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विज्ञान प्रगति, दिसम्बर 2017
स्मॉग दरअसल अंग्रेजी के दो शब्दों ‘स्मोक’ धुएँ तथा फॉग से मिलकर बना हुआ है जिसे आम भाषा में ‘धुआँसा’ या ‘धूम कोहरा’ भी कहा जाता है, इसमें क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन से लेकर सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड अति सूक्ष्म पीएम 2.5 तथा पीएम 10 कण, लेड, क्लोरीन, आर्सेनिक, हाइड्रोजन सल्फाइड, नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि धातुएँ तथा यौगिक सामान्य से कहीं अधिक मात्रा में घुलकर हवा या वायुमण्डल को विषाक्त बना देते हैं।

स्मॉग के चलते दिल्ली में लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया, वाहनों की रफ्तार थम गयी। इन्दिरा गाँधी एयरपोर्ट पर दृश्यता बाधित होने के कारण दर्जनों उड़ानें प्रभावित हुई, तीन नगर-निगमों के 17000 स्कूलों को बन्द करना पड़ा तथा दृश्यता बाधा उत्पन्न होने से हुई यातायात दुर्घटनाओं में 30 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी, घर से बाहर निकले अधिकांश लोगों को साँस लेने में दिक्कत, खाँसी-जुकाम तथा आँखों में जलन की शिकायत करते हुए देखा गया। केन्द्र सरकार ने इसे आपात-स्थिति करार देते हुए सभी पड़ोसी राज्यों (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश) के पर्यावरण मंत्रियों की एक आपात बैठक बुलायी, जिसमें इन राज्यों में पराली जलाने पर पाबन्दी लगाने सम्बन्धी मुद्दों पर चर्चा हुई।
मगर सवाल यह उठता है कि केवल पराली जलाने से दिल्ली तथा आस-पास के क्षेत्रों में ऐसे हालात पैदा हुए, आखिर पहले भी तो पराली जलायी जाती थी? निश्चित रूप से वायु प्रदूषण की इस प्रकार की गम्भीर स्थिति के लिये एक नहीं बल्कि कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, यद्यपि यह बात अलग है कि इनमें से कुछ कारण प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कम जिम्मेदार हो सकते हैं और कुछ अधिक।
उत्तर तथा मध्य भारत के शहरों में जहरीली होती आबोहवा
भारत के उत्तर व मध्य भारतीय शहरों में पिछले तीन दशकों में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है, अगर स्थिति इसी तरह निर्विघ्न रूप से जारी रही तो वर्ष 2050 तक उत्तर भारत के कई बड़े शहर रहने के लायक भी नहीं रहेंगे। तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो पिछले तीन दशकों में पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन को लेकर विभिन्न योजनाओं, कार्यक्रमों तथा योजनाओं पर सरकार द्वारा जो करोड़ों-अरबों रुपये पानी की तरह बहाये गये, अगर उसके आधे हिस्से का भी सही तथा गुणवत्तापूर्ण उपयोग होता तो सम्भवतः आज तक हमारे शहरों की आबोहवा काफी खुशगवार होती, मगर यहाँ सब कुछ उल्टा-पुल्टा देखने को मिला, साल-दर-साल जितनी योजनायें बनती गयी, उतनी ही आबोहवा जहरीली होती गयी, आँकड़े इस बात की साफ गवाही देते हैं।
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) की रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली है, रिपोर्ट में वर्ष 2008 से 2015 के बीच 81 देशों के 1600 शहरों में वायु प्रदूषण का ब्यौरा पेश किया गया है, इस रिपोर्ट में दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 13 भारत के बताये गये हैं, इसमें ग्वालियर, इलाहाबाद, पटना, लुधियाना, कानपुर, लखनऊ, धनबाद, दिल्ली, रायपुर आदि शहरों को दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल किया गया है।
