प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों के लिये मार्गदर्शिका

Submitted by Hindi on Tue, 06/14/2016 - 10:42

 

  1. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत सूचना मांगने वाले किसी भी व्‍यक्ति को विनिर्दिष्‍ट समय के भीतर सही और पूर्ण जानकारी भेजना लोक प्राधिकरी के जन सूचना अधिकारी का दायित्‍व है। यह संभव है कि जन सूचना अधिकारी, अधिनियम के प्राविधानों के अनुसार काम न करें अथवा आवेदक उसके निर्णय से संतुष्‍ट न हों। ऐसी स्थिति से निपटने के लिये अधिनियम में दो अपीलों का प्राविधान है। पहली अपील लोक प्राधिकारी के भीतर ही होती है, जो सम्बंधित लोक प्राधिकरी द्वारा प्रथम अपीलीय अधिकारी के रूप में नाम निर्दिष्‍ट अधिकारी को ही की जाती है। प्रथम अपीलीय प्राधिकारी रैंक में जन सूचना अधिकारी से वरिष्‍ठ होता है। दूसरी अपील केन्‍द्रीय सूचना आयोग में की जाती है। उ.प्र. राज्‍य सूचना आयोग (अपील प्रक्रिया) नियमावली, 2005 अपील पर आयोग द्वारा निर्णय की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है। इस दस्‍तावेज में निहित मार्गदर्शी सिद्धांत प्रथम अपीलीय अधिकारियों के लिये हैं।

  2. अपने कर्तव्‍य का प्रभावी रूप से निष्‍पादन करने के लिये अपीलीय प्राधिकारी को चाहिए कि वह अधिनियम का ध्‍यान पूर्वक अध्‍ययन करे और इसके प्राविधानों को भली-भांति समझे। इस दस्‍तावेज में अधिनियम के कुछ ऐसे महत्‍वपूर्ण पहलुओं की व्‍याख्‍या की गयी है, जो प्रथम अपीलीय अधिकारी को विशेष रूप से मालूम होनी चाहिए।

सूचना क्‍या है

3. किसी भी स्‍वरूप में कोई भी सामग्री “सूचना’’ है। इसमें किसी भी इलेक्‍ट्रानिक रूप में धारित अभिलेख, दस्‍तावेज, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लागबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागजपत्र, नमूने, माडल, आकड़ों सम्बंधी सामग्री सम्बंधित है। इसमें किसी निजी निकाय से सम्बंधित ऐसी सूचना भी शामिल है जिसे लोक प्राधिकारी तत्‍समय लागू किसी कानून के अंतर्गत प्राप्‍त कर सकता है।

अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार

  1. नागरिकों को किसी लोक प्राधिकारी से ऐसी सूचना मांगने का अधिकार प्राप्‍त है जो उस लोक प्राधिकारी के पास उपलब्‍ध है या उसके नियंत्रण में उपलब्‍ध है। इस अधिकार में लोक प्राधिकरी के पास या नियंत्रण में उपलब्‍ध प्रति, दस्‍तावेजों तथा रिकार्डो का निरीक्षण, दस्‍तावेज या‍ रिकार्डो के नोट, उद्यरण या प्रमाणित प्रतियां प्राप्‍त करना, सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना शामिल है।

  2. अधिनियम के अनुसार ऐसी सूचना, जिसे संसद अथवा राज्‍य विधान मण्‍डल को देने से इंकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी भी व्‍यक्ति को भी देने से इंकार नहीं किया जा सकता है।

  3. नागरिकों को डिस्‍केट्स, फ्लापी, टेप, विडियों कैसेट या किसी अन्‍य इलेक्‍ट्रानिक या प्रिन्‍ट आउट के रूप में सूचना प्राप्‍त करने का अधिकार प्राप्‍त है, जिससे उसे डिस्‍केट्स आदि में स्‍थानान्‍तरित किया जा सके।

