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राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, पाँचवी राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 19-20 नवम्बर, 2015
सारांश
नदियाँ अपने प्रवाह के साथ विशाल मात्रा में अवसाद भार को बहाकर लाती हैं। इन नदियों के मार्ग में अनेकों नदी घाटी परियोजनाएँ निर्मित की गई हैं। जिनकी क्षमता नदी के द्वारा बहाकर लाये जाने वाले अवसाद की दर पर निर्भर करती है। नदियों द्वारा लाये गए अवसादन के जलाशय में एकत्रित होने के कारण कारण जलाशय की संचयन क्षमता में धीरे-धीरे कमी पाई जाती है। तथा एक निश्चित अवधि के पश्चात जलाशय उपयोगी सेवा प्रदान करने के पूर्णतः अयोग्य हो जाता है। नदियों में प्रवाहित होने वाले अवसाद का अपरिष्कृत (मोटा) भाग जलाशयों के प्रवेश मार्ग पर एकत्रित हो जाने के कारण बाढ़ मैदानी क्षेत्र में बाढ़ जल स्तर में वृद्धि, भूजल स्तर में वृद्धि, जलग्रसनता एवं मृदा लवणता इत्यादि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 0.1 मिलीमीटर से मोटे अवसाद कण जलशक्ति संयन्त्रों के विभिन्न भागों जैसे टर्बाइन, रनर, पेलटन चक्र इत्यादि को हानि पहुँचाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप जलशक्ति परियोजनाओं को हानि पहुँचती है।
अवसादन के कारण होने वाली हानियों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि बाँध निर्माण से पूर्व बाँध के अभिकल्पन के समय अवसादन को भी ध्यान में रखा जाये तथा जलाशय अवसादन का अभियांत्रिक पद्धतियों एवं सुदूर संवेदी तकनीकों से उपयुक्त प्रबन्धन किया जाये, जिससे अवसादन के कारण होने वाली हानियों को न्यूनतम किया जा सके।
प्रस्तुत प्रपत्र में अवसादन के कारण जलाशय पर होने वाले प्रभावों, अवसादन प्रबंधन तथा भारतीय जलाशयों में अवसादन दर की गणना की गई है। इसके अतिरिक्त भारतीय जलाशयों में वास्तविक एवं अभिकल्पित दर की परस्पर तुलना तथा अवसाद एकत्रीकरण के कारण जलाशय की संचयन क्षमता पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया गया है।
Abstract
Rivers carry a huge amount of sediment load with water. Several river valley projects have been constructed on these rivers, whose live storage capacity depends on the sediment load transported by these rivers. Sediment deposition in the reservoir pool gradually reduces the storage capacity of reservoir. As a result, after certain stage, the reservoir is unable to provide useful service. The coarser portion of the inflowing sediment load is deposited where river enter reservoirs, forming delta deposits, which can cause channel aggradations. Channel aggradations can increase flooding of infrastructure, increase groundwater levels, create water logging and soil Stalinization. In hydropower facilities, sediment coarser than 0.1 mm greatly accelerates the erosion of turbine runners and pelton wheel nozzles resulting damage of hydropower projects.
Keeping in view the losses due to sedimentation. it is essential that the gradual reduction in the storage capacity due to deposition of the sediment brought by the rivers should kept in mid at the time of planning of reservoirs. The engineering techniques as well as GIS and remote sensing techniques should be used for the reliable management of reservoir sedimentation to reduce the losses.
In the present paper, effects on reservoir due to sedimentation, its management and sediment rates in Indian reservoirs have been discussed. In addition, a comparison with actual and design rate of sedimentation, and effect on storage capacity due to reservoir sedimentation in Indian reservoirs have also been made.
