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रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन, शोध-प्रबंध (2006)
“We never know the worth of Water till the tank is dry’’- Thomas Fuller
‘‘वेद के अनुसार दस वृक्ष लगाने से इतना पुण्य मिलता है जितना एक कुआँ खुदवाने से एवं दस कुएँ खुदवाने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना एक तालाब बनवाने से।’’
प्राचीन समय से लेकर आज तक तालाब निर्माण का कार्य निरंतर जारी है, क्योंकि तालाब ही जल-संचयन या संग्रहण करने का एक मात्र सस्ता एवं सर्वसुविधा युक्त साधन है। ग्रामीण क्षेत्रों में मानव जीवन पूर्णतः तालाब के जल पर ही निर्भर रहता है। लोगों के दैनिक कार्यों जैसे-नहाने-धोने की प्रक्रिया, गृह-निर्माण, सिंचाई आदि कार्यों में तालाब के जल का ही उपयोग होता है।
तालाब ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन का मुख्य आधार है। ‘‘जल ही जीवन है’’, जल के बिना जीवन संभव नहीं, जल मानव का मुख्य आधार है, यह प्रकृति की अमूल्य देन है। जल की महिमा का वर्णन करने से कवियों की कलम कभी नहीं अघाई। मानव को जीवित रखने के लिये वायु के बाद दूसरा स्थान जल का ही है। जल का उपयोग मानव आदिकाल से ही अपनी विविध आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करता आया है। यह आवश्यकता प्रगति के साथ-साथ तेजी से बढ़ रही है। आधुनिक समय में तकनीकी विकास के कारण जल का प्रचुर प्रयोग सिंचाई, जल-विद्युत उत्पादन, मत्स्य-पालन, जल-यातायात तथा उद्योग आदि के लिये किया जा रहा है। आज पानी का उपयोग मानव की प्रगतिशीलता का द्योतक बन गया है, फलतः जल की मांग में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है, लेकिन साथ ही जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट भी आ रही है।
तालाब मानव-जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पहले तालाब निर्माण का कार्य तत्कालीन राजवंशों, बड़े मालगुजारों और समाज सेवियों के द्वारा लोक-कल्याण की भावना से करवाया जाता था। लेकिन वर्तमान में यह कार्य शासन अपने अधीन कर रहा है। अधिकांशतः ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब शासकीय ही मिलते हैं, कुछ ही तालाब ग्राम-पंचायत के या निजी हैं। प्रत्येक ग्रामीण क्षेत्र में तालाबों की संख्या 3-5 तक पाई गई है तथा इन तालाबों को ग्रामीण क्षेत्रों में डबरी तालाब, पैठू तालाब, बड़ा तालाब तथा छोटा तालाब जैसे नाम दिए गए हैं। साथ ही तालाब का अपना एक अलग नाम भी होता है जिसे किसी व्यक्ति या स्थान विशेष के नाम से पुकारा जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब का निर्माण अधिवास या कृषि योग्य भूमि के मध्य ढाल वाली सतह पर किया जाता है, ताकि मानव जीवन के सभी कार्य सुविधापूर्ण ढंग से हो सकें। साथ ही तालाब मानव जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है, जैसे-सामाजिक, आर्थिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक।
ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब का आकार कई रूपों में देखा गया है, जैसे वृत्ताकार, वर्गाकार, आयताकार, त्रिभुजाकार एवं साथ ही उनकी एक निश्चित लम्बाई, चौड़ाई एवं गहराई होती है जो जल-ग्रहण क्षमता को बनाए रखती है। प्रत्येक तालाब में मेंड़ (पार) का होना आवश्यक होता है, क्योंकि मेंड़ ही जलस्तर को बनाए रखती है। मेड़ों की संख्या 3 से 4 तक होती है। किसी-किसी तालाब में एक-से दो मेंड़ें देखने को मिलती हैं। इन मेड़ों पर कई प्रकार के प्रतिरूप भी देखने को मिलते हैं, जैसे-मन्दिर, मठ, मकान, आदि। तालाब में पानी आने तथा बाहर जाने का मार्ग भी बना होता है, जिसे मुही (मुखी) एवं उलट के नाम से जाना जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों के तालाबों में कई प्रकार के जीव जन्तु एवं वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, जो मानव के दैनिक जीवन में उपयोगी होती है। कई ऐसी भी वनस्पतियाँ होती हैं जिनका औषधियों के रूप में उपयोग किया जाता है। अतः कहा जाय कि ग्रामीण क्षेत्रों में मानव जीवन पूर्णतः तालाब के जल पर निर्भर रहता है।
शोधगंगा (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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5 | तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष (Social and cultural aspects of ponds) |
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7 | तालाब जल कीतालाब जल की गुणवत्ता एवं जल-जन्य बीमारियाँ (Pond water quality and water borne diseases) |
8 | रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का भौगोलिक अध्ययन : सारांश |
पूर्व-अध्ययन:-
भूगोल विषय में तालाबों को स्वतंत्र इकाई मानकर समग्र रूप से अध्ययन कम हुआ है। उपलब्ध संदर्भों एवं साहित्य के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जल-संसाधनों के विभिन्न आयामों के साथ तालाबों को अपेक्षाकृत कम महत्त्व प्राप्त प्राप्त है। शोध-समीक्षा एवं साहित्य का उल्लेख निम्नांकित रूप में प्राप्त है। Wegner, E.C. एवं Lonok, J.M. (1959) का Water Supply for Rural Areas and Small Communities (WHO) है। तालाबों से ही संबंधित अध्ययन Status Report of the Tanks and Ponds of Hubli, Dharwad City, Karnatak University, Dharwad 22nd to 24 December (2000) में किया गया एवं WHO (1969) का Village Tank : A Source of Drinking Water (WHO/CWS/RD/169-1) है। जल संसाधनों का अधिकांश अध्ययन मुख्यतः वर्षा-जल संतुलन आदि विषयों पर ही केंद्रित है। वर्षा से संबंधित अध्ययनों में थार्नथ्वेट और माथुर (1955-59) का विशेष योगदान रहा।
जल संरक्षण के उपयोग एवं जल प्रबंधन और जल की गुणवत्ता आदि पर अनेक अध्ययन किए गए, जिनमें के.एल. राव (1975) का कार्य इंडियन वाॅटर वेल्थ, डाॅ. वी.पी. सुब्रम्हण्यम (1979) के पुस्तक वाॅटर बैलेंस एण्ड इट्स एप्लीकशन एवं एम.पी. चतुर्वेदी (1976) की वाॅटर, ए सेकंड इंडस्ट्री जल प्रबंधन पर प्रमुख अध्ययन है। जल संरक्षण एवं जल प्रबंधन को देखते हुए अनेक भारतीय भूगोल वेत्ताओं ने भी जल से संबंधित अध्ययन किया, जिनमें सिद्दकी (1949) का पोटेषियलिटीज आॅफ ट्यूबवेल इरीगेशन इन द बदायूं डिस्ट्रिक, झा (1955) का ‘बिहेवियर आॅफ द रीवर्स इन बिहार’ एवं चोर्ले (1971) का ऐन इन्ट्रोडक्शन आॅफ ज्योग्राफिकल हाइड्रोलाॅजी का प्रकाशन हुआ।
