टिहरी जनपद में स्थित मेरा गांव रगस्या-थाती (बूढ़ाकेदारनाथ) सामाजिक क्रांतियों का केन्द्र रहा है। यहां पर शराबबंदी आन्दोलन, अस्पृश्यता निवारण, चिपको आन्दोलन के लिये सर्वोदय और गांधी विचार से जुड़े लोगों का जमघट बना रहता था। बूढ़ाकेदारनाथ में धर्मानंद नौटियाल, भरपूरू नगवान एवं बहादूर सिंह राणा ने मिलकर सन् 1947 से 1975 के दौरान शांति और समानता के लिये अहिंसक गतिविधियां चलायी थीं। इन्हें सरला बहन और स्थानीय सर्वोदयी नेता सुन्दरलाल बहुगुणा का नेतृत्व भी प्राप्त था। उत्तराखण्ड सर्वोदय मण्डल की कोई भी नयी गतिविधि जब प्रारम्भ होती तो बूढ़ाकेदारनाथ में तीनों लोगों के संगठन से समाज में जल्दी ही उसका संदेश पहुंच जाता था। बिहारी लालजी का बचपन इन्हीं सामाजिक क्रांतियों के बीच बीता है। इन दिनों सामाजिक रूढ़ि से ऊपर उठकर लोग गांधी जी की सामाजिक समरसता की बात स्वीकारने लगे थे। इस समरसता, सहानुभूति और स्वालंबन की लौ को जलाने के लिये बिहारी लालजी सन् 1977 में वनवासी सेवाश्रम, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान और गांधी आश्रमों से कार्यानुभव लेकर अपने घर बूढ़ाकेदार आये थे। यहां सन् 1977-78 में उन्होंने लोक जीवन विकास भारती की स्थापना की।
यह सर्वोदय और गांधी विचार के अनुयायियों की संस्था है, इसलिये उत्तराखण्ड के तमाम सर्वोदयी कार्यकर्ताओं की यहां पर कई बैठकें हुई हैं। राधा बहन जी को हमने बूढ़ाकेदारनाथ में ही पहली बार देखा। पढ़ाई करने के बाद जब हम लोक जीवन विकास भारती में जुड़े थे तो सामाजिक संस्थाओं के बीच में राधा बहन से परिचय होना ही सिर्फ एकमात्र नहीं था, बल्कि हमें सहज रूप में उनके रास्ते पर चलने की प्रेरणा भी हुई। उत्तराखण्ड में महिला समाज सेविका के रूप में राधा बहन नये कार्यकर्ताओं के लिये मार्ग दर्शक बनी हुई हैं। वे आज सबकी सम्मान की पात्र बन गयी हैं।
सन् 1985-86 में भिलंगना ब्लाक में स्थित गोनगढ़, थाती कठूड़, बासर पट्टियों की सैकड़ों गांव की महिलायें शराबबंदी के आन्दोलन में लगी थीं। गोनगढ़ पट्टी में उन दिनों लोक जीवन विकास भारती ने जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के लिए महिलाओं के सक्रिय संगठन खड़े कर रखे थे। यहां पर भट्टगांव, चाठारा व कोट का महिला संघठन शराबबन्दी के लिये शासन-प्रशासन पर खूब दबाव बना रहा था। उनके साथ पटवारी ने कुछ अभद्र व्यवहार किया था, जिसका महिलाओं ने डटकर मुकाबला किया। महिलाओं को सहयोग देने के लिये लोक जीवन विकास भारती ने राधा बहन को भट्टगांव में एक महिला सम्मेलन में आमंत्रित किया था। भट्टगांव (गोनगढ़) जाने के लिये आज भी बूढ़ाकेदार से लगभग 14 किमी पैदल खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है। राधा बहन वहां पहुंची। उनके साथ लक्ष्मी आश्रम की अन्य बहनें भी आयीं थी। उनके महिला सम्मेलन में पहुंचने से गांव की महिलाओं को बल मिला। इस सम्मेलन के बाद उत्तराखण्ड में जहां-जहां राधा बहन गयीं, वहां से उन्होंने गोनगढ़ पट्टी की महिलाओं के समर्थन में जिलाधिकारी टिहरी को पत्र भिजवाये। परिणामस्वरूप स्थानीय पटवारी को महिलाओं से माफी मांगनी पड़ी। आन्दोलन को उत्तराखण्ड स्तरीय बनाने की यह अच्छी रणनीति थी। बिहारी लाल जी ने पूरे उत्तराखण्ड के सामाजिक संगठनों के गोनगढ़ में राधा बहन के पहुंचने की सूचना पत्र के माध्यम से भेजी थी।
