भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में अपना पहला बजट पेश किया। निर्मला सीतारमण के इस बजट को विशेषज्ञ संतुलन भरा बता रहे हैं। इस बजट में लुभावने वायदे नहीं है बल्कि कमजोर होती अर्थव्यस्था से निपटने के तरीके हैं। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक जरूरी मुद्दे पर बात करना ही भूल गईं, पर्यावरण और पानी। इस समय देश पानी की किल्लत से जूझ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में भी इसका जिक्र किया था लेकिन उनकी सरकार के पहले बजट में ही पानी और पर्यावरण नदारद थे।
इस बजट से पहले सरकार ने पानी की सारी समस्याओं के लिए ‘जल शक्ति मंत्रालय’ बनाया है। जिसने लक्ष्य रखा है कि 2024 तक हर घर तक जल पहुंचाएगा। जल के लिए इस बजट में वही जगह दी गई। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पर्यावरण मंत्रालय के बजट, जल शक्ति मंत्रालय का लक्ष्य और स्वच्छ भारत मिशन के बारे में अपनी स्पीच में जानकारी दी। जब देश जल संकट के भयावह दौर से गुजर रहा है, नीति आयोग की रिपोर्ट साफ-साफ कह रही है कि 2021 तक देश के 21 बड़े शहर जल संकट की चपेट में होंगे। इसके बावजूद इस बजट में जल संकट और जल संरक्षण को बहुत कम जगह दी गई।
2024 तक हर घर को लक्ष्य
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश करते हुए बताया कि केन्द्र सरकार 2024 तक देश में हर घर तक पाइपलाइन के जरिए पानी पहुंचाने के लिए ‘जल जीवन मिशन’ के तहत राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगी। वित्त मंत्री ने बताया कि इस मशीन के तहत केन्द्र और राज्यों की योजनाओं को जोड़ते हुए काम किया जाएगा। इसमें स्थानीय स्तर पर जल प्रबंधन, मांग और आपूर्ति को ध्यान में रखते हुए वर्षा जल संरक्षण, भूजल संरक्षण के लिए काम किया जाएगा। इसके अलावा परिवारों परिवारों द्वारा उपयोग किया हुआ जल यानी अपशिष्ट जल को खेती के काम में उपयोग किया जा सकता है।
नीति आयोग की इस बार की रिपोर्ट जल के बारे में बताती है कि 2030 तक देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या तक पीने के पानी की पहुंच खत्म हो जायेगी। देश के चार बड़े शहर दिल्ली, बंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद में पानी की सबसे ज्यादा किल्लत होगी और 10 करोड़ लोगों के लिए जल्द ही परेशानी शुरू होने वाली है। सरकार को जल संकट से निकलने के लिए राष्ट्रीय नीति भी बनाई जानी चाहिए।
इस नए मिशन के लिए सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना के तहत 9,150 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया है। पिछले साल के बजट में ये राशि सिर्फ 5,391 करोड़ रुपए थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपनी स्पीच में कहा, ‘सरकार इस लक्ष्य के लिए वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण के तहत उपलब्ध अतिरिक्त फंड की संभावनाओं को तलाशेगी।
स्वच्छ भारत मिशन
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वच्छ मिशन के बारे में बताते हुए कहा कि केन्द्र सरकार ने 9.5 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण कराया। उन्होंने बताया कि 5,64,658 गांव खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। देश के 95 प्रतिशत शहरों को ओडीएफ घोषित कर दिया है। देश के 1700 शहरों में 45 हजार शौचालयों का निर्माण किया गया। सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के लिए अब नए लक्ष्य निर्धारित कर लिए हैं। इसके तहत कचरे का उपयोग अब बिजली बनाने के लिए किया जाएगा। सरकार अब हर गांव में कचरे के स्थायी प्रबंधन के करेगा। इसके अलावा नदियों की सफाई, ग्रामीण स्वच्छता, रिवर फ्रंट डेवलेपमेंट, वनीकरण अैर जैव विविधता के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाएगा।
ग्रीन बजट