  4. आवेदक को सूचना सामान्‍यत: उसी रूप में प्रदान की जानी चाहिए जिसमें वह मांगता है तथापि यदि किसी विशेष स्‍वरूप में मांगी गयी सूचना की आपूर्ति से लोक प्राधिकरी के संसाधनों का अनापेक्षित ढंग से विचलन होता है या इससे रिकार्डो के प‍रीक्षण में कोई हानि की संभावना होती है, तो उस रूप में सूचना देने से मना किया जा सकता है।

  5. अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्राप्‍त है। अधिनियम में निगम, संघ, कंपनी अ‍ादि को, जो वैद्य हस्तियों/व्‍यक्तियों की परिभाषा के अंतर्गत तो आते हैं, किन्‍तु नागरिक की परिभाषा में नहीं आते हैं, को सूचना देने का देने के बारे में राज्‍य सूचना आयोग ने अलग से व्‍यवस्‍था दे रखी है। किसी निगम, संघ, कंपनी, गैर-सरकारी संगठन आदि के किसी ऐसे कर्मचारी या अधिकारी द्वारा प्रार्थना पत्र दिया जाता है जो भारत का नागरिक है, उसे सूचनाएं दी जायेंगी, बशर्ते वह अपना नाम इंगित करे।

  6. अधिनियम के अंतर्गत केवल ऐसी सूचना प्रदान करना अपेक्षित है जो लोक प्राधिकरी के पास पहले से मौजूद हैं अथवा उसके नियंत्रण में हैं। केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना सृजित करना, या सूचना की व्‍याख्‍या करना या आवेदक द्वारा उठाई गयी समस्‍यों का समाधान करना, या काल्‍पनिक प्रश्‍नों का उत्‍तर देना अपेक्षित नहीं है।

प्रकटीकरण से छूट प्राप्‍त सूचना

  1. इस अधिनियम की धारा 8 की उप धारा (1) और धारा 9 में सूचना की ऐसी श्रेणियों का विवरण दिया गया है, जिन्‍हें प्रकटीकरण से छूट प्राप्‍त है। फिर भी, धारा 8 की उपधारा(2) में यह प्राविधान है कि उपधारा (1) के अंतर्गत छूट प्राप्‍त अ‍‍थवा शासकीय, गोपनीय अधिनियम, जो 1923 के अंतर्गत छूट प्राप्‍त सूचना का प्रकटीकरण किया जा सकता यदि प्रकटीकरण से, संरक्षित हित को होने वाले नुकसान की अपेक्षा वृहत्‍तर लोकहित सधता हो। इसके अलावा धारा 8 की उपधारा (3) में यह प्राविधान है कि उपधारा (1) के खण्‍ड (क), (ग) और (झ) में उपबंधित सूचना के सिवाय उस उपधारा के अंतर्गत प्रकटीकरण से छूट प्राप्‍त सूचना, संबद्ध घटना के घटित होने की तारीख के 20 वर्ष बाद प्रकटीकरण से मुक्‍त नहीं रहेगी।

  2. स्‍मरणीय है कि अधिनियम की धारा 8(3) के अनुसार लोक प्राधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं की गयी है कि वे अभिलेखों को अनंत काल तक सुरक्षित रखें। लोक प्राधिकरण को प्राधिकरण में लागू अभिलेख धारण अनुसूचि के अनुसार ही अभिलेखों को संरक्षित रखना चाहिए। किसी फाइल में सृजित जानकारी फाइल/अभिलेख के नष्‍ट हो जाने के बाद भी कार्यालय ज्ञापन अथवा पत्र अथवा किसी भी अन्‍य रूप में मौजूद रह सकती है। अधिनियम के अनुसार यह अपेक्षित है कि धारा 8 की उपधारा (1) के अंतर्गत प्रकटन से छूट प्राप्‍त होने के बावजूद भी 20 वर्ष बाद इस प्रकार की उपलब्‍ध जानकारी उपलब्‍ध करा दी जाये। अर्थ यह है कि ऐसी जानकारी जिसे सामान्‍य रूप से अधिनियम की धारा 8 की उपधारा(1) के अंतर्गत प्रकटन से छूट प्राप्‍त है, जानकारी से सम्बंधित घटना के घटित होने के 20 वर्ष बाद ऐसी छूट से मुक्‍त हो जायेगी। तथापि निम्‍नलिखित प्रकार की जानकारी के लिये प्रकटन से छूट जारी रहेगी और 20 वर्ष बाद भी ऐसी जानकारी को किसी नागरिक को देना बाध्‍यकारी नही होगा-

    • ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से भारत की सम्‍प्रभूता, अखण्‍डता, राष्‍ट्र की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक, आर्थिक हित, विदेश के साथ सम्बंध प्रतिकूल  रूप से प्रभावित होती हो अथवा कोई अपराध भड़कता हो।

    • ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से संसद अथवा राज्‍य के विधान मण्‍डल के विशेषाधिकार की अवहेलना होती हो, अथवा

    • अधिनियम की धारा 8 की उपधारा (1) के खण्‍ड (झ) के प्राविधान के अंतर्गत दी गयी शर्तो के अधीन मंत्री परिषद, सचिवों और अन्‍य अधिकारियों के विचार विमर्श सहित मंत्री मण्‍डलीय दस्‍तावेज।

सूचना का अधिकार बनाम अन्‍य अधिनियम

12. सूचना का अधिकार अधिनियम का अन्‍य विधियों की तुलना में अधिभावी प्रभाव है। शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 और तत्‍काल प्रभावी किसी अन्‍य कानून में ऐसे प्रावधान, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के प्राविधानों से असंगत हैं, की उपिस्थिति की स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे।

सूचना मांगने का शुल्‍क

13. आवेदनकर्ता से अपेक्षित है कि वह अपने आवेदन पत्र के साथ सूचना मांगने का निर्धारित शुल्‍क 10 रू0 (दस रूपये) नगद अथवा बैंक ड्फ्ट अथवा भारतीय पोस्‍टल आर्डर के रूप में लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी के नाम से भेजें। सूचना की आपूर्ति के लिये सूचना का अधिकार (शुल्‍क और लागत का विनियमन) नियमावली 2005 के द्वारा अतिरिक्‍त शुल्‍क का अलग से प्राविधान भी किया गया है।

14. गरीबी रेखा के नीचे की श्रेणी के अंतर्गत आने वाले आवेदनकर्ताओं को किसी प्रकार का शुल्‍क देने की आवश्‍यकता नहीं है। तथापित, उसे गरीबी रेखा के नीचे के स्‍तर का होने के दावे का प्रमाणपत्र प्रस्‍तुत करना होगा। आवेदन के साथ निर्धारित 10/- रूपए के शुल्‍क अथवा आवेदनकर्ता के गरीबी रेखा के नीचे वाला होने का प्रमाण, जैसा भी मामला हो, नहीं होने पर आवेदन को अधिनियम के अंतर्गत वैद्य नहीं माना जाएगा और इसीलिये, ऐसे आवेदक को अधिनियम के अंतर्गत सूचना प्राप्‍त करने का अधिकार नहीं होगा।

15. यदि जन सूचना अधिकारी यह निर्णय लेता है कि सूचना आवेदन शुल्‍क के अतिरिक्‍त और शुल्‍क के भुगतान पर सूचना दी जाएगी तो जन सूचना अधिकारी से अपेक्षित है कि वह आवेदक को इस सम्बंध में अन्‍य बातों के साथ-साथ निम्‍नलिखित सूचना भी दे:-

[i] अन्‍य शुल्‍क के ब्‍योरे जिनका भुगतान अपेक्षित है,

[ii] मांगी गयी शुल्‍क राशि के परिकलन का ब्‍योरा।

 

