लेखक
महात्मा गांधी मानते थे कि गाँवों की सेवा करने से ही सच्चे अर्थों में ग्राम स्वराज की स्थापना होगी। उनकी कल्पना का गाँव ऐसा आदर्श गाँव था जो अपनी महत्वपूर्ण जरूरतों के मामले में आत्मनिर्भर हो। इतना आत्मनिर्भर होगा कि वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये पड़ोसियों पर भी निर्भर नहीं होगा। यदि कुछ जरूरतें, जिनके लिये सहयोग अनिवार्य है, बच रहतीं हैं, तो वह पड़ोसियों की मदद लेगा। गाँव में अपनी खुद की व्यवस्थाएँ होंगी।
अपनी जरूरत की चीजें और अनाज को पैदा करने का इन्तजाम, अपना स्कूल, सभा भवन, खेलकूद का मैदान, नाटकशाला, पानी का इन्तजाम, अपना वाटरवर्क्स, कुओं, तालाबों पर अधिकार और पशुओं की जरूरतों को पूरा करने के लिये फाजिल जमीन होगी। गांधीजी के ग्राम स्वराज मॉडल में धन उपलब्ध कराने का जिक्र नहीं मिलता। आत्मनिर्भरता का सपना दिखता है।
आजादी के बाद ग्राम स्वराज का मॉडल बदलकर ग्राम विकास का मॉडल बन गया। बुनियादी सोच बदल गई। धन उपलब्ध कराना ही विकास की पहली आवश्यकता बन गया। धन उपलब्धता ही विकास का ब्लू प्रिन्ट हो गया। धन पाने के लिये अनेक योजनाएँ बनीं, कई बार अलग-अलग नामों से गढ़ी गईं। योजनाएँ भरपूर पैसा लाईं, खूब सारे काम हुए पर आदर्श ग्राम धरती पर नहीं उतरे।
गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों के लिये आत्मनिरर्भता सपना ही बना रहा। गरीब परिवारों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ। गाँवों से बेहिसाब पलायन हुआ। पलायन की कोख और प्राकृतिक संसाधनों को बेहतर बनाने का वायदा करने वाली अनेक योजनाएँ अस्तित्व में आईं पर गांधीजी की कल्पना का ग्राम स्वराज, सन् 1947 में गरीबों से जितना दूर था, उतनी ही दूर बना रहा।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 11 अक्टूबर, 2014 को सांसद आदर्श ग्राम योजना का शुभारम्भ किया। इस योजना के सुझाव अनुसार सांसदों को अपने क्षेत्र में सन् 2016 तक एक ग्राम, मार्च 2019 तक दो अतिरिक्त ग्राम और सन् 2024 तक पाँच और गाँवों का विकास करना है। विकास की जिम्मेदारी सांसद की है। जिम्मेदारी में सहभागी नहीं है।
इस योजना का संकल्प सन् 2024 तक कुल 8 गाँवों को आदर्श ग्रामों में बदलना है। यह लक्ष्य जनप्रतिनिधियों के लिये है जिसमें वे सरकारी योजनाओं और अधिकारियों की मदद ले सकेंगे। प्रधानमन्त्री ने जनप्रतिनिधियों को जो दायित्व सौंपा है वह भले ही लीक से हटकर लगे पर वह विकास के रास्ते जनता का दिल जीतने के लिये शानदार अवसर है। यह नया आवण्टन प्राप्त कर पैसा खर्च करने वाला कार्यक्रम नहीं है।
यह सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को सही परिवारों तक पहुँचाने और वंचितों के सपनों में जीवन के सुनहरे रंग भरने का मौका है। वायदों को जमीन पर उतारने का मौका है।
उपलब्धियों के आधार पर देश में आदर्श ग्रामों के उदाहरणों की कमी नहीं है। उनमें से कुछ गाँव किसी योजना के तहत विकसित नहीं किए गए थे। वे समर्पित लोगों की कल्पना के हकीकत में बदलने के उदाहरण हैं। गाँव के आदर्श होने का अर्थ हैं, कम-से-कम, गांधीजी के आदर्श ग्राम की कल्पना का साकार होना।
उस कल्पना के साकार होने का मतलब है प्राकृतिक संसाधनों के विकास और उसके न्यायोचित बँटवारे की आदर्श स्थिति, सामाजिक समभाव, गरीबी से मुक्ति और स्थानीय स्तर पर रोजगार के स्थायी अवसर हासिल कर संस्कारवान समाज की स्थापना। चूँकि कुछ लोगों ने इसे हासिल करके दिखाया है इसलिये यह मुमकिन है। यही प्रधानमन्त्री की मंशा है। सम्भवतः यही उनका सपना है।
