रायपुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के मध्यपूर्व में 19°45’16’’ उत्तरी अक्षांश से 21°45’ उत्तरी अक्षांश तथा 81°31’ पूर्वी देशांश से 82°58’38’’ पूर्वी देशांश के मध्य स्थित है। जिले का कुल क्षेत्रफल 15190.60 वर्ग कि.मी. है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राज्य का दूसरा बड़ा जिला है। उत्तर-पूर्व में बिलाईगढ़ विकासखण्ड से लेकर दक्षिण पूर्व में देवभोग विकासखण्ड तक लगभग 485 कि.मी. की लंबाई में यह जिला अर्द्ध चंद्राकार स्वरूप लिये हुए है। यह दक्षिण में धमत्तरी, पश्चिम में दुर्ग, उत्तर में बिलासपुर, उत्तर-पूर्व में रायगढ़, पूर्व में महासमुन्द, दक्षिण-पूर्व में ओडिशा का कालाहांडी जिले से घिरा हुआ है। जिले की पश्चिमी सीमा का निर्धारण खारुन नदी एवं उत्तरी सीमा शिवनाथ एवं महानदी करती है, पूर्व में महानदी पुनः जिले को महासमुन्द से पृथक करती है।
जनगणना वर्ष 2001 के अनुसार जिले की जनसंख्या 30,09,042 है। यह जनसंख्या 2199 ग्रामों एवं 09 शहरों में फैली हुई है। रायपुर नगर छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी है। प्रशासनिक दृष्टि से रायपुर जिले को 13 तहसीलों, यथा रायपुर, अभनपुर, आरंग, तिल्दा, बलौदाबाजार, पलारी, बिलाईगढ़, कसडोल, सिमगा, भाटापारा, राजिम, देवभोग, गरियाबंद तथा 15 विकासखण्डों में विभाजित किया गया है। जिले में 63 ग्राम अबादीविहीन एवं 87 वन ग्राम हैं। राजस्व ग्राम 2112 है तथा जिले में साक्षरता 68.8 प्रतिशत है।
सारणी 1.1 रायपुर जिला: जनसंख्या एवं क्षेत्रफल | |||
क्रमांक | विकासखण्ड | क्षेत्रफल (वर्ग कि.मी.) | जनसंख्या |
1 | धरसींवा | 615.67 | 2,28,907 |
2 | आरंग | 879.62 | 1,89,512 |
3 | अभनपुर | 589.81 | 1,35,815 |
4 | सिमग | 584.10 | 1,15,792 |
5 | तिल्दा | 718.88 | 1,42,489 |
6 | भाटापारा | 455.98 | 94,263 |
7 | बलौदा बाजार | 628.81 | 1,50,775 |
8 | पलारी | 544.42 | 1,33,026 |
9 | बिलाईगढ़ | 628.42 | 1,49,696 |
10 | कसडोल | 678.12 | 1,55,712 |
11 | गरियाबंद | 700.45 | 64,791 |
12 | छुरा | 718.63 | 83,215 |
13 | मैनपुर | 634.20 | 88,339 |
14 | देवभोग | 279.83 | 69,264 |
15 | राजिम | 474.16 | 1,15,656 |
योग | 9194.10 | 30,09,042 | |
स्रोत: सांख्यिकीय कार्यालय, रायपुर। |
जिले में 15 विकासखण्डों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा आरंग विकासखण्ड है, जो 879.62 वर्ग कि.मी. में है तथा सबसे छोटा देवभोग विकासखण्ड है, जिसका क्षेत्रफल 279.83 वर्ग कि.मी. है एवं जनसंख्या की दृष्टिकोण से सबसे बड़ा विकासखण्ड धरसींवा है, जिनकी जनसंख्या 228907 एवं सबसे छोटा देवभोग विकासखण्ड है, जहाँ की जनसंख्या 69264 है।
भू-वैज्ञानिक संरचना
आद्य महाकल्प से अधिनूतन तक के शैल समूह मिलते हैं। रायपुर जिले में चार प्रमुख भू-वैज्ञानिक संरचनाएँ मिलती हैं। सबसे प्रमुख शैल कुडप्पा युगीन शैल समूहों का घनत्व है। इसका क्षेत्र प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र के पूर्वी एवं उत्तरी भाग में है। आर्कियन की चट्टानें अध्ययन क्षेत्र के 8607 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैली है। आर्कियन समूह में ग्रेनाइट व नीस चट्टानें मिलती हैं। प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र में पाये जाने वाले शैल समूहों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है।
धारवाड़ शैल समूह
धारवाड़ शैल कायांतरित शैल एवं अवसादी शैल है, जिनमें भ्रंशन तथा वलन पाया जाता है। यह शैल रायपुर जिले के पूर्वी भाग में पाया जाता है, जो महानदी के दक्षिण में सोनाखान की पहाड़ियों में स्थित है।
पूर्व आर्कियन युग का शैल समूह
आर्कियन युग की चट्टानों का विस्तार रायपुर जिले की उच्चभूमि पर है। इसमें ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों की अधिकता है। यह अन्तरवैर्धो आग्नेय शैल है एवं अत्यंत कठोर है। तथा इसका निर्माण विभिन्न पर्वत निर्माणकारी प्रक्रिया के अंतर्गत हुआ है। इसका विस्तार क्षेत्र के दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी भाग में है।
सारणी - 1.2 Area-under different Geological formations | ||||
Group | System | Series | Formation | Area (k.m2) |
Precambrian Archaean | Cuddupan Dharwar | Raipur
Chandarpur Series Sakoli | (a) Shale & Limestone (b) Khairagarh and Stone Gunderdehi Shale Charmurialime Stone Chandrapurlime Stone Basic intrusive Rocks Granites Gneissers | 3174 705 2080 2645 1019
8607 |
प्लीस्टोसीन युग से वर्तमान समय तक
इस अवधि में विभिन्न स्वरूपों में मिट्टियों का आविर्भाव हुआ। इनमें लेटेराइट मिट्टी प्रमुख है। अध्ययन क्षेत्र में इसका क्षेत्र छोटे-छोटे क्षेत्रों में फैला हुआ है।
वर्तमान युगीन
वर्तमान युगीन चट्टानों में प्रमुख मिट्टी है। यह नदियों के मैदानों में पायी जाती है, जो कालांतर में चट्टानों के विखण्डन से विभिन्न प्रकार के स्वरूपों में विकसित हुआ है। इसमें उपजाऊपन की मात्रा भिन्न-भिन्न है।
चूना-पत्थर-सिरीज
यह ऊपरी कुडप्पा क्रम की चट्टानें हैं। इसके अंतर्गत रायपुर क्रम एवं चन्द्रपुर क्रम आता है, जो क्रमशः अध्ययन-क्षेत्र में 3174 वर्ग किलोमीटर व 2745 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर विस्तृत है। इसकी मोटाई 300 मीटर से भी अधिक है। यहाँ चूने का पत्थर भिन्न पर्तों में पाया जाता है।
बलवा-पत्थर-सीरीज 3
