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काव्य संचय- (कविता नदी)
सूखी नदियों के पाटों का रंग
चलो दिखाऊं गर हिम्मत है तो
आकार केवल आकार
नदियों का नाम उन्हें फिर भी मिला हुआ
रेत हमारे सीने तक आ जाती है
यह है नदी का रास्ता
यह सूखापन भी जाता है आरंभ तक अंत तक
पंछी उन्हें पार करता है और मन में
हूक उठती है
एक कल्पना जो अतृप्त रहेगी की चले चलें
इसके साथ-साथ
और ध्यान देने पर यह बात उभरती आती है
इनमें ऐसा क्या है
सिर्फ इसके कि इनका सारा पानी बह चुका है।
चलो दिखाऊं गर हिम्मत है तो
आकार केवल आकार
नदियों का नाम उन्हें फिर भी मिला हुआ
रेत हमारे सीने तक आ जाती है
यह है नदी का रास्ता
यह सूखापन भी जाता है आरंभ तक अंत तक
पंछी उन्हें पार करता है और मन में
हूक उठती है
एक कल्पना जो अतृप्त रहेगी की चले चलें
इसके साथ-साथ
और ध्यान देने पर यह बात उभरती आती है
इनमें ऐसा क्या है
सिर्फ इसके कि इनका सारा पानी बह चुका है।