नाव चल रही है

Submitted by admin on Fri, 09/13/2013 - 12:34
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काव्य संचय- (कविता नदी)
नाव चल रही है चढ़ान पर, डाँड़ चलाता
चला जा रहा है मल्लाह। नाव भारी है,
बैठे हैं विदेश के यात्री, तैयारी है,
कई कुर्सियाँ पड़ी हुई हैं। एक घुमाता
है अपना कैमरा-किनारे ताने छाता
धूप बचाती हुई एक ही तो नारी है,
स्वस्थ, सलोने, आकर्षक सब हैं, प्यारी है
काशी की छवि। इन्हें ध्यान भी क्या कुछ आता

है तट के निवासियों का; उनके सुख-दुःख का
इन पर कुछ प्रभाव पड़ता है या ये केवल
दृश्य देखकर ही अदृश्य होने आते हैं
अपने जीवन की धारा में-मानव-मुख का
ध्यान कहाँ तक करें, अनोखेपन का संबल
इनको लाता है जिसकी सुधि ले जाते हैं।