आँकड़ों पर गौर करें तो दुनिया की 20 सर्वाधिक आबादी वाले शहरों में 5 भारतीय शहर शामिल हैं और भारत में जिस तरह शहरी आबादी बढ़ रही है ऐसे में वर्ष 2030 तक उसके 70 से 80 करोड़ तक पहुँचने के अनुमान लगाये जा रहे हैं मगर भारत के शहर आबादी के इतने बड़े दबाव को झेलने में सक्षम हैं, विशेषज्ञों की मानें तो इसके लिये सरकार को दो स्तरों पर काम करना पड़ेगा - (1) शहरों की मौजूदा संरचनाओं में परिवर्तन तथा सुधार (2) शहरीकरण की प्रक्रिया को विस्तार देते हुए नये शहरों की बसावट। इसके लिये सरकार को अभी से प्रभावी पहल शुरू करनी होगी तथा विभिन्न स्तरों पर नीति नियमन से लेकर क्रियान्वयन तक में विशेष सजगता व सक्रियता दिखानी होगी। भारत में पिछले एक साल से ‘स्मार्ट सिटी परियोजना’ के बारे में चर्चा की जा रही है तथा पिछले 2 सालों से ‘स्वच्छ भारत अभियान’ चलाया जा रहा है, इनका आगाज तो अच्छा है, मगर इनके निर्धारित लक्ष्यों या उद्देश्यों को कैसे हासिल किया जायेगा, इसको लेकर विभिन्न स्तरों पर गहन सोच-समझ व समन्वय का अभाव अभी से दिखायी दे रहा है।
डब्ल्यू एच ओ की रिपोर्ट ने शहरी परिवहन की अनियमितता को वायु प्रदूषण का बड़ा कारण माना गया है, सार्वजनिक परिवहन का ढाँचा परम्परागत ढर्रे पर चलने के कारण चरमरा सा गया है और निजी वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, कई वाहन नीति-नियामकों को धता बताकर चल रहे हैं तो कई अपनी चलन की अवधि पूरी होने के बावजूद सड़कों पर दौड़ रहे हैं। आज भारत में निर्मित 48 प्रकार के वाहनों में 40 फीसदी वाणिज्यिक वाहन अवैध रूप से चल रहे हैं देश में प्रतिमाह 2 लाख कारों की संख्या बढ़ रही है जबकि सड़कों की स्थिति जस की तस बनी हुई है, नतीजतन ट्रैफिक जाम तथा वायु प्रदूषण में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इस समस्या से निजात पाने के लिये सरकार के पास दो विकल्प हैं, पहला मौजूदा मुख्य सड़क मार्गों के क्षेत्रफल में वृद्धि तथा दूसरा सम्पर्क मार्गों का पुनर्निर्माण व नवीनीकरण।
शहरी क्षेत्रों में कई ऐसे खतरनाक औद्योगिक इकाइयाँ हैं जो वायुमण्डल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरीन तथा आर्सेनिक जैसे खतरनाक उत्सर्जकों को वायुमण्डल में उत्सर्जित करती हैं, यद्यपि सरकार को ऐसी छोटी-बड़ी खतरनाक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना शहरी क्षेत्र से दूर किसी अलग स्थान पर करने के निर्देश दिये जाते तथा उनके लिये उत्सर्जन तथा क्षतिपूर्ति से सम्बन्धित मानक तय किए जाते, मगर ऐसा हो नहीं पाया। एक और बड़ी समस्या यह है कि पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन को लेकर सरकार तथा सम्बद्ध एजेंसियाँ तो लापरवाह हैं ही परन्तु आम नागरिकों में भी पर्यावरण जागरुकता के प्रति बेहद उदासीनता व लापरवाही देखने को मिलती है, जबकि भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक तत्वों में सरकार के लिये तथा मूल कर्तव्यों व दायित्वों के प्रति अवगत कराया गया है, ऊपर से न्यायपालिका तथा कई राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण एजेंसियाँ भी प्रदूषण को लेकर सरकारों को कई बार दिशा-निर्देश दे चुकी है। खुद केन्द्र सरकार की ‘राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण’ (NGT) तथा ‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ (CBPC) जैसी एजेंसियाँ प्रदूषण की दिन प्रतिदिन होती गम्भीर स्थिति के प्रति अपनी कई रिपोर्ट पेश कर चुकी है, मगर हालात में सुधार होते नहीं दिख रहे हैं।
शहरों में भीषण वायु प्रदूषण पर रोकथाम के उपाय
1. सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के व्यावहारिक ढाँचे को और अधिक मजबूत व प्रभावी बनाने के लिये न सिर्फ नवीन तकनीक, उपकरणों तथा विधियों-प्रविधियों का उपयोग करना होगा, बल्कि मुख्य सड़कों, फ्लाईओवरों तथा सम्पर्क मार्गों के विकास-विस्तार, पुनर्निर्माण, देख-रेख तथा रख-रखाव पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
