भारत में सिंचाई विकास का इतिहास प्रागैतिहासिक समय से शुरू होता है। वेदों और प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों में कुओं, नहरों, तालाबों और बांधों का उल्लेख मिलता है जो कि समुदाय के लिए उपयोगी होते थे और उनका कुशल संचालन तथा अनुरक्षण राज्य की जिम्मेदारी होती थी। सम्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ था और जीवित रहने के लिए उन्होंने पानी का लाभ उठाया। प्राचीन भारतीय लेखकों के अनुसार कोई कुआं या तालाब खोदना मनुष्य का सबसे अधिक पुण्य कार्य होता था। विधि और राजनीति के प्राचीन लेखक बृहस्पति का कहना है कि बांधों का निर्माण और मरम्मत एक पावन कार्य है और इसका भार समाज के सम्पन्न व्यक्तियों के कंधों पर डाला जाना चाहिए। विष्णु पुराण में कुओं, वाटिकाओं और बांधों की मरम्मत करने वाले व्यक्ति की सराहना की गई है।
मानसून के मौसम में और भारत जैसे कृषि अर्थव्यवस्था में उत्पादन प्रक्रिया में सिंचाई की एक बहुत महत्वूपर्ण भूमिका रही है। सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ईसा पूर्व) के दौरान व्यवस्थित कृषि के समय से सिंचाई की प्रथा के साक्ष्य मिलते हैं। ये सिंचाई प्रौद्योगिकियां छोटे और लघु कार्यों के रूप में होती थीं जिनका प्रयोग भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों की सिंचाई करने के लिए छोटे-छोटे परिवारों द्वारा किया जा सकता था और उनके लिए सहकारितापूर्ण प्रयास जरूरी नहीं थे। प्रायः ये सभी सिंचाई प्रौद्योगिकियां किंचित प्रौद्योगिकीय बदलाव सहित भारत में आज भी मौजूद हैं और स्वतंत्र परिवारों द्वारा छोटे-छोटे जोत क्षेत्रों की सिंचाई के लिए उनका प्रयोग अभी भी किया जाता है। इस समय विशाल सिंचाई कार्यों के साक्ष्य का अभाव विशाल अधिशेष राशि की, जिसे बड़ी स्कीमों में निवेश किया जा सकता था कमी का अथवा दूसरे शब्दों में कठोर और असमान सम्पत्ति अधिकारों के अभाव का द्योतक है। जहां कृषि में ग्राम समुदाय और सहकारिता निश्चित रूप से मौजूद थे जैसाकि सुविकसित शहरों और अर्थव्यवस्था में देखा जा सकता है विशाल सिंचाई कार्यों में ऐसी सहकारिता की जरूरत नहीं थी क्योंकि ऐसी बस्तियां उर्वर और सुसिंचित सिंधु बेसिन पर स्थित थीं। कृषि बस्तियों के कम उर्वर और कम सिंचित क्षेत्रों में फैल जाने के कारण सिंचाई विकास में सहयोग देखने को मिला और जलाशयों तथा छोटी-छोटी नहरों के रूप में अपेक्षतया विशाल सिंचाई कार्य उभर कर आए। जहां छोटी-छोटी स्कीमों का निर्माण ग्राम समुदायों की क्षमता के भीतर था विशाल सिंचाई कार्य राज्यों, साम्राज्यों के विकास तथा शासकों के हस्तक्षेप के कारण ही उभर पाए। सिंचाई और राज्य के बीच एक निकट सम्बन्ध हुआ करता था। राजा के पास श्रमिक जुटाने का अधिकार था जिनका प्रयोग सिंचाई कार्यों के लिए किया जा सकता था।
दक्षिण में चोलाओं द्वारा कावेरी नदी से सिंचाई उपलब्ध कराने के प्रयोजन से बहुत पहले अर्थात दूसरी शताब्दी में ग्रैण्ड अनीकट के निर्माण के साथ बारहमासी सिंचाई की शुरूआत हुई होगी। जहां कहीं स्थलाकृति तथा भू-भाग की दृष्टि से संभव होता, वहां सतही जल निकास पानी को तालाबों अथवा जलाशयों में अवरुद्ध करने की पुरानी परिपाटी मौजूद थी जिसके लिए जहां कहीं जरूरी हो वहां फालतू पानी ले जाने के लिए एक अतिरिक्त अनीकट सहित मिट्टी का एक बांध बना दिया जाता था, नीचे की भूमि को सिंचित करने के लिए उपयुक्त स्तर पर एक स्लूस होता था। कुछ तालाबों को नदी तथा नदी-नहरों से पूरक आपूर्ति प्राप्त होती थी। केन्द्रीय और दक्षिणी भारत में समूचा भू-दृश्य ऐसे अनेक सिंचाई तालाबों से परिपूर्ण है जिनका समय ईस्वी सन की शुरूआत से कई शताब्दियों पुराना है। उत्तरी भारत में भी नदियों की ऊपरी घाटियों में कई छोटी-छोटी नहरें हैं जो कि बहुत पुरानी हैं।