पर्यावरण बचाने आगे आएं औरतें

Submitted by Editorial Team on Wed, 05/08/2019 - 16:23
Source
आधी दुनिया, राष्ट्रीय सहारा, 08 मई, 2019।

चक्रवाती तूफान ‘फोनी’ का प्रकोप भीषण था, और अब ऐसे तूफान, बाढ़, सूखा और धूल की आंधियों और स्मॉग से बचा नहीं जा सकता क्योंकि हमने जिस विकास के मॉडल को चुन लिया है, वह प्रकृति की चिंता नहीं करता वह विनाशकारी है। ताबड़-तोड़ तकनीकी विकास के नाम पर हम धरती को रौंध रहे हैं- उसे तोड़ रहे हैं, कचरे से पाट रहे हैं, उसके जल को खींच रहे हैं और उसकी हरियाली को बेरहमी से नोच रहे हैं। हमें उद्योग लगाने हैं, जिनसे भयंकर प्रदूषण फैलता है और भूतल से लाखों लीटर पानी सोख लिया जाता है। नतीजा है ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जो अनवरत जारी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग 11 वर्ष बचे हैं कि हम अपने विनाशकारी विकास-चक्र को यदि नहीं थाम सके, तो प्रलय होना निश्चित है।

ग्रेटा ने 2018 के अगस्त से आंदोलन चलाया है, जिसका नाम है ‘‘स्ट्राइक फॉर द क्लाइमेट’ यानि जलवायु के लिए हड़ताल। 112 देशों के 14 लाख छात्र-छात्राओं ने स्कूल की पढ़ाई छोड़कर हड़ताल में भाग लिया और प्रचार अभियानों में, धरने-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। ग्रेटा कहती है कि वे पढ़ाई करना चाहते हैं ‘पर जो हालात हैं, उनमें जब एक साल चिल्लाने के बाद भी कोई नहीं सुनता तो उन्हें मजबूर होकर स्कूल छोड़ना पड़ रहा है। अगर उनकी बात सुनी जाएगी तो वे सब वापस अपने स्कूल चले जाएंगे। ‘कुछ मुट्ठी भर लोग, जो बेशुमार मुनाफा कमाना चाहते हैं, उनके लिए हमारा भविष्य बेचा जा रहा है।

महिलाओं को यह सब जानना इसलिए आवश्यक है कि पर्यावरण को बचाने के आन्दोलनों में वे हमेशा अग्रिम पंक्ति में रही हैं- चाहे वह गौरा देवी द्वारा शुरू किया गया चिपको आन्दोलन रहा हो, सिंगुर-नन्दीग्राम का संघर्ष रहा हो, छत्तीसगढ़ के बस्तर व दांतेवाड़ा के जल-जंगल-जमीन का आंदोलन हो या केरल के झिंकारगढ़ी जंगल को बचाने के लिए बलरामपुर की औरतों का संघर्ष हो। बड़े कॉरपोरेट घराने लगातार अपनी पूंजी को दिन-दूना-रात-चौगुना की रफ्तार से बढ़ाने के चक्कर में लगे हैं और धरती के संतुलन को बिगाड़ने में लगे हुए हैं। एक तरफ इन्हें रोका नहीं जा रहा और दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन पर यूएनसीसीसी के तहत बड़े-बड़े जलवायु सम्मेलन हुए हैं, जो 1995 से लगातार समझौतों पर हस्ताक्षर कर रहे हैं तो क्या यह खेल तब तक चलता रहेगा, जब तक धरती का संपूर्ण विनाश न हो जाए?

इन्हीं चिंताओं ने स्वीडन की 16 वर्षीय छात्रा ग्रेटा थनबर्ग को इतना परेशान कर दिया है कि वह स्वयं विश्व भर के नेताओं से अपील कर रही है। वे ठोस कदम उठाएं वरना अगली पीढ़ी का भविष्य दांव पर लग जाएगा। ग्रेटा ने भारत के प्रधानमंत्री को भी संदेश भेजा कि बड़ी-बड़ी बातें करने और छोटी उपलब्धियों पर हांकने के बजाए पर्यावरण की रक्षा करने के लिए उन्हें कुछ ठोस कदम उठाना चाहिए वरना इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा। ग्रेटा पिछले वर्ष से लगातार टूर पर है। वह रेल से यात्रा करती है क्योंकि उसका मानना है कि हवाई जहाज से कार्बन एमिशन होता है, जो पर्यावरण को बर्बाद करता है। ग्रेटा ने यूके के सांसदों से कहा कि वह उनसे इसलिए बात कर रही हैं कि वह अगली पीढ़ी की ओर से बोल रही है। उनका प्रतिनिधित्व कर रही है। ग्रेटा अपने वक्तव्य में कहती है कि वयस्क लोग लगातार हमें सपने दिखा रहे हैं, हमारे अरमानों को बढ़ा रहे हैं पर वे हमारे भविष्य के बारे में सोचते ही नहीं। वह कहती है कि 10 साल बाद जब वह 26 वर्ष की होगी और उसकी बहन 23 साल की, उनके लिए भविष्य के नाम से कुछ बचा ही नहीं होगा क्योंकि ‘‘विश्व भर के वैज्ञानिक बता चुके हैं कि 10 साल, 252 दिन और 10 घंटों के बाद ऐसी विनाश प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, जिसे मानव अपने काबू में लाने में असमर्थ होगा।