आवेदन की विषय वस्‍तु और प्रपत्र

16- आवेदक को सूचना मांगने के लिये अथवा उसे संपर्क करने के लिये आवश्‍यक विवरण के अतिरिक्‍त अन्‍य व्‍यक्तिगत ब्‍योरा देना आवश्‍यक नहीं है। साथ ही अधिनियम अथवा नियमों में सूचना प्राप्‍त करने हेतु आवेदन का कोई निर्धारित प्रपत्र नहीं है। इसलिये आवेदक से सूचना का निवेदन करने का कारण बताने अथवा अपने रोजगार का ब्‍योरा देने अथवा किसी विशेष रूप में आवेदन प्रस्‍तुत करने के लिये नहीं कहा जाना चाहिए।

आवेदन का हस्‍तान्‍तरण

17- यदि आवेदन के साथ निर्धारित शुल्‍क अथवा गरीबी रेखा के नीचे का प्रमाणपत्र संलग्‍न, तो जन सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि क्‍या आवेदन की विषय वस्‍तु अथवा उसका कोई खण्‍ड किसी अन्‍य लोक प्राधिकारी से सम्बंधित तो  नहीं है। यदि आवेदन की विषय वस्‍तु किसी अन्‍य लोक प्राधिकरी से सम्बंधित हो तो उक्‍त आवेदन को संबधित लोक प्राधिकारी को हस्‍तान्‍तरित कर दिया जाना चाहिए। यदि आवेदन आंशिक रूप से ही अन्‍य लोक प्राधिकरी से सम्बंधित है, तो उस लोक प्राधिकारी के खण्‍ड को स्‍पष्‍ट रूप से विनिर्दिष्‍ट करते हुए आवेदन की एक प्रति उस लोक प्राधिकरी को भेज देनी चाहिए। आवेदन का हस्‍तान्‍तरण करते समय अथवा उसकी प्रति भेजते समय सम्बंधित लोक प्राधिकारी को सूचित किया जाना चाहिए कि आवेदन शुल्‍क प्राप्‍त कर लिया गया है आवेदक को उसके आवेदन के स्‍थानान्‍तरण के बारे में तथा उस लोक प्राधिकारी, जिसको उनका आवेदन अथवा उसकी एक प्रति भेजी गयी है, के ब्‍योरे के बारे में भी सूचित कर देना चाहिए।

18- आवेदन अथवा उसके भाग का हस्‍तान्‍तरण जितना जल्‍दी संभव हो, कर देना चाहिए। यह ध्‍यान रखा जाए कि हस्‍तांतरण करने में आवेदन की प्राप्ति की तारीख से पांच दिन से अधिक का समय न लगे। यदि कोई जन सूचना अधिकारी किसी आवेदन की प्राप्ति से पांच दिन के बाद उस आवेदन को स्‍थनांतरित करता है तो उस आवेदन के निपटान में होने वाले विलंब में से इतने समय के लिये वह जिम्‍मेदार होगा जो उसके स्‍थानांतरण में 5 दिन से अधिक लगाया।

19- उस लोक प्राधिकारी का जन सूचना अधिकारी जिसे आवेदन हस्‍तांतरित किया गया है, इस आधार पर आवेदन के हस्‍तांतरण को नामंजूर नहीं कर सकता कि उसे आवेदन 5 दिन के भीतर हस्‍तांतरित नहीं किया गया।

