सूखते नौले धारों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए नौला फाउंउेशन द्वारा रानीखेत के ग्राम बड़ेत में एक कार्यशाला का आयोजन कराया गया। नौलों को बचाने के लिए वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों व अधिकारियों ने ग्रामीणों को कई अहम सुझाव दिए तथा नौलों को पहाड़ की सांझी संस्कृति का अभिन्न अंग भी बताया। साथ ही सभी को पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजूट होकर कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
अल्मोड़ा के कटारमल स्थित गोविंद बल्लभ पंत कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डाॅ. गिरीश नेगी ने कहा कि ढलान होने के कारण पहाड़ों पर पानी ठहरता नहीं है। ऐसे में धीरे धीरे पहाड़ी इलाकों में पानी की कमी होने से पहाड़ सूखते जा रहे हैं। इससे जंगलों में गर्मियों में ही नहीं बल्कि सर्दियों में भी आग लगने की घटनाएं हो रही हैं। पहाड़ों में पानी की कमी और आग लगने का मुख्य कारण चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों का अभाव है, जिस कारण अधिकांश इलाकों की मिट्टी में नमी न के बराबर है। इससे नौलों सहित पानी के अन्य स्रोत भी सूखते जा रहे हैं। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि पहाड़ों को झुलसने से बचाने के लिए चौड़ी पत्तियों वाले पौधों का रोपण करना होगा। पौधा रोपण नौले के पास नहीं बल्कि ऊपर की तरफ करना होगा। इसके अलावा पहाड़ियों पर जगह-जगह चैकडैम और खंतियां बनाने की जरूरत है। जिससे पानी नीचे बहने के बजाए विभिन्न जगहों पर बनाई गई खंतियों और चैकडैम में एकत्रित होकर, पहाड़ की मिट्टी में नमी को बनाए रखेगा। इससे नौलों को रिचार्ज होने में भी सहायता मिलेगी। खण्ड विकास अधिकारी आलोक गार्ग्य ने पंचायत भवन में पस्तकालय का विमोचन किया तथा ग्रामवासियों को आश्वस्त किया कि नौलों धारों सहित पर्यावरण के संरक्षण के लिए उनकी हर संभव सहायता की जाएगी।
ग्राम विकास अधिकारी पंकज सुनोरी ने कहा कि मनरेगा योजना में सबसे पहला अनुमान्य कार्य भी जल संवर्धन और जल संरक्षण है। जिसके तहत खाल, खंती और चैकडैम आदि का निर्माण किया जाता है। मनरेगा के अंतर्गत वनीकरण कार्य भी कराया जाता है। परम्परागत जल स्रोतों जैसे धारों की मरम्मत का कार्य भी कराया जाता है। इसी तरह मनरेगा के विभिन्न प्रकार के कार्य कराए जाते हैं। जिस कारण मनरेगा पहाड़ों में लोगों को रोजगार प्रदान करती है, तो पलायन रोकने में सहायक सिद्ध होता है। बंजर खेतों को उपजाऊ बनाने का कार्य भी मनरेगा के अंतर्गत किया जाता है। इसमें भी कार्य ग्रामीण ही करते हैं, जिससे उन्हें रोजगार तो मिलता ही है, तथा उनके खेत भी उपजाऊ हो जाते हैं। मनरेगा के अंतर्गत जो पौधारोपण किया जाता है, उसमें नौलों के ऊपर की तरफ किया जाता है, जो स्पंज की भांति कार्य करते हैं और नौलों के पुनर्जीवन में सहायक सिद्ध होते हैं। टिहरी गढ़वाल के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी एसपी सिंह ने ग्रामवासियों को पशुपालन से जुडकर आजीविका से आमदनी बढ़ाने के तरीकों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि डेयरी समिति की एक बैठक कराकर इस गांव को डेयरी समिति संचालित की गई। इससे रोजगार का सृजन होगा। विभाग द्वारा गायों का वितरण किया जाएगा।
उत्तराखंड विज्ञान, शिक्षा और अनुसंधान केंद्र (युसर्क) के सलाहकार केके पांडे ने कहा कि कुमांऊ क्षेत्र में करीब 300 नौले-धारे और कुछ स्थानों पर कुएं भी हैं, लेकिन संरक्षण के अभाव में कई नौले धारे आज सूख चुके हैं। नौलों के सूखने का कारण उनके प्राकृतिक स्वरूप में बदलाव करना भी है। उन्होंने कहा कि आज नौलों धारों को उनके प्राकृतिक स्वरूप में ही संरक्षित रखने की जरूरत है। इसके लिए नौला फाउंडेशन और युसर्क ने मिलकर द्वाराहाट के आठ नौलों का चयन कर इनके संरक्षण का कार्यकर रहे हैं। इस दौरान पर्यावरणविद मनोहर सिंह मनराल ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। कार्यक्रम में नौला फाउंडेशन से संदीप मनराल, गणेश कठायत, ललित बिष्ट, क्षेत्र पंचायत सदस्य बीना देवी, जिला पंचायत सदस्य कौशल्या रावत के प्रतिनिधि राजेन्द्र जोशी, ग्राम प्रधान बड़ेत रेखा बिष्ट, ग्राम प्रधान किरोली गिरधर किरौला, ग्राम प्रधान कफड़ा दिनेश चंद्र कबड़वाल आदि मौजूद रहे।
लेखक - हिमांशु भट्ट
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