जल संसाधन के रूप में अध्ययन का श्रेय गिलवर्ट एफ. व्हाइट (1963) ने नदी बेसिन के जल संसाधन विकास पर ‘‘कॉन्स्टीट्यूशन आॅफ ज्योग्राफिकल एनालिसिस टू रिवर्स बेसिन डवलपमेंट’’ प्रमुख रहा है। साथ ही आर.सी.वार्ड (1978) का पुस्तक ‘‘स्मॉल वाटरशेड एक्सपेरिमेंट’’ एन एप्रेजल आॅफ कॉन्सेप्ट्स एंड रिसर्च डवलपमेंट’’ प्रकाशित हुई। साथ ही संसाधन विकास के वर्तमान अध्ययनों में शर्मा (1985) की पुस्तक ‘‘वाटर रिसोर्स प्लानिंग एंड मैनेजमेंट है।’’
आंध्रप्रदेश में तालाबों द्वारा सिंचाई-व्यवस्था को एस. सतीश और ए. सुन्दर (1990) की ‘‘पीपुल्स पारटीसिपेशन एंड इरीगेशन मैनेजमेंट’’ देखा जा सकता है तथा एच. राबिन्सन व एफएस हुसैन (1978) की फिजिकल एंड ह्यूमन ज्योग्राफी में जल की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। सुधीर वनमाली (1983) ने अपने लेख रनिंग ड्राइ में तालाबों की जल-संग्रहण विधियों पर अध्ययन किया है। अर्चना मिश्रा (2001) ने वाटर रोड मैनेजमेंट में जल संरक्षण की विधि को वैज्ञानिक यंत्रों एवं जल विज्ञान के विशेष संदर्भ द्वारा अध्ययन किया है। स्मिथ (1972) का ‘‘वाटर इन ब्रिटेन’’ जिसमें लेखक द्वारा सर्वप्रथम ब्रिटेन एवं वेल्स के जल संसाधनों का प्रादेशिक स्तर पर वर्णन किया है। वाॅलर्मेन, गिलवर्ट (1971) के योगदान भी उल्लेखनीय है। इनके द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘‘आउट आॅफ वाटर’’ पुस्तक एक उत्कृष्ट रचना है।
डाॅ. आर.एन. माथुर (1969) का ‘‘ए स्टडी आॅफ ग्राउंड वाटर हाइड्रोलॉजी आॅफ द मेरठ डिस्ट्रिक्ट’’ में भौगोलिक अध्ययन किया है। साथ ही टोड (1959), टाॅलमेन (1973) के नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने भूगर्भ जल का विशद अध्ययन किया है तथा रामा (1978) ने ‘‘वाटर रिसोर्स’’ में सिंचाई-योजनाओं का उल्लेख किया है।
जल संरक्षण से संबंधित अन्य अध्ययन Eduard Bockh (1983) Ground Water Natural Resources and Development पत्रिका में भौतिक विज्ञान में संसाधन के रूप में भूमिगत जल का महत्त्वपूर्ण वर्णन किया गया है। जेम्स एवं ली (1971) की ‘‘इकोनॉमिक्स ऑफ वाटर रिसोर्स प्लानिंग’’ जल संसाधन के नियोजन के लिये सफल कृषि के रूप में उल्लेखनीय है। गुप्ता (1979) ने चलित माध्य और सीधी प्रतीपगमन रेखा, वर्षा के व्यवहार और छत्तीसगढ़ प्रदेश में सामान्य तीव्रता वितरण का वर्णन किया है। डेविस एवं डी विस्ट्स (1966) ने ‘‘हाइड्रोजियोलॉजी’’ में एक प्रमुख लेख लिखा, जो जल संसाधन संबंधी सामान्य ज्ञान के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ।
अध्ययन क्षेत्र:-
रायपुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य पूर्व में स्थित है। जिले का भौगोलिक विस्तार 19°45’16’’ उत्तरी अक्षांश से 21°54’ उत्तरी अक्षांश तथा 81°30’ पूर्वी देशान्तर से 82°58’48’’ पूर्वी देशांश के मध्य स्थित है। इस जिले का कुल क्षेत्रफल 15,190,62 वर्ग किमी. है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राज्य में तीसरा बड़ा जिला है तथा जनसंख्या की दृष्टि से राज्य में प्रथम स्थान रखता है। यहाँ की कुल जनसंख्या 25,29,166 है। इसके उत्तर में बिलासपुर, उत्तर-पूर्व में रायगढ़ पूर्व में महासमुंद, दक्षिण में धमतरी तथा पश्चिम में दुर्ग जिला स्थित है। रायपुर जिले की सीमा पर खारुन और शिवनाथ नदियाँ हैं।
