प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए आन्दोलन

Submitted by RuralWater on Sun, 02/22/2015 - 10:20
अन्ना ने दिखाई भूमि अधिकार चेतावनी यात्रा को हरी झण्डी और कहा देश के किसान जल, जंगल और जमीन के मा​लिक सरकार इस किसान विरोधी अध्यादेश को वापस ले : पी.वी. राजगोपाल
सरदार सरोवर का पानी किसानों को न दे कोका कोला को दे रही है सरकार : मेधा पाटेकर
आंदोलन की भाषा समझती है सरकार : राजेन्द्र सिंह


देश के पाँच सौ से अधिक सांसदों को बिना विश्वास में लिए राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अनेकों ऐसे करार किए गए, जो जन विरोधी है। उन्होंने कहा कि बड़ें बाँधों की आड़ में उसका पानी किसानों को देने की जगह बड़े औद्योगिक घरानों को दिया जा रहा है। सरदार सरोवर का 30 लाख लीटर पानी कोका कोला को दिया जा रहा है। उन्होंने देश की ग्राम पंचायतों से अपील की कि वे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ धिक्कार प्रस्ताव परित करें। वहीं मजदूर किसान शक्ति संगठन की अरूणा राय ने कहा कि पिछले आठ माह से गरीबों के हक पर हमला हो रहा है। देश में भूमि भ्रष्टाचार के कारण करोड़ों ग्रामीण परिवार भूमिहीन और आवासहीन है तथा विकासीय परियोजनाओं के कारण करोड़ों आदिवासी भूमि अधिकार से बेदखल हुए और लाखों दलितों के लिए भूमि अधिकार सुनिश्चित नहीं हो सका है। लाखों हेक्टेयर कृषि और वनभूमि गैर कृषिवनीय कार्यों के लिए उद्योगों को स्थानान्तरित हुई है और गरीबों, मजदूरों, आदिवासी व दलितों के लिए भूमि न होने के सरकारी बहाने बनाए जाते हैं।

इसके उदाहरण उत्तर प्रदेश में गंगा एक्सप्रेस-वे, यमुना एक्सप्रेस-वे और हरियाणा का गुड़गाँव जैसे इलाके हैं जहाँ पर किसानों की जमीनों को सरकार ने अधिग्रहित कर निजी कम्पनियों को बेचा है। जिन लोगों की निर्भरता खेती और खेती से जुड़ी आजीविका पर है वे सरकार की इन नीतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं।

इन विषम परिस्थितियों से छुटकारा पाने के लिए एकता परिषद और साथी संगठनों के द्वारा किए गए जनसत्याग्रह 2012 जनआन्दोलन के परिणामस्वरूप 11 अक्टूबर 2012 को आगरा में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्री श्री जयराम रमेश और जनसत्याग्रह के नेतृत्वकर्ता श्री पी.वी. राजगोपाल के बीच भूमि सुधार के लिए 10 सूत्रीय समझौता हुआ था जिसके आधार पर भूमि और कृषि सुधार का कार्य प्रारम्भ हुआ और राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति तथा आवासीय भूमि का अधिकार कानून का मसौदा तो तैयार किया गया किन्तु उसको संसद से पारित नहीं कराया जा सका।

उम्मीद थी कि वर्तमान केन्द्र सरकार आगरा समझौते के अनुरूप कार्य करेगी किन्तु ठीक इसके उलट भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में किसानों के हितों को ताक पर रखते हुए भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश 2014 लाया गया। एकता परिषद और सहयोगी संगठन भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश का विरोध किया है।

भारत सरकार को चेतावनी देने के लिए देश के तमाम संगठनों के द्वारा एकता परिषद के संस्थापक और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य गांधीवादी श्री पी.वी. राजगोपाल के नेतृत्व में जनसत्याग्रह पदयात्रा 20 फरवरी 2015 को पलवल से प्रारम्भ हो गई है। इस यात्रा को अन्ना हजारे ने हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया।

प्राकृतिक संसाधनों के लिए सत्याग्रहयह यात्रा 24 फरवरी 2015 की शाम तक दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर पहुँचेगी और वहाँ पर धरना शुरू होगा। इस पदयात्रा और धरना में पूरे देश के हजारों किसान, आदिवासी, दलित और मजदूर भाग ले रहे हैं, जिसका खामियाजा भूमि अधिग्रहण अध्यादेश 2014 के कारण भुगतना पड़ेगा।

अन्ना हजारे ने कहा कि जल, जंगल और जमीन किसानों की सम्पत्ति है और बिना उनकी इजाजत के कैसे सौंपी जा रही है। असली आजादी की लड़ाई लड़ने का समय आ गया है। देश के मालिक यहाँ की जनता है। सरकार के नाक को जब बन्द करेंगे स्वत: मुँह खुल जाएगा। कानून में है कि सिंचित भूमि नहीं लेनी है तो फिर कैसे उनसे भूमि ली जा रही है।