नरेन्द्र मोदी ने इस बजट को ग्रीन बजट करार दिया है। बजट में प्रदूषण नियंत्रण के लिए 2,954 करोड़ रुपए तय किये हैं। प्रदूषण को खत्म करने के लिए बजट में 10.4 फीसदी की बढ़ोतरी की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि राष्ट्रीय स्वच्छता हवा कार्यक्रम के लिए 460 करोड़ दिए गए हैं। सरकार भविष्य में धरती माता को हरा-भरा बनाने और नीले आकाश की धारणा पर काम कर रही है। पिछले बजट में एनसीपी के लिए महज पांच करोड़ रुपए तय किये गये थे।
गंगा
नरेन्द्र मोदी सरकार गंगा को स्वच्छ और निर्मल करने का वायदा किया था। पिछले कार्यकाल में कितनी ही बार कार्यक्रम हुए, योजनाएं बनीं, करोड़ रुपए खर्च किए लेकिन गंगा पहले से और गंदी हो गई है। शायद इसलिए इस बार के बजट में गंगा का जिक्र ही नहीं किया गया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गंगा का जिक्र बस जल परिवहन के लिए किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि चार सालों में गंगा में माल परिवहन में चार गुना वृद्धि होगी। सागरमाला जैसी योजनाएं ग्रामीण-शहरी क्षेत्र क बीच के अंतर को पाटने का काम कर रही है।
इसके तहत सरकार ने 2019-20 वित्तीय वर्ष के लिए 550 करोड़ रुपए बजट देने की घोषणा की है। सरकार का सबसे पहला फोकस गंगा नदी में वराणसी-हावड़ा रूट पर है। सरकार की मंशा गंगा में नाव उतारने की तो है कि लेकिन उसी गंगा को स्वच्छ करने का माद्दा नहीं रखती है। जो गंगा पूरे देश की जीवनदायिनी है उसे निर्मल बनाने के लिए इस बार के बजट में कोई जगह ही नहीं दी गई।
जल सरंक्षण
बजट में जल के लिए जो प्रावधान किए गए हैं उनकी सराहना की जानी चाहिए और सरकार से आशा की जानी चाहिए कि बजट में जो कहा गया है उनको पूरा करें। नीति आयोग की इस बार की रिपोर्ट जल के बारे में बताती है कि 2030 तक देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या तक पीने के पानी की पहुंच खत्म हो जायेगी। देश के चार बड़े शहर दिल्ली, बंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद में पानी की सबसे ज्यादा किल्लत होगी और 10 करोड़ लोगों के लिए जल्द ही परेशानी शुरू होने वाली है। सरकार को जल संकट से निकलने के लिए राष्ट्रीय नीति भी बनाई जानी चाहिए। जल संरक्षण तभी हो पाएगा जब इसके लिए जन भागीदारी की जाएगी।
हमारे देश का तो इतिहास रहा है कि जब-जब जल संकट आया है उससे निपटने के लिए राजा खुद ही समाधान खोजने में जुट जाते थे। जबसे जन भागीदारी खत्म हुई है जल संकट गहराने लगा है। नरेन्द्र मोदी सरकार कहती है कि जल सुरक्षा और उसकी उपलब्धता उनकी प्राथमिकता है। वो ऐसे लोगों से बचत करने की मंशा रख रहे हैं जो हमेशा से जल का दोहन ही करते आए हैं। गांव के लोग तो पानी की बचत करने में सहयोग भी करते हैं लेकिन शहरों में जल संरक्षण कैसे होगा? इसके लिए या तो शहर के बाहर जाकर योगदान करना होगा या फिर अपने इस्तेमाल के पानी को बचाने के लिए आर्थिक सहायता करनी चाहिए।
सरकार ने अपने बजट में जल संरक्षण के बारे में अलग से कुछ नहीं रखा गया है। की। बारिश का 90 प्रतिशत जल बह जाता है जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। 70 साल से लगातार जल का दोहन ही हो रहा है किसी भी सरकार ने जल संरक्षण के लिए कोई खास काम नहीं किया है। पिछली सरकार ने 60 नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव जरूर दिया था लेकिन उसे अमलीजामा में नहीं लाया जा सका। नीति आयोग ने जल संरक्षण के लिए देश की 450 नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा है। हम बारिश का सिर्फ 8 फीसद जल की संचित कर पा रहे हैं, अगर हम बारिश के पानी को ज्यादा से ज्यादा संचित करें तो भूजल स्तर भी बढ़ेगा और पानी की संकट से बचा जा सकेगा। जिस तरह सरकार बिजली के लिए ध्यान देती है उसी तरह अब पानी की ओर ध्यान देने की जरूरत है। जो इस बार के बजट से तो नदारद ही है। बजट में पानी और पर्यावरण की वही पुरानी बातें दोहराई गईं जो पहले से ही थीं।
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