पूर्वोत्तर क्षेत्र के भौतिक संसाधनों का उपयोग यहाँ के लोगों के कल्याण के लिये करना है तो अनुकूल वातावरण प्रदान करना पहली शर्त है। इस पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना होगा। सतत विकास के लिये हमें विकास तथा बदलाव के अगले दौर की ओर बढ़ना होगा। प्रधानमंत्री ने भी देश से इसका आह्वान करते हुए कहा है कि धीरे-धीरे बदलाव का समय खत्म हो गया है और अब हमें निर्णायक तथा कायाकल्प करने वाले परिवर्तन के दौर में जाना होगा।
पूर्वोत्तर की उन्नति से भारत की उन्नति
भारत के उत्तरी और पूर्वी छोरों पर स्थित आठ राज्यों-अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा को पूर्वोत्तर भारत/क्षेत्र (एनईआई/एनईआर) अथवा सात बहनें और एक भाई (सेवन सिस्टर्स एंड वन ब्रदर) कहा जाता है। इस क्षेत्र के राज्यों के महत्त्व को समझते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने क्षेत्र को नया नाम ‘अष्टलक्ष्मी’ दिया है और कल्पना की है कि ‘यह भारत के भाग्य को बदलने की अष्टलक्ष्मी है।’ प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर परिषद के 65वें पूर्ण सत्र में कहा, ‘मुझे देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकसित नहीं होने का कोई कारण नजर नहीं आता। मुझे इस बात का भी यकीन है कि भारत तभी आगे बढ़ सकता है, जब पूर्वोत्तर क्षेत्र समेत सभी क्षेत्रों का विकास हो।’
छिपी हुई सम्भावनाएँ
यह क्षेत्र 2,63,179 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 8 प्रतिशत है और देश की कुल जनसंख्या का करीब 3.76 प्रतिशत हिस्सा यहीं रहता है (एनसीईआरटी-2017) कुल क्षेत्रफल में से 98 प्रतिशत हिस्से में अन्तरराष्ट्रीय सीमाएँ हैं। प्रत्येक राज्य का अपना इतिहास है। भाषा, जातियों, सांस्कृतिक विविधता, अर्थव्यवस्था और शासन व्यवस्था की दृष्टि से राज्यों के बीच और प्रत्येक राज्य के भीतर भी बहुत अधिक अन्तर है। देश में अनुसूचित 635 जनजातीय समूहों मे से 200 से अधिक इस क्षेत्र में रहते हैं और राज्यों में प्रत्येक जनजातीय समूह की अपनी संस्कृति, परम्परा तथा शासन प्रणाली है। इस तरह यह क्षेत्र विविधता में एकता का सुन्दर उदाहरण है।
यह क्षेत्र अद्भुत नैसर्गिक सौन्दर्य, वनस्पतियों एवं पशुओं की जैव विविधता, प्रचुर मात्रा में खनिज, जल एवं वन संसाधन तथा पर्यटन की सम्भावना से भरपूर है। लेकिन अपनी स्थिति एवं भू-भाग के कारण शेष देश से अलग-थलग होने, पलायन, कम निवेश, कम राजस्व सृजन, उद्योगों के कम प्रसार तथा पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक-राजनीतिक उपद्रव होने जैसे कई पहलुओं ने इन राज्यों की प्राकृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक सम्भावनाओं का ठीक से दोहन नहीं होने दिया है।
क्षेत्र की अधिकतर जनसंख्या ग्रामीण है और गुजारे के लिये खेती, बागवानी, हथकरघा और वन पर बहुत अधिक निर्भर रहती है। क्षेत्र अभी तक संसाधनों की अकूत सम्भावनाओं का उपयोग अपने निवासियों के फायदे के लिये नहीं कर सका है।
सबका साथ सबका विकासः विकास का ढाँचा