उत्तराखण्ड में स्वैच्छिक संगठनों की दशा और दिशा पर चर्चायें होती रहती हैं। कहते हैं कि यहां तो 16 हजार गांवों से भी अधिक संस्थाओं की संख्या है। इस बारे में राधा बहन हमेशा जमीनी सच्चाइयों को ध्यान में रखती हैं। वे उन्हीं संगठनों को मान्यता देती हैं, जो जन-जन के बीच काम करते हैं, लोगों को मुद्दों के साथ जोड़ते हैं और जिनमें तमाम संकटों में भी सतत क्रियाशील रहने की ताकत दिखती है, यद्यपि एन.जी.ओ. गैर सरकारी संगठन ही हैं, लेकिन इनकी बुनियाद सरकारी प्रोजेक्टों पर टिकी हुई है। उन्हें जो निर्देशित होता है, वहीं करने लगते हैं। पैसा चाहे किसी का भी हो, उसी की गोद में बैठ जाते हैं, वे समाज से विपरीत समझौता भी करते हैं। ऐसे अधिकांश एन.जी.ओ. तो राजनीतिक दलों ने ही बना रखे हैं। इसके कारण अच्छे स्वैच्छिक संगठन बदनाम हो जाते हैं।
टिहरी बांध के आन्दोलन में सन् 1992 से सन् 1999 तक राधा बहन, भवानी भाई, मेधा पाटकर जैसे लोगों के जुड़ने से सुन्दरलाल बहुगुणा जी के उपवास के महत्व को बहुत दूर तक के लोगों को समझने का मौका मिला था। 20 मार्च 1992 की उस घटना की याद है, जब टिहरी बांध स्थल पर सुन्दरलाल बहुगुणा धरना दे रहे थे। प्रशासन ने धारा 144 लगा रखी थी। इस दिन 20 मार्च को उत्तराखण्ड व देश के अन्य हिस्सों से भी लोग टिहरी पहुंचे। बूढ़ाकेदारनाथ से एक गाड़ी में भरकर लोगों के साथ हम भी बांध विरोध के लिये टिहरी पहुंचे। भिलंगना ब्लाक से सेन्दुल, सिल्यारा, चमियाला से भी गाड़ियों में भरकर लोग सुबह 11 बजे टिहरी पहुंच गये थे। उस दिन लगभग विभिन्न स्थानों से पांच सौ लोग टिहरी में एकत्रित हुए थे। बांध स्थल पर जहां सुन्दर लाल बहुगुणा जी, बिमला बहन, कुंवर प्रसून, सुरेनेद्र दत्त भट्ट, और भवानी भाई धरना दे रहे थे, लोग धारा 144 के कारण वहां पर एकत्रित नहीं हो सकते थे।
आन्दोलनकारियों के सामने यही एक चुनौती थी कि सबसे पहले बांध स्थल पर जाकर धारा 144 का उल्लंघन कैसे किया जाये। आन्दोलनकारी जनता की यह कमान राधा बहन ने संभाली और आगे-आगे बांध स्थल की ओर वे चली, उनके पीछे चले सैकड़ों दूसरे लोग। वह पुलिस बैरियर को ठोकर मारकर लक्ष्य तक पहुंच गयी थीं। पुलिस के डंडे से उनके हाथ में जबर्दस्त चोट आयी थी। इस दिन कुंवर प्रसून, ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजीव नयन, शमशेर सिंह बिष्ट, विजय जड़धारी आदि कई नौजवानों ने राधा बहन के साथ कदम से कदम मिलाकर देश में बांध विरोध की अहिंसक लड़ाई का संदेश पहुंचाया। मैंने भी बांध निर्माण कम्पनी की एक मशीन के ऊपर चढ़कर भाषण दिया था। इसी तरह सन् 1996-97 में भी एक तरफ सुन्दरलाल बहुगुणा उपवास कर रहे थे, दूसरी तरफ राधा बहन के साथ हम लोगों ने टीएचडीसी का काम रोका। पुलिस राधा बहन के साथ हम लगभग 20 लोगों को चम्बा थाने में गिरफ्तार कर ले गयी थी। जब ब्रह्मदेव शर्मा समेत सैकड़ों लोगों पर पुलिस ने बेरहमी से लाठी चार्ज किया था, तब पुलिस की लाठी से घायल लगभग 150 लोग हॉस्पिटल में भर्ती करवाये गये थे। इस दौरान राधा बहन ने लक्ष्मी आश्रम की गांधी विचार की टीम को टिहरी बांध-विरोध के लिए कई बार भेजा। हमने दो बार लक्ष्मी आश्रम की गांधी विचार की टीम को टिहरीबांध-विरोध के लिए कई बार भेजा। हमने दो बार लक्ष्मी आश्रम की बहनों के साथ धारमंडल, प्रतापनगर, धौलधार के दर्जनों गांवों में पदयात्रा कीं। हमने इस पर लेख तैयार करके हिमालय सेवा संघ की पत्रिका में भी छपवाया था। इस पदयात्रा के बाद टिहरी बांध-विरोध में लोगों की संख्या बढ़ी थी।
