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भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा 20 नवंबर से 22 नवंबर, 2014 के बीच आयोजित जल मंथन बैठक समाप्त हो गई।
बैठक का पहला और दूसरा दिन भारत सरकार और राज्य सरकारों के बीच संचालित तथा प्रस्तावित महत्वपूर्ण योजनाओं पर चर्चा के लिये नियत था। इस चर्चा में उपर्युक्त योजनाओं से लगभग असहमत समूह को सम्मिलित नहीं किया गया था। तीसरे दिन के सत्र में सरकारी अधिकारी और स्वयंसेवी संस्थानों के प्रतिनिधि सम्मिलित थे। तीसरे दिन के सत्र में स्वयं सेवी संस्थानों ने अपने-अपने कामों के बारे में प्रस्तुतियां दीं।
इस दौरान जल संसाधन मंत्री उपस्थित रहीं। उन्होंने प्रस्तुतियों को ध्यान से देखा और सुना, अपनी प्रतिक्रिया दी और कामों को सराहा।
समापन सत्र में अनुशंसाएं प्रस्तुत हुईं। जल संसाधन मंत्री ने बताया कि अगले साल 13 से 17 जनवरी के बीच जल सप्ताह मनाया जाएगा। भारत के प्रत्येक जिले में पानी की दृष्टि से संकटग्रस्त एक गांव को ‘जलग्राम’ के रूप में चुनकर जल संकट से मुक्त किया जाएगा।
जल संकट से मुक्ति का सीधा-सीधा अर्थ है, चयनित ग्राम में पानी की माकूल व्यवस्था। तालाबों, नदी-नालों, कुओं और नलकूपों में प्रदूषणमुक्त स्वच्छ पानी। बारहमासी जल संरचनाएं। खेती और आजीविका के लिये भरपूर पानी।
प्राकृतिक संसाधनों के विकास के लिये पानी। दूसरे शब्दों में चयनित गांव में स्थाई रूप से जल स्वराज। जल संसाधन मंत्री का यह फैसला पूरे देश में जल स्वराज की राह आसान करता है।
जाहिर है बरसात का पानी, धरती की प्यास बुझा तथा जल संकट को समाप्त करने वाली ताल-तलैयों को लबालब कर गांव छोड़ेगा। नदियों के प्रवाह को यथासंभव जिंदा रखेगा। यदि सरकार अभियान को आगे चलाती है तो देश के सारे गांव उसके दायरे में आएंगे और वह देश में जल संकट मुक्ति का अभियान बनेगा। यही पानी का विकेन्द्रीकृत मॉडल है। जल संसाधन मंत्री की पहल का, समाज द्वारा तहेदिल से स्वागत किया जाना चाहिए।
बांध बनाने से प्यासे कैचमेंट अस्तित्व में आते हैं। यही सब नदी जोड़ परियोजनाओं के कारण भी होगा क्योंकि नदी जोड़ परियोजना के अंतर्गत 16 जलाशय हिमालय क्षेत्र में और 58 जलाशय भारतीय प्रायद्वीप में बनेंगे। उनके कमाण्ड में पानी होगा और ऊपर के इलाके पानी को तरसेंगे। भारत में प्यासे कैचमेंटों में जल संकट के निराकरण के लिये पानी की व्यवस्था कैसे होगी? बहुत कठिन प्रश्न है। यह प्रश्न इसलिये कठिन है क्योंकि कैचमेंट के जितने पानी को जलाशय में जमा किया जाता है, उतना पानी लेने से प्यासे कैचमेंट में निस्तार, आजीविका तथा फसलों की सिंचाई के लिये बहुत ही कम पानी बचता है।जल संसाधन मंत्री के बयान और देश में संचालित परियोजनाओं की अवधारणा में गंभीर विरोधाभाष है। जल मंथन के पहले और दूसरे दिन जिन सिंचाई परियोजनाओं पर चर्चा हुई है, उनकी अवधारणा जल स्वराज की अवधारणा से मेल नहीं खाती। सभी जानते हैं कि बांध बनाने से प्यासे कैचमेंट अस्तित्व में आते हैं। यही सब नदी जोड़ परियोजनाओं के कारण भी होगा क्योंकि नदी जोड़ परियोजना के अंतर्गत 16 जलाशय हिमालय क्षेत्र में और 58 जलाशय भारतीय प्रायद्वीप में बनेंगे। उनके कमाण्ड में पानी होगा और ऊपर के इलाके पानी को तरसेंगे।
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जल मंथन की गंभीर चर्चा के बाद भारत में प्यासे कैचमेंटों में जल संकट के निराकरण के लिये पानी की व्यवस्था कैसे होगी? बहुत कठिन प्रश्न है। यह प्रश्न इसलिये कठिन है क्योंकि कैचमेंट के जितने पानी को जलाशय में जमा किया जाता है, उतना पानी लेने से प्यासे कैचमेंट में निस्तार, आजीविका तथा फसलों की सिंचाई के लिये बहुत ही कम पानी बचता है। जल संसाधन मंत्री के सोच के अनुसार प्यासे कैचमेंट में बसे ग्रामों में जल संकट दूर करने के लिये यदि पानी बचाया जाता है तो जलाशय में पानी जमा करने की महत्वाकांक्षा पर नकेल लगेगी।
जल संसाधन मंत्री के सुझाव के अनुसार काम करने का मतलब है, पानी का समानता आधारित न्यायोचित बंटवारा। यदि सरकार इस नीति पर काम करना चाहती है तो उसे विकेन्दीकृत जल संचय की अवधारणा पर काम करना होगा। पुराना तरीका छोड़ना होगा अर्थात पानी के तकनीकी चेहरे को मानवीय चेहरे में बदलना होगा।
विकेन्द्रीकृत मॉडल को भविष्य की आयोजना का आधार बनाना होगा। यह राह, न केवल हर बसाहट में जल संकट को समाप्त करेगी वरन नदियों के प्रवाह को अविरलता प्रदान करेगी।
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