20- कोई लोक प्राधिकारी अपने लिये जितने आवश्‍यक समझे उतने जन सूचना अधिकारी पदनामित कर सकता है। यह संभव है कि ऐसे लोक प्राधिकारी के कार्यालय में, जिसमें एक से अधिक जन सूचना अधिकारी हों, कोई आवेदन सम्बंधित जन सूचना अधिकारी के बजाय किसी अन्‍य जन सूचना अधिकारी को प्राप्‍त हो। ऐसे मामले में आवेदन प्राप्‍त करने वाले जन सूचना अधिकारी को इसे सम्बंधित जन सूचना अधिकारी को यथाशीघ्र अधिमानत: उसी दिन हस्‍तांतरित कर देना चाहिए। हस्‍तांतरण के लिये पाँच दिन की अवधि केवल तभी लागू होती है जब आवेदन एक लोक प्राधिकारी से दूसरे लोक प्राधिकरण को हस्‍तांतरित किया जाता है न कि तब जब हस्‍तांतरण एक ही प्राधिकारी के एक जन सूचना अधिकारी से दूसरे जन सूचना अधिकारी को हो।

सूचना की आपूर्ति

21- उत्‍तर देने वाले जन सूचना अधिकारी को देखना चाहिए कि मांगी गयी सूचना अथवा उसका कोई भाग अधिनियम की धारा 8 अथवा 9 के अंतर्गत प्रकटीकरण से छूट की श्रेणी में तो नहीं है। आवेदन के छूट के अंतर्गत आने वाले भाग के सम्बंध में किए गऐ अनुरोध को नामंजूर कर दिया जाना चाहिए तथा शेष सूचना तत्‍काल अथवा अतिरिक्‍त शुल्‍क लेने के बाद जैसा भी मामला हो, मुहैया करवा दी जानी चाहिए।

पृथककरण द्वारा आंशिक सूचना की आपूर्ति

22- ऐसी सूचना के लिये आवेदन प्राप्‍त होती जिसके कुछ भाग को प्रकटीकरण को छूट मिली हुई है लेकिन उसका कुछ भाग ऐसा है जो छूट के अंतर्गत नहीं आता है और जिसे इस प्रकार पृथक किया जा सके कि पृथक किए हुए भाग में छूट प्राप्‍त जानकारी नहीं बच पाये, तो जानकारी के ऐसे पृथक किए हुए भाग/रिकार्ड को आवेदक को मुहैया कराया जा सकता है। जहाँ रिकार्ड के किसी भाग के प्रकटीकरण को इस तरीके से अनुमति दी जाये तो जन सूचना अधिकारी को आवेदक को यह सूचित करना चाहिए कि मांगी गयी सूचना को प्रकटीकरण से छूट प्राप्‍त है तथा रिकार्ड के ऐसे भाग को पृथक्‍करण के बाद मुहैया जा रहा है जिसको प्रकटीकरण से छूट प्राप्‍त नहीं है। ऐसा करते समय, उसे निर्णय के कारण बताने चाहिए। साथ ही उस सामग्री, जिस पर निष्‍कर्ष आधारित था, का संदर्भ देते हुए सामग्रीगत प्रश्‍नों पर निष्‍कर्ष भी बताना चाहिए। इन मामलों में जन सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति के पहले समुचित प्राधिकारी का अनुमोदन लेना चाहिए तथा निर्णय लेने वाले अधिकारी का नाम तथा पदनाम की सूचना भी आवेदक को देनी चाहिए।

सूचना की आपूर्ति के लिये समयावधि

23- केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी को सूचना की आपूर्ति अनुरोध की प्राप्ति के 30 दिन के भीतर कर देनी चाहिए यदि मांगी गयी सूचना का सम्बंध किसी व्‍यक्ति के जीवन अथवा स्‍वातंत्र्य से हो तो सूचना आवेदन की प्राप्ति के 48 घण्‍टे के भीतर उपलब्‍ध कराना आपेक्षित है।