सन् 1994-95 में एक तरफ ‘आज दो अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो’ के नारों के साथ लोग पृथक राज्य की मांग कर रहे थे, तो दूसरी ओर उत्तराखण्ड के जंगलों की नीलामी का सिलसिला भी प्रारम्भ हो गया था। राधा बहनजी ने हिमालय सेवा संघ से एक अपील भी निकाली थी, जिसमें लिखा था कि 1983 में चिपको के साथ हुए 1000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर के वृक्षों के पातन पर लगी रोक को सन् 1993 में सरकार ने हटा दिया है। इस रोक को हटाने के पीछे चीड़ के पेड़ों का व्यावसायिक दोहन कराना एकमात्र कारण था। लेकिन जब हमने जंगलों में जाकर अध्ययन किया तो ऊंचाई की जैव विविधता का कटान जोरों पर था। सन् 1994 में इसके विरुद्ध रक्षासूत्र आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। जब उत्तराखण्ड में अगस्त 1994 से आरक्षण विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ हुआ था तो, इसी दौरान जंगलों की अंधाधुन्ध कटाई होने लगी। चीड़ के पेड़ों की कटाई तो नाममात्र की थी, लेकिन ऊंचाई के दुर्लभ वन राई, कैल, मुरेण्डा, देवदार, बांज, बुरांस के जंगल बड़ी मात्रा में कटने लगे थे। इसी दौरान “ऊंचाई पर पेड़ रहेंगे, नदी-ग्लेशियर टिके रहेंगें” के नारों के साथ महिला संगठनों ने कटान के लिये छापे गये पेड़ों पर राखी बांधी। राधा बहन ने रक्षासूत्र आन्दोलन में सक्रियता से भाग लेकर आन्दोलनकारी भाई-बहनों को तन, मन, धन से सहयोग किया था। इसके बाद टिहरी-उत्तरकाशी के ऊंचाई के वनों के कटान को रोकने में अद्भुत सफलता हासिल हुई। एक बार चौरंगीखाल में वन ठेकेदारों ने हम पर जानलेवा हमला किया। राध बहन ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए जिलाधिकारी टिहरी और उत्तरकाशी को पत्र भेजे थे। उन्होंने वन बचाने में लगे रक्षासूत्र आन्दोलनकारियों की सुरक्षा के सम्बंध में भी प्रशासन को पत्र लिखा था। उनके पत्र के बाद प्रशासन हरकत में भी आया।
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण ने पहले राधा बहन के साथ मिलकर हमने कई स्थानों पर बैठकें की थीं। बैठकों के माध्यम से उत्तराखण्ड राज्य की दिशा पर चर्चा हुई। इस विषय की केवल चर्चा ही नहीं थी, बल्कि लक्ष्मी आश्रम कौसानी, सिद्ध मंसूरी, हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान लम्बगांव, लोक जीवन विकास भारती बूढाकेदारनाथ, में हुई बैठकों के बाद ‘उत्तराखण्ड दस्तावेज’ भी तैयार किया गया। जैसे ही राज्य की पहली अन्तरिम विधान सभा बनी, उसी वक्त यह दस्तावेज विधायकों तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को दिया गया था। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद भी यह दस्तावेज काफी चर्चाओं में रहा है।
पंचेश्वर बांध-विरोध में मई 1996 में राधा बहन के साथ हम अनेक कार्यकर्ताओं नें झूलाघाट से लेकर पंचेश्वर तक पदयात्रा की थी। इस पदयात्रा में महाकाली के उस पार नेपाल के विनायक गांव तक भी गये थे। अक्सर बांध निर्माण की सूचना लोगों को तभी मिलती है, जब निर्माण एजेंसी अपनी मशीनों को लेकर गांव के पहाड़ खोदने लग जाती है। महाकाली पर पंचेश्वर बांध का निर्माण होना है, लेकिन झूलाघाट से लेकर पंचेश्वर के बीच पड़ने वाले 25-30 गांव भविष्य में जलमग्न होंगे, इसकी सूचना गांव में नहीं पहुंची थी। हमने पदयात्रा के