विजय श्रीवास्तव
आज देश और दुनिया की पहली चिंता है- बिगड़ता पर्यावरण।
कोपेनहेगन में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा है और हाल में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण समिति ने इस बात की आशंका जताई है कि अगर आज की गति से ही जंगल कटते रहे, बर्फ पिघलती रही तो शायद पचास सालों में दुनिया के कई निचले इलाके डूब जाएंगे। यही हालत रही तो सौ सालों में मालदीव, मॉरीशस सहित भारत के मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहर भी पानी में डूबकर विलुप्त हो सकते हैं। इस मामले में सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन अब भी आम आदमी में जागरूकता नहीं आई है। लोग पर्यावरण बचाने में अपनी भूमिका को नहीं पहचानते। वे सोचते हैं- मैं कर ही क्या सकता हूं?
पर अगर कोई वास्तव में कुछ करना चाहे तो किसी का मुंह देखने की जरूरत नहीं है। पर्वतारोही और भारत में व्यक्तिगत स्तर पर ऐडवेंचर स्पोर्ट्स की शुरुआत करने वाले चंद शेखर पांडे की पर्यावरण को दुरुस्त करने की मुहिम मुझे कुछ ऐसी ही लगी। उनसे मैंने सीखा कि किस तरह सरकार का मुंह देखे बिना अपने स्तर पर भी काफी कुछ किया जा सकता है।
चंद्र शेखर पांडे को पेड़ लगाने का जुनून है। दिल्ली के विभिन्न पार्कों में वह गत बीस सालों में पांच हजार से अधिक पेड़ लगा चुके हैं, जो आज काफी बड़े हो चुके हैं। दिल्ली में ये अपने दल के लोगों के साथ अक्सर यमुना के किनारे चले जाते हैं और जितना भी कूड़ा-कचरा उठा सकते हैं, निकाल लाते हैं। वह कहते हैं, 'माना कि इससे यमुना साफ नहीं हो पा रही है, पर प्रयास करने में क्या हर्ज है। हो सकता है हमें देखकर और कुछ लोग भी यह करने लगें।'
दार्जिलिंग और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में पेड़ों और जंगल की कमी नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे इन पर भी बढ़ती आबादी और दूसरी चीजों का असर दिखने लगा है। इसकी भरपाई के लिए भी पांडे ने गत बीस सालों में अपनी कोशिश से हजारों पेड़ लगाए हैं। वे उनका लगातार ख्याल भी रखते हैं। अब इनमें से कई फलदार छायादार पेड़ बन चुके हैं, तो कई फूलों के पौधे इन जगहों की खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं।
चंद्र शेखर पांडे असल में पिछले दो दशकों से दार्जिलिंग परिक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय हिमालयन रन ऐंड ट्रैक स्पर्धा का आयोजन कर रहे हैं। इसे दुनिया की कठिनतम रेसों में शुमार किया गया है और पर्यावरण की रक्षा और दूसरे मानदंडों पर खरा उतरने के लिए 'ट्रिपल ए' रेटिंग दी गई है। माउंट एवरेस्ट और कंचनजंघा के साये में आयोजित होने वाली इस रेस को भी पांडे ने पर्यावरण की अपनी मुहिम से जोड़ दिया है।
अपने धावकों के साथ जब वे पांच दिनों की पांच चरणों वाली 160 किलोमीटर की ट्रेकिंग के लिए जाते हैं, तो संदकफू चोटी, उससे भी कुछ ऊ पर मौले और रिंबिक, पालमाजुआ और मानेभंजन इलाके में ऐडवेंचर के लिए गए दूसरे ट्रैकर्स द्वारा फैलाए कूड़े साफ करते हैं। इस काम में उनके साथ गए ट्रैकर्स भी उनकी भरपूर मदद करते हैं। इसने एक तरफ जहां स्थानीय लोगों को अपने पहाड़ की साफ-सफाई के लिए प्रेरित किया है, वहीं दूसरे ट्रैकर्स के लिए एक लोकप्रिय शगल जैसा बन गया है।
अल्मोड़ा में जन्मे 48 साल के पांडे बचपन से ही जंगली जानवरों के पीने के पानी की व्यवस्था के प्रति काफी जागरूक रहे हैं। ऊंची जगहों पर उत्तराखंड से लेकर दार्जिलिंग परिक्षेत्र तक में इनकी टीम 20 से अधिक तालाबों का उद्धार कर चुकी है। इनमें दार्जिलिंग क्षेत्र में तीन, जिला अल्मोड़ा में तीन, पिथौरागढ़ में दो, चमोली में एक, बागेश्वर में एक और नैनीताल में एक तालाब शामिल हैं। इनकी टीम अपने खर्चे पर ही इन तालाबों की साफ-सफाई करती है, जरूरत अनुसार खुदाई करती है और तटबंध भी बनाती है ताकि जानवरों को पानी मिल सके। क्या पांडे की इन कोशिश में हमारे लिए भी एक संदेश नहीं छुपा है? आप भी जब अगली बार कहीं जाएं तो कुछ और करें न करें, कुछ फूलों के पौधे ही लगा दीजिए। इसकी शुरुआत घर के पास वाले पार्क से भी की जा सकती है।
आज देश और दुनिया की पहली चिंता है- बिगड़ता पर्यावरण।
कोपेनहेगन में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन चल रहा है और हाल में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण समिति ने इस बात की आशंका जताई है कि अगर आज की गति से ही जंगल कटते रहे, बर्फ पिघलती रही तो शायद पचास सालों में दुनिया के कई निचले इलाके डूब जाएंगे। यही हालत रही तो सौ सालों में मालदीव, मॉरीशस सहित भारत के मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहर भी पानी में डूबकर विलुप्त हो सकते हैं। इस मामले में सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन अब भी आम आदमी में जागरूकता नहीं आई है। लोग पर्यावरण बचाने में अपनी भूमिका को नहीं पहचानते। वे सोचते हैं- मैं कर ही क्या सकता हूं?
