पर्वतीय क्षेत्रों में भूगर्भ स्थिति के अनुसार, पर्वतों से भू-जल स्रोत बहते हैं। ऐसे स्रोत मौसमी या लगातार बहने वाले होते हैं।
कुछ तथ्य-
पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 60 प्रतिशत् जनसंख्या अपनी प्रतिदिन की जलापूर्ति हेतु जल-स्प्रिंग पर निर्भर है।
गत दो दशकों में पर्यावरण असंतुलन के कारण लगभग आधे जल-स्प्रिंग या तो सूख गये हैं या उनका बहाव बहुत कम हो गया है।
उत्तराखण्ड में ऊपरी एवं मध्य ऊँचाई पर स्थित लगभग 8000 गॉवों में पेय जल की गम्भीर समस्या है।
जल-स्प्रिंग का बहाव मुख्यतः उनके पुनःपूरण क्षेत्र में वर्षा की मात्रा, भूमि-ढाल, वनस्पति-घनत्व, भूमिगत अवस्था आदि पर निर्भर करता है।
यदि वैज्ञानिक प्रणाली के अनुरूप वानस्पतिक और यांत्रिक विधियों का उपयोग इन जल स्प्रिंग का पुनःपूरण करने में समय पर नहीं किया गया तो बचे हुए स्प्रिंग भी नष्ट हो सकते हैं। यद्यपि जल स्प्रिंग का बहाव कम हो सकता है, परन्तु इनके बहाव को एकत्र कर एक बड़ा जल स्रोत बनाया जा सकता है, जिसे गृह कार्यो व सिंचाई हेतु प्रयोग किया जा सकता है। जल-स्प्रिंग का बहाव जून से सितम्बर तक धीरे-धीरे बढ़ता है, तथा वर्षा के बाद अक्टूबर से मई तक उसी प्रकार बहाव कम होने लगता है।