
पिछले दो-तीन दशकों से सतही पानी और भूजल में भारी गिरावट देखी जा रही है। भूजल स्तर के लगातार गिरावट से हैण्डपम्प, ट्यूबवेल और नलकूप साथ छोड़ते जा रहे हैं। बड़े-बड़े तालाब भी सूख चले हैं। ऐसे में कोई ऐसा तालाब दिख जाए जिसमें अभी भी 20 फीट पानी भरा हो तो रेगिस्तान में नखलिस्तान जैसा ही नज़र आता है।
सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड में कुछ लोगों ने अपने खेत में तालाब बनाकर जलसंचय किया है। ऐसा ही एक प्रयास उत्तरप्रदेश में स्थित जिला हमीरपुर, तहसील मौदहा, ग्राम जिगनौड़ा निवासी आशुतोष तिवारी के खेत मे देखने को मिला। वर्षा की अनमोल बूँदों को सहेजकर रखने वाले बुन्देलखण्ड के ही किसान आशुतोष के पास इस अकाल के दौर में भी पानी का बंदोबस्त है। उन्होंने अपने तालाब से खेत में फसलों और रोपित सैकड़ों पेड़ों की सिंचाई का समुचित प्रबंध किया हुआ है। अपने फसलों और रोपित पौधों में भी संयमित पानी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। अपने तालाब के काफी पानी को उन्होंने बचा रखा है। पूछने पर बताते हैं कि काफी पानी वह बचाकर रखेंगे ताकि आवारा पशुओं, जंगली जानवरों और ग्रामीण जानवरों को पीने का पानी मिल सके। यकीनन ऐसे प्रयासों में ही बुन्देलखण्ड के सूखे के समाधान के बीज छुपे हुए हैं।

बुन्देलखण्ड में असंतुलित ऋतुओं के मिजाज को भाँपते हुए किसान आशुतोष ने वर्ष 2013 में अपने खेत पर तालाब बनाया। एक सौ पचास मीटर लम्बाई, पैसठ मीटर चौड़ाई और आठ मीटर गहराई के निर्मित तालाब के बनते ही पहली बरसात ने ही तालाब को भर दिया। किसान आशुतोष के पास पचहत्तर हजार घन मीटर पानी का भण्डारण तो हो गया पर उसके खर्चने की योजना नहीं थी। उन्होंने अपनी बंजर और परती जमीन को हरी-भरी करने के लिये तीन हजार इमारती और फलदार पेड़ लगाने का हौसला जुटाया। पानी के लगातार उपयोग के बाद अब भी किसान आशुतोष के तालाब में लगभग चालीस हजार घन मीटर पानी उपलब्ध है।
पानी के वैभव सम्पन्न किसान आशुतोष तिवारी कहते हैं 'बुन्देलखण्ड के किसानों के लिये सम्भावित सूखा-अकाल और पानी के बढ़ते संकट से निपटने का सहज उपाय अपने खेत पर अपनी जरूरत का तालाब ही है। पर जरूरत इस बात की भी है कि हमें पानी के स्वभाव को समझना होगा और उसके प्रयोग को भी।' उनका मानना है कि अधिकाधिक उत्पादन पाने की लालसा के बजाय अपने खेत की सेहत और परिवार की जरूरत को आधार बनाना हितकर है।

अब आशुतोष महज बारिश की फसलों पर निर्भर न रहकर हर मौसम में अनेक प्रकार की फसलें ले रहे हैं। साथ ही एक निश्चित भूभाग पर बागवानी भी लगाए हुये हैं। जिनमें आम, अमरूद, सीताफल, कटहल, नींबू, मौसमी, करौंदा के 700 आदि के फलदार वृक्ष और सागौन के 700 वृक्ष लगे हैं। तालाब बंधी पर भी अरहर की फसल लगी थी उन्होंने बताया कि इससे 1 क्विंटल अरहर प्राप्त हुआ था। इस तालाब से कुछ ही मीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत और गणेश प्रसाद तिवारी एवं रमेश प्रसाद तिवारी का संयुक्त तालाब भी हैं।
अपना तालाब अभियान संयोजक पुष्पेंद्र भाई का कहना है कि बुन्देलखण्ड के मौजूदा हालातों में समाज और सरकार के बीच हर सम्भव सामंजस्य, विचार एवं व्यवहार सन्तुलन की प्राथमिक जरूरत है। ऐसे वक़्त में सभी को अपनी भूमिका निभानी है। एक-दूसरे पर दोषारोपण की बजाए हमें समाज की ताकत को पहचानना चाहिए और अपने निजी स्तर पर भी सूखे से समाधान की कोशिश करनी चाहिए। जिगनौडा के आशुतोष तिवारी ने सूखे में एक मिशाल पेश की है।
बुन्देलखण्ड के सूखे से निपटने के लिये हम सबको अपने हुनर, अपने संसाधन और अपने सम्बन्धों की पूँजी का सदुपयोग कर जरूरत की छोटी-छोटी योजनाओं पर काम करना होगा। और यह राज-समाज की साझी पहल से ही सम्भव है। सरकार को चाहिए कि बड़ी योजनाओं की बजाय ग्रामीण जीवन में रचे-बसे खेती-किसानी, पेड़ और पानी की विधाओं में अनुभवी, पारंगत, कुशल किसान शिल्पियों को आगे रखे। उनके अनुभवों को परखे और उनके मुताबिक छोटी-छोटी पर स्थायी निदान की आधारभूत योजनाओं पर समय रहते काम शुरू करे। इससे ना केवल किसानों को वर्तमान से उबरने और भविष्य को सँवारने का रास्ता मिलेगा, बल्कि सूखा-अकाल जैसी विभीषिकाओं का स्थायी समाधान भी मिलेगा।