हर राज्य में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और उनके अधीन ग्रामीण इलाकों में कार्य करने वाले निगमों की अनगिनत योजनाएं हैं। अनेक सरकारी अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधियों को उनके पूरे नाम तथा प्रावधान याद नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि प्रत्येक योजना का लक्ष्य गाँव के लोगों के जीवन में बदलाव लाना है। उनकी माली हालत सुधारना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।
वाटरशेड कार्यक्रमों ने भी इस दिशा में खूब काम किया पर वे भी अधिकांश स्थानों पर माँग की पूर्ति करने में बौने ही सिद्ध हुए। सारे प्रयासों के बावजूद गाँवों में अमीरी-गरीबी है। संसाधनों और रोजगार की कमी है। खेती के लिये तो दूर प्यास बुझाने के लिये कुछ वंचितों के पास पीने का पानी तक नहीं है। सिंचित खेतों से उत्पादकता के मानक रूठे प्रतीत होते हैं तो अधिकांश मामलों में आत्मनिर्भरता का अभाव है।
लगता है, सांसद आदर्श ग्राम योजना के माध्यम से प्रधानमन्त्री का प्रयास इन्हीं अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर खोजना है। सन् 2019 तक 2370 ग्रामों की सूरत बदलकर देश में विकास की नई इबारत लिखना है।
प्रत्येक योजना का लक्ष्य गाँव के लोगों के जीवन में बदलाव लाना है। उनकी माली हालत सुधारना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। वाटरशेड कार्यक्रमों ने भी इस दिशा में खूब काम किया पर वे भी अधिकांश स्थानों पर माँग की पूर्ति करने में बौने ही सिद्ध हुए। सारे प्रयासों के बावजूद गाँवों में अमीरी-गरीबी है। संसाधनों और रोजगार की कमी है। खेती के लिये तो दूर प्यास बुझाने के लिये कुछ वंचितों के पास पीने का पानी तक नहीं है। सिंचित खेतों से उत्पादकता के मानक रूठे प्रतीत होते हैं तो अधिकांश मामलों में आत्मनिर्भरता का अभाव है।ग्राम विकास का मौजूदा नजरिया लक्ष्य प्राप्ति है। यह नजरिया, अनेक बार बजट का उपयोग करने तथा संख्या को हासिल करने से नियन्त्रित होता है। इसलिये धन के उपयोग को परिणाम मान लिया जाता है। जबकि हकीकत में धन का खर्च होना सामाजिक बदलाव नहीं होता। इसके अलावा, सही हितग्राही का चुनाव, कई कारणों से अन्तिम पायदान पर होता है।
अनेक बार देखा गया है, प्रशिक्षण लेने वाले या आदर्श स्थानों पर भ्रमण के लिये जाने वाले लोग वही रहते हैं, केवल योजना बदलती है। कई बार लोगों का चयन फायदा दिलाने के लिये होता है। लक्ष्य हासिल करने की आपाधापी में कुपात्र लाभ ले जाता है। मार्च का माह इन्हीं कारनामों के लिये जाना जाता है। सांसद आदर्श ग्राम योजना में हितग्राही चयन का नजरिया बदलना आवश्यक होगा। पात्र और कुपात्र में अन्तर करना होगा।
सांसद आदर्श ग्राम योजना में पात्र कुपात्र चयन के साथ-साथ माँग और पूर्ति की खाई को पाटना होगा। सभी सरकारी और गैर सरकारी योजनाओं को जमीन पर पात्र हितग्राहियों के लिये धरातल पर लाना होगा और अंजाम तक ले जाना होगा। एक भी परिवार वंचितों की श्रेणी में नहीं बचना चाहिये। उदाहरण के लिये गाँव में बेरोजगार लोगों की संख्या 100 है, उसकी आंशिक पूर्ति से वांछित फर्क नहीं आएगा।
जब तक शत-प्रतिशत का मापदण्ड नहीं अपनाया जाएगा, आदर्श स्थिति का निर्माण नहीं होगा। जब तक सब खेतों के लिये पानी और बिजली का पूरा-पूरा इन्तजाम नहीं होगा, बदलाव की कल्पना निरर्थक है। पानी की पूर्ति केवल स्टाप डेमों से नहीं होगी। सभी विकल्प अपनाने होंगे। शौचालय बनाकर लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा पर जब तक उन्हें साफ-सुथरा रखने में लगने वाले पानी को घर में उपलब्ध नहीं कराया जाएगा, उनका सुनिश्चित उपयोग सम्भव ही नहीं होगा।
जब तक गाँव में एक भी बी.पी.एल. परिवार भूखे पेट सोएगा, एक भी बच्चा अशिक्षित रहेगा, आजीविका के लिये मौसमी पलायन होगा, सामाजिक समभाव और भेद-भाव से मुक्ति नहीं मिलेगी सांसद आदर्श ग्राम योजना, परिणामों को दुहराने जैसा प्रयास होगा। आत्मनिर्भर समाज और समावेशी विकास ही सांसद आदर्श ग्राम योजना का लक्ष्य होना चाहिए।