यह सच है कि क्षेत्र ने गरीबी घटाने और गरिमामयी मानव जीवन के लिये जरूरी बुनियादी सुविधाओं एवं सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के मोर्चों पर कुछ प्रगति की है, लेकिन पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी राज्यों में अब भी यह चिन्ता का विषय है। राज्य विकास के स्तर में भी बराबर नहीं है। यह उल्लेख करना उचित होगा कि घाटी तथा पहाड़ों के बीच गरीबी की प्रकृति काफी अलग है। लेकिन क्षेत्र के पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतर आबादी आदिवासी है और आदिवासी समाजों की बुनियाद समतावादी होने के कारण भारत के शेष हिस्सों की तरह यहाँ दीन-हीन दरिद्रता नहीं दिखती। मगर इस सुन्दर क्षेत्र के निवासी विकास के लाभों से वंचित ही हैं।
2011 में हुई सामाजिक-आर्थिक तथा जाति जनगणना (एसईसीसी) में गरीबी के बहुआयामी पहलुओं को दर्ज किया गया है और कार्यक्रमों/योजनाओं के लिये लाभार्थी चुनने हेतु अभाव सूचकांक बनाया गया है। तालिका-1 में अभावग्रस्त परिवारों की संख्या दिखाई गई है।
तालिका-1 |
||||
राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश |
कुल परिवार |
कम से कम एक अपवाद वाले परिवार |
शामिल होने वाले कुल परिवार |
कुल अभावग्रस्त परिवार |
अरुणाचल प्रदेश |
201842 |
118987 |
82855 |
72937 |
असम |
5743835 |
1689138 |
4054697 |
2892859 |
मणिपुर |
448163 |
147003 |
301160 |
236653 |
मिजोरम |
111626 |
44437 |
67189 |
66499 |
मेघालय |
485897 |
151711 |
334186 |
327506 |
नागालैंड |
284310 |
97323 |
186987 |
182441 |
त्रिपुरा |
697062 |
165435 |
531627 |
361664 |
सिक्किम |
88723 |
39442 |
49281 |
33480 |
योग |
179787342 |
70754027 |
109033315 |
87264055 |
स्रोतः लोकसभा अतारांकित प्रश्न संख्या 3857 दिनांक- 09 अगस्त, 2018 |
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
जिस ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य हाथ से अकुशल काम करने के लिये तैयार हों, उस परिवार को वित्त वर्ष के दौरान 100 दिनों के लिये पारिश्रमिक वाला काम देने की गारंटी देकर रोजगार सृजन के लिये और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वालों की आजीविका की बेहतर सुरक्षा के लिये मनरेगा लागू किया गया। मनरेगा के तीन प्रमुख पक्ष हैं- रोजगार सृजन, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन पर ध्यान देते हुए सम्पत्तियों का सृजन और कृषि गतिविधियाँ। यह माँग-आधारित कार्यक्रम है, जो रोजगार की रणनीति एवं कार्यों की योजना बनाने के लिये नीचे से ऊपर तक जाने का तरीका अपनाता है। पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों जैसे मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों, असम तथा त्रिपुरा को छोड़कर देश के अधिकतर भागों में कामों की योजना तथा प्राथमिकता ग्रामसभा स्तर पर तय की जाती है और उसका क्रियान्वयन ग्राम पंचायत करती है। इन राज्यों और क्षेत्रों में समुदाय-आधारित परम्परा और स्थानीय स्वशासन होता है। लोकसभा के 02 अगस्त, 2018 के तारांकित प्रश्न संख्या 238 के उत्तर से संकलित किये गए आंकड़ों के अनुसार पूर्वोत्तर में परिवारों को मिले रोजगार की स्थिति इस प्रकार है-
