आखिर कब तक नसीब होगा खैरा के लोगों को शुद्ध जल? यह सवाल हर नागरिक पूछ रहा है। राज्य के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार का नारा है- 'न्याय के साथ विकास।' लेकिन खैरा का न तो विकास हुआ और न ही यहाँ के लोगों को इन्साफ मिला। जल के जहर होने से यहाँ के लोग विकलांगता का दंश झेलने को विवश हैं।
मुख्यमन्त्री यह कहते आए हैं कि- 'हर इन्सान को स्वच्छ जल मिलना चाहिये।' उन्होंने 2010 में विश्वास यात्रा के दौरान मुँगेर जिला के खैरा गाँव का दौरा किया था तो पूरे गाँव को फ्लोराइड से प्रभावित पाया था। उन्होंने 5 जून 2010 को विश्वास यात्रा के क्रम में करोड़ों की राशि से जलापूर्ति योजना का शिलान्यास किया था। इस काम को दो वर्षो में यानी 2012 को पूरा करना था। काम की जिम्मेदारी पूंजलाइट कम्पनी को दी गई। पाँच साल पूरे होने पर भी यह योजना पूरी न हो सकी। लिहाजा यहाँ के लोगों के लिए जल अमृत नहीं अभिशाप बन गया है। इससे बड़ी लापरवाही और शासन व्यवस्था के लचर होने का प्रमाण और क्या हो सकता है कि पाँच साल पूरे होने पर भी योजना पूरी नहीं हो पाई।
योजना के अनुसार खड़गपुर झील से खैरा तक शुद्ध पेयजल खैरावासियों को एक वर्ष की भीतर उपलब्ध करार्इ जानी थी। लेकिन विभाग के पदाधिकारियों के उदासीन रवैयों के कारण आज तक झील का पानी खैरा गाँव नहीं पहुँच पाया। पूंजलाइट कम्पनी द्वारा झील में इंटेक वेल का निर्माण कराया था। इंटेक वेल से झील के निचले भाग से पानी पहुँचाने के लिए केमिकल हाउस बनाया गया है। इंटेक वेल से केमिकल हाउस तक पानी आना है। इसके लिए न तो सिंचाई विभाग से और न ही वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया गया। अनापत्ति प्रमाण पत्र के पचेड़े में यह मामला फँस कर रह गया है। इस तरह इंटेक वेल से केमिकल हाउस तक पानी लाने के लिए पाइप बिछानी होगी। खड़गपुर-जमुई मार्ग पर स्थित मणी नदी पर खम्भे के जरिए पाइप बिछाने में समय तो लगेगा ही और समस्याएँ बढेगी।
कार्य की शिथिलता के कारण तात्कालीन मुख्यमन्त्री जीतनराम मांझी के समक्ष मामला संज्ञान में आने पर काम करनेवाली ऐजेंसी पूंजलाइट को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया था। इससे पहले स्थानीय लोगों ने प्रशासन के समक्ष उग्र प्रदर्शन किया था। इस कम्पनी ने सरकार के आदेश के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय से स्टे आर्डर ले लिया था। बिहार सरकार के अधिकारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए दलील दी कि यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर का मामला है। बिहार सरकार की ओर से इस आशय का शपथपत्र दायर किया गया। इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूंजलाइट कम्पनी को पटना उच्च न्यायालय जाने को कहा। पटना उच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए स्टे ऑर्डर को खारिज कर दिया। अब तक न्यायालय का कोई आदेश नहीं आया है।
जिस समय कम्पनी को ब्लैकलिस्टेड किया गया, उस समय योजना का काम बंद था। बचे हुए काम को पूरा करने के लिए 14 करोड़ रुपये की लागत से निविदा निकाली गई। निकाले गए निविदा पर किसी भी कम्पनी ने कार्य के लिए निविदा भरा नहीं। अब तीसरी बार निविदा निकाली गई और उसकी राशि बढ़ाकर 18 करोड़ रुपये कर दी गई है। योजना में बार-बार हो रहे विलम्ब के सवाल पर लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कार्यपालक अभियन्ता सरयुग राम कहते हैं कि तीसरी बार निविदा निकाली गई है, अगर कोई निविदा नहीं डालता है तो वैसी स्थिति में विभाग स्वयं काम कराएगा।
फ्लोराइड नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है। रमनकाबाद पंचायत का खैरा गाँव फ्लोराइड की चपेट में है। इस गाँव के लोगों के लिए जल जीवन नहीं मौत है। दूषित जल के सेवन से कई अपंग हो गए, तो कई असमय ही काल के गाल में समा गए। स्वास्थ्य विभाग सर्वे के मुताबिक 2010 में ही गाँव के 70 लोगों को विकलांग घोषित किया गया है।
मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर का खैरा गाँव फ्लोराइड से सबसे अधिक प्रभावित है। भूजल में फ्लोराइड की अधिक मात्रा पाए जाने के कारण अनेक शारीरिक व्याधियाँ पैदा हो गई हैं। हड्डी रोग जनित समस्याएँ खड़ी हो गई हैं। इससे वह समय से पहले बूढ़े लगने लगे हैं। फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति के शरीर रीढ़, गर्दन पैर या हाथ की हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी एवं अत्यन्त कमजोर हो जाती है।
कहते हैं कि जल ही जीवन है, लेकिन मुंगेर जिले के खैरा गाँव के लोगों के लिए जल जीवन के लिए अभिशाप बन चुका है। इस गाँव के लोगों के लिए जल जीवन नहीं मौत है। दूषित जल के सेवन से कई अपंग हो गए, तो कई असमय ही काल के गाल में समा गए। पानी में मिला हुआ फ्लोराइड की समस्या से त्रस्त खैरा गाँव खुदा से खैर माँग रहा है। क्या यह मानवाधिकार का सवाल नहीं है? आखिर जीने के हक से क्यों सरकार वंचित करना चाहती है?
फ्लोराइड के कारण व्यक्ति के खड़ा होने, चलने या दौड़ने या बोझ ढोने में कठिनार्इ एवं पीड़ा होती है। इनकी हड्डियों के जोड़ें सख्त हो जाती हैं तथा मरीज के हड्डियों, गर्दन एवं जोड़ों में तेज दर्द रहता है। दन्त फ्लोरोसिस मुख्यतः बच्चों की बीमारी है। फ्लोराइड युक्त पेयजल के लगातार इस्तेमाल से यह बीमारी आठ-नौ वर्ष की उम्र से दिखने लगती है। इस बीमारी में बच्चों के स्थाई दाँत गन्दे एवं क्षैतिज पीली धारी से युक्त दिखते हैं। कूल मिलकर यह व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है।