पहाड़ी अनाज से तैयार विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे- चौलाई व झंगोरे के लड्डू व मंडुवे के बिस्कुट से लेकर अन्य उत्पादों को आजीविका के रूप में अपनाकर पहाड़ की महिलाओं ने करीब 500 करोड़ का कारोबार खडा कर दिया है। महिलाओं ने गाँव में ही आजीविका के लिए कदम आगे बढ़ाए हैं। घर से लेकर खेतीबाड़ी के काम काज के साथ इन महिलाओं को गाँव में ही अच्छी आमदनी हो रही है। पहाड़ी अनाजों से विभिन्न उत्पाद बनाना आजीविका का सबसे बड़ा साधन बन सकता है।
मातृ शक्ति वाले प्रदेश में गृहिणी की भूमिका निभाने वाली महिलाओं को छोटा सा काम मिला तो उन्होंने इस काम को ही 500 करोड़ से अधिक के कारोबार में बदल दिया। पहाड़ के दूर दराज के गाँवों से लेकर कस्बों तक सिमटी हुई ये महिलाएँ गाँव की देहरी को लांघने को विवश नहीं हैं और अपने बलबूत पहाड़ के पलायन को चुनौती दे रही है।
पहाड़ी अनाज से तैयार विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनने वाले महिला समूह मिसाल बन रहे हैं। अगर इस दिशा में और प्रयास किए जाए तो पलायन की समस्या कुछ हद तक और कम हो सकती है।
केदारनाथ धाम का प्रसाद, चौलाई व झंगोरे के लड्डू व मंडुवे के बिस्कुट से लेकर अन्य उत्पादों को आजीविका के रूप में अपनाकर पहाड़ की महिलाओं ने करीब 500 करोड़ का कारोबार खडा कर दिया है। समूह बनाकर महिलाओं ने गाँव में ही आजीविका के लिए कदम आगे बढ़ाए हैं। घर से लेकर खेतीबाड़ी के काम काज के साथ इन महिलाओं को गाँव में ही आमदनी हो रही है।
केदारनाथ यात्रा में स्थानीय उत्पादों के प्रसाद ने महिलाओं की अर्थिकी को नया आयाम दिया है। इस वर्ष यात्रा में एक करोड़ 22 लाख से अधिक का प्रसाद बिका। जिसमें महिला समूहों को 62 लाख रुपए का भुगतान किया जा चुका है।
प्रसाद में चौलाई के लड्डू, चूरण, धूप, बेलपत्री, केदार नाथ का प्रतीक सिक्का व भष्म को शामिल किया गया है। प्रसाद को अलग-अलग मूल्य के पैकेट में पैंकिंग कर बेचने की व्यवस्था की गई। बदरीनाथ केदारनाथ मन्दिर समिति, प्रसाद संघ और जिला प्रशासन की देखरेख में इस वर्ष जनपद में गंगा दुग्ध उत्पादक समूह, स्वराज सहकारिता, पिरामल फाउंडेशन, हरियाली भवन, केदार बदरी समिति, ह्यूम इंडिया, आस्था , तुंगनाथ उत्पादक समूह, हिमाद्री समेत आईएलएसपी और एनआरएलएम से जुड़े। 142 समूहों की 1612 महिलाएँ पहाड़ी अनाजों से प्रसादतैयार कर रही हैं। चौलाई के लड्डू व चूरण बनाने के लिए जनपदके 30 गाँवों के साढ़ पाँच सौ किसानों से 55 रुपए प्रति किलो की दर से 930 क्विंटल चौलाई खरीदी गई है।
मेरा मानना है कि पहाड़ों से पालयन रोकने और आजीविका के नए अवसर उपलब्ध कराने के लिए परम्परागत उत्पादों का मूल्य संवर्धन करने की जरूरत है। पहाड़ी अनाजों से विभिन्न उत्पाद बनाना आजीविका का सबसे बड़ा साधन बन सकता है. इस दिशा में सरकार भी विशेष पहल कर रही है- कपिल उपाध्याय, विशेषज्ञ
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