24- प्रत्‍येक लोक प्राधिकारी से अपेक्षित है कि वह प्रत्‍येक तहसील स्‍तर पर सहायक जन सूचना अधिकारी पदनामित करे जो अधिनियम के अंतर्गत आवेदनों तथा अपीलों को प्राप्‍त कर सके और उन्‍हें जन सूचना अधिकारी अथवा अपीलीय प्राधिकारी अथवा सूचना आयोग को अग्रसारित करे। यदि सूचना के लिये कोई अनुरोध सहायक जन सूचना अधिकारियों के माध्‍यम से प्राप्‍त होता है तो सूचना  सहायक जन सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन प्राप्‍त होने के 35 दिन के भीतर तथा यदि मांगी गयी सूचना व्‍यक्ति के जीवन तथा स्‍वातंत्र्य से सम्बंधित हो, तो सूचना अनुरोध प्राप्ति के 48 घण्‍टों जमा पांच दिन के भीतर उपलब्‍ध करा दी जानी चाहिए।

 25- एक लोक प्राधिकारी से दूसरे लोक प्राधिकारी को स्‍थानांतरित किये गए सामान्‍य आवेदन का उत्‍तर सं‍बद्ध लोक प्राधिकारी को उसके द्वारा आवेदन प्राप्ति के 30 दिन के भीतर दे देना चाहिए। यदि मांगी गई सूचना व्‍यक्ति के जीवन तथा स्‍वातंत्र्य से सम्बंधित हो, तो 48 घंटे के भीतर सूचना मुहैया करवा दी जानी चाहिए।

 26- इस अधिनियम की दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्‍ट आसूचना तथा सुरक्षा संगठनों के केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी के  पास भ्रष्‍टाचार तथा मानव अधिकार उल्‍लंघन के आरोपों से सम्बंधित सूचना के लिये आवेदन आ सकते हैं। मानव अधिकारों के उल्‍लंघन के आरोपों से सम्बंधित सूचना, जो केन्‍द्रीय सूचना आयोग का अनुमोदन प्राप्‍त होने के बाद ही प्रदान की जाती है, अनुरोध प्राप्ति की तारीख के 45 दिनों के भीतर प्रदान कर दी जानी चाहिए। भ्रष्‍टाचार के आरोपों से सम्बंधित सूचना की आपूर्ति करने हेतु निर्धारित समय अवधि अन्‍य मामलों के समरूप ही है।

27- यदि आवेदक से अतिरिक्‍त शुल्‍क देने को कहा जाता है तो शुल्‍क के भुगतान के बारे मे सूचना के प्रेषण तथा आवेदक द्वारा शुल्‍क का भुगतान करने के बीच की समयावधि को उत्‍तर देने की अवधि के उद्देश्‍य से नहीं गिना जायेगा। निम्‍न तालिका में विभिन्‍न परिस्थ्तियों में आवेदनों के निपटान के लिये निर्धारित समय सीमा को दर्शाया गया है:-

28. यदि जन सूचना अधिकारी जानकारी के लिये अनुरोध पर निर्धारित समय में निर्णय देने में असफ‍ल रहता है तो यह माना जायेगा कि उसने अनुरोध को अस्‍वीकार कर दिया है। यह बताना यहॉ प्रासंगिक होगा कि यदि कोई लोक प्राधिकारी सूचना देने की समय सीमा का पालन नहीं कर पाता है तो सम्बंधित आवेदक को सूचना बिना शुल्‍क मुहैया करवाई जानी होगी।

प्रथम अपील  

29. अधिनियम द्वारा निर्धारित समयावधि में या आवेदक को उसके द्वारा मांगी गई सूचना दे दी जानी चाहिए या उसका आवेदन अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए। यदि आवेदक से अतिरिक्‍त शुल्‍क लिया जाना अपेक्षित है तो उसे इस सम्‍बन्ध में सूचना भेजने हेतु निर्धारित समय सीमा के भीतर ही सूचित कर दिया जाना चाहिए। यदि आवेदक को विनिर्दिष्‍ट समय सीमा के भीतर सूचना अथवा अनुरोध के अस्‍वीकार होने का निर्णय अथवा अतिरिक्‍त शुल्‍क के भुगतान करने की सूचना प्राप्‍त नहीं होती है तो वह प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। यदि अभ्‍यर्थी जन सूचना अधिकारी के सूचना देने के सम्बंध में अथवा शुल्‍क की मात्रा के सम्बंध में लिये गये निर्णय से व्‍यथित हो तो भी वह अपील कर सकता है।

