पहाड़ हमेशा से ही अपनी अलौकिक सुंदरता के कारण अधिकांश पर्यटक सुकून की तलाश में पहाड़ों का रुख़ करते हैं। कल-कल निनाद करती विभिन्न सदानीरा नदियों का उद्गम स्थल भी पहाड़ ही हैं, लेकिन ‘पहाड़ का पानी पहाड़ के काम नहीं आता। वो तो बहता हुआ मैदानी इलाकों में चला जाता है और पहाड़ के लोगों के हाथ ‘जल’ के नाम पर ‘जल संकट’ की मायूसी लगती है।’’ पहाड़ों पर जल के जो संसाधन बचें हैं, वे अनियमित विकास के कारण सूख गए हैं, या सूखने की कगार पर हैं। कुछ से पाइप के माध्यम से पेयजल योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पहाड़ सूख रहे हैं। जमीन बंजर होती जा रही है। पहाड़ों पर स्प्रिंग्स अंतिम सांस ले रहे हैं। जिससे नदियों का प्रवाह भी बाधित हो रहा है। ऐसे में पहाड़ों पर जलस्रोतों के सूखने का खतरा मंडरा रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक भारतवर्ष में करीब 5 मिलियन स्प्रिंग्स हैं। जिनमें से करीब 3 मिलियन स्प्रिंग्स इंडियन हिमालयन रीजन में हैं। जिन पर देश के 12 हिमालयन राज्यों के करीब 50 मिलियन लोग निर्भर हैं, लेकिन पहाड़ों की जीवनरेखा कहे जाने वाले 50 प्रतिशत से ज्यादा स्प्रिंग्स सूख गए हैं। पर्वतीय इलाकों में स्प्रिंग्स के सूखने का अहम कारण बढ़ती आबादी के साथ पानी की बढ़ती मांग, पर्वतीय क्षेत्रों का पारिस्थितिक क्षरण और भूमि का सस्टेनेबल उपयोग न हो पाना है। इससे जल की समस्या सबसे ज्यादा गर्मियों में गहराती है। गर्मियां शुरु होते ही पानी की मांग बढ़ जाती है, तो वहीं गर्मी का असर स्प्रिंग्स पर भी पड़ता है और वे सूखने लगते हैं या जल की मात्रा कम हो जाती है। लोगों के लिए पानी की समस्या खड़ी न हो, इसके लिए स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट का कार्य किया जाता है। इस कार्य के अंतर्गत स्प्रिंग्स के रिचार्ज एरिया का पता लगाने के लिए हाइड्रोलाॅजिकल और जियोलाॅजिकल सर्वे किया जाता है। इसके बाद गांव में जल की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई गई जल उपभोक्ता समितियो के माध्यम से स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट के कार्यों को अंजाम दिया जाता है। इसका उद्देश्य एक्यूफरों को रिचार्ज करना होता है, ताकि बरसात के दौरान पानी जमीन के अंदर तक पहुंचे और लोगों के सामने जल संकट खड़ा न हो।
पहाड़ों पर जल संकट गहराने के कई कारण हैं, जिनमें बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन अहम हैं। वैसे तो जलवायु परिवर्तन ही एक मात्र कारण है, क्योंकि इसमें ही जल संकट गहराने के सभी कारण समाहित हैं। लेकिन फिलहाल जलवायु परिवर्तन की घटनाएं और आबादी दोनों ही तेजी से बढ़ रहे हैं। तो वहीं पहाड़ों से निकलने वाली नदियों और विभिन्न जल स्रोतों पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। ये निर्भरता केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम देशों में भी है। भारत में जहां गंगा, यमुना, सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र, यमुना जैसी नदियों पर करोड़ों आबादी निर्भर है, तो वहीं मेकांग, पद्मा नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया और बांग्लादेश की आबादी और अर्थव्यवस्था को आधार प्रदान करती है। मध्य पूर्व, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के भी कई क्षेत्र अपनी सिंचाई सम्बन्धी जरूरतों के लिए पहाड़ी जल स्रोतों पर ही निर्भर हैं। दुनियाभर में पहाड़ के इन्हीं जलस्रोतों और नदियों का पानी बहते हुए मैदानी/तराई इलाकों में जाता है और यहां के करोड़ों लोगों की पीने और सिंचाई की जरूरतों को पूरा करता है। लेकिन अब समय के आबादी बढ़ने से पहाड़ों स्रोतों पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है।
वैश्विक स्तर पर बात करें तो, आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1960 में करीब दुनिया की सात प्रतिशत आबादी पहाड़ी स्रोतों पर निर्भर करती थी, लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में बताया गया है कि वर्ष 2050 तक विश्व के तराई इलाकों की 28 प्रतिशत आबादी (करीब 150 करोड़ लोग) पहाड़ी जलस्रोतों पर निर्भर करेगी। ये शोध यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख ने किया है, जो मुख्य रूप से एशिया के ऊंचे पर्वतों और उसकी नदी घाटियों पर निर्भर है। शोध को जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित किया गया है। वास्तव में पर्वतीय इलाके जल के अहम स्रोत हैं। विशेषकर मैदानी इलाकों के लिए इन्हें ‘वाटर टावर’ भी कहा जाता है। पहाड़ में जल का कम होना मैदानी इलाकों में भी जल संकट को बढ़ाएगा। क्योंकि दोनों ही एक दूसरे से जुड़े हैं। इसलिए पहाड़ में जल स्रोतों को बचाने के लिए मैदानों को भी साथ देना होगा। यदि मैदानी इलाकों के लोग और सत्ता ऐसा नहीं करते हैं तो जल संकट के भीषण परिणाम आने वाले वक्त में सामने आ सकते हैं।
हिमांशु भट्ट (8057170025)