1.0 जलाशय अवसादन
देश में उपलब्ध सीमित जल को वर्षा ऋतु में संचयित करना एवं शुष्क ऋतुओं में इसके प्रयोग द्वारा मानव की जल आवश्यकताओं की पूर्ति करना देश में उपलब्ध जल संसाधनों का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। मानव की जल सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपयुक्त स्थलों पर बाँध बनाकर नदी प्रवाह द्वारा व्यर्थ जाने वाले अतिरिक्त जल को संचयित कर आवश्यकतानुसार इसका प्रयोग किया जा सकता है। अपने प्रवाह के दौरान नदियाँ नदी तटों से एक विशाल मात्रा में मृदा अवसाद को भौगोलिक एवं जलवायु परिस्थितियों के अनुसार बहाकर अपने साथ लाती हैं। विश्व के विभिन्न भागों में प्रवाहित होने वाली नदियों में से हिमालय से उद्गमित होने वाली नदियाँ अपने साथ सर्वाधिक अवसाद भार को बहाकर लाती हैं। इन नदियों के मार्ग में अनेकों नदी घाटी परियोजनाएँ निर्मित की गई हैं। जिनकी क्षमता नदी द्वारा बहाकर लाये जाने वाले अवसाद की दर पर निर्भर करती है। इन परियोजनाओं की अभिकल्पित उपयोगिता अवधि में कमी होने के कारणों में जलाशय क्षेत्र में अवसादन का एकत्रीकरण प्रमुख है। अवसादन के कारण जलाशय की संचयन क्षमता में कमी होने के परिणामस्वरूप विभिन्न उद्देश्यों के लिये उपयोग हेतु जल उपलब्धता में दीर्घावधि में धीरे-धीरे कमी पाई जाती है। अवसादन एकत्रीकरण का प्रभाव जलीय जीवों की जीवन अवधि पर भी पड़ता है एवं अवसाद की मात्रा में वृद्धि होने के साथ-साथ जलीय जीवों की जीवन अवधि धीरे-धीरे कम होती जाती है। (मिश्रा एवं अग्रवाल 1999)
मृदा अपरदन, परिवहन एवं जलाशयों में एकत्रीकरण के कारण जलाशय क्षमता में हानि एक सार्वभौम समस्या है। वर्षा एवं वायु के कारण मृदा कटान के परिणामस्वरूप जल मार्ग द्वारा वृहत मात्रा में अवसाद प्रवाहित होता है। जब किसी जलाशय में अवसाद प्रवाहित होता हैै। तत्पश्चात बारीक कण जलाशय तल में एकत्रित होेते हैं। अतः जलाशय अवसाद जल कटान द्वारा होने वाले भौगोलिक एवं भू-आकारिकीय प्रक्रम के कारण जलाशय में होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। मानवीय गतिविधियों द्वारा पड़ने वाले प्रभावों के कारण अवसादन की दर में वृद्धि पायी जाती है।
जलाशय के उपयोगी जीवन अवधि के निर्धारण हेतु जलाशय मेें एक निश्चित अन्तराल पर अवसादन दर का निर्धारण आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जलाशय द्वारा जल के उपयुक्त प्रबन्धन हेतु जलाशय के विभिन्न भागों में अवसाद एकत्रीकरण पद्धति के बारे में जानकारी आवश्यक है। अवसाद दर के निरन्तर कुप्रभाव को देखते हुए जलाशय अवसादन के उपयुक्त प्रबन्धन एव आंकलन निम्न खण्डों में किया गया है।
2.0 भारतीय जलाशयों में अवसादन
भारतवर्ष में प्रतिवर्ष नदियाँ अपने साथ लगभग 16.75 टन/हेक्टेयर/वर्ष की दर से नदी तटों के कटाव द्वारा मृदा बहाकर अपने साथ ले जाती है। देश के जलाशयों की उपयोगी क्षमता के सम्बन्ध में किए गये सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि, भारतीय जलाशयों की क्षमता में अवसादन के कारण होने वाली हानि दर बहुत अधिक है। देश के 20 वृहत एवं मध्यम जलाशयों के लिये कराये गए सर्वेक्षण यह दर्शाते हैं कि, मृदा कटान की दर 10 मिलियन टन/वर्ग किलोमीटर से 799 मिलियन टन/वर्ग किलोमीटर के मध्य है। अवसादन के कारण निजामसागर जलाशय की उपयोगी क्षमता लगभग आधी हो गई है। भाखड़ा नांगल बाँध में प्रतिवर्ष लगभग 330 मिलियन टन अवसाद एकत्र हो जाता है। सलाल बाँध में अवसादन की समस्या बहुत अधिक है। (जैन एवं अन्य 2007)