तीसरी पार्टी की सूचना के संदर्भ में अपील

30. इस अधिनियम के संदर्भ में तीसरी पार्टी का तात्‍पर्य आवेदक से भिन्‍न अन्‍य व्‍यक्ति से है। ऐसे लोक प्राधिकारी भी तीसरी पार्टी की परिभाषा में शामिल होंगे जिससे सूचना नहीं मांगी गयी है।

31. स्‍मरणीय है कि वाणिज्यिक गुप्‍त बातों, व्‍यवसायिक रहस्‍यों और बौद्धिक सम्‍पदा सहित ऐसी सूचना, जिसके प्रकटन से किसी तीसरी पार्टी की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचती हो, को प्रकटन से छूट प्राप्‍त है। धारा 8(1)(घ) के अनुसार यह अपेक्षित है कि ऐसी सूचना को प्रकट न किया जाए जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से आश्‍वस्‍त न हो कि ऐसी सूचना का प्रकटन बृहत लोक हित में प्राधिकृत है।

32. यदि कोई आवेदक ऐसी सूचना मांगता है जो किसी तीसरी पार्टी से सम्बंध रखती है अथवा उसके द्वारा उपलब्‍ध करवाई जाती है और तीसरी पार्टी ने ऐसी सूचना को गोपनीय माना है, तो जन सूचना अधिकारी से अपेक्षित है कि वह सूचना को प्रकट करने अथवा न करने पर विचार करे। ऐसे मामलों में मार्गदर्शी सिद्धांत यह होना चाहिए कि यदि प्रकटन प्रकटन से तीसरी पार्टी को सम्‍भावित हानि की अपेक्षा बृहत्‍तर लोक हित सधता हो तो प्रकटन की स्‍वीकृति दे दी जाए बशर्ते कि सूचना कानून द्वारा संरक्षित व्‍यवसायिक अथवा वाणिज्यिक रहस्‍यों से सम्बंधित न हो। तथापि, ऐसे सूचना के प्रकटन से पहले नीचे दी गयी प्रक्रिया को अपनाया जाये। यह ध्‍यान देने योग्‍य बात है कि इस प्रक्रिया को तभी अपनाया जाना है तब तीसरी पार्टी को गोपनीय माना हो।

33- यदि जन सूचना अधिकारी सूचना को प्रकट करना उचित समझता है तो उसे आवेदन प्राप्ति की तारीख के पांच दिन के भीतर, तीसरी पार्टी को एक लिखित सूचना देनी चाहिए कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदक द्वारा सूचना मांगी गयी है और कि वह सूचना को प्रकट करना चाहता है। उसे तृतीय पक्ष से निवेदन करना चाहिए कि तृतीय पक्ष लिखित अथवा मौखिक रूप से सूचना को प्रकट करने अथवा न करने के सम्बंध में अपना पक्ष रखे। तृतीय पक्ष को प्रस्‍तावित प्रकटन, के विरूद्ध प्रतिवेदन करने के लिये 10 दिन का समय दिया जाना चाहिए।

34- जन सूचना अधिकारी को चाहिए कि वह तृतीय पक्ष के निवेदन को ध्‍यान में रखते हुए प्रकटन के संदर्भ में निर्णय ले। ऐसा निर्णय सूचना के अनुरोध की प्राप्ति से 40 दिन के भीतर ले लिया जाना चाहिए। निर्णय लिये जाने के पश्‍चात केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी को लिखित में तृतीय पक्ष को अपने निर्णय की सूचना देनी चाहिए। तृतीय पक्ष को सूचना देते समय यह भी बताना चाहिए कि तृतीय पक्ष को धारा 19 के अधीन अपील करने का हक है।

