पहाड़ को जल संकट से उभारेंगे चाल-खाल और खंतियां

Submitted by Shivendra on Tue, 05/12/2020 - 14:45

जल संरक्षण के लिए बनाई गए खाल, बारिश के बाद कुछ इस प्रकार भरी हुई है।

जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है, लेकिन पहाड़ी इलाकों में इसके गंभीर बदलाव देखने को मिल रहे हैं। खेती-किसानी सहित लोगों की आजीविका को भी जलवायु परिवर्तन गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। सबसे ज्यादा समस्या जल की है। गहराता जल संकट भविष्य की एक गंभीर चुनौती के रूप में लोगों के सामने आ रहा है, लेकिन यही पानी अधिक बारिश के रूप में पर्वतीय इलाकों के लिए तबाही भी ला रहा है। अप्रैल और मई 2020 में उत्तराखंड में हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि इसका प्रमाण है, लेकिन यहां कई लोग वर्षा जल संरक्षण के लिए चाल, खाल और खंतियां बनाकर पहाड़ को जल संकट से उभारने का प्रयास कर रहे हैं। इस कार्य में महिलाएं विशेष रूप से योगदान दे रही हैं।

पलायन पहाड़ का दर्द है, लेकिन बढ़ता जल संकट पहाड़ को जख्म दे रहा है। अधिकांश नौले, धारे और गदेरे सूख गए हैं। खेत बंजर होते जा रहे हैं। जलते जंगल बची हुई खुशहाली छीन लेते हैं। इस कारण भी लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर मैदानों का रुख करते हैं, लेकिन आज भी कई लोग पहाड़ के संघर्ष को चुनौती देते हुए बदलाव की अलख जगाने के प्रयास में लगे हुए हैं। इन्हीं प्रयासों के क्रम में उत्तराखंड के द्वाराहाट ब्लाॅक में ग्राम ईडासेरा-थामण गांव के भीमलाथान मंदिर के पास पहाड़ियों सहित विभिन्न स्थानों पर नौला फाउंडेशन की मदद से चाल-खाल बनाए हैं।

नौला फाउंडेशन के जनसंपर्क अधिकारी गणेश कठायत ने बताया कि ‘‘पहाड़ों में विभिन्न स्थानों में गर्मियों शुरु होेने से पहले ही चाल, खाल और खंतियों का निर्माण कर दिया गया था। अब बारिश में ये पानी से लबालब हो चुके हैं। इसके अलावा मृदा अपरदन को रोकने के लिए चौड़ी पत्ती वाले पौधों का रोपण भी किया गया है। जल संरक्षण के इस कार्य को गांव के युवा, नौला मित्रों और महिला मंगल दल के सहयोग से किया जा रहा है।’’ दरअसल, पहाड़ों पर ढाल होने के कारण बरसात का पानी ठहरता नहीं है और नीचे बहकर व्यर्थ हो जाता है। जिस कारण मैदानों को पानी देने वाले पहाड़ों को जल संकट का सामना करना पड़ता है। जंगल सूखने लगते हैं। चाल और खाल एक प्रकार के गड्ढ़े ही होते हैं, जो पानी रोकने या जल संरक्षण के उद्देश्य से पहाड़ों में विभिन्न स्थानों पर बनाए जाते हैं। इससे पहाड़ों से बहकर आने वाला पानी इनमें एकत्रित हो जाता है, जो जंगलों में जानवरों के पीने के काम तो आता ही है, साथ ही मिट्टी में नमी को भी बनाए रखता है।

पर्वतीय इलाकों में पानी का मुख्य स्रोत नौले-धारे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास के कारण नौले भी सूखते जा रहे हैं। द्वाराहाट ब्लाॅक में चाल और खाल का निमार्ण नौलों के पास भी कराया गया है। बड़े पैमानों पर आसपास के इलाकों में गांववासियों-विशेषकर महिलाओं के सहयोग से बड़े पैमाने पर चौड़ी पत्ती वाले पौधों का रोपण किया है।