अन्ना ने कहा कि मोदी के सत्ता में आने के बाद से 'सिर्फ उद्योगपतियों के अच्छे दिन आए' हैं। उन्होंने दावा किया कि इन नीतियों का पालन करने से भारत का भविष्य उज्ज्वल नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि यह चेतावनी यात्रा है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश क्या है, इस गाँव के लोगों को बताना होगा। फिर जन्तर-मन्तर आकर जेल भरो होगा। यह निर्णायक लड़ाई होगी।

इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता और एकता परिषद के संस्थापक पीवी राजगोपाल ने कहा कि अगर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश वापस नहीं लिया गया तो अन्ना हजारे के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आन्दोलन किया जाएगा। राजगोपाल ने हम चाहते हैं कि सरकार इस किसान विरोधी अध्यादेश को वापस ले। अन्ना जी और हम लोग देश भर में घूमकर इस मुद्दे पर किसानों को एकजुट करने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि वे लोग इस मामले पर सरकार के साथ बातचीत करने को तैयार हैं। अगर सरकार हमें बातचीत के लिए बुलाती है तो हम लोग जरूर जाएँगे।

सभा को सम्बोधित करते हुए नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटेकर ने कहा कि दिल्ली की सरकार को सही धक्का देने का समय आ गया है। देश के पाँच सौ से अधिक सांसदों को बिना विश्वास में लिए राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अनेकों ऐसे करार किए गए, जो जन विरोधी है। उन्होंने कहा कि बड़ें बाँधों की आड़ में उसका पानी किसानों को देने की जगह बड़े औद्योगिक घरानों को दिया जा रहा है। सरदार सरोवर का 30 लाख लीटर पानी कोका कोला को दिया जा रहा है।

उन्होंने देश की ग्राम पंचायतों से अपील की कि वे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ धिक्कार प्रस्ताव परित करें। वहीं मजदूर किसान शक्ति संगठन की अरूणा राय ने कहा कि पिछले आठ माह से गरीबों के हक पर हमला हो रहा है। पिछली सरकार ने आगरा में समझौता किया था। इसके आधार पर एक समिति बनी थी, लेकिन इस सरकार ने उस पर ​कुछ नहीं किया। सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि अध्यादेश क्यों? छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा नक्सलवाद की चपेट में है। जो शान्तिपूर्ण और अहिंसक ढंग से अपनी बात करना चाहते हैं। सरकार उनकी बात नहीं सुनती।

जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि मौजूदा सरकार की नीतियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर गुजर करने वाले के अस्तिव पर खतरा उत्पन्न हो गया है। सरकार पर दवाव बनाने का एक मात्र रास्ता आन्दोलन है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व विचारक के एन गोविंदाचार्य ने सवालिया लहजे में कहा कि देश मिटेगा तो बचेगा कौन? इस पर गौर करना होगा। इंडस्ट्रियल कॉरिडोर को विकास की सूची में शामिल करना सरकार के नीति और नीयत पर सवाल खड़े करती है।

इस मौके पर विनोबा भावे के सहयोगी रहे बाल विजय ने कहा कि विनोबा भावे ने स्पष्ट किया था कि- सबै भूमि गोपाल की, नहीं किसी की मालिकी।' बावजूद इसके यह सब हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर किसानों को उनके हक से वंचित किया जा रहा है। सभा के आरम्भ में सुप्रसिद्ध गाँधीवादी एस.एन सुब्बा राव ने कहा कि सरकार को जगाने का समय आ गया है। आन्दोलन ही एक मात्र रास्ता है। सभा को पूर्व केन्द्रीय मन्त्री आरिफ मोहम्मद खान, एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणसिंह परमार, किसान नेता सुनीलम्, राकेश रफीक विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने सम्बोधित किया। सभा का संचालन एकता परिषद् के राष्ट्रीय समन्वयक रमेश शर्मा ने किया।

पदयात्रा में बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, केरल, तमिलनाडू, मणिपुर के पाँच हजार लोग एक वक्त भोजन कर यह नारा लगाते चल रहे हैं कि 'हमें भूमि अध्यादेश नहीं, भूमि अधिकार चाहिए।’

प्राकृतिक संसाधनों के लिए सत्याग्रहएकता परिषद के अनीस तिलंगेरी ने बताया पदयात्रा में शामिल लोगों की माँग है कि भारत सरकार देश के सभी आवासहीन परिवारों को आवासीय भूमि का अधिकार देने के लिए 'राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार गारण्टी कानून घोषित कर उसको समय सीमा के अन्तर्गत क्रियान्वित करे, देश के सभी भूमिहीन परिवारों को खेती के लिए भूमि अधिकार के आवंटन के लिए 'राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति’ कानून घोषित कर क्रियानिवत करे, वन अधिकार मान्यता अधिनियम 2006 तथा पंचायत विस्तार विशेष उपबन्ध अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु विशेष कार्यबल का गठन करें और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए 'भूमि अधिग्रहण कानून के संशोधन अध्यादेश 2014’ को रद्द करें।