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सोपान स्टेप, सितंबर 2013
सरकार ने तय किया कि यदि 1000 एकड़ एक जगह पर न भी दिया जा सके तो दो या तीन अलग स्थानों पर सेना को आयुध डिपो के लिए खाली जमीन दे दी जाए। इसके लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया है। सेना के प्रतिनिधियों को सरकार ने कहा है कि जिन निर्माणों से दुर्घटना का खतरा न हो व जो खतरनाक न हो ऐसे बांध निर्माण कार्य को आगे बढ़ने दिया जाए। सतलुज नदी पर प्रस्तावित शौंग-टौंग बांध परियोजना से इस क्षेत्र में विशेषकर ऊपरी हिमालय क्षेत्र के संवेदनशील किन्नौर जिले में भूमि-उपयोग, पर्यावरण व जन-जीवन में व्यापक प्रतिकूल बदलाव आने की संभावना है।
450 मेगावाट की यह पनबिजली परियोजना हाल के समय में तीखे विवाद व अदालती कार्यवाही के घेरे में रही है। इस संदर्भ में यहां के सैन्य अधिकारियों व न्यायालय ने एक सार्थक भूमिका निभाई जिसके कारण यहां संभावित एक बड़ी दुर्घटना की संभावना को रोका जा सका।
यह विवाद इस कारण शुरू हुआ कि बांध के निर्माण कार्य के क्षेत्र के बहुत नजदीक भारतीय सेना का आयुध डिपो है जिसमें बड़े पैमाने पर सीमा क्षेत्र के लिए गोला-बारूद व विस्फोटकों का स्टोरेज होता है। इस आयुध डिपो के आसपास किसी भी निर्माण कार्य पर रोक लगी हुई है जिससे किसी दुर्घटना की संभावना न हो।
पर शौंग-टौंग परियोजना के अधिकारियों ने इतने बड़े खतरे को भी नजर-अंदाज कर यहां निर्माण शुरू कर दिया। इससे चिंतित होकर सैन्य अधिकारियों ने स्थानीय व उच्च स्तर पर शिकायत की व निर्माण कार्य रोकने के लिए कहा। पर डैम लॉबी इतनी शक्तिशाली है कि खतरे को नजरअंदाज कर उसने काम जारी रखा। इस स्थिति में सेना को न्यायालय के द्वार खटखटाने पड़े और न्यायालय के आदेश पर ही यह निर्माण कार्य रुक सका।
इसके बाद सैन्य अधिकारियों और सिविल प्रशासन में बातचीत हुई तो सेना की ओर से कहा गया कि यदि यहां डैम बनना ही है तो उसे विशाल आयुध डिपो को नए स्थान पर शिफ्ट करना होगा जिसके लिए 1000 एकड़ भूमि की जरूरत होगी।
ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में यह कार्य बहुत कठिन है कि इतनी भूमि प्राप्त की जाए। इसका स्थानीय लोगों और पर्यावरण पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ सकता है। वैसे इस डैम का औचित्य तो पहले से बहुत स्पष्ट नहीं था क्योंकि इस नदी पर पहले ही बहुत बांध बन चुके हैं। पहले भी इस डैम परियोजना का इस आधार पर विरोध हुआ था कि इसके सामाजिक व पर्यावरणीय असर का व इसके औचित्य का ठीक मूल्यांकन नहीं हुआ है। जब इसके साथ विशालकाय आयुध डिपो शिफ्ट करने व 1000 एकड़ वैकल्पिक भूमि प्राप्त करने का मुद्दा जुड़ गया तो यह और भी स्पष्ट हो गया कि एक पहले से ओवर-सैचुरेटिड नदी पर यह बांध बनाने का अब कोई औचित्य नहीं रहा है। अतः इस परियोजना को त्याग देना ही उचित था।
दूसरी ओर केंद्रीय सरकार की ओर से भी यह कहा जाना चाहिए था कि इतने नए मुद्दे जुड़ने (1000 एकड़ और प्राप्त करने व आयुध डिपो शिफ्ट करने) के कारण इस डैम के लाभ-हानि व पर्यावरणीय-सामाजिक असर का मूल्यांकन बिल्कुल नए सिरे से होना चाहिए व इस बारे में पुनर्विचार होना चाहिए कि इस परियोजना का क्या औचित्य है।
पर ऐसा कोई पुनर्मूल्यांकन किए बिना ही सरकार ने तय किया कि यदि 1000 एकड़ एक जगह पर न भी दिया जा सके तो दो या तीन अलग स्थानों पर सेना को आयुध डिपो के लिए खाली जमीन दे दी जाए। इसके लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया है। सेना के प्रतिनिधियों को सरकार ने कहा है कि जिन निर्माणों से दुर्घटना का खतरा न हो व जो खतरनाक न हो ऐसे बांध निर्माण कार्य को आगे बढ़ने दिया जाए। इस बारे में विचार हो रहा है।