माध्यम से गांव-गांव में बैठकें कीं। गांव में लोगों के साथ ही निवास भी किया और चर्चा भी। लोगों को विश्वास ही नहीं होता था कि उनके घरबार जलमग्न होंगे या उन्हें यहां से बाहर जाना होगा, राधा बहन के साथ हुई इस पदयात्रा के बाद हम लोगों ने हिमालय सेवा संघ के माध्यम से प्रस्तावित पंचेश्वर बांध से प्रभावित गांवों का सर्वेक्षण भी किया। हिमालय सेवा संघ ने पदयात्रा के बाद दिल्ली जाकर एक नागरिक रिपोर्ट भी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करवायी। उधर नेपाल के बांध-विरोधी संगठनों ने काठमाण्डू बंद किया था। इसके बाद भारत और नेपाल की सरकारें बांध पर पुनर्विचार करने के लिये बाध्य हुई। इसके निर्माण का अन्तिम फैसला दोनों देश आज तक नहीं कर पाये हैं।
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद लोग उत्तराखण्ड दस्तावेज को तैयार करने के बाद चुप नहीं बैठे। इसके बाद जल, जंगल, जमीन पर जनता के अधिकारों की मांग जारी रही। हम लोगों ने उत्तराकाशी, देहरादून, तथा कौसानी में महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित करके लोक जलनीति के अनुसार राज्य की जलनीति तैयार करने के लिये जन दबाव बनाया है। राधा बहन ने इस मसौदे को तैयार करने में काफी मदद की। उत्तराखण्ड के लगभग 150 संगठन इस मसौदे को बनाने तथा पंचायतों के माध्यम से राज्य सरकार को भिजवाने के लिये आगे आये।
टिहरी बांध के निर्माण के बाद राज्य की पहली अन्तरिम विधान सभा ने जब तय कर दिया था कि वे इसको ऊर्जा पर्देश बनाने वाले हैं, इसके लिये हमने सर्वप्रथम बांधों के निर्माण की जानकारी प्राप्त की। भागीरथी घाटी, भिलंगना घाटी में हम लोगों ने विशेष रूप से बांधों के निजीकरण का विरोध किया तथा टिहरी बांध के बाद उत्तराखण्ड में बड़े बांध न बनें, इस पर रोक लगाने के लिये जनान्दोलनों के द्वारा सरकार को चेताया। इसी दौरान 15 नवम्बर 06 को राधा बहन को उत्तरकाशी में बांध प्रभावित लोगों के एक सम्मेलन में आमन्त्रित किया। उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित लोगों की बातें ध्यान से सुनीं और उत्तराखण्ड में सुरंग बांधों के निर्माण पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्क से इस विषय पर एक पत्र भी भेजा, जिसे ‘जलकुर घाटी संदेश’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। इसी दौरान राधा बहनजी कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की जिम्मेदारी से मुक्त होकर उत्तराखण्ड में भागीरथी और कोसी बचाने के लिये चल रहे प्रयासों को आगे बढ़ाने में जुट गयीं। 8 जुलाई 07 को लक्ष्मी आश्रम में पू. सरला बहन की पुण्य तिथि पर “उत्तराखण्ड में नदियों पर संकट” विषय पर एक गोष्ठी हुई और 22-24 अगस्त 07 को उत्तरकाशी में उत्तराखण्ड में जल, जंगल, जमीन विषय पर एक सम्मेलन हुआ। इसके उपरान्त ‘उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान’ चलाने का निर्णय सामने आया। लक्ष्मी आश्रम में नवम्बर 07 की एक बैठक में वर्ष 2008 को ‘नदी बचाओ’ वर्ष के रूप में घोषित किया गया। वर्ष 2008 के प्रारम्भ में 1-15 जनवरी के बीच उत्तराखण्ड की 15 नदी-घाटियों में लोगों ने पदयात्राएं कीं। 16-17 जनवरी को रामनगर सम्मेलन के बाद उत्तराखण्ड में नदी बचाओ अभियान की गूंज चारों तरफ सुनाई देने लगीं। जो लोग पहले से नदियों को बांधों से बचाने तथा प्राकृतिक संसाधनों पर जन अधिकारों की पैरवी के लिए आन्दोलित थे, उन्हें इसके कारण नैतिक बल मिला है। नदी बचाओ अभियान के निमित्त लोग एक-दूसरे के आन्दोलन से जुड़े हैं।