इसके अंतर्गत खैरागढ़, चन्द्रपुर क्रम आता है, जिसका विस्तार क्रमशः 705 वर्ग किलोमीटर से 3033 वर्ग किलोमीटर है। यह केवल महानदी घाटी में मिलता है तथा यह पुरानी चट्टानों के ऊपर स्थित है, इसकी मोटाई 300-600 मीटर के मध्य है। इस सिरीज में निम्नलिखित चट्टानें पायी जाती हैः-
सारणी 1.3 | |
Rocks | Thickness in meter |
1. Coursea Sand Stone | 30 |
2. Pink and Buff clay Stone | 30 |
3. Blank and Buff Compact Stone | 40 |
यह सिरीज दक्षिण से उत्तर की ओर 16-20 कि.मी. की पेटी में उबड़-खाबड़ वनाच्छादित क्षेत्रों में विस्तृत है, जिसमें काग्लोगरेट्स बलुवा-पत्थर-धब्बेदार, ग्रेनाइट पाये जाते हैं। पूर्व में यह सिरीज 1500 मीटर तक विस्तृत है।
आर्कियन युग
जिले के पूर्वी भाग सोनाखान व देवरी क्षेत्र में आर्कियन चट्टानें पायी जाती हैं। आर्कियन व धारवाड़ की चट्टानें सतह पर दृष्टिगोचर होती हैं। बिलाईगढ़ के दक्षिणी भाग भी इसके अंतर्गत शामिल हैं। धारवाड़ क्रम की चट्टानें दक्षिण एवं पूर्व में फैली हैं। इसमें ग्रेनाइट व नीस चट्टानें प्रमुख है। इसका क्षेत्रफल 8.607 वर्ग किलोमीटर है, अतः जिले के अधिकांश क्षेत्र में Precambrian जिसमें कुडप्पायुगीन चट्टानें आती है।
उच्चावच
रायपुर जिला भारतीय प्रायद्वीप का भाग है तथा इसका धरातलीय आकृति महानदी द्वारा निर्मित छत्तीसगढ़ के मैदान का एक भाग है, इसकी ढाल अत्यंत मंद या साधारण है। समुद्र तल से औसत ऊँचाई 298 मीटर है। यह मैदान का उत्तरी-पश्चिमी किनारा है। मैदान का दक्षिणी व पूर्वी भाग अविच्छिन्न भूमि है। उच्चावच की दृष्टि से रायपुर जिले को दो प्रमुख प्राकृतिक भागों में बाँटा गया है:-
1. उत्तरी-पश्चिमी महानदी मैदान,
2. दक्षिण-पूर्वी रायपुर उच्च भूमि।
उत्तरी-पश्चिमी महानदी मैदान
महानदी का मैदान रायपुर जिले के मैदानी भाग का एक हिस्सा है, जो महानदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित हुआ है। इस मैदानी क्षेत्र में कुडप्पा क्रम के जमाव मिलते हैं। उत्तर-पश्चिम में इस क्षेत्र की ऊँचाई 230 मीटर तथा दक्षिण में इस क्षेत्र की ऊँचाई 300 मीटर है, जिले में महानदी मध्य भाग में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर की ओर बहती है। इसी आधार पर मैदानी भाग को दो प्रमुख भागों में बाँटा गया हैः-
(अ) महानदी-खारुन दोआब-क्षेत्र
(ब) ट्रास-महानदी-क्षेत्र
दक्षिण-पूर्वी रायपुर उच्च भूमि
इस भूमि में आर्कियन क्रम की चट्टानों का विस्तार मिलता है। इस क्षेत्र की ऊँचाई 300 से 951 मीटर है। इन क्षेत्रों में नदियों ने गहरा कटाव किया है। उच्च भूमि क्षेत्रों में भूमि के विविध स्थल रूप देखने को मिलते हैं, जिले के दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थिति सोनाबेरा पठार में 600 से 900 मीटर की अधिकतम ऊँचाई मिलती है। यहाँ की प्रमुख चट्टानें क्वार्टजाइट है।
(अ) सोनाबेरा पठार
(ब) दक्षिण पहाड़ी क्षेत्र
सोनाबेरा पठार
सोनाबेरा पठार में नदियों की आरीय प्रवाह मिलता है तथा नदियाँ प्रपात बनाती है। ये प्रपात चूना-पत्थर एवं बलुवा-पत्थर वाले ढाल पर मिलते हैं। तथा इन क्षेत्र में अनेक छोटी पहाड़ियाँ भी हैं।
दक्षिण पहाड़ी क्षेत्र
यह क्षेत्र दक्षिण की तहसील बिंद्रानवागढ़ क्षेत्र में विस्तृत है। इसकी ऊँचाई 500 से 600 मीटर है। भू-वैज्ञानिक संरचना की दृष्टि से यह क्षेत्र ग्रेनाइट, नाईस चट्टान से निर्मित है, यह लगभग 800 मीटर ऊँची है।
अपवाह तंत्र
रायपुर जिले में महानदी एवं इसकी सहायक नदियों से धरातलीय जल का अधिकांश भाग प्रवाहित होता है। रायपुर जिले में महानदी की सहायक नदियों में इसके दाहिनी ओर से मिलने वाली सिलियारी, पैरी कुरार, जोंक तथा कनकमंदी नदियाँ प्रमुख हैं। इन नदियों का प्रवाह दक्षिण में उत्तर दिशा की ओर है, तेल नदी, उदन्ती नदी एवं सुरंगी नदी छत्तीसगढ़ राज्य से बाहर ओडिशा में महानदी से मिलती है। बाईं ओर से मिलने वाली नदियों की संख्या नगण्य है, सिर्फ शिवनाथ नदी ही अपनी सहायक नदियों के साथ महानदी में मिलती है अर्थात संपूर्ण रायपुर जिला महानदी बेसिन के अंतर्गत आता है।
प्रवाह प्रणाली में विस्तृत अध्ययन के लिये प्रत्येक सहायक नदियों का विवरण आवश्यक है। जिले को सात नदी प्रणाली में विभक्त किया जा सकता है-
(1) महानदी प्रवाह क्षेत्र, (2) शिवनाथ, (3) खारुन, (4) पैरी नदी, (5) जोंक नदी, (6) सुरंगी नदी, (7) तेल नदी।
1. महानदी
महानदी-क्रम का प्रवाह क्षेत्र सबसे बड़ा है। इसकी लम्बाई प्रदेश में 286 कि.मी. तथा कुल लम्बाई 86.4 किमी है। इसकी सहायक नदियों में सीता, भूरा, पतवाह, नामदेव एवं रक्सानाला प्रमुख हैं; ये सभी पूर्व की ओर से आकर मिलते हैं। इसके तट पर बसे प्रमुख नगरों में राजिम और शिवरीनारायण है।
2. शिवनाथ नदी
शिवनाथ नदी जिले के पश्चिमी भाग में बहती है। इस नदी के सहायकों में सिहगिरी, बंजारी, जमुनिया एवं खरखरा प्रमुख है। ये सभी उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं। इसकी लम्बाई 290 कि.मी. है तथा नदी का अपवाह-क्षेत्र 2025 वर्ग कि.मी. है।
3. खारुन नदी
खारुन नदी रायपुर जिले की पश्चिमी सीमा बनाती हुई प्रवाहित होती है। यह शिवनाथ की सहायक नदी है। इस नदी का प्रमुख सहायक कोलहान नाला एवं छोकरा नाला है, जो अभनपुर से होते हुए खारुन नदी में मिलते हैं। इसका अपवाह क्षेत्र 2350 वर्ग कि.मी. है।
4. पैरी नदी
यह नदी बिन्द्रानवागढ़ के पहाड़ी भागों से निकलकर दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर प्रवाहित होते हुए महानदी में राजिम के पास मिल जाती है। इस नदी के सहायकों में सोंढूर नदी व ललिम नाले प्रमुख हैं। इसका अपवाह क्षेत्र 2975 वर्ग कि.मी. है।
