संशय

Submitted by admin on Fri, 09/13/2013 - 13:33
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काव्य संचय- (कविता नदी)
नयन की रसधार
सुरभि के संस्पर्श में
कहती पुकार-पुकार-
मैं नदी, तुम कूल-तरु
निर्मूल दूर-विचार
भेद नव होना असंभव
जब तुम्हीं आधार
कर लो धार का उद्धार।