पूर्वोत्तर राज्यों में रोजगार पाने वाले परिवारों हेतु तालिका-2 से रोजगार सृजन अपेक्षाकृत कम है और कई राज्यों में तो रोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या 2016-17 से भी कम है। उचित योजना एवं क्रियान्वयन नहीं होना, कार्यक्रम से होने वाले लाभों की जानकारी नहीं होना, निष्प्रभावी पंचायती राज संस्था, पहाड़ी भू-भाग, स्वीकृत कार्य यहाँ के अनुकूल नहीं होना, राज्यों का आकार एवं आबादी का घनत्व इसके कारण हैं।
मनरेगा की अनुसूची-1 प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन और कृषि कार्यों में सहायता को केन्द्र में रखते हुए टिकाऊ सम्पत्तियों के सृजन के लिये कार्यों की सूची से सम्बन्धित है। इसमें निश्चित बुनियादी ढाँचा तैयार कर एनआरएलएम के तहत स्वयं सहायता समूहों (एसजीएच) की मदद करने के प्रावधान भी हैं। ग्रामीण सम्पर्क कार्य का एक अन्य प्रमुख आयाम है, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों से सम्पर्क पर जबरदस्त प्रभाव डाला है और ग्रामीणों के लिये रोजगार के मौके तैयार किये हैं। ग्राफ-1 दिखाता है कि पूर्वोत्तर राज्य क्षेत्र से बाहर के राज्यों से पिछड़ रहे हैं। टिकाऊ परिसम्पत्तियाँ तैयार करने के मामले में भी पूर्वोत्तर राज्यों का प्रदर्शन देश के अन्य पहाड़ी राज्यों से कमतर रहा है।
मनरेगा को कृषि कार्यों से जोड़ने के लिये राज्यों को किसी भी जिले में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अन्तर्गत कम-से-कम 60 प्रतिशत लागत के ऐसे कार्य करने की सलाह दी जाती है, जिनसे वे उत्पादक परिसम्पत्तियाँ तैयार हों, जो सीधे कृषि से अथवा कृषि उत्पादकता बढ़ाने वाली सम्बद्ध गतिविधियों से जुड़े हों। तालिका-2 में रोजगार पाने वाले परिवार और तालिका-3 में कृषि एवं सम्बद्ध गतिविधियों पर होने वाले खर्च का राज्यवार प्रतिशत में दिखाया गया है।
तालिका-2 |
||
राज्य |
रोजगार पाने वाले परिवार (लाख में) |
|
2016-17 |
2017-18 |
|
अरुणाचल प्रदेश |
2.03 |
1.42 |
असम |
15.71 |
16.86 |
मणिपुर |
5.16 |
4.91 |
मिजोरम |
4.15 |
4.27 |
मेघालय |
1.89 |
1.91 |
नागालैंड |
4.18 |
4.10 |
त्रिपुरा |
0.68 |
0.64 |
सिक्किम |
5.77 |
5.23 |
योग |
512.22 |
511.82 |
तालिका-3 से पता चलता है कि सिक्किम, त्रिपुरा, मिजोरम और नागालैंड ने सभी सलाहें मानी हैं और अपने-अपने यहाँ कृषि आधारित सम्पत्तियाँ तैयार करने के लिये खर्च करने को अधिक महत्त्व दिया। वास्तव में व्यय प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से अधिक है। जब अन्य राज्य भी मनरेगा की मदद से अपने-अपने यहाँ कृषि कार्यों को मजबूत करने के प्रयासों में जुटे हैं।
तालिका-3 वित्त वर्ष 2017-18 में 27 मार्च, 2018 तक कृषि एवं सम्बद्ध गतिविधियों पर खर्च का प्रतिशत |
|
राज्य |
प्रतिशत |
अरुणाचल प्रदेश |
48.12 |
असम |
50.28 |
मणिपुर |
58.58 |
मिजोरम |
54.88 |
मेघालय |
71.23 |
नागालैंड |
62.79 |
त्रिपुरा |
81.91 |
सिक्किम |
71.51 |
योग |
69.1 |
स्रोतः लोकसभा में दिनांक 05 अप्रैल, 2018 का अतारांकित प्रश्न संख्या 6309 |
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण
योजना के अन्तर्गत 19 जुलाई, 2018 तक कुल 42.56 लाख मकान बनाए गए हैं, जबकि मार्च, 2019 तक एक करोड़ बनाने का लक्ष्य है। राज्यों को ये लक्ष्य एसईसीसी, 2011 जैसे मकानों की कमी के मनकों के आधार पर दिये गए। लाभार्थियों को मैदानी इलाकों में प्रति मकान 1.20 लाख रुपए तथा पहाड़ी, कठिन एवं एकीकृत कार्ययोजना वाले इलाकों में 1.30 लाख रुपए की सहायता दी जाती है। इस सहायता के अतिरिक्त उन्हें मनरेगा के अन्तर्गत 90-95 दिन का रोजगार और स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय बनाने के लिये 12,000 रुपए भी प्रदान किये जाते हैं।