रायपुर जिले को प्रशासनिक दृष्टि से तेरह (13) तहसीलों और पन्द्रह (15) विकासखण्डों में विभक्त किया गया है। प्रमुख नगरों की संख्या 9 तथा जिले में कुल ग्राम 2199 हैं। जिले में राजिम, चंपारण, आरंग, रायखेड़ा, चंदखुरी, पलारी, गिरौदपुरी, नंदनवन, गरियाबंद, शिवरीनारायण, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़ पर्यटन स्थल हैं। इस जिले का राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 रायपुर को मुम्बई और कोलकाता जैसे बड़े औद्योगिक केन्द्रों को जोड़ता तथा राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 रायपुर से प्रारंभ होकर विजयनगरम तक जाता है। साथ ही राजमार्ग क्रमांक 5 उत्तर में 111 कि.मी. पर स्थित बिलासपुर जिले को जोड़ता है। साथ ही यह जिला सड़कों और रेलमार्गों द्वारा देश के महत्त्वपूर्ण केन्द्रों से जुड़ा है।
शोध परिकल्पना
1. ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब अधिवास एवं कृषि क्षेत्रों के मध्य बनाया गया है।
2. तालाब का निर्माण प्रायः ढाल क्षेत्रों में किया गया है।
3. ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब और जनसंख्या एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब जल प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
5. तालाबों में जल निकासी के लिये मुही (मुखी) एवं नाली या उलट का निर्माण किया गया है।
शोध का उद्देश्य
यह शोध कार्य छत्तीसगढ़ प्रदेश में स्थित रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों के मूल्यांकन एवं विकास संभावनाओं को ज्ञात करने के उद्देश्य से किया गया है। मुख्य उद्देश्य निम्न बिन्दुओं पर आधारित है:-
1. रायपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों की उपलब्धता का आकलन किया गया है।
2. तालाबों का वितरण एवं प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन किया गया है।
3. ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों की आकारकीय स्वरूपों का अवलोकन किया गया है।
4. तालाब-जल में उपस्थित प्राकृतिक वनस्पतियों का अध्ययन।
5. तालाब के मानव जीवन में पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन।
6. तालाबों के प्रवाह क्षेत्र का अध्ययन।
7. तालाब जल में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन।
8. तालाबों की गहराई एवं जलग्रहण क्षमता का अध्ययन।
9. तालाबों की मेंड़ (पार) की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई एवं अन्य प्रतिरूपों का अध्ययन।
10. तालाबों से सिंचाई, मत्स्य-पालन एवं जल पुनः चक्रण हेतु सुझाव।
11. ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों का मूल्यांकन करना तथा विकास हेतु नई योजनाओं को प्रकाशित करना।
12. तालाब जल जनित बीमारियों का अध्ययन करना।
आंकड़ों का संकलन:
प्रस्तुत शोध प्रबंध मुख्यतः प्राथमिक एवं द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है। प्राथमिक आंकड़ों का संकलन व्यक्तिगत सर्वेक्षण एवं अनुसूचि के द्वारा किया गया है।
द्वितीयक आंकड़ों के संकलन विकासखंड एवं तहसील स्तर के कार्यालय, भू-अभिलेख, कृषि-विभाग, पंचायत विभाग से किया गया है। साथ ही जिले से संबंधित आंकड़ों सांख्यिकी कार्यालय से एवं वर्षा संबंधी आंकड़ों को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर से प्राप्त किया गया है।
विधितंत्र एवं मानचित्रण:-
