स्वच्छ भारत के लिए भरपूर संसाधन जरूरी

Submitted by Hindi on Tue, 10/21/2014 - 11:56
Source
लोकमत समाचार, 07 अक्टूबर 2014

.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काम करने का एक खास अंदाज है जो ध्यान आकर्षित कर लेता है। फिर बात उनके शिक्षक दिवस के संबोधन की हो या मेडिसन स्क्वेयर के शो की या फिर गांधी जयंती पर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की हो। मोदी इस बात को सुनिश्‍चित कर लेते हैं कि प्रचार ज्यादा से ज्यादा हो। किसी भी राजनीतिज्ञ के लिए यह कम बड़ी बात नहीं है जबकि आम जनता के मन में इस वर्ग विशेष के लिए नकारात्मक भाव घर करता जा रहा है। वह संदेश को माध्यम में बरकरार रख सकते हैं इसलिए स्वच्छ भारत अभियान ने सभी का ध्यान खींच लिया। सचिन तेंदुलकर, प्रियंका चोपड़ा जैसे सितारों और यहां तक कि ट्विटर पर खासे लोकप्रिय कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस संदेश को जनता जनार्दन की नजरों में बनाए रखा। संभवत: वे लाखों लोगों को प्रेरित करेंगे और लाखों उत्साहपूर्ण प्रतिसाद भी देंगे। लेकिन चाहे यह कितना भी महान और प्रशंसनीय कार्य हो, यह भारत की कचरे की भीषण समस्या पर रत्ती भर भी असर नहीं डाल पाएगा।

इस विषय पर काफी शोध-अध्ययन हो चुका है और समस्या के आकार को लेकर तमाम किस्म के आंकड़े भी उपलब्ध हैं; यह जानकारी भी कि इससे निपटने के लिए कितने बड़े पैमाने पर संसाधनों की दरकार होगी। हमें हमेशा ही एक स्वच्छ शहर और देश के तौर पर सिंगापुर का उदाहरण दिया जाता है। आइए केवल एक तथ्य की तरफ देखें : वर्ष 2000 में सिंगापुर ने 890 मिलियन डॉलर की लागत से कचरे को ऊर्जा में तब्दील करने वाला 80 मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता का संयंत्र लगाया। दुरुस्त है, लेकिन वहां प्रतिदिन जमा होने वाला कचरा 3000 टन था।

इसकी तुलना भारतीय शहरी आबादी से की जाए जो देश का 47 फीसदी कचरा पैदा करती है यानी प्रतिदिन 1.3 लाख टन कचरा। हम भी कचरे का प्रबंधन कर सकते हैं बशर्ते हम इसके लिए जरूरी संसाधन तलाश लें। केवल भारत को स्वच्छ करने के समर्पण के वीवीआईपी भाव के सैलाब से यह हासिल कर पाना नामुमकिन है। इसके लिए उच्च स्तर की प्रौद्योगिकी में अरबों डॉलर के निवेश की दरकार होगी जो कचरा एकत्रित करके, उसे अलग-अलग करके और फिर पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए उसका निपटारा कर सके। जापान ने ऐसा किया है और उसके कचरा निष्पादन संयंत्रों में वहां काम करने वाले लोगों के लिए एयरकंडीशंड वातावरण है। क्या हम यह बदलाव ला सकते हैं? क्या हम ऐसी सोच विकसित कर सकते हैं और अपने तमाम दावों के साथ कुछ धन भी लगा सकते हैं?

एक दमखम दिखाने वाले प्रधानमंत्री से वाकई यही उम्मीद है। उन्होंने जनता जनार्दन का विश्‍वास हासिल किया है क्योंकि उनका मानना है कि उनके गुजरात के प्रदर्शन के बाद वही एक व्यक्ति हैं जिनकी कथनी और करनी में फर्क नहीं है। उन्हें हर वादे को साकार करना चाहिए इसलिए उनके स्वच्छ भारत अभियान को जोरदार समर्थन मिला है। हम अपने हिस्से की वाहवाही को उनके अगले कदम के उत्सुकता-पूर्वक इंतजार में रोक लेते हैं। भारत में कचरे की समस्या ठोस कचरे तक ही सीमित नहीं है और यहां बड़ी समस्या नालियों में बहता मल-जल भी है। इसके अलावा मोदी का शौचालय बनाने का अभियान भी मल-जल निकासी से जुड़ा हुआ है।

यह सर्वज्ञात है कि हमारी अधिकांश शहरी बस्तियों में मल-जल निपटारे का समूचा ढांचा ही बेहद दयनीय स्थिति में है। इसके लिए भी भारी निवेश की दरकार होगी। अगर मोदी सरकार के पास वाकई शहरी कचरा निष्पादन, मल-जल निपटारे और इसे एक तय समय सीमा में पूरा करने की कोई योजना है तो उन्होंने अभी तक यह जनता के साथ साझा नहीं की है। यह बात भी काफी उत्साहजनक है कि प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के साथ जोड़ दिया है।

यह भी उत्साहवर्धक है कि उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि स्वच्छ भारत मिशन का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन उनके पवित्र इरादों और भाजपा में उनके सर्मथकों के बीच हमेशा से एक विवादित अलगाव रहा है इसलिए जिस दिन वे यह दावा कर रहे थे कि इस मिशन का राजनीति के साथ कोई लेना-देना नहीं है, उनके भाजपा के साथी यह दावा करते फिर रहे थे, 'यह सफाई अभियान कांग्रेस को महाराष्ट्र और हरियाणा से साफ कर देगा।' चुनाव इसी पखवाड़े होने हैं और फैसला लोगों को करना है लेकिन यह (भाजपाइयों का दावा) निश्‍चित ही काम करने का गांधीवादी तरीका नहीं है।

यह अभियान महात्मा गांधी की महानता को श्रद्धांजलि है। स्वच्छ प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि वह हर सप्ताह इस काम के लिए दो घंटे का वक्त देंगे। साथ ही उन्होंने स्वच्छ भारत के आर्थिक फायदों की भी सूची तैयार कर ली है। लेकिन प्रमाण तो तब सामने आएगा, जब वह स्वच्छ भारत के लिए जरूरी भीमकाय ढांचे को विकसित करने के लिए आवश्यक संसाधन भी जुटाएं। इसे केवल राज्यों और कारोबार के क्षेत्र के भरोसे ही छोड़ देना काफी नहीं होगा। एक स्वच्छ पर्यावरण तैयार करने वाले तमाम देशों ने भारी-भरकम निवेश करने में कोई भी हिचक नहीं दिखाई है। उन्होंने न केवल कचरा निष्पादन परियोजनाओं में बल्कि स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में भी निवेश किया है।

एडिटर-इन-चीफ, vijaydarda@lokmat.com