पीएमएवाई-जी तहत के तहत आवंटित लक्ष्य और निर्मित मकानों के बारे में तालिक-4 बताती है कि पूर्वोत्तर राज्यों का लक्ष्य प्राप्त करने का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (42.60) की तुलना में बहुत कम है। वे तो राष्ट्रीय औसत के आस-पास भी नहीं है। इससे यह भी पता चलता है कि कुछ राज्यों (अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड) का लक्ष्य प्राप्ति प्रतिशत ‘शून्य’ ही है।
तालिका-4 पीएमएवाई-जी के अन्तर्गत लक्ष्य, निर्मित मकान |
||||
राज्य का नाम |
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आवंटित लक्ष्य |
निर्मित मकान |
लक्ष्य प्रतिशत* |
निर्माणाधीन मकान |
अरुणाचल प्रदेश |
11221 |
0 |
0.00 |
11221 |
असम |
259814 |
38594 |
14.85 |
221220 |
मणिपुर |
9740 |
114 |
1.17 |
9626 |
मिजोरम |
20745 |
395 |
1.90 |
20350 |
मेघालय |
6600 |
1507 |
22.83 |
5093 |
नागालैंड |
8481 |
0 |
0.00 |
8481 |
त्रिपुरा |
1957 |
528 |
26.98 |
1429 |
सिक्किम |
24989 |
5314 |
21.27 |
19675 |
योग |
9989825 |
4255873 |
42.60 |
5733952 |
राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों द्वारा 19 जुलाई, 2018 तक के आवासों के आँकड़े, (स्रोतः 23 जुलाई, 2018 को राज्यसभा में तारांकित प्रश्न) |
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
सड़क सम्पर्क को विकास की जीवन-रेखा कहा जाता है। पूर्वोत्तर राज्यों में सम्पर्क विशेषकर ग्रामीण सम्पर्क बहुत खराब हैं और बनी हुई सड़कों खासतौर पर ग्रामीण सड़कों को भूस्खलन तथा पहाड़ी भू-भाग होने के कारण आने वाली अन्य आपदाओं का खतरा बहुत अधिक है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) केन्द्र सरकार की सफल योजना है। इस योजना के तहत मुख्य नेटवर्क से नहीं जुड़े स्थान को एक लेन वाली सभी मौसमों में काम करने वाली सड़क से जोड़ते हुए ग्रामीण सम्पर्क बढ़ाने के लिये एकबारगी विशेष सहायता प्रदान की जाती है। राज्यों में सम्पर्क विहीन स्थान के लिये अर्हता की शर्त है 250 से अधिक की आबादी होना और मैदानों में अर्हता की शर्त है 500 से अधिक आबादी। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी सड़कों का राज्यवार ब्यौरा तालिका-5 में है।
तालिका बताती है कि आरम्भ से जून, 2018 तक 6,65,737.94 किलोमीटर सड़क को मंजूरी दी गई है, जिसमें से राष्ट्रीय-स्तर पर 183,095.37 करोड़ रुपए खर्च कर 5,56,389.37 किमीटर सड़क पूरी की जा चुकी है। पूर्वोत्तर राज्यों का राज्यवार ब्यौरा बताता है कि सिक्किम में सड़क पूरी होने का प्रतिशत 91 प्रतिशत है। जिसके बाद त्रिपुरा (84.30 प्रतिशत) आता है। शेष छह राज्यों में सड़क पूरी होने की दर राष्ट्रीय औसत (83.57 प्रतिशत) से कम है। इन राज्यों ने ग्रामीण सम्पर्क प्रदान करने के लिये अतिरिक्त प्रयास किये हैं ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके।
तालिका- 5 पीएमजीएसवाई के अन्तर्गत जून, 2018 तक मंजूर और निर्मित सड़कों की लम्बाई |