बड़ेत गांव की ग्राम प्रधान रेखा बिष्ट बताती हैं , ‘‘हमारे गांव में पांच नौले हैं, जिनमें अभी पर्याप्त मात्रा में पानी है। चार नौलों का पानी पीने लायक है। एक नौले में पानी का टीडीएस लेवल थोड़ा बढ़ा हुआ है। पानी लेने के लिए महिलाएं नौलों पर ही जाती हैं। ‘‘जायका परियोजना’’ के तहत नौलों के आसपास बांज सहित विभिन्न प्रकार के पेड़ लगाए गए हैं, ताकि मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहे। नौलों के स्रोतों को रिचार्ज करने के लिए चैकडैम बनाए गए हैं। इससे भी नौलों को पानी मिलने में सहायता मिलेगी।’’ 

नौला। फोटो - Himanshu Bhatt

बड़ेत के आसपास के गांवों को यदि देखें तो, नौलो की स्थिति काफी खराब है। सैंकड़ों नौले सूख चुके हैं, जबकि कई नौले सूखने की कगार पर हैं। अल्मोड़ा जिले में 83 प्रतिशत नौले सूख चुके हैं। बागेश्वर में भी नौले अंतिम सांस ले रहे हैं, लेकिन द्वाराहाट ब्लाॅक पर्यावरण और जल संरक्षण का प्रयास काफी सराहनीय है। पानी के प्रति जिस जन जागरुकता की बात दुनिया भर में भी जा रही है, वो यहां अधिकांश लोगों में देखने को मिलता है। जिस कारण वें अपनी इन प्राकृतिक धरोहरों को बचाने में लगे हैं। ग्राम थामण की ललिता देवी कहती हैं कि ‘पर्यावरण संरक्षण के लिए महिला मंगल दल ने कई प्रकार के पेड़ लगाए थे। पेड़ों के बचाव के लिए हम बार बार बाड़ करते हैं। एक प्रकार के हम अपने बच्चों की तरह पेड़ों की रक्षा करते हैं।’’ जल संरक्षण के इन प्रयासों में स्थानीय प्रशासन भी अहम भूमिका निभाग रहा है और पर्यावरण संरक्षण के कार्य को लोगों के रोजगार व आजीविका से जोड़ दिया गया है।

ग्राम विकास अधिकारी पंकज सुनोरी ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया, ‘केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का परिपालन स्थानीय स्तर पर कराया जा रहा है। इन योजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण योजना ‘मनरेगा’ है। मनरेगा में सबसे पहला अनुमन्य कार्य जल संरक्षण और जल संवर्धन है। जिसके तहत चाल, खाल, खंतियों और चैकडैम आदि का निर्माण किया जाता है। योजना के अंतर्गत वनीकरण कार्य भी कराया जाता है। प्राकृतिक जलस्रोतों जेसे नौलों की मरम्मत और साफ सफाई का कार्य भी कराया जा रहा है। ये कार्य गांव के ही लोगों से ही कराया जाता है, इससे उन्हें अपने घर पर ही रोजगार मिल जाता है।’’

ग्राम प्रधान रेखा बिष्ट कहती है, ‘‘नौलों के संरक्षण की बहुत ज्यादा आवश्यकता है, ताकि हमारे गांव और गांव की आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध पानी पर्याप्त मात्रा में मिल सके।’’ जल संरक्षण की दिशा में लोगों का प्रयास सराहनीय है, लेकिन शासन और प्रशासन की योजनाओं तथा भाषणों की सच्चाई धरातल पर बिल्कुल अलग है। जिस कारण गहराता जल संकट लोगों को एक गंभीर समस्या की तरफ धकेल रहा है। इसके लिए जल संरक्षण के कार्यों को प्राथमिकता देते हुए, इन्हें युद्ध स्तर पर करने की जरूरत है। 


हिमांशु भट्ट (8057170025)