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डॉ. दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक 'दुइ पाटन के बीच में'
पृष्ठभूमि
बारिश के अनियमित होने के कारण सिंचाई की जरूरत पड़ती है और इस इलाके में धान की फसल के लिए हथिया नक्षत्र का पानी बहुत जरूरी माना जाता है। इसके अलावा कोसी के पश्चिमी तटबन्ध के निर्माण और कमला आदि नदियों पर तटबन्ध के निर्माण के बाद यह इलाका बाढ़ से मुक्त होने वाला था जिस वजह से यहाँ सिंचाई की जरूरत पड़ती।
1953 वाली कोसी परियोजना के प्रस्ताव में पश्चिमी कोसी नहर का कोई जिक्र नहीं था। शुरू-शुरू में परियोजना के जो नक्शे प्रकाशित किये गये थे उनमें भी पश्चिमी कोसी नहर या उसके हेड-वर्क्स का कोई स्थान नहीं था। फिर भी जब बीरपुर के पास कोसी पर 1950 के दशक के अन्त में बराज का निर्माण शुरू हुआ तब इस उम्मीद में कि भविष्य में कभी पश्चिमी नहर बनाने की योजना बने तो कोई दिक्कत न हो तब इस बराज के साथ ही पश्चिमी कोसी नहर के हेड-वर्क्स के निर्माण का काम हाथ में लिया गया और बराज के साथ ही 1963 में इसका निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया था। नहर के हेड-वर्क्स की साइट नेपाल में थी और नेपाल के साथ बिना किसी प्रचारित राजीनामें के ही, लगता है, इसका निर्माण हुआ। दिलचस्प बात यह थी कि सारी अनिश्चितताओं के बावजूद इस नहर का शिलान्यास जगजीवन राम, तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री, ने 1957 में आम-चुनाव के ठीक पहले कर दिया था। इस शिलान्यास की वजह से मधुबनी और दरभंगा (उस समय संयुक्त दरभंगा जिला) जिलों के किसानों में सिंचाई के लिए आशा का संचार हुआ। पूर्वी कोसी मुख्य नहर 1953 वाली कोसी परियोजना का हिस्सा थी और यह नहर अपने हेड-वर्क्स सहित पूरी की पूरी भारतीय जमीन पर बनने वाली थी। इसलिए पूर्वी नहर के निर्माण के लिए न तो कोई पैसे की कमी थी और न ही इस निर्माण के लिए किसी से इजाजत लेने की जरूरत थी। परियोजना के इस हिस्से पर काम निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चल रहा था।पश्चिमी कोसी नहर का औचित्य
पश्चिमी कोसी नहर के साथ परिस्थितियाँ पूर्वी कोसी मुख्य नहर के मुकाबले एकदम अलग थीं। कोसी बराज भारत-नेपाल सीमा से शुरू होकर पूरी तरह से नेपाल में बना हुआ है। इस बराज से लगा हुआ नदी के दाहिने किनारे पर पश्चिमी कोसी नहर का हेड-वर्क्स है और यह स्थान नेपाल में पड़ता है। जिस तरह पूर्व में पूर्णियाँ और सहरसा में पूर्वी नहर से सिंचाई होने जा रही थी, उसी तरह की संभावनाएं पश्चिम में दरभंगा और मधुबनी के लिए भी दिखाई पड़ती थीं। पश्चिमी कोसी नहर की परियोजना रिपोर्ट के अनुसार इन दोनों जिलों का सम्मिलित क्षेत्रपफल 5,780 वर्ग किलोमीटर है और इसमें से अधिकांश पर खेती होती है। यहाँ की औसत वर्षा दरभंगा में 1143 मिलीमीटर और मधुबनी में 1289 मिलीमीटर है जो जो कि धान की फसल के लिए काफी अच्छी मानी जाती है मगर जब इसे बारिश की समयानुकूलता की शक्ल में देखा जाय तो एक दूसरी ही तस्वीर उभरती है, ऐसा कोसी परियोजना का मानना है।
बारिश के अनियमित होने के कारण सिंचाई की जरूरत पड़ती है और इस इलाके में धान की फसल के लिए हथिया नक्षत्र (अक्टूबर) का पानी बहुत जरूरी माना जाता है। इसके अलावा कोसी के पश्चिमी तटबन्ध के निर्माण और कमला आदि नदियों पर तटबन्ध के निर्माण के बाद यह इलाका बाढ़ से मुक्त होने वाला था जिस वजह से यहाँ सिंचाई की जरूरत पड़ती। एक तीसरा कारण जिसने पश्चिमी कोसी नहर को आगे बढ़ाने में मदद की वह यह था कि अक्टूबर माह में कोसी का औसत प्रवाह 870 घनमेक (30,700 क्यूसेक) रहता है और पूर्वी कोसी मुख्य नहर में उसकी जरूरत का पूरा पानी 480 घनमेक (17,000 क्यूसेक) डाल देने के बाद भी इतना पानी बच जाता है कि पश्चिमी कोसी तटबन्ध से बाढ़ से सुरक्षित इलाकों में, और उसके आगे भी, सिंचाई हो सके।
एक और कारण जो पश्चिमी कोसी नहर के पक्ष में जाता था वह यह था कि दरभंगा जिले के उपलब्ध रिकार्डों से पता लगता था कि 1911 से लेकर 1957 के 47 वर्षों में से 8 वर्षों में धान की बुआई के समय, 19 वर्षों में रोपनी के समय और 20 वर्षों में हथिया नक्षत्र की बारिश न होने की वजह से खरीफ की फसल को नुकसान पहुँचा। परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार अगर सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था होती तो साल-दर-साल इस इलाके में फसल न मारी जाती। पानी की इसी जरूरत और उपलब्धि ने पश्चिमी कोसी नहर योजना को जन्म दिया। नेपाल में भारदह के पास बनने वाले नहर के हेड-वर्क्स से ठीक ही इस क्षेत्र की जनता में आशा की एक नई किरण जगी।