केन्द्रीय जल आयोग द्वारा वर्ष 2001 में देश के 144 जलाशयों का विस्तृत अवसादन सर्वेक्षण करके उनकी औसत अवसादन दर ज्ञात की गई। सर्वेक्षण से पाया गया कि पूर्व में कराये गए सर्वेक्षण के पश्चात जलाशयों की क्षमता में 0.65 प्रतिशत से 60.47 प्रतिशत के मध्य हानि पाई गई। यह पाया गया कि 144 जलाशयों में से सर्वेक्षण के पश्चात 46 जलाशयों में 10 प्रतिशत से कम, 34 जलाशयों में 10-20 प्रतिशत, 31 जलाशयों में 20-30 प्रतिशत, एवं 33 जलाशयों में 30 प्रतिशत से अधिक उपयोगी क्षमता में हानि प्राप्त हुई।
केन्द्रीय जल आयोग द्वारा सर्वेक्षण कराये गए 144 जलाशयों में से 67 जलाशयों का तुलनात्मक विश्लेषण अवसादन की ज्ञात अभिकल्पन दर के साथ भी किया गया। अध्ययन के परिणामों को सारणी-1 में दर्शाया गया है। परिणाम दर्शाते हैं कि 16 जलाशयों में अवसादन की वास्तविक दर, अभिकल्प दर के 5 गुना से अधिक है।
जलाशयों के अवसादन सर्वेक्षण से कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण परिणाम भी प्राप्त हुए। प्राप्त परिणामों को सारणी-2 में दर्शाया गया है। इन परिणामों के अनुसार अवसादन के कारण सकल जलाशय संचयन में भारी औसत वार्षिक हानि 0.44 प्रतिशत प्राप्त हुई। अतः जलाशयों में 217 घन किलोमीटर कुल सकल संचयन के सापेक्ष जलाशय में अवसादन के कारण होने वाली वार्षिक हानि लगभग 0.95 घन किलोमीटर आँकी गई है। 42 जलाशयों के आंकड़ों के आधार पर उपयोगी संचयन में 0.31 प्रतिशत की वार्षिक हानि प्राप्त हुई जिसके अनुसार जलाशयों की कुल उपयोगी संचयन क्षमता में 0.55 घन किलोमीटर/वर्ष की हानि आंकलित की गई। अतः प्रेक्षित आंकड़ों के आधार पर अवसाद का औसत घनत्व 1307 टन /घनमीटर मानते हुए सर्वेक्षण से प्राप्त परिणामों के द्वारा भारतीय जलाशयों में एकत्रित कुल अवसाद का भार 1,080 मीट्रिक टन/वर्ष आंकलित किया गया है।
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की में वर्ष 2002-2007 के मध्य किये गये विभिन्न अध्ययनों के आधार पर अवसादन के कारण कुछ प्रमुख जलाशयों में प्राप्त अवसादन दर एवं अवसादन के कारण प्रतिवर्ष जलाशय क्षमता में होने वाली हानि को सारणी-3 में प्रदर्शित किया गया है।
3.0 जलाशय अवसादन के प्रभाव
समस्त नदियाँ जल एवं अवसाद को अपने साथ बहाकर ले जाती है। इस अवसाद के कारण बाँध एवं जलाशय की क्षमता एवं उपयोगिता दोनों प्रभावित होते हैं। अवसादन के कारण जलाशय को मुख्यतः निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
संचयन क्षमता में हानि
अवसादन एकत्रीकरण के कारण जलाशय की जल संचयन क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है तथा एक निश्चित अवधि के पश्चात जलाशय उपयोगी सेवा प्रदान करने के पूर्णतः अयोग्य हो जाता है।
डेल्टा एकत्रीकरण
नदियों में प्रवाहित होने वाले अवसाद का अपरिष्कृत (मोटा) भाग जलाशयों के प्रवेश मार्ग पर एकत्रित हो जाता है तथा एक डेल्टा का निर्माण कर देता है। इसके परिणामस्वरूप जलाशय की संचयन क्षमता में ही कमी नहीं होती है, बल्कि इसके कारण जलाशय के प्रतिप्रवाह में कई किलोमीटर की दूरी तक वाहिका के भूजल स्तर में वृद्धि हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ मैदानी क्षेत्र में बाढ़ जल स्तर में वृद्धि, भूजल स्तर में वृद्धि, जलग्रसनता एवं मृदा लवणता इत्यादि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