5. जोंक नदी
यह नदी रायपुर के पूर्वी क्षेत्र का जल लेकर बलौदाबाजार तहसील में मरकरा नामक स्थान से पूर्व की ओर महानदी के उत्तरी तट पर स्थित शिवरीनारायण के ठीक विपरीत दक्षिण तट पर मिलती है। इसका अपवाह क्षेत्र 2900 वर्ग कि.मी. है।
6. सुरंगी नदी
यह महासमुन्द के पूर्वी भाग से निकलकर पूर्व में कोरापुर जिले की ओर प्रवाहित होती है इसका अपवाह क्षेत्र 1150 वर्ग किमी है।
7. तेल नदी
यह नदी गरियाबंद तहसील के दक्षिण भाग में विकसित है तथा इसका अपवाह क्रम पश्चिम से पूर्व की ओर है। उडीक व सुजकेल प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। इसका अपवाह क्षेत्र 1673 वर्ग कि.मी. है।
उपर्युक्त नदियों के जल का उपयोग वर्तमान में सिंचाई के लिये हो रहा है। इन नदियों से जिले के धमतरी, रायपुर, भाटापारा एवं बलौदाबाजार तहसील में सिंचाई की जाती है।
सारणी 1.4 | ||
नदियाँ | प्रवाह क्षेत्र (वर्ग किमी.) | प्रवाह क्षेत्र का (प्रतिशत) |
महानदी | 8200 | 38.54 |
पैरानदी | 2975 | 11.98 |
खारुन नदी | 2350 | 11.04 |
जोंक | 2900 | 13.63 |
सुरंगी | 1150 | 5.44 |
शिवनाथ | 2025 | 9.51 |
तेल | 1673 | 7.86 |
योग | 21273 | 100.00 |
स्रोत:- केन्द्रीय जल आयोग, रायपुर |
जलवायु- “Climate is a summary of the resultant of the manifold weather influences.” किसी भी स्थान विशेष की लम्बी समय अवधि के मौसम का अध्ययन ही जलवायु है।
रायपुर जिले में तालाबों का निर्माण मनुष्य का जलवायु के साथ सामंजस्य का प्रतिरूप है, जलवायु के प्रमुख तत्वों के तापमान, वर्षा, सापेक्षित आर्द्रता एवं वायुदाब की दशाओं को विश्लेषित किया गया है। जल मानव की प्राथमिक आवश्यकता है। जिले में जल की पूर्ति वर्षा के माध्यम से होती है, वर्षा के दिन वर्ष में 52-62 दिनों तक है। शेष समय में जल आपूर्ति के लिये तालाबों का निर्माण किया गया है। तालाबों में संग्रहीत जल का उपयोग वर्ष भर किया जाता है।
रायपुर जिला कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है। यहाँ की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी है, कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार तथा थार्नवेट के अनुसार जलवायु प्रदेश के अंतर्गत रायपुर आता है। यहाँ वर्ष में कुल तीन ऋतुएँ होती हैं। थार्नवेट ने नमी के आधार पर रायपुर जिले को निम्न जलवायु विभागों में बाँटा हैः-
1. शरद ऋतु - नवम्बर से फरवरी
2. ग्रीष्म ऋतु - मार्च से मध्य जून
3. वर्षा ऋतु - मध्य जून से अक्टूबर तक
तापमान: किसी स्थान की उष्णता जो सूर्य की किरणों से प्राप्त होती है, उस स्थान का तापक्रम कहलाती है। जिले में मई का महीना सर्वाधिक तापमान वाला होता है। मई महीने का औसत उच्चतम तापमान 33.9 डिग्री सेन्टीग्रेड है। मई माह के अंत व जून में द.प. मानसून प्रारम्भ होता है। इन दिनों हवाओं की गति तथा उष्णता अधिक होती है। जून के द्वितीय सप्ताह में मानसून का आगमन हो जाता है। वर्षा प्रारंभ होने से मौसम की तपिश कम हो जाती है। यह वर्षा मात्र सितम्बर तक होती है। अक्टूबर माह में तापमान कुछ बढ़ता है तथा नवंबर में तापमान में गिरावट दर्ज होती है। दिसंबर का माह सबसे ठंडा होता है दिसंबर का औसत अधिकतम तापमान 18.9 डिग्री सेन्टीग्रेड तथा न्यूनतम औसत 10.5 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। उल्लेखनीय है कि रायपुर जिले में कभी भी तापमान 0 डिग्री नहीं होता है।
सारणी 1.5 रायपुर जिला: तापमान सेंटीग्रेड में (वर्ष 2005) | |||
माह | अधिकतम तापमान | न्यूनतम तापमान | औसत तापमान |
जनवरी | 27.5 | 11.9 | 19.7 |
फरवरी | 30.4 | 15.4 | 22.9 |
मार्च | 35.4 | 18.9 | 27.2 |
अप्रैल | 39.1 | 21.9 | 30.5 |
मई | 41.7 | 23.0 | 33.9 |
जून | 39.8 | 28.4 | 34.2 |
जुलाई | 30.5 | 24.5 | 27.5 |
अगस्त | 29.5 | 24.5 | 27.0 |
सितंबर | 31.1 | 24.6 | 27.9 |
अक्टूबर | 31.3 | 22.9 | 27.1 |
नवम्बर | 29.3 | 12.6 | 20.9 |
दिसंबर | 27.4 | 10.5 | 18.9 |
स्रोत: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर |
वर्षा- रायपुर जिले में मानसूनी हवाओं के वर्षा के द्वारा जल की आपूर्ति होती है। जिले का औसत वार्षिक वर्षा 119.5 सेन्टीमीटर है। यह 85.3 सेन्टीमीटर देवभोग में प्रारम्भ होकर 136.7 सेन्टीमीटर उत्तर पूर्वी रायपुर क्षेत्र में वितरित होती है। उत्तर-पश्चिम रायपुर क्षेत्र में यह औसत कम होता जाता है। मध्य रायपुर जिले का औसत वार्षिक वर्षा 124.3 सेन्टीमीटर है। उत्तर दिशा में स्थित बलौदाबाजार का औसत वार्षिक वर्षा 110.9 सेन्टीमीटर है।
वर्तमान अध्ययनों में यह पाया गया है कि मानसून प्रारम्भ होने का समय जून के अंतिम सप्ताह तक स्थानांतरित हो रहा है। साथ ही जून से अक्टूबर के मध्य 103.7 सेन्टीमीटर वर्षा प्राप्त होती है जोकि कुल उपलब्ध वर्षा का 95.93 प्रतिशत है। जुलाई व अगस्त सर्वाधिक वर्षा वाले महीना है। इन महीनों में औसत 69.19 से.मी. वर्षा प्राप्त होती है, जो कि कुल उपलब्ध वर्षा का 57 प्रतिशत है। सितम्बर तक वर्षा की मात्रा घटकर 10 से.मी. हो जाती है।
जिले में 58 से 64 दिनों तक वर्षा की प्राप्ति होती है। तालाबों के लिये उपलब्ध जल की मात्रा के लिये यह अतिआवश्यक है, क्योंकि जिन वर्षाें में वर्षा अधिक होती है उन वर्षों में तालाबों में जल का स्तर अधिक पाया जाता है तथा जिस वर्ष वर्षा कम होती है तालाबों में जलस्तर कम पाया जाता है। मुख्यतः वर्षा के द्वारा ही तालाबों में जल संरक्षित किया जाता है, अतः वर्षा का जल तालाबों में जल-संरक्षण पर स्पष्ट प्रभाव डालता है।