इस अभियान के बाद राज्य सरकार ने बड़े बांधों के निर्माण का विचार तो छोड़ा है, लेकिन उनकी कथनी और करनी में समानता लाने के लिये ‘नदी बचाओ अभियान’ ने अपने प्रयास तेज किये हैं। इसमें राधा बहन का मार्गदर्शन सबको मिल रहा है। 75 वर्ष की उम्र में बहनजी उत्तराखण्ड भर में लम्बी-लम्बी जलयात्राओं और पदयात्राओं में स्वयं भाग लेती हैं। आज की सामाजिक संस्थाओं तथा कार्यकर्ताओं को राधा बहन जी से एक बड़ी सीख लेनी होगी।
यह सर्वोदय और गांधी विचार के अनुयायियों की संस्था है, इसलिये उत्तराखण्ड के तमाम सर्वोदयी कार्यकर्ताओं की यहां पर कई बैठकें हुई हैं। राधा बहन जी को हमने बूढ़ाकेदारनाथ में ही पहली बार देखा। पढ़ाई करने के बाद जब हम लोक जीवन विकास भारती में जुड़े थे तो सामाजिक संस्थाओं के बीच में राधा बहन से परिचय होना ही सिर्फ एकमात्र नहीं था, बल्कि हमें सहज रूप में उनके रास्ते पर चलने की प्रेरणा भी हुई। उत्तराखण्ड में महिला समाज सेविका के रूप में राधा बहन नये कार्यकर्ताओं के लिये मार्ग दर्शक बनी हुई हैं। वे आज सबकी सम्मान की पात्र बन गयी हैं।
सन् 1985-86 में भिलंगना ब्लाक में स्थित गोनगढ़, थाती कठूड़, बासर पट्टियों की सैकड़ों गांव की महिलायें शराबबंदी के आन्दोलन में लगी थीं। गोनगढ़ पट्टी में उन दिनों लोक जीवन विकास भारती ने जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के लिए महिलाओं के सक्रिय संगठन खड़े कर रखे थे। यहां पर भट्टगांव, चाठारा व कोट का महिला संघठन शराबबन्दी के लिये शासन-प्रशासन पर खूब दबाव बना रहा था। उनके साथ पटवारी ने कुछ अभद्र व्यवहार किया था, जिसका महिलाओं ने डटकर मुकाबला किया। महिलाओं को सहयोग देने के लिये लोक जीवन विकास भारती ने राधा बहन को भट्टगांव में एक महिला सम्मेलन में आमंत्रित किया था। भट्टगांव (गोनगढ़) जाने के लिये आज भी बूढ़ाकेदार से लगभग 14 किमी पैदल खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है। राधा बहन वहां पहुंची। उनके साथ लक्ष्मी आश्रम की अन्य बहनें भी आयीं थी। उनके महिला सम्मेलन में पहुंचने से गांव की महिलाओं को बल मिला। इस सम्मेलन के बाद उत्तराखण्ड में जहां-जहां राधा बहन गयीं, वहां से उन्होंने गोनगढ़ पट्टी की महिलाओं के समर्थन में जिलाधिकारी टिहरी को पत्र भिजवाये। परिणामस्वरूप स्थानीय पटवारी को महिलाओं से माफी मांगनी पड़ी। आन्दोलन को उत्तराखण्ड स्तरीय बनाने की यह अच्छी रणनीति थी। बिहारी लाल जी ने पूरे उत्तराखण्ड के सामाजिक संगठनों के गोनगढ़ में राधा बहन के पहुंचने की सूचना पत्र के माध्यम से भेजी थी।
उत्तराखण्ड में स्वैच्छिक संगठनों की दशा और दिशा पर चर्चायें होती रहती हैं। कहते हैं कि यहां तो 16 हजार गांवों से भी अधिक संस्थाओं की संख्या है। इस बारे में राधा बहन हमेशा जमीनी सच्चाइयों को ध्यान में रखती हैं। वे उन्हीं संगठनों को मान्यता देती हैं, जो जन-जन के बीच काम करते हैं, लोगों को मुद्दों के साथ जोड़ते हैं और जिनमें तमाम संकटों में भी सतत क्रियाशील रहने की ताकत दिखती है, यद्यपि एन.जी.ओ. गैर सरकारी संगठन ही हैं, लेकिन इनकी बुनियाद सरकारी प्रोजेक्टों पर टिकी हुई है। उन्हें जो निर्देशित होता है, वहीं करने लगते हैं। पैसा चाहे किसी का भी हो, उसी की गोद में बैठ जाते हैं, वे समाज से विपरीत समझौता भी करते हैं। ऐसे अधिकांश एन.जी.ओ. तो राजनीतिक दलों ने ही बना रखे हैं। इसके कारण अच्छे स्वैच्छिक संगठन बदनाम हो जाते हैं।