नौकायन एवं मनोरंजन
अवसादन के कारण जलाशय में विशिष्टतः डेल्टा क्षेत्रों में अवसाद के एकत्रित हो जाने के कारण नौकायन एवं मनोरंजन सम्बन्धी गतिविधियाँ प्रभावित होती हैं।
जलशक्ति संयन्त्रों को हानि
0.1 मिलीमीटर से मोटे अवसाद कण जलशक्ति संयन्त्रों के विभिन्न भागों जैसे टर्बाइन, रनर, पेलटन चक्र इत्यादि को हानि पहुँचाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप जलशक्ति परियोजनओं को हानि पहुँचती है।
पर्यावरणीय प्रभाव
जलाशय अवसादन के कारण जलाशय के अनुप्रवाह में जल प्रवाह में कमी हो सकती है, जिसके अनेकों पर्यावरणीय प्रभाव दृष्टिगोचर हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त बाँध के अनुप्रवाह में स्वच्छ जल आपूर्ति के कारण नदी तल अवसाद में कमी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप तटों की ऊँचाई एवं तटीय कटान दर में वृद्धि पाई जा सकती है।
अन्य प्रभाव
अवसाद के कारण जलाशय के प्रवेश एवं निकास मार्ग संकुचित हो जाते हैं। यदि बाँध के गेट अवसाद निकासी के लिये अभिकल्पित न हों तो, अवसाद के कारण बाँध के गेटों को भी हानि पहुँच सकती है। अवसाद का भार जल की तुलना में अधिक होने के कारण भूकम्प की स्थिति में बाँध संरचना पर भूकम्प का अधिक प्रभाव पड़ता है।
4.0 अवसादन प्रबन्धन
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि अवसादन के कारण जलाशय एवं बाँध संरचनाएँ अत्यधिक प्रभावित होती हैं। अतः यह आवश्यक है कि बाँध निर्माण से पूर्व बाँध के अभिकल्पन के समय अवसादन को भी ध्यान में रखा जाये तथा जलाशय अवसादन का अभियान्त्रिक पद्धतियों से उपयुक्त प्रबन्धन किया जाये, जिससे अवसादन के कारण होने वाली हानियों को न्यूनतम किया जा सके। अभियान्त्रिकी पद्धतियों के योजनीकरण हेतु निम्न महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों पर ध्यान रखना आवश्यक है।
1. अवसादन दर का निर्धारण अवसादन आवाह एवं जलाशय सर्वेक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए।
2. जलाशय की उपयोगी संचयन क्षमता का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे सिंचाई परियोजनाओं द्वारा न्यूनतम 50 वर्षों तक एवं जल शक्ति परियोजनाओं द्वारा न्यूनतम 25 वर्षों तक पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकें।
3. उपयोगी संचयन क्षमता का योजनीकरण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे निकास मार्ग के अनुप्रवाह में सिंचाई परियोजनाओं हेतु 100 वर्षों तक एवं जलशक्ति परियोजनाओं हेतु 75 वर्षों तक प्रचालन समस्याओं का सामना न करना पड़े।
4. यदि अवसादन से वार्षिक जलाशय क्षमता हानि 0.1 प्रतिशत से कम है तो अवसादन समस्या पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण नहीं होता। परन्तु अवसादन से वार्षिक जलाशय क्षमता हानि 0.5 प्रतिशत से अधिक होने की स्थिति में यह आवश्यक है कि जलाशय के लिये प्रत्येक दस वर्ष के अन्तराल पर अवसादन अध्ययन कराये जाएँ।
5.0 जलाशय में अवसादन के आंकलन की विधियाँ
जलाशय में अवसादन के आंकलन के लिये प्रयुक्त की जाने वाली विधियों को मुख्यतः तीन वर्गोेेें में विभाजित किया जा सकता है। स्रोत: (एन. आई. एच. 2002-2003)
क. अन्तर्वेश -बहिःप्रवाह (Inflow-Outflow) पद्धति
ख. क्षमता सर्वेक्षण पद्धति एवं
ग. सुदूर संवेदन पद्धति
