ऊपर हरी घास से भरा एक छोटा-सा लॉन है। पीछे की तरफ 6 गमलों में आकर्षक पौधे व सामने की तरफ सजावटी पौधों के भरे दो गमले रखे हुए हैं।
42 वर्षीय धनंजय चक्रवर्ती इस छोटे से बाग के बागवान हैं। बड़े जतन से वह रोज इन पौधों व लॉन में पानी डालते हैं और फिर इसे लेकर सड़क पर उतरते हैं।
यह छोटा-सा बाग उनकी पीली टैक्सी में गुलजार है, जिसे धनंजय चक्रवर्ती टैक्सी नहीं ‘सबुज रथ’ यानी हरा रथ कहते हैं।
धनंजय ने टैक्सी को ही बाग बना दिया है, ताकि अपने स्तर पर वह प्रदूषण को कुछ कम कर सकें। दक्षिण कोलकाता (पश्चिम बंगाल) के टालीगंज के करुणामयी निवासी धनंजय चक्रवर्ती कहते हैं, ‘बचपन से ही पेड़-पौधों से मुझे बेइन्तहाँ लगाव था। बच्चे खिलौनों से खेलना पसन्द करते हैं, लेकिन मुझे पौधों से खेलना पसन्द था।’
ठिगने कदकाठी के धनंजय ने महज आठवीं तक ही पढ़ाई की है। वह शुरुआती दिनों में एक फैक्टरी में काम करते थे लेकिन फैक्टरी में लॉक आउट होने के बाद बेकार हो गए। इसी बीच एक टैक्सी मालिक से टैक्सी मिल गई।
12-13 साल से टैक्सी चला रहे चक्रवर्ती बताते हैं, ‘मुझे हमेशा यह लगता रहा कि पेड़-पौधे भी कुछ बोलते हैं, लेकिन हम समझ नहीं पाते। मैं देखता था कि शहर में पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं और इससे मैं बहुत परेशान रहा करता था। मैं चाहता था कि लोगों को हरियाली का सन्देश दूँ, लेकिन मुझे कोई माध्यम नहीं दिख रहा था।’
जब टैक्सी मिली, तो उन्हें हरियाली का संदेश देने की एक वजह भी मिल गई। इसकी कहानी भी रोचक है। हुआ यों कि एक दिन टैक्सी में एक यात्री चढ़ा, जिसके पास शराब की बोतल थी। इस बोतल से ही टैक्सी को सबुज रथ में तब्दील कर देने का खयाल उनके जेहन में आया। वह कहते हैं, ‘तीन-चार साल पहले का वाकया है यह। रात को मैंने अपनी टैक्सी में एक पैसेंजर को चढ़ाया। वह शराब के नशे में था। उसे उसके गन्तव्य पर उतार कर मैंने टैक्सी गैरेज में लगा दी। सुबह जब मैं टैक्सी लेकर निकला तो देखा कि पीछे की सीट के नीचे शराब की एक खाली बोतल रखी हुई थी। बोतल की बनावट आकर्षक थी। मैं उस बोतल को फेंकना नहीं चाहता था, इसलिये सोचने लगा कि इसका वैकल्पिक उपयोग क्या हो सकता है। उसी वक्त मुझे खयाल आया कि क्यों न इसमें कोई पौधा लगाकर टैक्सी में रख दिया जाये।’ वह आगे बताते हैं, ‘मैंने बोतल को साफ किया और उसमें मनी प्लांट लगा कर उसे टैक्सी की पिछली सीट के पीछे की खाली जगह में रख दिया। यह देख कर मेरे कुछ दोस्तों ने कहा कि टैक्सी में पौधा जिन्दा नहीं रहेगा, लेकिन मैं यह मानने को तैयार नहीं थी, सो पौधे की देखभाल करने लगा। कुछ ही दिनों में मनी प्लांट में नई कोंपले फूट आईं और मैं रोमांचित हो गया।’
काफी दिनों तक टैक्सी में ही मनी प्लांट पलता रहा। एक दिन चक्रवर्ती के दोस्तों ने तंज कसा, जिसके बाद ही टैक्सी को एक चलते-फिरते बाग में तब्दील कर दिया गया। धनंजय चक्रवर्ती ने कहा, ‘मनी प्लांट को देखकर मेरे कुछ दोस्तों ने मुझ पर तंज कसा कि अब मुझे अपने सिर पर ही पौधा लगा लेना चाहिए। यह सुनकर मुझे खयाल आया कि अपने सिर पर तो नहीं, लेकिन टैक्सी की छत पर घास लगाई जा सकती है। लेकिन, इसमें दिक्कत थी कि टैक्सी की छत में ढलाना थी। मैंने टैक्सी की छत में तब्दीली कर लॉन लगाने की इजाजत टैक्सी मालिक से ले ली और एक पुरानी टैक्सी की छत खरीद ली। उक्त छत को उल्टी कर अपनी टैक्सी की छत में लगवा दिया व उसकी चारों तरफ लोहे का पत्तर लगवा दिया। फिर उसमें घास लगा दी। इस तरह टैक्सी की छत पर लॉन सज गई। इसके बाद टैक्सी की पिछली सीट के पीछे की खाली जगह में छह पौधे और सामने की तरफ दो पौधे लगाए।’
टैक्सी के पौधों की देखभाल वह खुद करते हैं। लॉन में फिल्टर लगा हुआ जिससे उसमें पानी डालने पर पानी साफ होकर बाहर निकल जाता है। टैक्सी की चारों तरफ हरियाली बचाने से सम्बन्धित नारे लिखे हुए हैं। टैक्सी 10 से 12 घंटे महानगर कोलकाता की सड़कों पर घूम-घूम कर हरियाली बचाने का सन्देश रही है।
