पंज़ाब राज्य का लगभग 80% भूजल मनुष्यों के पीने लायक नहीं बचा है और इस जल में आर्सेनिक की मात्रा अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुँच चुकी है… यह चौंकाने वाला खुलासा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किये गये एक अध्ययन में सामने आई है। पानी में आर्सेनिक की मात्रा का सुरक्षित मानक स्तर 10 ppb होना चाहिये, जबकि अध्ययन के मुताबिक पंजाब के विभिन्न जिलों से लिये पानी के नमूने में आर्सेनिक की मात्रा 3.5 से 688 ppb तक पाई गई है। यह खतरा दक्षिण-पश्चिम पंजाब पर अधिक है, जहाँ कैंसर के मरीजों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई है। जज्जल, मखना, गियाना आदि गाँव आर्सेनिक युक्त पानी से सर्वाधिक प्रभावित हैं और यहाँ इसका स्तर बेहद खतरनाक हो चुका है।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के मृदा-वैज्ञानिकों के एक दल ने इन गाँवों का सघन दौरा किया, उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से देखा कि पानी और सब्जियों में रासायनिक खाद का प्रयोग अधिक नहीं किया गया है, लेकिन फ़िर भी पीने और सामान्य उपयोग के लिये जो भू-जल दोहन किया जा रहा है उसमें घातक आर्सेनिक का अंश काफ़ी मात्रा में है। दक्षिण पश्चिम पंजाब के संगरूर, मनसा, फ़रीदकोट, मुक्तसर, बठिण्डा, फ़िरोज़पुर जिलों में भूजल का एक भी नमूना पीने लायक नहीं पाया गया। यहाँ आर्सेनिक की मात्रा 11.4 से 688 ppb तक पाई गई, औसतन 78.8 ppb प्रति भूजल नमूने के हिसाब से।
वैज्ञानिकों ने इन जिलों खासकर तलवण्डी साबू और गिद्दरबाहा विकासखण्ड में भैंस का दूध भी आर्सेनिक से प्रदूषित पाया। भैंस के दूध में आर्सेनिक का स्तर 208 से 279 ppb तक पाई गई। विश्वविद्यालय के मृदा विभाग के अध्यक्ष डॉ वी बेरी इसके लिये इलाके में स्थित उथले हैण्ड पम्पों को जिम्मेदार मानते हैं, जिनमें खारे पानी और आर्सेनिक वाले पानी की मात्रा ज्यादा है। वे कहते हैं कि जो हैण्ड पम्प नहरों और तालाबों के किनारे पर हैं, उनमें आर्सेनिक की मात्रा काफ़ी कम है। पानी के ज़मीन में सतत प्रवाह के कारण आर्सेनिक की ज़हरीली मात्रा में काफ़ी कमी आ जाती है, जबकि नहरों से दूर स्थित हैण्ड पम्पों में आर्सेनिक की मात्रा घातक हो चुकी है।
दक्षिण पश्चिम पंजाब में जहाँ पहले भूजल का स्तर 80 फ़ुट तक था वह अब और 30 फ़ुट नीचे जा चुका है। जब तक पुराने गहरे कुओं से पानी लिया जाता था तब तक इलाके में विभिन्न बीमारियों का प्रभाव काफ़ी कम था, लेकिन जैसे-जैसे पुराने कुओं का स्थान नलकूपों और हैण्डपम्प ने लिया तब से क्षेत्र में त्वचा और फ़ेफ़ड़ों के कैंसर में वृद्धि देखी गई। अमेरिका की संस्था “एजेंसी फ़ॉर टॉक्सिक सब्स्टेन्सेस एंड डिसिजेज़ रजिस्ट्री” ने एक शोध के द्वारा आर्सेनिक का त्वचा और फ़ेफ़ड़ों के कैन्सर से सम्बद्धता को दर्शाया है। पंजाब के अन्य जिलों में भी स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है। जोन क्रमांक 1 के अन्तर्गत गुरदासपुर, होशियारपुर, नवाशहर, और रोपड़ में भूजल का आर्सेनिक स्तर 3.5 से 42 ppb (औसत 23.4ppb), ज़ोन 2 में स्थित अमृतसर, तरनतारन, जलन्धर, कपूरथला, लुधियाना, पटियाला, मोहाली, बरनाला, और मोगा में आर्सेनिक स्तर 9.8 से 42.5 ppb (औसत 24.1 ppb) पाया गया है।
यदि आर्सेनिक के सुरक्षित स्तर को देखा जाये तो ज़ोन 1 और ज़ोन 2 में से लिये गये भूजल के नमूनों में से सिर्फ़ 3 और 1 प्रतिशत नमूने ही पीने लायक पाये गये। नमूनों के विभिन्न जाँचों के बाद वैज्ञानिकों ने प्रभावित इलाकों की आबादी के लिये चेतावनी और एहतियात के अलग-अलग स्तर जारी किये हैं। इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ एचएस हुन्दल, जिनका यह शोध अमेरिका के जर्नल “कम्यूनिकेशन्स इन सॉइल साइंसेज़ एण्ड प्लाण्ट अनालिसिस” मे प्रकाशित हो चुका है, कहते हैं कि “जहाँ तक सम्भव हो पंजाब के ग्रामीण निवासियों को पीने का पानी आसपास स्थित नहरों या तालाबों से लेना चाहिये अथवा उस हैण्डपम्प से जो कि इनके किनारे पर हो। यदि दूर स्थित किसी हैण्डपम्प से पानी लेना भी पड़े तो उसे रात भर वाष्पीकरण के लिये छोड़ दें और उसके बाद ही उसे उपयोग में लेना चाहिये…”। इस समूचे शोध के अन्य सहयोगी वैज्ञानिक हैं सर्वश्री राजकुमार, धनविन्दर सिंह और कुलदीप सिंह।
