वह अँजोरिया रात

Submitted by admin on Fri, 09/13/2013 - 11:45
Source
काव्य संचय- (कविता नदी)
तुम्हे याद है अँजोरिया? हम तुम दोनों
नहीं सो सके, रहे घूमते नदी किनारे
मुग्ध देखते प्यार-भरी आँखों से प्यारे
भूमि-गगन के रूप-रंग को। यों तो टोनों

पर विश्वास नहीं मेरा, पर टोने ही सा
कुछ प्रभाव हम दोनों पर था। कभी ताकते
भरा चाँद, फिर लहरों को, फिर कभी नापते
अंतर का आनंद डगों से, जो यात्री-सा

दोनों का अभिन्न सहचर था। इधर-उधर के
खड़े अचंचल पेड़ क्षितिज पर, ऊपर तारे,
चाँद पिघलता लहरों में, रेती-ये सारे
दृश्य आज आँखों में आए, आकर सरके।

वहीं नही है, वहीं रात है, किंतु अकेला
अब मैं ही हूँ। पहले की सुधियों से खेला।

अक्टूबर, 1951