2. छोटी-बड़ी सभी प्रकार की खतरनाक व प्रदूषक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना शहरी या रिहायशी क्षेत्र से दूर निर्दिष्ट स्थान पर की जानी चाहिए।
3. शहरी क्षेत्रों के आस-पास के क्षेत्रों में किसानों द्वारा खेती के अवशेषों (पराली) को जलाने पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए, साथ ही इन अवशेषों का उपयोग अन्य रचनात्मक कार्यों (बायोमास, बायोएनर्जी, जैविक खाद, उपले आदि बनाने में) में करने के लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
4. स्वायत्तशासी एवं स्थानीय निकायों (जैसे नगर-निगम व नगरपालिका) को और अधिक साधन व सुविधा सम्पन्न तथा अत्याधुनिक तकनीकों से लैस किया जाना चाहिए।
5. दीपावली तथा अन्य निजी या सार्वजनिक कार्यक्रमों, आयोजनों तथा महोत्सवों (विशेषकर शादी-ब्याह, चुनावी कार्यक्रमों, निजी व सार्वजनिक पार्टियों में) में की जाने वाली आतिशबाजियों को पूर्णतः प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए।
6. पर्यावरण से सम्बद्ध विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा समय-समय पर नियमित रूप से प्रदूषण मानकों की सही-सही जाँच-पड़ताल सुनिश्चित की जानी चाहिए और इससे सम्बन्धित आँकड़ों व सूचनाओं को सरकार को सौंपकर पर्यावरण हितों के प्रति आगाह किया जाना चाहिए।
7. अधिकाधिक मात्रा में वृक्षारोपण, हरित पट्टी विकास तथा वनों के संरक्षण व संवर्धन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। शहर के विभिन्न स्थानों में हरे-भरे पार्कों का निर्माण किया जाना चाहिए।
वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव
1. वातावरण में विषाक्त गैसों का जमावड़ा होने से ‘स्मॉग’ या ‘धूम कोहरे’ जैसी स्थिति हो जाना।
2. दमा, टीबी, कैंसर तथा हृदय-फेफड़ों व मस्तिष्क से सम्बन्धित गम्भीर बीमारियाँ तंत्रिका तंत्र व ज्ञानेन्द्रियों पर बुरा असर।
3. जीव-जन्तु, पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों सहित सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र तथा जैव-विविधता पर दुष्प्रभाव।
4. खेती तथा अन्य कृषि उत्पादों (अनाज, फल-फूल, साग-सब्जियों तथा प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों) की गुणवत्ता व उत्पादकता में कमी।
5. व्यापारिक तथा व्यावसायिक गतिविधियों में कमी (जैसे- भारत में प्रदूषण के चलते पर्यटन उद्योग, विदेशी पूँजी-निवेश तथा खेल उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है)।
6. स्वस्थ, गतिशील तथा कार्यकुशल जनसांख्यिकी में कमी।
शहरी वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण
1. सरकारी तंत्र तथा आम नागरिकों के बीच पर्यावरण हितों व मानकों के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता और जागरुकता- जवाबदेही-उत्तरदायित्व व सहभागिता में कमी।
2. सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का कमजोर ढाँचा तथा निजी वाहनों की बढ़ती संख्या, वाहन निर्माता कम्पनियों तथा वाहन चालकों द्वारा पर्यावरण हितों व मानकों के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता।
3. पर्यावरण मानकों की दृष्टि से छोटी-बड़ी खतरनाक औद्योगिक इकाइयों की शहरी क्षेत्र के अन्दर अथवा उससे सटे क्षेत्रों में स्थापना।
4. शहरी क्षेत्र के अधिकांश लोगों द्वारा कूड़े-करकट को यों ही जहाँ-तहाँ फेंकना तथा जलाना।
5. शहरी क्षेत्रों के आस-पास के क्षेत्रों में किसानों द्वारा फसलों के अवशिष्ट पदार्थों (पुआल या पराली) को बड़ी मात्रा में जलाना।
6. पेड़-पौधों तथा वनों का घटता रकबा तथा वनों में आग लगाना।
7. दीपावली, शादी-ब्याह तथा अन्य प्रकार के पारिवारिक या सामूहिक आयोजनों व उत्सवों में की जाने वाली अन्धाधुन्ध आतिशबाजी।
लेखक परिचय
श्री शंकर प्रसाद तिवारी (विनय)
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