मूल रिपोर्ट – अदिति टण्डन (ट्रिब्यून न्यूज़ सर्विस)अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर
Tags - Arsenic in Punjab, Water contamination with arsenic in Punjab,
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के मृदा-वैज्ञानिकों के एक दल ने इन गाँवों का सघन दौरा किया, उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से देखा कि पानी और सब्जियों में रासायनिक खाद का प्रयोग अधिक नहीं किया गया है, लेकिन फ़िर भी पीने और सामान्य उपयोग के लिये जो भू-जल दोहन किया जा रहा है उसमें घातक आर्सेनिक का अंश काफ़ी मात्रा में है। दक्षिण पश्चिम पंजाब के संगरूर, मनसा, फ़रीदकोट, मुक्तसर, बठिण्डा, फ़िरोज़पुर जिलों में भूजल का एक भी नमूना पीने लायक नहीं पाया गया। यहाँ आर्सेनिक की मात्रा 11.4 से 688 ppb तक पाई गई, औसतन 78.8 ppb प्रति भूजल नमूने के हिसाब से।
वैज्ञानिकों ने इन जिलों खासकर तलवण्डी साबू और गिद्दरबाहा विकासखण्ड में भैंस का दूध भी आर्सेनिक से प्रदूषित पाया। भैंस के दूध में आर्सेनिक का स्तर 208 से 279 ppb तक पाई गई। विश्वविद्यालय के मृदा विभाग के अध्यक्ष डॉ वी बेरी इसके लिये इलाके में स्थित उथले हैण्ड पम्पों को जिम्मेदार मानते हैं, जिनमें खारे पानी और आर्सेनिक वाले पानी की मात्रा ज्यादा है। वे कहते हैं कि जो हैण्ड पम्प नहरों और तालाबों के किनारे पर हैं, उनमें आर्सेनिक की मात्रा काफ़ी कम है। पानी के ज़मीन में सतत प्रवाह के कारण आर्सेनिक की ज़हरीली मात्रा में काफ़ी कमी आ जाती है, जबकि नहरों से दूर स्थित हैण्ड पम्पों में आर्सेनिक की मात्रा घातक हो चुकी है।
दक्षिण पश्चिम पंजाब में जहाँ पहले भूजल का स्तर 80 फ़ुट तक था वह अब और 30 फ़ुट नीचे जा चुका है। जब तक पुराने गहरे कुओं से पानी लिया जाता था तब तक इलाके में विभिन्न बीमारियों का प्रभाव काफ़ी कम था, लेकिन जैसे-जैसे पुराने कुओं का स्थान नलकूपों और हैण्डपम्प ने लिया तब से क्षेत्र में त्वचा और फ़ेफ़ड़ों के कैंसर में वृद्धि देखी गई। अमेरिका की संस्था “एजेंसी फ़ॉर टॉक्सिक सब्स्टेन्सेस एंड डिसिजेज़ रजिस्ट्री” ने एक शोध के द्वारा आर्सेनिक का त्वचा और फ़ेफ़ड़ों के कैन्सर से सम्बद्धता को दर्शाया है। पंजाब के अन्य जिलों में भी स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है। जोन क्रमांक 1 के अन्तर्गत गुरदासपुर, होशियारपुर, नवाशहर, और रोपड़ में भूजल का आर्सेनिक स्तर 3.5 से 42 ppb (औसत 23.4ppb), ज़ोन 2 में स्थित अमृतसर, तरनतारन, जलन्धर, कपूरथला, लुधियाना, पटियाला, मोहाली, बरनाला, और मोगा में आर्सेनिक स्तर 9.8 से 42.5 ppb (औसत 24.1 ppb) पाया गया है।
यदि आर्सेनिक के सुरक्षित स्तर को देखा जाये तो ज़ोन 1 और ज़ोन 2 में से लिये गये भूजल के नमूनों में से सिर्फ़ 3 और 1 प्रतिशत नमूने ही पीने लायक पाये गये। नमूनों के विभिन्न जाँचों के बाद वैज्ञानिकों ने प्रभावित इलाकों की आबादी के लिये चेतावनी और एहतियात के अलग-अलग स्तर जारी किये हैं। इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ एचएस हुन्दल, जिनका यह शोध अमेरिका के जर्नल “कम्यूनिकेशन्स इन सॉइल साइंसेज़ एण्ड प्लाण्ट अनालिसिस” मे प्रकाशित हो चुका है, कहते हैं कि “जहाँ तक सम्भव हो पंजाब के ग्रामीण निवासियों को पीने का पानी आसपास स्थित नहरों या तालाबों से लेना चाहिये अथवा उस हैण्डपम्प से जो कि इनके किनारे पर हो। यदि दूर स्थित किसी हैण्डपम्प से पानी लेना भी पड़े तो उसे रात भर वाष्पीकरण के लिये छोड़ दें और उसके बाद ही उसे उपयोग में लेना चाहिये…”। इस समूचे शोध के अन्य सहयोगी वैज्ञानिक हैं सर्वश्री राजकुमार, धनविन्दर सिंह और कुलदीप सिंह।
मूल रिपोर्ट – अदिति टण्डन (ट्रिब्यून न्यूज़ सर्विस)अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर
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