पर अगर कोई वास्तव में कुछ करना चाहे तो किसी का मुंह देखने की जरूरत नहीं है। पर्वतारोही और भारत में व्यक्तिगत स्तर पर ऐडवेंचर स्पोर्ट्स की शुरुआत करने वाले चंद शेखर पांडे की पर्यावरण को दुरुस्त करने की मुहिम मुझे कुछ ऐसी ही लगी। उनसे मैंने सीखा कि किस तरह सरकार का मुंह देखे बिना अपने स्तर पर भी काफी कुछ किया जा सकता है।
चंद्र शेखर पांडे को पेड़ लगाने का जुनून है। दिल्ली के विभिन्न पार्कों में वह गत बीस सालों में पांच हजार से अधिक पेड़ लगा चुके हैं, जो आज काफी बड़े हो चुके हैं। दिल्ली में ये अपने दल के लोगों के साथ अक्सर यमुना के किनारे चले जाते हैं और जितना भी कूड़ा-कचरा उठा सकते हैं, निकाल लाते हैं। वह कहते हैं, 'माना कि इससे यमुना साफ नहीं हो पा रही है, पर प्रयास करने में क्या हर्ज है। हो सकता है हमें देखकर और कुछ लोग भी यह करने लगें।'
दार्जिलिंग और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में पेड़ों और जंगल की कमी नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे इन पर भी बढ़ती आबादी और दूसरी चीजों का असर दिखने लगा है। इसकी भरपाई के लिए भी पांडे ने गत बीस सालों में अपनी कोशिश से हजारों पेड़ लगाए हैं। वे उनका लगातार ख्याल भी रखते हैं। अब इनमें से कई फलदार छायादार पेड़ बन चुके हैं, तो कई फूलों के पौधे इन जगहों की खूबसूरती को बढ़ा रहे हैं।
चंद्र शेखर पांडे असल में पिछले दो दशकों से दार्जिलिंग परिक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय हिमालयन रन ऐंड ट्रैक स्पर्धा का आयोजन कर रहे हैं। इसे दुनिया की कठिनतम रेसों में शुमार किया गया है और पर्यावरण की रक्षा और दूसरे मानदंडों पर खरा उतरने के लिए 'ट्रिपल ए' रेटिंग दी गई है। माउंट एवरेस्ट और कंचनजंघा के साये में आयोजित होने वाली इस रेस को भी पांडे ने पर्यावरण की अपनी मुहिम से जोड़ दिया है।
अपने धावकों के साथ जब वे पांच दिनों की पांच चरणों वाली 160 किलोमीटर की ट्रेकिंग के लिए जाते हैं, तो संदकफू चोटी, उससे भी कुछ ऊ पर मौले और रिंबिक, पालमाजुआ और मानेभंजन इलाके में ऐडवेंचर के लिए गए दूसरे ट्रैकर्स द्वारा फैलाए कूड़े साफ करते हैं। इस काम में उनके साथ गए ट्रैकर्स भी उनकी भरपूर मदद करते हैं। इसने एक तरफ जहां स्थानीय लोगों को अपने पहाड़ की साफ-सफाई के लिए प्रेरित किया है, वहीं दूसरे ट्रैकर्स के लिए एक लोकप्रिय शगल जैसा बन गया है।
अल्मोड़ा में जन्मे 48 साल के पांडे बचपन से ही जंगली जानवरों के पीने के पानी की व्यवस्था के प्रति काफी जागरूक रहे हैं। ऊंची जगहों पर उत्तराखंड से लेकर दार्जिलिंग परिक्षेत्र तक में इनकी टीम 20 से अधिक तालाबों का उद्धार कर चुकी है। इनमें दार्जिलिंग क्षेत्र में तीन, जिला अल्मोड़ा में तीन, पिथौरागढ़ में दो, चमोली में एक, बागेश्वर में एक और नैनीताल में एक तालाब शामिल हैं। इनकी टीम अपने खर्चे पर ही इन तालाबों की साफ-सफाई करती है, जरूरत अनुसार खुदाई करती है और तटबंध भी बनाती है ताकि जानवरों को पानी मिल सके। क्या पांडे की इन कोशिश में हमारे लिए भी एक संदेश नहीं छुपा है? आप भी जब अगली बार कहीं जाएं तो कुछ और करें न करें, कुछ फूलों के पौधे ही लगा दीजिए। इसकी शुरुआत घर के पास वाले पार्क से भी की जा सकती है।