रायपुर जिले के विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण हेतु उपयुक्त सांख्यिकीय एवं मानचित्रीय विधियों का प्रयोग किया गया है। आंकड़ों का विश्लेषण एवं मानचित्रण विकासखंड स्तर पर किया गया है।
जिले की भौतिक पृष्ठभूमि को स्थिति के अनुसार दर्शाया गया है। रायपुर जिले की जलवायु को समझाने के लिये क्लाइमोग्राफ, हीदरग्राफ का सहारा लिया गया है तथा जनसंख्या के वितरण को बिन्दु विधि द्वारा मानचित्र में प्रदर्शित किया गया है।
शोध-प्रबंध की रूपरेखा
प्रस्तुत शोध-प्रबंध को मुख्य रूप से सात अध्यायों में बाँटा गया है।
किसी भौगोलिक अध्ययन में प्रदेश की भौगोलिक विशेषताओं का अध्ययन प्रारंभिक आवश्यकता है। प्रस्तुत अध्ययन के प्रथम अध्याय में रायपुर जिले की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझाने का प्रयास किया गया है जिसमें जिले की स्थिति एवं विस्तार प्रशासनिक विभाजन, भूवैज्ञानिक संरचना, उच्चावच, अपवाह तंत्र, जलवायु, तापमान, वर्षा, सापेक्षित आर्द्रता मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जनसंख्या वितरण एवं घनत्व, आयु एवं लिंग-संरचना, परिवहन, व्यावसायिक-संरचना, भूमि-उपयोग-प्रतिरूप।
द्वितीय अध्याय में तालाबों का वितरण, तालाबों का इतिहास, तालाबों का स्वामित्व, तालाब की धरातलीय मिट्टी, तालाब को प्रभावित करने वाले कारक : प्राकृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष का अध्ययन किया गया है।
तृतीय अध्याय में तालाबों की आकरिकीय स्वरूप जलस्रोत की संख्या, तालाबों का क्षेत्रफल, तालाबों में मेंड़ की संख्या, तालाबों में मेंड़ की माप, तालाब की गहराई, तालाबों की जल-ग्रहण क्षमता, तालाबों में मेंड़ निर्माण की सामग्री, तालाबों में जल-मार्ग, तालाबों का अप्रवाह क्षेत्र, तालाबों के जलस्रोत, तालाबों में जलस्तर पर विवेचन किया गया है।
चतुर्थ अध्याय में तालाब-जल का उपयोग: निस्तारी कार्यों में, पशुओं द्वारा उपयोग, मत्स्यपालन में उपयोग, सिंचाई कार्यों में उपयोग एवं अन्य निर्माण-कार्यों में उपयोग तथा तालाब एवं अधिवास के मध्य दूरी का अध्ययन किया गया है।
पंचम अध्याय में तालाब जल के सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षों का अध्ययन, तालाबों की मेंड़ पर बने प्रतिरूपों यथा: - मकान, मंदिर, मठ, घाट/पचरी का अध्ययन, तालाब के धार्मिक पक्षों-विवाह, मृत्यु, तीज, त्योहार, लोक-कथा का वर्णन किया गया है।
षष्टम अध्याय में तालाब के जल में जैव-विविधता, तालाब-जल में जीव-जंतु यथा मछली, मेढ़क, केकड़ा, कछुआ, जोंक, सर्प एवं अन्य जीवों का अध्ययन, तालाब जल में प्राकृतिक वनस्पति वृक्ष, गाद, काई, कमल, जलकुंभी, ढेस, सिंघाड़ा, आदि का वर्णन किया गया है।
सप्तम अध्याय को दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग के अन्तर्गत तालाब जल की रासायनिक गुणवत्ता, घुलनशील ठोस तत्व, कठोरता, अम्लता एवं क्षारीयता, घुलनशील यौगिक, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम, क्लोराइड, सोडियम एवं पोटैशियम, तालाब-जल की जीवाणु गुणवत्ता केबीफार्म जीवाणु, जल की गुणवत्ता में सामयिक परिवर्तन, तालाब-जल-जन्य रोग-पीलिया, हैजा, आंत्रशोध, पेचिस, टाइफाइड ज्वर, डायरिया, कृमि एवं जल स्रोत:- हैण्ड पम्प, कुआँ, नलकूप, आदि का अध्ययन। द्वितीय भाग के अंतर्गत तालाबों का संरक्षण, जल-संचयन-क्षमता में वृद्धि, तालाबों में जलाधिक्य को नियमित करना, मेड़ों का संरक्षण, नये तालाबों का निर्माण, तालाब-संरक्षण एवं भूमिगत जल-संभरण, तालाब संरक्षण एवं जन जागरूकता, वृक्षारोपण, जल प्रबंधन नई प्रवृत्तियाँ अध्ययन में शामिल हैं।
