लेखक

चार पर्यावरणविदों द्वारा किये गये एक शोध में खुलासा हुआ है कि वेटलैंड्स (आर्द्रभूमि) का तेजी से अतिक्रमण किया जा रहा है और उस पर मकान बनाये जा रहे हैं।
नॉट ए सिंगल बिल बोर्ड: “द शिफ्टिंग प्रायरिटी इन लैंड यूज विदिन द प्रोटेक्टेड वेटलैंड्स ऑफ ईस्ट कोलकाता” नाम के 40 पन्नों में फैले इस शोध में ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के भगवानपुर मौजा को लेकर रिसर्च किया गया है। रिसर्च टीम में ध्रुवा दासगुप्ता, डॉ शुभमीता चौधरी, डॉ सुदेशना घोष व डॉ सोमा सरकार शामिल थीं। भगवानपुर मौजा पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में है। शोध में कहा गया है कि वर्ष 2002 में ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को जब रामसर साइट्स घोषित किया गया था, तब भगवानपुर मौजा में 88.38 प्रतिशत वाटरबॉडी थी। इस घोषणा के बाद वर्ष 2007 में ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स मैनेजमेंट अथॉरिटी का गठन हुआ। इस अथॉरिटी का उद्देश्य वेटलैंड्स को संरक्षित रखना था, लेकिन तब तक यानी वर्ष 2007 तक जलाशय 88.38 प्रतिशत से घट कर 57.15 प्रतिशत पर आ गया था।

वेटलैंड्स को लेकर व्यापक काम करनेवाले विशेषज्ञ ध्रुवज्योति घोष कहते हैं, “जिस तरह से वेटलैंड्स का अतिक्रमण किया जा रहा है, अगर ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाले 20-25 वर्षों में हम अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को खो देंगे और अगर ऐसा होता है, तो हमारा बहुत बड़ा नुकसान हो जायेगा, जिसकी भरपाई नहीं हो पायेगी।” वेटलैंड्स के जिस हिस्से का अतिक्रमण कर कंस्ट्रक्शन किया गया है, क्या उसे उसके प्राकृतिक रूप में लाया जा सकता है? इस सवाल के जवाब में ध्रुवज्योति घोष ने कहा कि ऐसा असंभव है।
शोध में पता चला है कि आर्द्रभूमि के अतिक्रमण के पीछे भूमि के इस्तेमाल में बदलाव भी जिम्मेवार है। शोधपत्र में कहा गया है, “जाँच के दौरान पता चला कि समय के गुजरने के साथ ही लैंड यूज (भूमि के इस्तेमाल) में बदलाव आता गया।”
गौरतलब है कि 19 अगस्त 2002 में रामसर कनवेंशन में इसे अन्तरराष्ट्रीय महत्व का वेटलैंड्स घोषित किया गया था। रामसर कनवेंशन में भारत के 25 वेटलैंड्स को शामिल किया गया है जिनमें चिल्का लेक, भोज वेटलैंड्स, चंद्र ताल, कांजली वेटलैंड्स, रेणुका लेक, रुद्रसागर लेक व अन्य शामिल हैं। ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स में ऐसे जीवाणु मौजूद हैं जो सूरज की किरणों की मदद से सीवर के गंदे पानी को मछलियों के भोजन में बदल देती है। इससे इस वेटलैंड्स में मछली का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। 125 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस वेटलैंड्स से करीब 1,18,000 लोगों के घरों में चूल्हा जलता है। इस वेटलैंड्स पर शोध करने में पर्यावरण विशेषज्ञों को सात महीने लग गये। ध्रुवा दासगुप्ता कहती हैं, “पहले हमने वर्ष 2002, वर्ष 2006 और वर्ष 2016 के आंकड़ों को एकत्र कर शोध किया व इन तीनों वर्षों के भगवानपुर के सैटेलाइट इमेज भी लिये। इसके बाद 19 जून 2016 को ग्राउंड वेरिफिकेशन के लिये गये और जीपीएस पोजीशनिंग ली। इन सबके अलावा दूसरी तकनीकों का भी सहारा लिया गया।”

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1996 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक आदेश देकर ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को संरक्षित करने को कहा था, लेकिन कोर्ट के आदेश का भी पालन नहीं हुआ और वेटलैंड्स का अतिक्रमण जारी रहा।
शोधपत्र में ध्रुवा दासगुप्ता लिखती हैं, “वर्ष 2002 में ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को रामसर साइट घोषित किया गया था। उस वक्त भगवानपुर में 88 प्रतिशत वाटर बॉडीज थी। होना यह चाहिए था कि आर्द्रभूमि के संरक्षण व इससे मछली उत्पादन में बढ़ोत्तरी कर भगवानपुर एक उदाहरण पेश करता, लेकिन हुआ इसका उल्टा। उन्होंने कहा कि वेटलैंड्स के संरक्षण के लिये सबसे पहले सरकार को जो करना चाहिए वह यह कि जगह-जगह बिल बोर्ड लगा कर बताये कि ये अन्तरराष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड्स हैं और इनका अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए।