सारणी 1.6 Rain Fall in Raipur District (Fourteen Years) | |
वर्ष | वार्षिक वर्षा (से.मी.) |
1982 1983 1984 1985 1986 1987 1988 1989 1990 1993 2000 2001 2002 2003 | 94.0 113.0 50.3 55.7 69.0 89.2 90.5 57.3 115.9 101.0 78.9 23.82 57.8 110.9 |
स्रोत: इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर |
वाष्पीकरण
वाष्पीकरण मुख्यतः ग्रीष्म ऋतु के अप्रैल-मई के महीने में होता है, क्योंकि अप्रैल और मई महीने का तापमान उच्च पाया जाता है। तापमान की अधिकता के कारण वाष्पीकरण की प्रक्रिया अधिक होती है जिससे सामान्यतः इस महीने में लू से वाष्पीकरण होता है।
सापेक्षित आर्द्रता
दक्षिण पश्चिमी मानसून के मौसम में सापेक्षित आर्द्रता का 75 प्रतिशत से अधिक रहता है। मानसून के पश्चात यह आर्द्रता कम होने लगती है, अक्टूबर-नवम्बर व दिसम्बर में यह घटकर 63 प्रतिशत तथा फरवरी मार्च-अप्रैल में 44 प्रतिशत तक हो जाती है, मई के माह में सापेक्षित आर्द्रता 36 प्रतिशत तक हो जाती है।
सापेक्षित आर्द्रता में भी वाष्पीकरण का वृद्धि को स्पष्ट करती है। जिले में तालाबों के जल का वाष्पीकरण एक प्रमुख समस्या है। सामान्यतः अप्रैल-मई के महीनों में जल की सापेक्षित आर्द्रता 40 प्रतिशत से कम हो जाती है।
मिट्टी
बैनेट के अनुसार: ‘‘मिट्टी भूपटल पर पायी जाने वाले असंगठित पदार्थ की वह ऊपरी परत है जो मूल शैलों के विघटन तथा वनस्पति के विनियोजन से बनती है।
विश्व में सभी जीवों को भोजन परोक्ष या अपरोक्ष रूप से मृदा से प्राप्त होता है। मिट्टी के निर्माण में शैलों की मात्रा धरातल की बनावट, जलवायु की दशाएँ तथा जीवांश की उपस्थिति का हाथ होता है। उपरोक्त प्रत्येक तत्वों की भिन्नता के अनुसार ही भारतवर्ष में मृदा एवं भूमि उपयोग सर्वेक्षण (1970) के अनुसार जिले में अधिकांशतः लाल एवं पीली मिट्टियाँ पायी जाती हैं। उक्त अध्ययन एवं इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय के मृदा विभाग के आंकड़ों के आधार पर जिले की मिट्टियों के निर्माण में नयापन व पितांश की कमी पायी जाती है। उल्लेखनीय है कि धरातलीय ढाल तथा भू-आकार मिट्टियों के निर्माण के माध्यम हैं तथा मिट्टी की गहराई भी स्थानीय मुख्य ढाल से प्रभावित होती है। मिट्टियों के गुणों तथा उर्वरा शक्ति में भिन्नता को रंग तथा उर्वरता के आधार पर मुख्य पाँच भागों में विभाजित किया गया है।
1. कन्हार
2. मटासी
3. डोरसा
4. पथरीली मिट्टी (भाठा)
5. कछारी मिट्टी
1. कन्हार मिट्टी: यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। क्योंकि इसमें क्ले की मात्रा 56.64 प्रतिशत तक पायी जाती है। ग्रीष्म ऋतु में जल के अभाव के कारण इसमें दरारें पड जाती है। यह रायपुर जिले के 20 प्रतिशत भाग में पायी जाती है। इसकी औसत मोटाई लगभग 10 से 200 सेमी. तक होती है। सर्वेक्षित क्षेत्रों में कन्हार मिट्टी में निर्मित तालाबों का जलस्तर उच्च पाया जाता है, क्योंकि इस मिट्टी में जल बहुत ही कम मात्रा में वाष्पीकृत होती है। इस मिट्टी का पी.एच. मान 7.5 से 7.7 तक पाया गया है।
2. मटासी मिट्टी - इसमें क्ले की मात्रा 35.40 प्रतिशत तक पाई जाती है। यह सामान्यतः पीले रंग की होती है। इसमें सामान्यतः लाल रंग की अपेक्षा फेरिक ऑक्साइड, हाइड्रोजन का भाग अधिक होता है। इस मिट्टी में मुख्यतः धान की फसलें ही उगाई जाती है। मटासी मिट्टी में निर्मित तालाबों में अधिकांशतः जलस्तर कम पाया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में तालाब व अन्य जलाशय सूखे पड़ जाते हैं। यह मिट्टी खरीफ फसलों के लिये उपर्युक्त मानी जाती है। मटासी मिट्टी का पी.एच. मान 6.65 पाया गया है।
3. डोरसा मिट्टी- कन्हार तथा मटासी के मिश्रण को डोरसा मिट्टी कहा जाता है। इसमें पोटास की मात्रा 40 से 45 प्रतिशत तक होती है। इसमें जल-संग्रहण की क्षमता अधिक होती है।
4. भाठा- इसे भाठा मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है। ये मिट्टी उपज के लिये अनुपयुक्त है। इसमें 15 प्रतिशत से कम मात्रा में क्ले पाई जाती है। इस मिट्टी में शीघ्र पकने वाले मोटे अनाजों की फसल पैदा की जाती है। अध्ययन क्षेत्रों में चयनित तालाब पथरीली या भाटा मिट्टी में भी निर्मित पाया जाता है।
5. कछारी मिट्टी- नदियों के बाढ़ के निक्षेप से निर्मित कांप मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण मिट्टी होती है। इस मिट्टी में मुख्यतः फलीदार फसल, साग-सब्जी, पटसन एवं गन्ने की पैदावार होती है तथा इसमें जीवाश्म की मात्रा अधिक होती है। इसमें तीन उपविभाग हैः-
(1) पाल कछार, (2) पटपर कछार, (3) काँप।
सारणी 1.7 मिट्टी का संगठन | ||||
मिट्टी के प्रकार | मोटा बालू | महीन बालू | सिल्ट | क्ले |
कन्हार | 3.78 | 8.26 | 39.75 | 48.21 |
मटासी | 4.41 | 12.82 | 49.03 | 33.74 |
भाठा | 4.15 | 22.12 | 25.12 | 11.01 |
स्रोत: इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर |
सारणी 1.8 मिट्टी की रासायनिक संरचना | |||||
मिट्टी के प्रकार | गहराई | नाइट्रोजन | फास्फोरस | कार्बनिक तत्व | चूना |
कन्हार | 0.9 | 0.044 | 0.040 | 0.79 | 1.12 |
डोरसा | 0.9 | 0.064 | 0.032 | 1.35 | 1.12 |
मटासी | 0.9 | 0.061 | 0.028 | 1.22 | 0.014 |
भाठा | 0.9 | 0.054 | 0.19 | 0.22 | 0.014 |