शोध प्रबंध का प्रस्तुतीकरण
शोध कार्य को निम्नांकित अध्यायों में विभक्त किया गया है - प्रस्तावना, महत्त्व, शोध का उद्देश्य, पूर्व शोध साहित्य की समीक्षा, शोध-परिकल्पना, विधितंत्र एवं मानचित्रण, प्रस्तावित शोध प्रबंध की रूपरेखा।
अध्याय 1:- भौगोलिक पृष्ठभूमि - स्थिति एवं विस्तार, प्रशासनिक विभाजन, भू-वैज्ञानिक संरचना, उच्चावच, अपवाह तंत्र, जलवायु, तापमान, वर्षा, सापेक्षित आर्द्रता, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जनसंख्या वितरण एवं घनत्व, आयु एवं लिंग संरचना, परिवहन, व्यावसायिक संरचना, भूमि उपयोग प्रतिरूप।
अध्याय 2: - रायपुर जिले में तालाब - तालाबों का वितरण, तालाबों का इतिहास, तालाबों का स्वामित्व, तालाब की धरातलीय मिट्टी, तालाब को प्रभावित करने वाले कारक।
अध्याय 3:- तालाबों की अकारिकीय स्वरूप एवं जल ग्रहण क्षमता - तालाबों की आकारिकीय स्वरूप, जलस्रोत, तालाबों का क्षेत्रफल, तालाबों में मेंड़ की संख्या, तालाबों में मेंड़ की माप, तालाबों की गहराई, तालाबों की जल ग्रहण-क्षमता, तालाबों में मेंड़ निर्माण सामग्री, तालाब में जल-मार्ग, तालाबों का अपवाह क्षेत्र, तालाबों के जलस्रोत, तालाबों में जलस्तर।
अध्याय 4:- तालाब-जल का उपयोग - तालाब जल का उपयोग, तालाब जल का निस्तारी कार्यों में उपयोग, तालाब जल का पशुओं द्वारा उपयोग, तालाब जल का सिंचाई कार्यों में उपयोग, तालाब-जल का अन्य निर्माण कार्यों में उपयोग, तालाब एवं अधिवास की दूरी।
अध्याय 5:- तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष - तालाबों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष, तालाब एवं ग्राम्य जीवन, तालाब जल का सामाजिक पक्ष, विवाह, मृत्यु, संस्कार, तालाब एवं लोक कथाएँ, तालाब-जल एवं धार्मिक परंपराएँ, तीज-त्यौहार, तालाबों की मेंड़ पर बने प्रतिरूपों का अध्ययन, तालाबों के मेंड़ में मकान, तालाबों के मेंड़ में मंदिर, तालाब की मेंड़ में मठ, तालाबों में घाट/पचरी का अध्ययन।
अध्याय 6:- तालाब-जल में जैव विविधता - तालाब जल में जैव विविधता, तालाब जल में प्रमुख जीवों का अध्ययन, तालाब-जल में प्राकृतिक वनस्पति का अध्ययन।
अध्याय 7:- तालाब-जल की गुणवत्ता एवं जल-जन्य बीमारियों तथा जल संरक्षण-(अ) तालाब-जल की रासायनिक गुणवत्ता:- घुलनशील ठोस तत्व, कठोरता, अम्लता एवं क्षारीयता, घुलनशील यौगिक, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम, क्लोराइड सोडियम एवं पोटेशियम, तालाब-जल की जीवाणु गुणवत्ता, तालाब-जल में कोबी फार्म जीवाणु, जल की गुणवत्ता में सामयिक परिवर्तन, जल जन्य रोगों का अध्ययन, जल के अन्य स्रोतों का अध्ययन।
(ब) तालाबों का संरक्षण: जल संचयन क्षमता में वृद्धि, तालाबों में जलाधिक्य को नियमित करना, मेड़ों का संरक्षण, नये तालाबों का निर्माण, तालाब-संरक्षण एवं भूमिगत जल-संभरण, तालाब संरक्षण एवं जन जागरूकता, वृक्षारोपण, जल प्रबंधन, नई प्रवृत्तियाँ।