पर जरूरत तो इस बात की है कि नई परिस्थितियों में शौंग-टौंग परियोजना पर पूरी तरह नए सिरे से पुनर्विचार किया जाए व इस पुनर्विचार में नई स्थिति से उत्पन्न सब खर्चों, सामाजिक व पर्यावरणीय दुष्परिणामों का निष्पक्ष आकलन किया जाए।
450 मेगावाट की यह पनबिजली परियोजना हाल के समय में तीखे विवाद व अदालती कार्यवाही के घेरे में रही है। इस संदर्भ में यहां के सैन्य अधिकारियों व न्यायालय ने एक सार्थक भूमिका निभाई जिसके कारण यहां संभावित एक बड़ी दुर्घटना की संभावना को रोका जा सका।
यह विवाद इस कारण शुरू हुआ कि बांध के निर्माण कार्य के क्षेत्र के बहुत नजदीक भारतीय सेना का आयुध डिपो है जिसमें बड़े पैमाने पर सीमा क्षेत्र के लिए गोला-बारूद व विस्फोटकों का स्टोरेज होता है। इस आयुध डिपो के आसपास किसी भी निर्माण कार्य पर रोक लगी हुई है जिससे किसी दुर्घटना की संभावना न हो।
पर शौंग-टौंग परियोजना के अधिकारियों ने इतने बड़े खतरे को भी नजर-अंदाज कर यहां निर्माण शुरू कर दिया। इससे चिंतित होकर सैन्य अधिकारियों ने स्थानीय व उच्च स्तर पर शिकायत की व निर्माण कार्य रोकने के लिए कहा। पर डैम लॉबी इतनी शक्तिशाली है कि खतरे को नजरअंदाज कर उसने काम जारी रखा। इस स्थिति में सेना को न्यायालय के द्वार खटखटाने पड़े और न्यायालय के आदेश पर ही यह निर्माण कार्य रुक सका।
इसके बाद सैन्य अधिकारियों और सिविल प्रशासन में बातचीत हुई तो सेना की ओर से कहा गया कि यदि यहां डैम बनना ही है तो उसे विशाल आयुध डिपो को नए स्थान पर शिफ्ट करना होगा जिसके लिए 1000 एकड़ भूमि की जरूरत होगी।
ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में यह कार्य बहुत कठिन है कि इतनी भूमि प्राप्त की जाए। इसका स्थानीय लोगों और पर्यावरण पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ सकता है। वैसे इस डैम का औचित्य तो पहले से बहुत स्पष्ट नहीं था क्योंकि इस नदी पर पहले ही बहुत बांध बन चुके हैं। पहले भी इस डैम परियोजना का इस आधार पर विरोध हुआ था कि इसके सामाजिक व पर्यावरणीय असर का व इसके औचित्य का ठीक मूल्यांकन नहीं हुआ है। जब इसके साथ विशालकाय आयुध डिपो शिफ्ट करने व 1000 एकड़ वैकल्पिक भूमि प्राप्त करने का मुद्दा जुड़ गया तो यह और भी स्पष्ट हो गया कि एक पहले से ओवर-सैचुरेटिड नदी पर यह बांध बनाने का अब कोई औचित्य नहीं रहा है। अतः इस परियोजना को त्याग देना ही उचित था।
दूसरी ओर केंद्रीय सरकार की ओर से भी यह कहा जाना चाहिए था कि इतने नए मुद्दे जुड़ने (1000 एकड़ और प्राप्त करने व आयुध डिपो शिफ्ट करने) के कारण इस डैम के लाभ-हानि व पर्यावरणीय-सामाजिक असर का मूल्यांकन बिल्कुल नए सिरे से होना चाहिए व इस बारे में पुनर्विचार होना चाहिए कि इस परियोजना का क्या औचित्य है।
पर ऐसा कोई पुनर्मूल्यांकन किए बिना ही सरकार ने तय किया कि यदि 1000 एकड़ एक जगह पर न भी दिया जा सके तो दो या तीन अलग स्थानों पर सेना को आयुध डिपो के लिए खाली जमीन दे दी जाए। इसके लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किया गया है। सेना के प्रतिनिधियों को सरकार ने कहा है कि जिन निर्माणों से दुर्घटना का खतरा न हो व जो खतरनाक न हो ऐसे बांध निर्माण कार्य को आगे बढ़ने दिया जाए। इस बारे में विचार हो रहा है।
पर जरूरत तो इस बात की है कि नई परिस्थितियों में शौंग-टौंग परियोजना पर पूरी तरह नए सिरे से पुनर्विचार किया जाए व इस पुनर्विचार में नई स्थिति से उत्पन्न सब खर्चों, सामाजिक व पर्यावरणीय दुष्परिणामों का निष्पक्ष आकलन किया जाए।