टैक्सी में लॉन और पौधे लगाने से एक फायदा यह हुआ है कि उसमें सफर करने वाले लोगों को चिलचिलाती धूप में भी काफी आराम मिलता है। चक्रवर्ती की मानें तो टैक्सी में बाहर की तुलना में तापमान कम रहता है। गर्मी में ज्यादातर टैक्सियाँ पेड़ की छाँव में आराम फरमाती हैं लेकिन धनंजय चक्रवर्ती का सबुज रथ शहर के चक्कर लगाता है क्योंकि लॉन व पौधों के कारण टैक्सी के भीतर का तापमान बाहर की तुलना में कम होता है। कोलकाता के पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष कहते हैं, ‘टैक्सी की छत पर लॉन व भीतर पौधे होने के कारण बाहर की तुलना में टैक्सी के भीतर तापमान कम-से-कम 5 डिग्री सेल्सियस कम रहता है।'
वैसे, टैक्सी में लगे लॉन व पौधों की देखभाल के लिये धनंजय चक्रवर्ती को अतिरिक्त रुपए खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन पैसेंजरों से वह अतिरिक्त भाड़ा नहीं लेते। वह कहते हैं, ‘टैक्सी में सवार होने वाले यात्री टैक्सी में फूल-पौधे देख कर खुश हो जाते हैं। टैक्सी में यात्री सवार होते हैं, तो उन्हें महूसस होता है कि वे टैक्सी में नहीं किसी बाग में बैठे हुए हैं। टैक्सी के भीतर की सजावट यात्रियों को खूब भाती है और उतरते वक्त वे अतिरिक्त रुपए भी दे देते हैं।'
ग्रीन टैक्सी की लोग जब तारीफ करते हैं, तो धनंजय उन लोगों से भी अपने घरों में पौधे लगाने की अपील करते हैं, ताकि पर्यावरण प्रदूषण से बचा रहे।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ओर से पिछले वर्ष किये गए एक सर्वेक्षण में कहा गया था कि कोलकाता में वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य से काफी अधिक है। सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली की तरह ही कोलकाता को भी वायु प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिये जरूरी कदम उठाना चाहिए। सीएसई के मुताबिक कोलकाता का वायुमण्डल में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा सामान्य से तीन गुना और नाइट्रोजन सामान्य से दोगुना अधिक है।
चक्रवर्ती ने कहा, ‘कई लोग कहते हैं कि पौधे लगाने के लिये उनके पास जगह नहीं है, तो मैं अपनी टैक्सी का हवाला देता हूँ। मैं उन्हें कहता हूँ कि अगर मैं टैक्सी में पौधे लगा सकता हूँ, तो कहीं भी पौधे लगाये जा सकते हैं, बस इच्छाशक्ति की जरूरत है।’
उनकी टैक्सी की कोलकाता में खूब चर्चा होती है। जिन सड़कों से टैक्सी गुजरती है, लोग तस्वीरें खींचते हैं। एक फिल्म की शूटिंग के दौरान महानायक अमिताभ बच्चन ने इस टैक्सी को जाते देखा था, तो उसकी तस्वीर खींच कर उन्होंने इसके बारे में ट्विट भी किया था। महानगर के इक्का-दुक्का ऑटोरिक्शा में भी पेड़-पौधे लगाए गए हैं।
चक्रवर्ती ने कहा कि टैक्सी को चलते-फिरते बाग में तब्दील कर देने का एक फायदा यह भी हुआ है कि उन्हें 10-15 फिक्स्ड पैसेंजर मिल गए हैं।
धनंजय चक्रवर्ती अपनी एम्बेसडर को भी सबुज रथ में बदलने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरी भावी योजना है कि मैं अपने एम्बेसडर को भी चलता-फिरता बाग बनाऊँ और एम्बेसडर लेकर देशभर में घूम-घूम कर हरियाली बचाने के लिये लोगों को जागरूक करुँ।’
सबुज रथ की तारीफ करते हुए पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष ने कहा कि प्रदूषण के मामले में कोलकाता की स्थिति अच्छी नहीं है, चुनांचे ऐसी ही व्यवस्था दूसरी टैक्सियों में भी की जानी चाहिए। और-तो-और ऑटोरिक्शा की छत पर भी लॉन लगाया जा सकता है। इससे दो फायदे होंगे-अव्वल तो इससे शहर के लोग और खास कर आने वाली पीढ़ी हरियाली बचाने के लिये जागरूक होगी और दूसरा महानगर में प्रदूषण का स्तर कम होगा।