पर्यावरण प्रेम में टैक्सी को बना दिया बगीचा

Submitted by Hindi on Fri, 04/13/2018 - 12:31
Source
अमर उजाला, 13 अप्रैल, 2018

घास लगाने से एक और फायदा हुआ। मेरी कार के अन्दर का तापमान किसी भी नॉन एसी कार के मुकाबले बहुत कम रहने लगा। एक वक्त ऐसा भी आया, जब मुझे किसी वजह से पैसों की सख्त जरूरत थी और मुझे अपनी टैक्सी तक बेचनी पड़ गई थी। उसके बाद से मैं किराये की टैक्सी चला रहा हूँ। मोटर मालिक को मेरा पुराना शौक पता था, सो उसने मुझे अपनी गाड़ी में पौधे लगाने की इजाजत दे दी।

करीब डेढ़ दशक से मैं कोलकाता की सड़कों पर टैक्सी चला रहा हूँ। कुछ साल पहले की बात है, मुझे रात में अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर शराब की एक खाली बोतल पड़ी मिली। उस बोतल का आकार आकर्षक था। मैंने उसका प्रयोग करते हुए उसमें एक मनीप्लांट लगाकर पिछली सीट के पीछे रख दिया।

कुछ हफ्तों बाद वह पौधा इतना बड़ा हो गया कि उसकी लताएँ खिड़कियों तक जा पहुँचीं। मुझे लगा, इससे यात्रियों को दिक्कत होगी, लेकिन सवारियों को वह पौधा अच्छा लगा। लोगों के इसी प्रोत्साहन ने मुझे टैक्सी के अन्दर और पौधे रखने को प्रेरित किया। धीरे-धीरे मैंने पिछली सीट के पीछे का हिस्सा खूबसूरत पौधों से सुसज्जित छोटे-छोटे गमलों से भर दिया।

टैक्सी के अन्दर किये गये इस तरह के प्रयोग के बाद मेरे साथी ने मेरा मजाक बनाया। मेरे बारे में उल्टी-सीधी बातें कही जाने लगी। ताना मारते हुए एक ड्राइवर ने मुझसे कहा कि अपने सिर पर पौधा लगाकर क्यों नहीं चलते! यह था तो ताना, लेकिन इसे सुनकर मेरे दिमाग में एक नये विचार ने जन्म ले लिया।

मैंने सोचा क्यों न अपनी गाड़ी की छत पर घास उगा दी जाये। वैसे तो एक टैक्सी ड्राइवर के पास बहुत ज्यादा बचत नहीं होती, मगर फिर भी मैंने करीब पच्चीस हजार रुपये खर्च करके टैक्सी की छत पर घास उगाने का इन्तजाम कराया। छत पर लगी घास की ट्रे का वजन पैंसठ किलो के आस-पास था, जिससे गाड़ी का वजन थोड़ा बढ़ गया और ईंधन की खपत बढ़ गई। लेकिन अच्छी बात यह रही कि इससे कार की छत को कोई नुकसान नहीं हुआ।

इस काम का एकमात्र मकसद यही था कि लोग मेरी टैक्सी के प्रति आकर्षित हों और उनके मन में पर्यावरण के प्रति लगाव पैदा हो। मगर घास लगाने से एक और फायदा हुआ। मेरी कार के अन्दर का तापमान किसी भी नॉन एसी कार के मुकाबले बहुत कम रहने लगा। एक वक्त ऐसा भी आया, जब मुझे किसी वजह से पैसों की सख्त जरूरत थी और मुझे अपनी टैक्सी तक बेचनी पड़ गई थी। उसके बाद से मैं किराये की टैक्सी चला रहा हूँ। मोटर मालिक को मेरा पुराना शौक पता था, सो उसने मुझे अपनी गाड़ी में पौधे लगाने की इजाजत दे दी।

मैं बचपन से ही अनेक संस्थाओं द्वारा किये जाने वाले पौधरोपण कार्यक्रमों में हिस्सा लेता रहा हूँ और हर कार्यक्रम में मैं महसूस करता हूँ कि पौधे तो खूब लगाये जाते हैं, लेकिन उनकी देखभाल कोई नहीं करता। मैं अपनी सवारियों से भी आग्रह करता हूँ कि वे न सिर्फ पौधे लगायें, बल्कि उनकी देखभाल भी करें। मैं उनको पर्यावरण संरक्षण से जुड़े सन्देशों वाले पर्चे भी बाँटता हूँ।

इन पर्चों में लिखे सन्देश कविता के रूप में होते हैं। इसके अलावा मैं उन सवारियों को पौधे और बीज भी भेंट करता हूँ, जो मेरी बातों को गम्भीरता से लेते हैं। दूसरे टैक्सी ड्राइवर, जो सवारियों से मीटर से भी ज्यादा किराया लेने की चेष्टा रखते हैं, कभी उन लोगों ने मुझे पागल तक कहा था, लेकिन उन्हीं में से अधिकतर आज मेरी तारीफ करते नहीं थकते।

मैं ‘आमरा सबुज साथी’ (हम हरियाली के दोस्त) नाम से एक एनजीओ भी चलाता हूँ, जिसका यही मकसद है कि लोगों के बीच यह सन्देश जाये कि कोई भी कहीं भी पौधा लगा सकता है। हमें इसके लिये विशाल बगीचों की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति हमारी सबसे अच्छी दोस्त है, इसे नष्ट मत करें। मानव जाति के लाभ के लिये प्रकृति को बचायें।