टिहरी बांध के आन्दोलन में सन् 1992 से सन् 1999 तक राधा बहन, भवानी भाई, मेधा पाटकर जैसे लोगों के जुड़ने से सुन्दरलाल बहुगुणा जी के उपवास के महत्व को बहुत दूर तक के लोगों को समझने का मौका मिला था। 20 मार्च 1992 की उस घटना की याद है, जब टिहरी बांध स्थल पर सुन्दरलाल बहुगुणा धरना दे रहे थे। प्रशासन ने धारा 144 लगा रखी थी। इस दिन 20 मार्च को उत्तराखण्ड व देश के अन्य हिस्सों से भी लोग टिहरी पहुंचे। बूढ़ाकेदारनाथ से एक गाड़ी में भरकर लोगों के साथ हम भी बांध विरोध के लिये टिहरी पहुंचे। भिलंगना ब्लाक से सेन्दुल, सिल्यारा, चमियाला से भी गाड़ियों में भरकर लोग सुबह 11 बजे टिहरी पहुंच गये थे। उस दिन लगभग विभिन्न स्थानों से पांच सौ लोग टिहरी में एकत्रित हुए थे। बांध स्थल पर जहां सुन्दर लाल बहुगुणा जी, बिमला बहन, कुंवर प्रसून, सुरेनेद्र दत्त भट्ट, और भवानी भाई धरना दे रहे थे, लोग धारा 144 के कारण वहां पर एकत्रित नहीं हो सकते थे।
आन्दोलनकारियों के सामने यही एक चुनौती थी कि सबसे पहले बांध स्थल पर जाकर धारा 144 का उल्लंघन कैसे किया जाये। आन्दोलनकारी जनता की यह कमान राधा बहन ने संभाली और आगे-आगे बांध स्थल की ओर वे चली, उनके पीछे चले सैकड़ों दूसरे लोग। वह पुलिस बैरियर को ठोकर मारकर लक्ष्य तक पहुंच गयी थीं। पुलिस के डंडे से उनके हाथ में जबर्दस्त चोट आयी थी। इस दिन कुंवर प्रसून, ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजीव नयन, शमशेर सिंह बिष्ट, विजय जड़धारी आदि कई नौजवानों ने राधा बहन के साथ कदम से कदम मिलाकर देश में बांध विरोध की अहिंसक लड़ाई का संदेश पहुंचाया। मैंने भी बांध निर्माण कम्पनी की एक मशीन के ऊपर चढ़कर भाषण दिया था। इसी तरह सन् 1996-97 में भी एक तरफ सुन्दरलाल बहुगुणा उपवास कर रहे थे, दूसरी तरफ राधा बहन के साथ हम लोगों ने टीएचडीसी का काम रोका। पुलिस राधा बहन के साथ हम लगभग 20 लोगों को चम्बा थाने में गिरफ्तार कर ले गयी थी। जब ब्रह्मदेव शर्मा समेत सैकड़ों लोगों पर पुलिस ने बेरहमी से लाठी चार्ज किया था, तब पुलिस की लाठी से घायल लगभग 150 लोग हॉस्पिटल में भर्ती करवाये गये थे। इस दौरान राधा बहन ने लक्ष्मी आश्रम की गांधी विचार की टीम को टिहरी बांध-विरोध के लिए कई बार भेजा। हमने दो बार लक्ष्मी आश्रम की गांधी विचार की टीम को टिहरीबांध-विरोध के लिए कई बार भेजा। हमने दो बार लक्ष्मी आश्रम की बहनों के साथ धारमंडल, प्रतापनगर, धौलधार के दर्जनों गांवों में पदयात्रा कीं। हमने इस पर लेख तैयार करके हिमालय सेवा संघ की पत्रिका में भी छपवाया था। इस पदयात्रा के बाद टिहरी बांध-विरोध में लोगों की संख्या बढ़ी थी।
सन् 1994-95 में एक तरफ ‘आज दो अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो’ के नारों के साथ लोग पृथक राज्य की मांग कर रहे थे, तो दूसरी ओर उत्तराखण्ड के जंगलों की नीलामी का सिलसिला भी प्रारम्भ हो गया था। राधा बहनजी ने हिमालय सेवा संघ से एक अपील भी निकाली थी, जिसमें लिखा था कि 1983 में चिपको के साथ हुए 1000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर के वृक्षों के पातन पर लगी रोक को सन् 1993 में सरकार ने हटा दिया है। इस रोक को हटाने के पीछे चीड़ के