|||
राज्य का नाम |
मंजूर की गई सड़क की लम्बाई (किमी) |
बन चुकी सड़क की लम्बाई (किमी) |
निर्माण प्रतिशत* |
अरुणाचल प्रदेश |
8885.34 |
6728.04 |
75.72 |
असम |
27,358.74 |
17,815.45 |
65.12 |
मणिपुर |
9,640.47 |
6,294.04 |
65.29 |
मिजोरम |
2,731.33 |
1,711.64 |
62.67 |
मेघालय |
4,167.98 |
2,945.78 |
70.68 |
नागालैंड |
3,893.37 |
3,530.37 |
90.68 |
त्रिपुरा |
4,794.50 |
3,673.03 |
76.61 |
सिक्किम |
4,952.47 |
4,175.02 |
84.30 |
योग |
6,65,737.94 |
5,56,389.37 |
83.57 |
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी)
सरकार के कल्याण के प्रमुख कार्यक्रम के रूप में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) लागू किया है। पिछले तीन वर्षों में IGNOAPS, IGNWPS और IGNDPS के अन्तर्गत आने वाले लाभार्थियों का राज्यवार विवरण तालिका-6 में दिया गया है।
तालिका-6 IGNOAPS, IGNWPS और IGNDPS के अन्तर्गत लाभार्थियों की संख्या |
||||||
राज्य |
2016-2017 |
2017-2018 |
||||
IGNOAPS |
IGNWPS |
IGNDPS |
IGNOAPS |
IGNWPS |
IGNDPS |
|
अरुणाचल प्रदेश |
29290 |
3565 |
1284 |
29290 |
3565 |
1284 |
असम |
707927 |
137463 |
18916 |
707927 |
137463 |
18916 |
मणिपुर |
56045 |
8043 |
1007 |
56045 |
8043 |
1007 |
मिजोरम |
77980 |
8498 |
969 |
77980 |
8498 |
969 |
मेघालय |
25251 |
1925 |
400 |
25251 |
1925 |
400 |
नागालैंड |
44530 |
3720 |
960 |
44530 |
3720 |
960 |
त्रिपुरा |
16418 |
1614 |
817 |
16418 |
1614 |
817 |
सिक्किम |
141510 |
17927 |
2144 |
141510 |
17927 |
2144 |
योग |
1098951 |
182755 |
26497 |
1098951 |
182755 |
26497 |
कुल योग |
21396057 |
5726184 |
701623 |
21245655 |
5846459 |
712358 |
दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई- एनआरएलएम) |
आजीविका सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करते हुए भारत सरकार देशभर में राज्य सरकारों के साथ मिलकर दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) क्रियान्वित कर रही है ताकि निर्धन ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (SHG) में शामिल कर स्वरोजगार को बढ़ावा देते हुए आजीविका सुरक्षा प्रदान की जा सके। साथ ही उन्हें तब तक आर्थिक गतिविधियों से जोड़े रखने के लिये सहायता दी जाती है, जब तक उनकी आय में ठीक-ठाक वृद्धि न हो जाये, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ सके और वे नितान्त गरीबी से बाहर आ सकें। कार्यक्रम का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक निर्धन ग्रामीण परिवार ( लगभग 9 करोड़) से कम-से-कम एक महिला सदस्य को निश्चित समय के भीतर महिला स्वयं सहायता समूहों और उनके महासंघों में शामिल किया जाये। अभी तक शामिल किये गए कुल परिवारों तथा सहायता प्राप्त SHG की संख्या तालिका-7 में दी गई है।
तालिका बताती है कि शामिल किये गए परिवारों तथा सहायता प्राप्त समूहों में बहुत अन्तर है। जहाँ तक पूर्वोत्तर राज्यों के प्रदर्शन का प्रश्न है, मिली-जुली तस्वीर उभरती है। अधिकतर राज्यों ने राष्ट्रीय औसत (8.87 प्रतिशत) से बेहतर प्रदर्शन किया है। केवल मणिपुर राष्ट्रीय औसत से नीचे है।