स्रोत: इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर |
प्राकृतिक वनस्पति- “Forests play a Crucirole in the conserving of soil and water they life water from the earth and release to the atmosphere by the process of transpiration and this is returned as rain as a result of condensation of the atmospheric-moisture and this cycle continues” (Pokhriyal T.C. & Subha rao B.K. 1986. 576)
प्राकृतिक वनस्पति अपने विभिन्न स्वरूपों में भौतिक वातावरण, तापमान, वर्षा, अपवाह, ऊँचाई एवं मिट्टी के विभिन्न तत्वों का एक मात्र प्रतिबिंब होती हैं। इसलिए वनस्पति को जलवायु का वास्तविक मापदण्ड कहा जाता है। मानव का अस्तित्व मुख्य रूप से वनस्पति पर ही निर्भर करता है क्योंकि मानव किसी न किसी रूप में इसका उपभोग करता है।
जिले में वन क्षेत्र 3995.343 वर्ग कि.मी. में फैले हुए हैं, जोकि कुल क्षेत्रफल का 26.30 प्रतिशत है। रायपुर जिले में उपलब्ध वनस्पतियों को सेम्पीयन ने 2 वर्गों में बाँटा हैः-
(1) उष्णकटिबंधीय अर्द्ध पर्णपाती वन, (Tropical moist Deciduous Forest)
(2) उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Tropical Dry Deciduous Forest)
वनस्पति विज्ञान के अनुसार वनों को 4 वर्गों में बाँटा गया है:-
(1) साल-वन
(2) सागौन-वन
(3) बाँस के मन
(4) मिश्रित वन
साल-वन यहाँ का प्रमुख वन है। यह वनस्पति अपनी मजबूती तथा उपयोग के अनुसार प्रथम स्थान पर है। सागौन के वनों को द्वितीय स्थान प्राप्त है। इनके अतिरिक्त आंवला, अर्जुन, बहेरा, वीणा, घामर, घौरा, हल्दू, खैरा, महुआ, पताम, मबई, साल, शीशम, गिरीश, तेन्दू और तिन्सा प्रमुख वनस्पति प्रजातियाँ हैं, जो कुसुम के वनों में उपलब्ध हैं। जिले में मुख्य रूप से बबूल, पीपल, आम, बाँस, महुआ, तेन्दु एवं साल, सागौन, बीजा प्रमुख वनस्पति है। जिन क्षेत्रों में वनस्पति पर्याप्त मात्रा में मिलती हैं, वहाँ के लोग वनस्पति पर आधारित व्यवसाय करते हैं। वे लोग महुआ, चिरौंजी, तेंदू, साल-बीज, गोंद एवं लाख आदि एकत्रित करते हैं। जिले का समस्त वन रायपुर उच्च भूमि में स्थित है। वन क्षेत्रों को दो भागों में बाँटा गया है।
(1) आरक्षित वन- जिले में आरक्षित वनों का क्षेत्रफल 1192.676 वर्ग कि.मी. है, जो जिले में कुल वनों का 29.85 प्रतिशत है। इन वनों का प्रबंधन सुव्यवस्थित ढंग से किया जाता है। पर्यावरण जैव-विविधता, वन-संपदा, वन्य जीवन आदि की सुरक्षा एवं संरक्षण की दृष्टि से इन्हें आरक्षित रखा गया है। यहाँ अनधिकृत प्रवेश आदि भी वर्जित होता है। इन वनों में विभाग द्वारा जो भी कार्य किये जाते हैं, वे वन-वर्धन एवं रख-रखाव के लिये होते हैं।
(2) संरक्षित वन- इन वनों का कुल क्षेत्र 2581.667 वर्ग कि.मी. में विस्तृत है, जो जिले के कुल वनों का 64.61 प्रतिशत है। इन वनों में संरक्षण के साथ उत्पादन हेतु भी विभिन्न योजनाएँ चलाई जाती हैं। विभाग निश्चित योजनागत वनों का वैज्ञानिक तरीके से दोहन कर वनोप्रज प्राप्त करता है, जिससे शासन को पर्याप्त आय होती है। उत्पादन के साथ संरक्षण प्राथमिक लक्ष्य होता है। इन्हीं वनों में ग्रामीण जनता को निस्तारी के अधिकार सीमित क्षेत्रों में दिये जाते हैं, जिससे स्थानीय जनता अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। इन वन से लघु वनोपज, जलाऊ लकड़ी संग्रहण, पशुचारा तथा अनुमति पर खनन सम्मिलित हैं।
(3) अवर्गीकृत वन- इन वनों का कुल क्षेत्र 221.000 वर्ग कि.मी. है जो कुल वनों का 5.53 प्रतिशत है। वन-भूमि व्यवस्थापन के समय इसका वर्गीकरण नहीं हो सका था। ये वन 1959 के पश्चात राजस्व विभाग को दिया गया था, जो बड़े झाड़ के जंगल के नाम से जाना जाता था। अतः यह वन क्षेत्र उपेक्षित रहे हैं।
जनसंख्या- मानव प्राकृतिक संसाधनों का उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों हैं। जिले में जल की आवश्यकता का अनुमान कुल जनसंख्या, जनसंख्या का वितरण प्रारूप तथा व्यावसायिक संख्या के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। छत्तीसगढ़ राज्य में रायपुर जिले की जनसंख्या राज्य का 5.8 प्रतिशत है। सन 2001 की जनसंख्या के अनुसार जिले की कुल जनसंख्या 3009042 है अर्थात यह जनसंख्या राज्य के 15.13 प्रतिशत भूभाग पर विस्तृत है।
सारणी 1.9 रायपुर जिले में जनसंख्या एवं जनसंख्या वृद्धि | ||||
क्र. | वर्ष | जनसंख्या | वृद्धि | घनत्व |
1. | 1901 | 9,74,953 | ||
2. | 1917 | 11,71,976 | 20.2 | 53 |
3. | 1921 | 12,43,163 | 6.07 | 59 |
4. | 1931 | 13,66,812 | 10.97 | 72 |
5. | 1941 | 15,76,686 | 10.97 | 72 |
6. | 1951 | 16,40,006 | 8.13 | 76 |
7. | 1961 | 20,02,004 | 22.09 | 94 |
8. | 1971 | 26,13,531 | 30.54 | 123 |
9. | 1981 | 30,09,042 | 17.64 | 144 |
10. | 2001 | 30,74,728 | 26.92 | 194 |
स्रोत: जिला जनसंख्या कार्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ |
वितरण एवं घनत्व
जिले में जनसंख्या का वितरण असमान है। महानदी-खारुन दोआब क्षेत्र में जनसंख्या वितरण कुछ अपवादों के साथ समान रूप में वितरित है, जबकि रायपुर, उच्चभूमि के क्षेत्र में यह कम वितरित है। जनसंख्या के वितरण में कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता तथा सिंचाई के साधन प्रमुख कारक के रूप में देखे जाते हैं। रायपुर उच्च भूमि में कृषि के लिये भूमि की उपलब्धता कम है तथा यह क्षेत्र वनाच्छादित होने के कारण कम जनसंख्या धारण करता है।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार रायपुर जिले में जनसंख्या का घनत्व 198 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है। जनसंख्या का घनत्व में विकासखण्ड अनुसार विभिन्नता है। सबसे न्यूनतम घनत्व वाले विकासखण्ड मैनपुर छुरा एवं गरियाबंद हैं, यहाँ जनसंख्या का घनत्व 150 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. से कम है। मध्यम जनसंख्या घनत्व वाले विकासखण्डों में सिमगा एवं तिल्दा विकासखंड है, जहाँ 150-200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है।