अन्तर्वेश-बहिःप्रवाह पद्धति
इस पद्धति के अन्तर्गत जलाशय में अन्तर्वेशित एवं बहिप्रवाहित सम्पूर्ण अवसाद भार (तल भार सहित) को प्रवेश एवं निकाय के समस्त विशिष्ट बिन्दुओं पर मापा जाता है। अन्तर्वेशित एवं बहिप्रभावित अवसाद भार का अन्तर विश्लेषण की अवधि के दौरान जलाशय में एकत्रित होने वाले अवसाद भार की मात्रा दर्शाता है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत नियमित रूप से निरन्तर प्रक्षेण लेना आवश्यक है। जलाशय में मुख्य नदी के अतिरिक्त अनेकों सहायक नदियाँ भी प्रवेश करती है। इन समस्त सहायक नदियों द्वारा जलाशय में प्रवेश करने वाले अवसाद को आंकलित करना एक दुष्कर कार्य है। अतः इन नदियों में प्रवेश करने वाले अवसाद आंकलन हेतु जल निकासी क्षेत्रफल, इन वाहिकाओं द्वारा लाये जाने वाले अवसाद की मात्रा एवं उपलब्ध संसाधन के आधार पर मापन तंत्र को सुनिश्चित किया जाता है। मापन स्थल जलाशय क्षेत्र के यथासम्भव निकट होना चाहिए। जलाशय सेे बहिः प्रवाहित अपवाह को स्पिलवे के निकट, आउटलेट्स पर एवं सिंचाई नहरों में मापित किया जा सकता है।
इस पद्धति द्वारा अवसाद एकत्रीकरण की मात्रा गुरुत्व (Gravimatric) पदों में प्राप्त होती है जिसे अवसाद के आंकलन हेतु आयतनात्मक इकाई पदों में परिवर्तित किया जाता है।
क्षमता सर्वेक्षण पद्धतियाँ
अवसाद या हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण जलाशय में अवसाद एकत्रीकरण ज्ञात करने की प्रत्यक्ष पद्धति है। यह सर्वेक्षण एक निश्चित अन्तराल पर किया जाना आवश्यक होेता है। सर्वेक्षण के दौरान एकत्रित किये गयेे अवसादन आंकड़ों को अवसाद भार, कण आकार वितरण, अवसाद एकत्रीकरण दर इत्यादि ज्ञात करने के लिये विश्लेषित किया जाता है। जलाशय अवसाद सर्वेक्षण का समयान्तराल, अवसाद एकत्रीकरण दर पर निर्भर होता है। सर्वेक्षण के लिये आने वाला खर्च भी सर्वेक्षण की बारम्बारता को सुनिश्चित करने में प्रभावी भूमिका प्रदान करता है। सामान्यतः सर्वेक्षण प्रत्येक 3 से 10 वर्षों के अन्तराल पर किया जाता है।
अवसाद सर्वेक्षण के लिये प्रयुक्त की जाने वाले दो प्रमुख तकनीकों में कन्टूर तकनीक एवं सीमा (Range) तकनीक प्रमुख है। कुछ परिस्थितियों में दोनों तकनीकों को संयुक्त रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। तकनीक का चयन, अवसाद की मात्रा, वितरण, जलाशय का आकार, सर्वेक्षण के उद्देश्य एवं आवश्यक शुद्धता पर निर्भर करती है।
उपरोक्त तकनीक में अवसाद सर्वेक्षण के लिये प्रयोग किये जाने वाले रूढ़िवादी उपकरणोें में थियोडोंलाइट, प्लेन टेबिल, रेन्ज फाइन्डर, इको साउन्डर, एवं स्लो मूविंग वोट इत्यादि प्रमुख हैं।
इस पद्धति से जलाशय सर्वेक्षण से प्राप्त प्रमुख लाभ निम्न हैं।
क. जलाशय सर्वेक्षण तकनीक, इन्फलो-आउटफलो तकनीक की तुलना में सस्ती होती है।
ख. सर्वेक्षण में प्राप्त शुद्धता काफी अधिक होती है।
ग. इस तकनीक द्वारा जलाशय के कुल अवसाद भार का आकलन सम्भव होता है।
घ. आधुनिक उपकरणों के प्रयोग द्वारा यह कार्य कम समय में पूर्ण किया जा सकता है।
सुदूर संवेदी पद्धति
जलाशय में अवसाद आंकलन की उपरोेक्त रूढिवादी तकनीकें काफी महँगी व जटिल होती है तथा उनकी सहायता से अवसाद आंकलन कार्य में काफी अधिक समय व्यय होता है। इसके अतिरिक्त इन तकनीकों द्वारा अवसाद आंकलन हेतु दीर्घावधि के आँकड़ों की आवश्यकता होेती है। जिन्हें प्राप्त करना दुर्लभ हो जाता है।