पेड़ों का व्यावसायिक दोहन कराना एकमात्र कारण था। लेकिन जब हमने जंगलों में जाकर अध्ययन किया तो ऊंचाई की जैव विविधता का कटान जोरों पर था। सन् 1994 में इसके विरुद्ध रक्षासूत्र आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। जब उत्तराखण्ड में अगस्त 1994 से आरक्षण विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ हुआ था तो, इसी दौरान जंगलों की अंधाधुन्ध कटाई होने लगी। चीड़ के पेड़ों की कटाई तो नाममात्र की थी, लेकिन ऊंचाई के दुर्लभ वन राई, कैल, मुरेण्डा, देवदार, बांज, बुरांस के जंगल बड़ी मात्रा में कटने लगे थे। इसी दौरान “ऊंचाई पर पेड़ रहेंगे, नदी-ग्लेशियर टिके रहेंगें” के नारों के साथ महिला संगठनों ने कटान के लिये छापे गये पेड़ों पर राखी बांधी। राधा बहन ने रक्षासूत्र आन्दोलन में सक्रियता से भाग लेकर आन्दोलनकारी भाई-बहनों को तन, मन, धन से सहयोग किया था। इसके बाद टिहरी-उत्तरकाशी के ऊंचाई के वनों के कटान को रोकने में अद्भुत सफलता हासिल हुई। एक बार चौरंगीखाल में वन ठेकेदारों ने हम पर जानलेवा हमला किया। राध बहन ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए जिलाधिकारी टिहरी और उत्तरकाशी को पत्र भेजे थे। उन्होंने वन बचाने में लगे रक्षासूत्र आन्दोलनकारियों की सुरक्षा के सम्बंध में भी प्रशासन को पत्र लिखा था। उनके पत्र के बाद प्रशासन हरकत में भी आया।
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण ने पहले राधा बहन के साथ मिलकर हमने कई स्थानों पर बैठकें की थीं। बैठकों के माध्यम से उत्तराखण्ड राज्य की दिशा पर चर्चा हुई। इस विषय की केवल चर्चा ही नहीं थी, बल्कि लक्ष्मी आश्रम कौसानी, सिद्ध मंसूरी, हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान लम्बगांव, लोक जीवन विकास भारती बूढाकेदारनाथ, में हुई बैठकों के बाद ‘उत्तराखण्ड दस्तावेज’ भी तैयार किया गया। जैसे ही राज्य की पहली अन्तरिम विधान सभा बनी, उसी वक्त यह दस्तावेज विधायकों तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को दिया गया था। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद भी यह दस्तावेज काफी चर्चाओं में रहा है।
पंचेश्वर बांध-विरोध में मई 1996 में राधा बहन के साथ हम अनेक कार्यकर्ताओं नें झूलाघाट से लेकर पंचेश्वर तक पदयात्रा की थी। इस पदयात्रा में महाकाली के उस पार नेपाल के विनायक गांव तक भी गये थे। अक्सर बांध निर्माण की सूचना लोगों को तभी मिलती है, जब निर्माण एजेंसी अपनी मशीनों को लेकर गांव के पहाड़ खोदने लग जाती है। महाकाली पर पंचेश्वर बांध का निर्माण होना है, लेकिन झूलाघाट से लेकर पंचेश्वर के बीच पड़ने वाले 25-30 गांव भविष्य में जलमग्न होंगे, इसकी सूचना गांव में नहीं पहुंची थी। हमने पदयात्रा के माध्यम से गांव-गांव में बैठकें कीं। गांव में लोगों के साथ ही निवास भी किया और चर्चा भी। लोगों को विश्वास ही नहीं होता था कि उनके घरबार जलमग्न होंगे या उन्हें यहां से बाहर जाना होगा, राधा बहन के साथ हुई इस पदयात्रा के बाद हम लोगों ने हिमालय सेवा संघ के माध्यम से प्रस्तावित पंचेश्वर बांध से प्रभावित गांवों का सर्वेक्षण भी किया। हिमालय सेवा संघ ने पदयात्रा के बाद दिल्ली जाकर एक नागरिक रिपोर्ट भी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करवायी। उधर नेपाल के बांध-विरोधी संगठनों ने काठमाण्डू बंद किया था। इसके बाद भारत और नेपाल की सरकारें बांध पर पुनर्विचार करने के लिये बाध्य हुई। इसके निर्माण का अन्तिम फैसला दोनों देश आज तक नहीं कर पाये हैं।