मध्यम उच्च घनत्व 200 में 250 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. वाले विकासखण्ड देवभोग, पलारी, राजिम, बलौदाबाजार, बिलाईगढ़, अभनपुर, कसडोल, आरंग व भाटापारा है। अति उच्च जनसंख्या घनत्व 371.80 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि.मी. वाला विकासखण्ड धरसींवा है। ज्ञातव्य है कि धरसींवा विकासखण्ड में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर अवस्थित है।
आयु एवं लिंग अनुपात: “The age and sex of individuals are fundamental determinates of several demographic and non-demographic characteristics of a population. The incidence of birth, death, migrants, status, marital status and participation rate of economic activities vary by age and sex” (Howley 1961, 362)
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 16.72 प्रतिशत जनसंख्या 0-6 वर्ष आयु के बच्चों की है तथा 23.39 प्रतिशत जनसंख्या 6-14 वर्ष के बच्चों की है, जबकि 15 से 59 आयु वर्ग जनसंख्या का 53.42 प्रतिशत है। 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के अंतर्गत 6.65 प्रतिशत है। बच्चों की अधिक संख्या निश्चित रूप से अधिक जन्म दर को प्रदर्शित करता है। स्पष्टतः मृत्यु दर में अभी भी कमी दृष्टिगत हो रही है। यह जनसंख्या 40.11 प्रतिशत वर्तमान में अनुत्पादक जनसंख्या है तथा इस परिवर्तन के साथ ही यही जनसंख्या भविष्य में उत्पादन के मार्ग की संभावना को स्पष्ट करती है।
प्रति हजार पुरूषों पर महिलाओं की संख्या अर्थात लिंगानुपात किसी भी क्षेत्र में जीवन दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। यद्यपि नगरीकरण के कारण आत्मस्वरूप वाले होते हैं। जनसंख्या संरचना में लिंगानुपात सामंजस्य के लिये एक आवश्यक तत्व है। इसका निर्धारण तत्वों से प्रभावित होता है। जन्म के साथ लिंगानुपात व मृत्यु के स्वरूप में लिंगानुपात तथा लिंग का निर्धारण उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त जिले में लिंगानुपात भारत के अन्य क्षेत्रों की तुलना में संतुलित है। छत्तीसगढ़ राज्य तथा रायपुर जिले में 983 है महिलाएँ प्रति हजार पुरूषों में अधिकता पर सामान्य तत्व हैं। सन 2001 में जनसंख्या के अनुसार सिमगा, बलौदाबाजार, पलारी, कसडोल, बिलाईगढ़, बिन्द्रानवागढ़ एवं देवभोग में लिंगानुपात 1002 से 1046 तक है तथा भाटापारा, आरंग, अभनपुर, तिल्दा में लिंगानुपात 980 से 999 तक है। सिर्फ धरसींवा विकासखण्ड में लिंगानुपात 925 है। यह नगरी माप तथा रायपुर राजधानी का प्रमाण स्पष्ट है।
परिवहन- 19वीं शताब्दी के प्रथम चरण में जिले में आधुनिक परिवहन साधनों का अभाव था। केवल कुछ स्थानों पर सड़क मार्ग या पहुँच मार्ग थे अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान सड़क व रेल मार्ग का विकास हुआ तथा स्वतंत्रता पश्चात परिवहन तंत्र विकसित हुआ। जिले में तीन प्रकार के परिवहन साधन हैं।
(1) रेलमार्ग
(2) सड़क मार्ग
(3) वायु मार्ग
1. रेल मार्ग- रेलमार्ग का निर्माण सर्वप्रथम 1863 सर रिचर्ड के द्वारा हुआ। उन्होंने इस समय में छत्तीसगढ़ से नागपुर के लिये ट्रेन शाखा का निर्माण किया जो 1776 में पूरा हुआ। 1852 में नागपुर से नांदगाँव तक रेलवे लाइन बिछाई जिसका विस्तार बड़ी लाइन के रूप में रायपुर तक हुआ। रायपुर जिला दक्षिण पूर्वी रेलवे के अंतर्गत आता है। सबसे प्रमुख रेलवे लाइन बाम्बे हावड़ा इसके अतिरिक्त अन्य रेलमार्ग निम्न है-
(1) बम्बई हावड़ा रेलमार्ग
(2) रायपुर विशाखापट्नम रेलमार्ग
(3) रायपुर राजिम धमतरी रेल मार्ग
2. सड़क मार्ग- रायपुर जिले में होकर दो राष्ट्रीय सड़क मार्ग है।
(1) बम्बई - कलकत्ता राष्ट्रीय मार्ग क्रमांक-6 समतल मैदानी क्षेत्र होने के कारण यहाँ कच्ची पक्की सड़कों का विस्तार अधिक हुआ है।
(2) रायपुर-धमतरी विशाखापट्नम मार्गों में लंबाई निम्नानुसार है-
सारणी क्रमांक 1.10 रायपुर जिला: सड़कों की लम्बाई | |
वर्गीकृत मार्ग | लम्बाई कि.मी. में |
राष्ट्रीय सड़क | 276.00 |
राज्य सड़क | 545.00 |
बड़ी जिला सड़कें | 513.00 |
छोटी जिला सड़कें | 408.00 |
सामुदायिक विकास सड़क | 600.00 |
नगर निगम सड़क | 105.00 |
ग्रामीण सड़क | 348.00 |
वन विभाग | 221.00 |
वायु मार्ग- जिले में एक मात्र वायुमार्ग का केंद्र है जो रायपुर नगर से 14 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। जहाँ से सभी मौसम सेवाएँ उपलब्ध है। यहाँ से प्रति दिन दिल्ली, कलकत्ता, भुवनेश्वर, बंबई के लिये उड़ान भरती है।
व्यावसायिक संरचना- “Occupation is perhaps the most important social characteristics influencing mans life” (Ed Ward M. 1969,252)
