शाप

Submitted by admin on Fri, 10/04/2013 - 16:04
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काव्य संचय- (कविता नदी)
पेड़ शाप देते हैं

बचे हुए पेड़ धीरे-धीरे अपने पैरों के पास
रेतीली जमीन या पहाड़ों की नंगी रीढ़ सरकते आते देखते हैं
और समझ जाते हैं

प्रतीक्षा करते हैं कि कटकर गिरने से पहले
अपने शरीरों से उठती अंतिम गंध को नहीं कोई तो
सूख जाने वाली उनकी पत्तियाँ ही सूँघे

बादल, नदियाँ, जानवर और चिड़ियाँ
सुनते हैं पेड़ों की आखिरी साँसों को
और मिलकर शाप देते हैं

जानवर और चिड़ियाँ चले जाते हैं कहीं और
अंत में घेरकर मार दिए जाने के लिए
लेकिन उससे पहले बादल और नदी से वचन लेते हैं बदला चुकाने का

बादल और नदियाँ सूरज, हवा और धरती से मिलकर
अपना निर्मम और व्यापक बदला लेते हैं
बारी-बारी से कभी सुखाते हुए कभी डुबोते हुए

और तपते हुए मैदानों या डूबे हुए आसरों में
छोड़ जाते हैं सूखी या फूली हुई काली लाशें
ज्यादातर असहाय बच्चों, औरतों, आदमियों और अपाहिजों की

भूख से सूखे और पानी से सूजे काले शरीरों के
खुले मुँह से जो शाप निकलता है
वह वही है जो पेड़ों ने दिया था।

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