और अन्य ग्रहों, उपग्रहों के कोणों में अचानक से बदलाव। लेकिन सूखे का सबसे अहम कारण जंगलों का कटना ही है। पेड़-पौधों की जड़े जमीन से पर्याप्त जल शोषित करती हैं और जो धीरे-धीरे मिट्टी को प्राप्त होता है।

सूर्य तथा अन्य ग्रहों के कोणों के बदलाव से सूखा कैसे पड़ता है? दरअसल, जब भी ऐसा होता है तो गुरुत्वाकर्षण का दबाव मौसम और दूसरी चीजों को प्रभावित करता है। जैसे जब किसी ग्रह के कोण में बदलाव आता है तो गुरुत्वाकर्षण का दबाव बदलता है और बादल नहीं बनते, बारिश नहीं होती। ग्रहों के कोणों के बदलाव से धरती के जीवन पर और लोगों के मन पर भी असर पड़ता है। बहरहाल, मैं पहले ही कह चुका हूं कि बहुत ट्यूबवेल लगाना पानी की समस्या का हल नहीं है। दरअसल, भूमिगत जल अगर बीस-पच्चीस फीट तक रहता है तब धरती की सतह पर पेड़-पौधों को कोई खतरा नहीं रहता, लेकिन अगर यह पचास फीट नीचे चला जाए तो धरती अनुपजाऊ हो जाती है। धरती के ज्यादा नीचे से जल खींचने के कई नकारात्मक प्रभाव होते हैं। आसपास के कुएं सूख जाते हैं जिससे पीने के पानी की समस्या हो जाती है। पेड़-पौधों और फसलों को पर्याप्त भूमिगत जल नहीं मिल पाता और नष्ट होने लगती है। ट्यूबवेल के जरिए बहुत गहराई से जल खींचने का नतीजा यह होता है कि तीस से चालीस साल में आसपास का इलाका बंजर हो जाता है। ट्यूबवेल से पानी खींचना तात्कालिक हल तो है लेकिन इसके नुकसान दूरगामी हैं। इसकी जगह नदियों, नहरों, बांध और तालाबों के जरिए सिंचाई बेहतर विकल्प है।

इसके लिए हमें बड़े स्तर पर छोटे-छोटे तालाबों, कुओं, झीलों और नहरों का निर्माण करना होगा। बड़े तालाब, बांध और जलाशय उतने लाभदायक नहीं होते जितने छोटे-छोटे तालाब और जलाशय। उन्हें बनाना भी आसान है और उनके लाभ भी ज्यादा हैं। बड़े तालाब, बांध और जलाशयों पर जितना खर्च होता है उतने में कई छोटे तालाब, बांध और जलाशय बनाए जा सकते हैं। ये छोटे तालाब बांध और जलाशय बाढ़ के समय भी बहुत कारगर रहते हैं। यहां एक बात और कहना चाहता हूं कि किसानों को चाहिए कि खेती में हानिकारक रसायनों का प्रयोग न करें क्योंकि इससे पानी प्रदूषित होता है और पेड़-पौधों, मछलियों और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुँचता है। खैर......देश में कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां वर्षा ज्यादा होती है और कुछ ऐसे हिस्से हैं जहां वर्षा बहुत कम होती है। अब जिन हिस्सों में ज्यादा वर्षा होती है वहां का पानी कम वर्षा वाले हिस्सों में कैसे पहुंचाया जाए, इस पर विचार किया जाना चाहिए।