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना कार्यशील व्यक्तियों की संख्या तथा कार्यशीलता के प्रकार के अनुसार अनुत्पादक जनसंख्या के भार का सूचक होता है। इसके आधार पर किसी क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक एवं जनांकीय विशेषताओं को समझा जा सकता है। जनगणना 2001 के अनुसार रायपुर जिले में 14,06,143 जनसंख्या मुख्य कार्यशील जनसंख्या है। कुल जनसंख्या का यह 43.73 प्रतिशत है। इस जनसंख्या में पुरुष कार्यशील व्यक्तियों की संख्या 52.09 प्रतिशत है ज्ञातव्य है कि जिले में कार्यशील महिलाओं का प्रतिशत 38.87 प्रतिशत देश एवं राज्य के तुलना में अधिक है। जिले में कार्यशील महिलाओं की संख्या 426205 है, जोकि कुल जनसंख्या का 38.87 प्रतिशत है।
व्यावसायिक संरचना के अनुसार कृषि-कार्य में लगी जनसंख्या कुल कार्यशील जनसंख्या का 69.51 है। इसमें 45.33 प्रतिशत जनसंख्या कृषकों की है तथा कृषि श्रमिकों की संख्या 24.24 प्रतिशत हैं उक्त सांख्यिकी की विशेषता यह है कि कृषि श्रमिकों में पुरुष 128091 है। अन्य व्यवसाय कम महत्त्वपूर्ण है। औद्योगिक क्षेत्र में लगी हुई कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत 9.44 है।
भूमि उपयोग- भूमि उपयोग भौगोलिक अध्ययन का प्रमुख अंग है। भूमि पर मानव द्वारा विभिन्न क्रियाकलाप किये जाते हैं तथा मानव भूमि का उपयोग अपने विभिन्न प्रायोजनों के आधार पर अनेकों रूपों में करता है। भूमि उपयोग प्रतिरूप किसी भी क्षेत्र के आर्थिक विकास का द्योतक है। प्रकृति के विभिन्न संसाधनों में भू-संसाधनों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि भूमि क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण सम्पत्ति है, भूमि सीमित किन्तु मूल्यवान संसाधन है। अतः भूमि उपयोग आयोजन का मुख्य उद्देश्य किसी क्षेत्र के भूमि संसाधनों के आदर्श उपयोग की ऐसी रूपरेखा प्रस्तुत करता है। जिसमें उच्च क्षेत्र की प्रति हेक्टेयर भूमि का अधिकतम बहुप्रयोजनीय उपयोग हो सके।
सारणी क्रमांक 1.11 भूमि उपयोग प्रतिरूप | |||
क्र. | भूमि-उपयोग | क्षेत्रफल | प्रतिशत |
1. | ग्रामीण वन | 1,19,826 | 12.78 |
2. | कृषि के लिये अप्राप्य भूमि | 98,644 | 10.52 |
अ. अकृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि | 84,167 | 8.98 | |
ब. ऊसर एवं पथरीली भूमि | 14,477 | 1.54 | |
3. | अन्य अकृषि भूमि | 1,26,081 | 13.45 |
अ. स्थायी चारागाहों एवं अन्य घास के मैदान | 93,805 | 70.01 | |
ब. झाड़ियों के झुंड एवं बेकार भूमि | - | - | |
स. कृषि योग्य बेकार भूमि | 32,276 | 3.44 | |
4. | पड़ती भूमि | 42,760 | 4.56 |
अ. चालू पड़ती | 21,764 | 2.32 | |
ब. पुरानी पड़ती | 20,996 | 2.24 | |
5. | निरा बोया गया क्षेत्र | 5,49,965 | 58.69 |
ग्रामीण पत्रकों के अनुसार कुल क्षेत्रफल | 2,37,279 | 100.00 | |
स्रोत: भू-अभिलेख कार्यालय, रायपुर (छ.ग.) |
इस श्रेणी में शासन द्वारा नियंत्रित किये गये असंरक्षित एवं संरक्षित वन क्षेत्रों को सम्मिलित नहीं किया जाता है। ग्रामीण वन राजस्व विभाग द्वारा नियंत्रित होते हैं। पटवारी प्रपत्र के अनुसार 119826 हेक्टेयर भूमि वन क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जो जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 12.78 है। ग्रामीण वनों का क्षेत्रफल महानदी, खारुन-दोआब में अत्यंत कम है तथा ट्रान्स महानदी क्षेत्रों में ग्रामीण वनों का क्षेत्रफल अधिक है। इस असमानता का कारण कुछ शासकीय नियम की तथा धान की कृषि प्रमुख है।
कृषि के लिये अप्राप्त भूमि
कृषि के लिये अप्राप्त भूमि में कृषि को छोड़कर अन्य कार्यों, जैसे कारखाने, अधिवास, तालाब, सड़क, रेल इत्यादि के अंतर्ग आने वाली भूमि सम्मिलित की जाती है। इस प्रकार की भूमि का विस्तार जनसंख्या के घनत्व तथा नगरीकरण की स्थिति पर निर्भर होता है। जिले में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.52 प्रतिशत क्षेत्र कृषि के लिये अप्राप्त भूमि के अंतर्गत आता है।
पड़ती के अतिरिक्त कृषि भूमि
ऐसी भूमि जो दलदल, पथरीली या चट्टानी भूमि होती है। इसके अंतर्गत चारागाह अन्य घास के मैदान के क्षेत्र वृद्धि योग्य बेकार भूमि तथा पेड़ों के झुण्ड के क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है। जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 13.45 प्रतिशत क्षेत्र में इसका विस्तार मिलता है।
पड़ती भूमि
जो भूमि आयामी रूप से कम से कम एक वर्ष और अधिक से अधिक पाँच वर्ष के लिये खाली छोड़ दी जाती है, उसे पड़ती भूमि कहते हैं। इस प्रकार की भूमि सिमगा, भाटापारा विकासखण्डों में अधिक मिलती है। जिले में पड़ती भूमि का क्षेत्रफल 42760 हेक्टेयर है, जो कुल क्षेत्रफल का 4.56 प्रतिशत है। अन्य विकासखण्डों में भी इसका विस्तार मिलता है।
कृषि योग्य बेकार भूमि
ऐसी भूमि जो कुछ सुधार कार्य के पश्चात कृषि के लिये उपलब्ध हो, उसे कृषि-योग्य भूमि के अंतर्गत रखा गया है। इस प्रकार की भूमि का विस्तार जिले में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 32276 हेक्टेयर है। जिसका कुल क्षेत्रफल 3.44 प्रतिशत है। इस प्रकार की भूमि जिले के सभी विकासखण्डों में मिलती है।
निराफसली क्षेत्र
यह भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाली कृषि भूमि है, जिस पर लगातार कृषि कार्य किया जा सकता है। इस भूमि का जिले में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 5,49,965 हेक्टेयर एवं पृष्ठ के कुल क्षेत्रफल का 58.69 पाया गया है। फसल का निरा क्षेत्रफल भूमि उपयोग सांख्यिकी में सर्वाधिक है। यह भूमि की उत्पादन-क्षमता, कृषि पर निर्भर जनसंख्या का दबाव, सिंचाई की सुविधा का संशलिष्ट परिणाम है। फसल का निरा क्षेत्रफल भूमि की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। महानदी-खारुन-दोआब के क्षेत्र में यह 65 प्रतिशत से अधिक व ट्रान्स-महानदी के क्षेत्र में 50 प्रतिशत से कम भूमि में उपलब्ध है।