35- तृतीय पक्ष केन्‍द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दिये गये निर्णय की प्राप्ति के तीस दिन के अंदर प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। यदि तृतीय पक्ष अपीलीय अधिकारी के निर्णय से संतुष्‍ट न हो तो वह सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील कर सकता है।

36- यदि तृतीय पक्ष द्वारा जन सूचना अधिकारी के सूचना प्रकट करने के निर्णय के विरूद्ध कोई अपील दायर की जाती है, तो ऐसी सूचना को तब तक प्रकट नहीं किया जा सकता है जब तक अपील पर निर्णय न लिया जाए।

प्रथम अपील फाइल करने की समय सीमा

37. प्रथम अपील निर्धारित अवधि के समाप्‍त होने अथवा जन सूचना अधिकारी से संसूचना प्राप्‍त होने की तारीख के 30 दिन के भीतर की जा सकती है। यदि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी इस बात से संतुष्‍ट है कि अपीलकर्ता को पर्याप्‍त कारण से अपील करने से रोका गया था तो 30 दिन के बाद भी अपील स्‍वीकार की जा सकती है।

अपील का निपटान

38. सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अपील पर निर्णय करना एक अर्धन्‍यायिक कार्य है। इसलिये, अपीलीय प्राधिकारी के लिये यह सुनिश्चित करना आवश्‍यक है कि न्‍याय केवल हो ही नहीं, बल्कि होते हुए भी दिखाई दे। इसके लिये अपील प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश स्‍पीकिंग आर्डर होना चाहिए जिसमें निर्णय के पक्ष में समुचित तर्क दिये गये हों।

अपील के निपटान के लिये समय सीमा

  1. अपील का निपटान अपील प्राप्‍त होने की तारीख से 30 दिन के भीतर कर दिया जाना चाहिए। अपवाद के मामलों में, अपीलीय प्राधिकारी इसके निपटान के लिये 45 दिन का समय ले सकता है। ऐसे मामलों में जिनमें अपील के निपटान में 30 दिन से अधिक का समय लगे, प्रथम अपील अधिकारी इस विलम्‍ब का कारण अंकित करेंगे।

40. यदि प्रथम अपील अधिकारी इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे कि जन सूचना अधिकारी द्वारा जो सूचना दी गई है, उसके अलावा भी सूचना दी जानी चाहिए तो या तो (1) सम्‍बंधित जन सूचना अधिकारी को उपरोक्‍त सूचना अपीलकर्ता को देने का आदेश देंगे अथवा (2) वे अपील का निस्‍तारण करते समय स्‍वयं ही उक्‍त सूचना देंगे। पहले मामले में प्रथम अपील अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि जो अतिरिक्‍त सूचना दिए जाने का आदेश उन्‍होंने दिया है, उसके अनुसार अपीलकर्ता को तत्‍काल सूचना दे दी जाय। वैसे प्रथम अपील अधिकारी द्वारा दूसरा विकल्‍प चुनना बेहतर होगा।

41. यदि प्रथम अपील अधिकारी के आदेश को जन सूचना अधिकारी लागू नहीं करते हैं और वे समझते हैं कि अपने आदेश के पालन के लिये उन्‍हें किसी उच्‍चतर अधिकारी के हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता है तो ऐसे अधिकारी की नोटिस में यह बात ला सकते हैं जो सम्‍बंधित जन सूचना अधिकारी के खिलाफ आवश्‍यक कार्रवाई करने में सक्षम हो। ऐसा अधिकारी तदनुसार आवश्‍यक कार्रवाई करेगा ताकि सूचना का अधिकार कानून का पालन सुनिश्चित किया जा सके।

 

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(केन्‍द्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वारा दिनांक 25 अप्रैल 2008 को जारी किए गए निर्देश)