सुदूर संवेदी तकनीक ने जलाशय अवसादन आंकलन को अत्यधिक सरल बना दिया है। इस अध्ययन के अन्तर्गत उपग्रह से प्राप्त विभिन्न अवधि के उपग्रह चित्रों का प्रयोग करके ट्रेपेजाइडल या प्राइमोरिडियल सूत्र की सहायता से दो जलाशय स्तरों के मध्य जलाशय क्षमता ज्ञात कर लेते हैं जिसकी सहायता से ऊँचाई क्षमता सारणी तैयार की जाती है। पूर्व में उपलब्ध ऊँचाई क्षमता सारणी की तुलना नवीन सारणी से करके आवश्यक अवधि के दौरान जलाशय के अवसादन की गणना ज्ञात की जाती है।
सुदूर संवेदी तकनीक तुलनात्मक रूप में सस्ती एवं सरलता से प्रयोग की जा सकने वाली तकनीक है तथा इस तकनीक के प्रयोग द्वारा प्राप्त परिणाम अत्यधिक कम समय में प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही साथ इस तकनीक द्वारा जलाशय के अत्यधिक दुर्गम स्थलों पर भी होने वाले अवसादन की गणना सरलता से किया जाना सम्भव है।
6.0 निष्कर्ष
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जहाँ एक ओर मानव की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिये बाँधों के निर्माण द्वारा निर्मित जलाशयों में एकत्रित जल का संचयन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं वहीं दूसरी ओर जलाशयों में अवसाद एकत्रीकरण के कारण जलाशयों की जल संचयन क्षमता में धीरे-धीरे क्षय होता है तथा एक समय के पश्चात जलाशय अवसाद से भर जाने के कारण उपयोगी सेवाएँ प्रदान करने में पूर्ण रूप से अयोग्य हो जाता है। अतः यह आवश्यक है कि जलाशयों के अभिकल्पन के समय तथा निर्माण के पश्चात एक निश्चित अवधि पर अवसाद अध्ययन किये जायें। बाँधों के निर्माण के समय जलाशय से अवसाद को दूर करने के लिये उपयुक्त निर्माण कार्य भी किए जाने चाहिए।
जलाशयों में एकत्रित अवसाद के आंकलन के लिये विभिन्न अन्वेषकों द्वारा विगत में विभिन्न सूत्र विकसित किए गए हैं। वर्तमान में जलाशय अवसादन के निर्धारण के लिये सुदूर संवेदी तकनीकों का प्रयोग अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो रहा है, क्योंकि ये तकनीकें अन्य तकनीकों की तुलना में अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध हो रही हैं। देश के अनेकों संस्थानों द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु सुदूर संवेदी तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। भारत सरकार के जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मन्त्रालय द्वारा कुछ समय पूर्व देश के लगभग 125 जलाशयों के लिये इस तकनीक के द्वारा अवसादन दर ज्ञात करने हेतु एक योजना प्रारम्भ की गई थी, जिसमें विभिन्न सम्बन्धित संस्थानों को सम्मिलित किया गया था। इस कार्य के परिणामों को सम्बन्धित संस्थानों द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस प्रयत्न के परिणामस्वरूप एक आंकड़ा बेस तैयार किया गया, जिसमें सभी महत्त्वपूर्ण भारतीय जलाशयों की नवीनतम जानकारी उपलब्ध है।
अंत में यह कहा जा सकता है कि अवसादन के कारण होने वाली हानियों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि बाँध निर्माण से पूर्व बाँध के अभिकल्पन के समय अवसादन को भी ध्यान में रखा जाये तथा जलाशय अवसादन का अभियान्त्रिक पद्धतियों एवं सुदूर संवेदी तकनीकों की सहायता से उपयुक्त प्रबन्धन किया जाये, जिससे अवसादन के कारण होने वाली हानियों को न्यूनतम किया जा सके।
7.0 सन्दर्भ
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