आपको लग सकता है कि उस समय हमारे पास वह सब कुछ होगा, जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं पर वास्तव में हमारे पास कुछ नहीं होगा, क्योंकि हमारा जीवन ही दांव पर लग जाएगा। हमसे झूठ बोला जा रहा है और हमको झूठी आशाओं से भरमाया जा रहा है, जबकि हममें से बहुतों को तो पता ही नहीं कि हमारे साथ क्या होने जा रहा है।’’ ग्रेटा ने 2018 के अगस्त से आंदोलन चलाया है, जिसका नाम है ‘‘स्ट्राइक फॉर द क्लाइमेट’ यानि जलवायु के लिए हड़ताल। 112 देशों के 14 लाख छात्र-छात्राओं ने स्कूल की पढ़ाई छोड़कर हड़ताल में भाग लिया और प्रचार अभियानों में, धरने-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। ग्रेटा कहती है कि वे पढ़ाई करना चाहते हैं ‘पर जो हालात हैं, उनमें जब एक साल चिल्लाने के बाद भी कोई नहीं सुनता तो उन्हें मजबूर होकर स्कूल छोड़ना पड़ रहा है। अगर उनकी बात सुनी जाएगी तो वे सब वापस अपने स्कूल चले जाएंगे। ‘कुछ मुट्ठी भर लोग, जो बेशुमार मुनाफा कमाना चाहते हैं, उनके लिए हमारा भविष्य बेचा जा रहा है।’ ग्रेटा जब 8 साल की थी, तब उसने फिल्में देखी और पढ़ा कि कैसे पर्यावरण तेजी से नष्ट हो रहा है- मछलियां मर रही हैं, ब्लू-व्हेल और पेंग्विन मर रहे हैं, कछुअे और तमाम प्रजातियों की चिड़ियां मर रही हैं। 2016 तक ग्रेट बैरियर रीफ का आधा हिस्सा मर चुका है। हर साल 2 करोड़ 60 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में डाल दिया जाता है, जिससे जल में रहने वाले जीव तेजी से खत्म हो रहे हैं और कार्बन एमिशन का असर अब प्रति सेकेन्ड 3-6 ऐटम बम गिराने के बराबर है।

11 साल की उम्र तक वह अपने से संघर्ष करती रही, तब उसे लगा कि ऐसे जीवन बर्बाद करने से कोई फायदा नहीं है। उसे कुछ करना पड़ेगा, भले ही अकेले। उसने अकेले ही इस अभियान की शुरुआत स्वीडन के संसद के सामने धरने पर बैठकर किया था, पर आज उसका संदेश विश्व के कोने-कोने तक पहुंच चुका है। उसे नाॅर्वे द्वारा नोबल शान्ति पुरस्कार के लिए मनोनीत भी किया गया, पर वह इससे जरा भी खुश नहीं है। हर देश के सांसदों के सामने जब वह अपना वक्तव्य रखती है, ‘क्या मेरा माइक्रोफोन काम कर रहा है?’ यानि ‘क्या आप मेरी बात सुन पा रहे हैं?’। गेट्रा कहती है, ‘मुझे लग रहा था कि यदि में विरोध नहीं की तो मेरे भीतर कुछ मरता जा रहा है।’ हम देख रहे हैं कि विकसित पूंजीवादी देश सुपर मुनाफे पर टिके हैं, इसलिए वे सतत विकास के मॉडलों की तलाश नहीं करते। मुनाफे के आगे उन्हें मानवजाति की कोई चिंता नहीं है, न ही अपने बच्चों की!

ग्रेटा की बात सही है कि यदि आज से ही फॉसिल फ्यूल जलाना बंद नहीं होगा और कार्बन ऐमिशन्स पर नीतिगत तौर पर रोक नहीं लगेगी। कोई धरती को बचा नहीं सकेगा। इसलिए ग्रेटा और उसके साथी प्रचार करते हैं कि यातायात के बिजली बनाने के, मशीन चलाने के, वस्तु-निर्माण और ईधन प्रयोग के ऐसे विकल्प खोजने पड़ेंगे, जो जलवायु को परिवर्तित न करते हों। प्लास्टिक की जगह कागज, मिट्टी, कांच और लकड़ी या बांस का प्रयोग करना होगा। जितना अधिक हो सके कम-से-कम बिजली खर्च करनी होगी। वह भी जो पवन, जल या सूर्य से निर्मित हो। पेड़ों का काटा जाना, पेटोल-डीजल का अधिक उपयोग, हवाई यात्राएं करना, सभी कार्बन एमिशन के स्रेत हैं। क्या हम इनके अलावा अन्य विकल्पों की ओर बढ़ना चाहते हैं? यदि नहींतो हम अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं पर शुरुआत तो सरकारों को करनी होगी कि हर कीमत पर ऐसे विकल्पों को उपलब्ध कराएं, जिससे धरती की आयु बढ़ सके! तभी ग्रेटा का रात-दिन का कठोर परिश्रम रंग लाएगा!