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद लोग उत्तराखण्ड दस्तावेज को तैयार करने के बाद चुप नहीं बैठे। इसके बाद जल, जंगल, जमीन पर जनता के अधिकारों की मांग जारी रही। हम लोगों ने उत्तराकाशी, देहरादून, तथा कौसानी में महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित करके लोक जलनीति के अनुसार राज्य की जलनीति तैयार करने के लिये जन दबाव बनाया है। राधा बहन ने इस मसौदे को तैयार करने में काफी मदद की। उत्तराखण्ड के लगभग 150 संगठन इस मसौदे को बनाने तथा पंचायतों के माध्यम से राज्य सरकार को भिजवाने के लिये आगे आये।
टिहरी बांध के निर्माण के बाद राज्य की पहली अन्तरिम विधान सभा ने जब तय कर दिया था कि वे इसको ऊर्जा पर्देश बनाने वाले हैं, इसके लिये हमने सर्वप्रथम बांधों के निर्माण की जानकारी प्राप्त की। भागीरथी घाटी, भिलंगना घाटी में हम लोगों ने विशेष रूप से बांधों के निजीकरण का विरोध किया तथा टिहरी बांध के बाद उत्तराखण्ड में बड़े बांध न बनें, इस पर रोक लगाने के लिये जनान्दोलनों के द्वारा सरकार को चेताया। इसी दौरान 15 नवम्बर 06 को राधा बहन को उत्तरकाशी में बांध प्रभावित लोगों के एक सम्मेलन में आमन्त्रित किया। उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित लोगों की बातें ध्यान से सुनीं और उत्तराखण्ड में सुरंग बांधों के निर्माण पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्क से इस विषय पर एक पत्र भी भेजा, जिसे ‘जलकुर घाटी संदेश’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। इसी दौरान राधा बहनजी कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की जिम्मेदारी से मुक्त होकर उत्तराखण्ड में भागीरथी और कोसी बचाने के लिये चल रहे प्रयासों को आगे बढ़ाने में जुट गयीं। 8 जुलाई 07 को लक्ष्मी आश्रम में पू. सरला बहन की पुण्य तिथि पर “उत्तराखण्ड में नदियों पर संकट” विषय पर एक गोष्ठी हुई और 22-24 अगस्त 07 को उत्तरकाशी में उत्तराखण्ड में जल, जंगल, जमीन विषय पर एक सम्मेलन हुआ। इसके उपरान्त ‘उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान’ चलाने का निर्णय सामने आया। लक्ष्मी आश्रम में नवम्बर 07 की एक बैठक में वर्ष 2008 को ‘नदी बचाओ’ वर्ष के रूप में घोषित किया गया। वर्ष 2008 के प्रारम्भ में 1-15 जनवरी के बीच उत्तराखण्ड की 15 नदी-घाटियों में लोगों ने पदयात्राएं कीं। 16-17 जनवरी को रामनगर सम्मेलन के बाद उत्तराखण्ड में नदी बचाओ अभियान की गूंज चारों तरफ सुनाई देने लगीं। जो लोग पहले से नदियों को बांधों से बचाने तथा प्राकृतिक संसाधनों पर जन अधिकारों की पैरवी के लिए आन्दोलित थे, उन्हें इसके कारण नैतिक बल मिला है। नदी बचाओ अभियान के निमित्त लोग एक-दूसरे के आन्दोलन से जुड़े हैं।
इस अभियान के बाद राज्य सरकार ने बड़े बांधों के निर्माण का विचार तो छोड़ा है, लेकिन उनकी कथनी और करनी में समानता लाने के लिये ‘नदी बचाओ अभियान’ ने अपने प्रयास तेज किये हैं। इसमें राधा बहन का मार्गदर्शन सबको मिल रहा है। 75 वर्ष की उम्र में बहनजी उत्तराखण्ड भर में लम्बी-लम्बी जलयात्राओं और पदयात्राओं में स्वयं भाग लेती हैं। आज की सामाजिक संस्थाओं तथा कार्यकर्ताओं को राधा बहन जी से एक बड़ी सीख लेनी होगी।