अमर उजाला, 04 मार्च 2020
सान के जीवन में प्लास्टिक रोजमर्रा की जरूरत की तरह जगह बना चुका है। अधिकांश लोगों के दिन की शुरूआत ही प्लास्टिक के उपयोग के साथ होती है। हम स्पष्ट तौर पर कह कसते हैं कि इंसान की सहुलियत के लिए बनाई जा रही लगभग हर वस्तु में प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। जिससे विश्वभर में प्लास्टिक कचरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक शोध के मुताबित वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। ऐसे में प्लास्टिक को कम करने के लिए विश्वभर में अभियान चल रहा है। कई देशों ने सिंगलयूज प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में भी तेजी से अभियान चल रहा है। लेकिन एक व्यक्ति राजगोपालन वासुदेवन भी हैं, जिन्होंनें प्लास्टिक से सड़क बनाने की एक नायाब तकनीक विकसित की है। इस लेख के माध्यम से उनकी भाषा मे ही जानते है, आम आदमी से प्लास्टिक मैन बनने का सफर।
बचपन से ही मैं रसायनिक क्रियाओं के बारे में पढ़ता और समझता रहता था। इसके बाद जब मैंने इसी क्षेत्र में पढ़ाई जारी रखी और पेशेवर के रूप में रसायन क्षेत्र का चुनाव किया, तो जेहन में हमेशा कुछ नया करने का विचार चलता रहता था। मैंने सड़क निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट को उपयोगी बनाकर उसके निस्तारण का माॅडल बनाया है। प्लास्टिक जल प्रतिरोधी है। यदि सड़क को बनाने वाले मिश्रण में प्लास्टिक का उपयोग किया जाए, तो सड़क का जीवनकाल बढ़ जाता है। हम सडक निर्माण में प्लास्टिक का उपयोग करके, लैंडफिल साइटों पर डंप किए गए प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा को भी कम कर सकते हैं।
मैं चेन्नई का रहने वाला हूं। मैंने प्रारंभिक पढ़ाई के बाद स्नातक, परास्नातक और पीएचडी की उपाधि रसायनशास्त्र में ली। अब मैं मदुरे के त्यागराज काॅलेज ऑफ इंजीनियरिंग में रसायन विज्ञान का प्रोफेसर हूं। मैं अक्सर अपनी लैब में प्रयोग करता रहता हूं। ऐसे ही एक प्रयोग करते हुए मैंने सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बिटुमेन (तारकोल सदृश पदार्थ) और प्लास्टिक के मिश्रण को मिलाकर एक प्लेट तैयार की। शोध के परीक्षणों से मुझे पता चला कि इन दोनों का मिश्रण बहुत अच्छा और एक मजबूत सड़क बनाने में बहुत मद्दगार था। मेरे दिमाग में उसी वक्त यह विचार आया कि यह खोज न सिर्फ प्लास्टिक के अस्तित्व को खत्म करने में मद्दगार साबित हो सकती है, बल्कि मजबूत रोड बनाने के काम भी आ सकती है। मैंने इस पर लगातार प्रयोग जारी रखा। कई परीक्षणों के जरिये सड़क निर्माण में इसके योगदान को लेकर आश्वस्त होने के बाद ही मैंने इसे सार्वजनिक किया। सड़क बनाने की प्रक्रिया में पहले प्लास्टिक को छांट कर उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए जाते हैं। इसके बाद उच्चताप पर उसके और तारकोल को गर्म किया जाता है। इसके बाद मिश्रण को पत्थर के छोटे टुकड़ांे में मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है और इस तरह यह मिश्रण सड़क पर फैलाने के लिए तैयार हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रकृति के लिए नुकसानदायक प्लास्टिक जब सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो यह पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। सड़कों पर भारी बारिश के कारण होने वाले नुकसान को झेलने की उच्चतम क्षमता प्लास्टिक में मौजूद होती है। परिणामस्वरूप सड़क निर्माण के लिए बेकार प्लास्टिक के उपयोग से उनमें गड्ढ़े नहीं होते हैं। हांलाकि सरकार मेरी पहल पर काम कर रही है, लेकिन इसके प्रति जागरुकता के लिए अभी और समय चाहिए। वर्तमान में, हमारे देश में अपशिष्ट प्रथक्करण के बारे में अनभिज्ञ है। इसीलिए बिना पृथक्कीकृत प्लास्टिक अपशिष्ट के यह तकनीक अब भी उनती प्रभावी नहीं हो पा रही है, जितनी ये होनी चाहिए। सड़क निर्माण में अपशिष्ट प्लास्टिक के उपयोग से सड़कों को बहुत तेजी से बनाने में मद्द मिलेगी और पर्यावरण को खतरनाक प्लास्टिक कचरे से भी बचाया जा सकेगा। प्लास्टिक अपशिष्ट निस्तारण में उपयोगी मेरे प्रयोगों के चलते अब बहुत सारे लोग मुझे प्लास्टिक मैन के नाम से पुकारने लगे हैं। मैंने सड़क निर्माण में प्लास्टिक उपयोग की विधि का पेटेंट यानी एकाधिकार भी करवा लिया है। साथ ही इसे बिना किसी लागत के देश को समर्पित कर दिया है। वर्ष 2016 में देश के सात राज्यों में तकरीबन 1244 किलोमीटर सड़कों के निर्माण के लिए मेरे द्वारा विकसित तकनीक का उपयोग किया गया। मेरी सड़क निर्माण विधि अब व्यापक रूप से ग्रामीण भारत में सड़कों के निर्माण के लिए उपयोग की जाती है।
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