सस्य प्रतिरूप
रायपुर जिले में अविकसित कृषि अर्थव्यवस्था पायी जाती है। यहाँ कुल फसल क्षेत्रफल (659945 हेक्टेयर) का 81.73 प्रतिशत (539414 हेक्टेयर) हिस्सा अनाज के फसल के अंतर्गत आता है। व्यावसायिक फसलों का अस्तित्व नहीं है। यहाँ की प्रमुख फसल धान है। उच्च भूमि में अभी भी मोटे अनाजों की कृषि नगण्य रूप से होती है। जिले की कृषि पूर्णतः मानसून पर निर्भर है। खरीफ फसलों का क्षेत्रफल 80.40 प्रतिशत है। जिले में सिर्फ 36.9 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचित है। सम्पूर्ण कृषि वर्षा तथा मृदा आर्द्रता के ऊपर निर्भर है। महानदी खारुन दोआब तथा राजिम तहसील के कुछ भागों में दो फसल का अस्तित्व मिलता है तथा यह स्वरूप कृषकों के द्वारा भूमिगत जलस्रोतों के दोहन के फलस्वरूप मिलता है। निराफसल क्षेत्र का सिर्फ 20 प्रतिशत भाग द्विफसली क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
रायपुर जिले मे विभिन्न फसलों के अनुसार क्षेत्रफल में अत्यधिक अंतर मिलता है। कुल फसल के क्षेत्रफल में धान के अंतर्गत 78.90 प्रतिशत क्षेत्र आता है। इसके साथ ही दालों के अंतर्गत 9.11 प्रतिशत क्षेत्र, तिलहन फसलों का 1.77 प्रतिशत क्षेत्र तथा मोटे अनाजों के अंतर्गत 0.44 प्रतिशत क्षेत्र में कृषि की जाती है।
धान
जिले में धान की फसल प्रथम कोटि क्रम के अंतर्गत आता है। कुल फसल क्षेत्रफल में 78.90 प्रतिशत भूमि धान की कृषि की जाती है। कुल खाद्यान्नों में धान का अंश 80.25 प्रतिशत है। कृषि सांख्यिकी के अनुसार 80 प्रतिशत से कम धान का क्षेत्रफल वाले विकासखण्ड मैनपुर देवभोग तथा गरियाबंद है तथा 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रफल वाले विकासखण्डों में आरंग, भाटापारा, बलौदाबाजार, पलारी, बिलाईगढ़ प्रमुख हैं। शेष विकासखण्डों में 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत क्षेत्रफल धान की कृषि के अंतर्गत आता है।
धान की विभिन्न प्रजातियाँ विभिन्न धरातलीय क्षेत्र में पैदा की जाती है। धरातलीय आकृतियों में, उच्च भूमि में निम्न जलयुक्त भू-भाग होते हैं। सूखे तथा अधिक जलयुक्त मौसम में भी धान का उत्पादन सामान्य तौर पर मिल जाता है। धान के पौधे को 20 से 80 से.मी. तक जल आवश्यक होता है। कम वर्षा के महीनों में सिंचाई की सुविधा अत्यंत आवश्यक है, जिले में धान की 78 प्रतिशत क्षेत्रफल पूर्णतः वर्षा पर निर्भर है। सिंचाई की सुविधा महानदी खारुन दोआब के क्षेत्र में उपलब्ध है, शेष कसडोल, बिलाईगढ़, गरियाबंद, देवभोग, छुरा, तथा मैनपुर विकासखंडों में धान की फसल के लिये सिंचाई की सुविधाएँ नगण्य है।
जिले में तालाबों का अस्तित्व धान की फसल को वर्षा की अनियमितता से बचाना है। तालाबों के द्वारा सिंचाई का प्रतिशत यद्यपि 5 प्रतिशत से कम है फिर भी यह सिंचाई धान की फसल के लिये जीवन रक्षक का कार्य करती है।
गेहूँ
रबी के मौसम की प्रमुख फसल गेहूँ है। इसके अंतर्गत 1.26 प्रतिशत क्षेत्रफल आता है। यह ठंड के मौसम की फसल है। तापमान गेहूँ की उत्पादकता एवं गुणवत्ता को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कारक है। गेहूँ को बोने के समय 10 से 15 डिग्री का तापमान तथा पकने के समय 21 से 27 डिग्री आवश्यक होता है। 50 से 75 सेमी पानी की आवश्यकता गेहूँ की फसल को होती है। लेकिन जिले में मृदा आर्द्रता के आधार पर तथा सिंचाई के आधार पर गेहूँ की फसल ली जाती हैं। मिट्टी प्रकारों में डोरसा तथा कन्हार मिट्टीयों में ही गेहूँ की कृषि की जाती है।
जिले में महानदी-खारुन-दोआब के क्षेत्र में गेहूँ की कृषि की जाती है। धरसीवा, अभनपुर, आरंग क्षेत्र रायपुर जिले में गेहूँ के 50 प्रतिशत क्षेत्रफल को प्रदर्शित करता है। शेष विकासखण्डों में गेहूँ की फसल मिट्टी की नमी के आधार पर की जाती है।
दाल
भारतीय भोजन में दाल अनिवार्य अंग है। दालों की कृषि मृदा उर्वरता में वृद्धि करती है। दालों में प्रोटीन की पूर्ति होती है। रायपुर जिले में दालों की कृषि मृदा आर्द्रता पर निर्भर करती है। दालों की कृषि का कुल क्षेत्रफल 6125 हेक्टेयर है, जोकि कुल फसल क्षेत्रफल का 9.11 प्रतिशत हेक्टेयर दालों में तिवरा प्रमुख फसल है। इसके पश्चात चना, अरहर और तुवर का स्थान है। कुल दलहन फसलों में आरंग 18.22, राजिम, 12.7 है। 3 प्रतिशत मैनपुर 6.67 प्रतिशत तथा अन्य विकासखण्डों में 5 प्रतिशत से कम भूमि पर दाल की कृषि की जाती है।
तिलहन
तिलहन फसलों को नगद फसल के नाम से जाना जाता है। रायपुर जिले में कुल कृषि भूमि का 1.77 प्रतिशत (11691 हेक्टेयर) भूमि में तिलहन की कृषि की जाती है। तिलहनों में अलसी का स्थान प्रथम 36.9 प्रतिशत (4321 हेक्टेयर), मूंगफली का द्वितीय 10.5 प्रतिशत (1231 हेक्टेयर) तथा सोयाबीन 7.6 प्रतिशत (889 हेक्टेयर) व तिल 7.38 प्रतिशत (863 हेक्टेयर) का स्थान है। इनके अतिरिक्त सरसों, अण्डी व अन्य तिलहनों की कृषि की जाती है।
भौगोलिक पृष्ठभूमि
1.1 स्थिति एवं विस्तार
1.2 प्रशासनिक विभाजन
1.3 भू-वैज्ञानिक संरचना
1.4 उच्चावच
1.5 अपवाह तंत्र
1.6 जलवायु
1.7 तापमान
1.8 वर्षा
1.9 सापेक्षित आर्द्रता
1.10 मिट्टी
1.11 प्राकृतिक वनस्पति
1.12 जनसंख्या वितरण एवं घनत्व
1.13 परिवहन
1.14 आयु एवं लिंग संरचना
1.15 व्यावसायिक संरचना
1.16 भूमि-उपयोग-प्रतिरूप