तालिका-7 शामिल किये गए कुल परिवार तथा सहायता प्राप्त एसएचजी की संख्या |
|||
राज्य |
शामिल किये गए परिवार (कुल प्रगति) |
सहायता प्राप्त एसएचजी (कुल प्रगति) |
उपलब्धि प्रतिशत* |
अरुणाचल प्रदेश |
1754627 |
167775 |
9.56 |
असम |
14086 |
1580 |
11.22 |
मणिपुर |
17291 |
1506 |
8.71 |
मिजोरम |
51857 |
5060 |
9.76 |
मेघालय |
37923 |
3983 |
10.50 |
नागालैंड |
42140 |
4554 |
10.81 |
त्रिपुरा |
17299 |
1693 |
9.79 |
सिक्किम |
51224 |
5672 |
11.07 |
योग |
52567122 |
4664593 |
8.87 |
स्रोतः 30 जुलाई, 2018 को राज्यसभा में अतारांकित प्रश्न, *लेखक द्वारा की गई गणना |
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना
कौशल विकास के जरिए रोजगार को अत्यधिक महत्त्व प्रदान करते हुए और ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देते हुए दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) आरम्भ की गई है, जो NRLM के अन्तर्गत निर्धन ग्रामीण युवाओं के लिये काम यानी प्लेसमेंट दिलाने वाला कौशल विकास कार्यक्रम है।
डीडीयू-जीकेवाई के तहत प्रशिक्षण एवं नौकरी प्राप्त करने वालों की संख्या तालिका-8 बताती है कि अभी 52 प्रतिशत प्रशिक्षित अभ्यर्थियों को नौकरी मिल रही है, जबकि लक्ष्य 70 प्रतिशत का है। पूर्वोत्तर राज्यों की बात करें तो त्रिपुरा के अतिरिक्त सभी का प्रदर्शन अच्छा है। अन्य राज्यों में अभी कार्यक्रम क्रियान्वित करने की प्रक्रिया चल ही रही है।
तालिका-8 अक्टूबर, 2017 तक कौशल प्रशिक्षण एवं प्लेसमेेंट प्राप्त कर चुके व्यक्तियों की संख्या |
|||
राज्य |
प्रशिक्षित अभ्यर्थियों की संख्या |
काम पाने वाले अभ्यर्थियों की संख्या |
काम या नौकरी का प्रतिशत* |
असम |
8980 |
6426 |
71.56 |
सिक्किम |
304 |
275 |
90.46 |
त्रिपुरा |
1140 |
274 |
24.04 |
योग |
385663 |
202256 |
52.44 |
निष्कर्ष
पूर्वोत्तर क्षेत्र वास्तव में अद्भुत क्षेत्र है। इस क्षेत्र के राज्य अपेक्षाकृत कठिन एवं विपन्न क्षेत्र में तथा जटिल एवं विविधता भरे समाज में बदलाव एवं विकास की तस्वीर पेश करते हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र विजन 2020 में कहा गया है कि क्षेत्र के लोगों का शेष देश के लोगों की तरह अपने लिये न सही अपनी सन्तानों के लिये सम्पन्नता एवं सुख प्राप्त करने का सपना है। इस बात का उल्लेख करना उचित होगा कि इस क्षेत्र की सम्भावनाओं का उपयोग करने के लिये क्षेत्र में तथा बाहर रहने वाले लोगों की मानसिकता समेत बड़ा बदलाव लाने की जरूरत होगी। पूर्वोत्तर क्षेत्र के भौतिक संसाधनों का उपयोग यहाँ के लोगों के कल्याण के लिये करना है तो अनुकूल वातावरण प्रदान करना पहली शर्त है। इस पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना होगा। सतत विकास के लिये हमें विकास तथा बदलाव के अगले दौर की ओर बढ़ना होगा। प्रधानमंत्री ने भी देश से इसका आह्वान करते हुए कहा है कि धीरे-धीरे बदलाव का समय खत्म हो गया है और अब हमें निर्णायक तथा कायाकल्प करने वाले परिवर्तन के दौर में जाना होगा।
(लेखक राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान पूर्वोत्तर क्षेत्र, गुवाहाटी में सहायक प्रोफेसर हैं।)
ई-मेलः mkshrivastava.nird@gov.in
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