पीछे हरियाली है

Submitted by admin on Fri, 09/13/2013 - 12:42
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काव्य संचय- (कविता नदी)
पीछे हरियाली है, हरियाली में पीले-
पीले फूलों वाली सरसों सजी-सजाई
लहराती है, मधुर गंध से बसी-बसाई
हवा सरसराती है। मेरे आगे नीले
आसमान की छाया गंगा में है। गीले
तट से कुछ हटकर है, आभा जल पर छाई
रामनगर की बिजली की, खँभिया उतराई
धारा पर जैसे सोने की, शोभा ढीले।

आवाजें दूरियां पार कर आसमान की
कानों को अपना वक्तव्य सुना जाती हैं
अनचाहे भी; धारा पर कल-कल ध्वनि करती
हुई नाव चढ़ती है; अपनी टेक तान की
गाता है मल्लाह; लहरियाँ बढ़ आती हैं,
जैसे-जैसे पुरवाई में लहर उभरती।