स्वच्छता अभियान की दिशा

Submitted by Hindi on Fri, 09/30/2016 - 10:35
Source
दैनिक जागरण, 24 सितम्बर, 2016


.भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के मौके पर तेलंगाना के हैदराबाद में सफाई अभियान में हिस्सा लेकर मुल्क की अवाम को यह संदेश देने की कोशिश की है कि प्रधानमंत्री का स्वच्छ भारत अभियान सही दिशा में जा रहा है। वहीं इसी मौके पर दिल्ली में विभिन्न राज्यों से आईं कुछ महिलाओं ने बताया कि उन्हें अपने घरों में शौचालय बनवाने के लिये अपनी बकरी, भैंस तक बेचनी पड़ी। छत्तीसगढ़ के 11 गाँवों के सरपंच, जिन्होंने अपने गाँवों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के लिये कर्ज लेकर हर घर में टॉयलेट बनवाए, आज वे सरकार को खुदकुशी करने की धमकी दे रही हैं। स्वच्छता मिशन का एक पक्ष यह भी है।

सरकार पर यह आरोप शुरू से ही लग रहे हैं कि शौचालय बनवाने वालों को राशि समय पर नहीं पहुँच रही। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके के कांकेर जिले के 11 गाँवों के सरपंचों पर प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत के लक्ष्य को तय समय सीमा के भीतर हासिल करने का दबाव जिला अधिकारियों ने बनाया। सरपंचों से वायदा किया गया कि वे अपने-अपने गाँवों में हर घर में शौचालय बनवा दें तो जिला प्रशासन उन्हें शौचालय निर्माण की एवज में सरकारी राशि देगा। आदिवासी बहुल गाँवों के सरपंचों ने कर्ज लेकर सरकार का सपना तो पूरा कर दिया और करीब 4-5 महीने पहले उनके गाँव खुले में शौच से मुक्त भी घोषित कर दिये गये। लेकिन अब तक जिला प्रशासन ने उन्हें राशि जारी नहीं की। हर रोज यही कहा जाता है कि जैसे ही ऊपर से मंजूर होगी, मिल जाएगी। कर्ज देने वाले उन्हें अपमानित कर रहे हैं। ऐसे बदतर हालात के मद्देनजर अब उन्होंने धमकी दी है कि अगर एक महीने के अंदर रकम नहीं दी तो वे खुदकुशी कर लेंगे। गौरतलब है कि भाजपा शासित छत्तीसगढ़ के गाँवों में घरों में शौचालय निर्माण की राष्ट्रीय औसत दर 45.3 से पीछे है।

हाल ही में नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस ने स्वच्छता मिशन पर एक सर्वेक्षण जारी किया है जिससे इसका खुलासा हुआ। इस राज्य के सरपंचों पर स्वच्छता मिशन का लक्ष्य पूरा करने का कितना दबाव है, इसका अहसास तब होता है, जब कई गाँव के सरपंच उन ग्रामवासियों का राशन रुकवाने का तुगलकी फरमान जारी कर देते हैं, जिन्होंने अपने घरों में शौचालय नहीं बनवाए। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूमि जिले के उपायुक्त कार्यालय की तरफ से जारी एक आदेश में प्रखंड, स्वास्थ्य, शिक्षा समेत सभी विभागों के कर्मचारियों और पंचायत प्रतिनिधियों से कहा गया है कि जब तक वे घरों में बने शौचालय के साथ तस्वीर सम्बन्धित विभाग के पदस्थापना कार्यालय में जमा नहीं करेंगे, उन्हें वेतन नहीं मिलेगा। यह आदेश उन कर्मचारियों और पंचायत प्रतिनिधियों पर भी लागू होगा, जिन्हें सरकार की तरफ से मानदेय मिलता है। हाल ही में असम की राजधानी गुवाहाटी में राज्यों के ग्रामीण विकास मंत्रियों के सम्मेलन में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि देश की 80 हजार गाँव पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त करा लिया गया है। पर इन आँकड़ों के समांतर छत्तीसगढ़ सरीखे जमीनी अनुभवों से सरकार की उदासीनता महँगी पड़ेगी।

दरअसल, 2019 में संसदीय चुनाव होने हैं। स्वच्छ भारत मिशन की समय सीमा भी 2 अक्टूबर 2019 ही रखी गई है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि इस मिशन को हासिल करने वाली सामाजिक उपलब्धता का श्रेय उन्हें मिले और वह इसका राजनीतिक लाभ उठाएँ। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार मुल्क को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिये आँकड़ों पर जोर दे रही है, उनके इस्तेमाल को सुनिश्चित करने का दावा भी कर रही है। वह कई अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं से सहयोग ले रही है। बच्चों के हितों के लिये काम करने वाली अन्तरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ भी स्वच्छ भारत अभियान को पूरा करने में भारत सरकार की मदद कर रहा है। यूनिसेफ फेथ लीडर्स और कॉरपोरेट जगत के साथ वाटर, सेनिटेशन एंड हाईजीन (वॉश) सम्बन्धी लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में काम कर रहा है। बीते दिनों दिल्ली और लेह में आयोजित दो कार्यशालाओं में विभिन्न फेथ लीडर्स व कॉरपोरेट जगत के प्रतिनिधियों ने शिरकत की और बताया कि वे भी भारत को स्वच्छ बनाने, बच्चों का स्वास्थ्य सुधारने में अपनी भूमिका का निर्वाह किस तरह कर रहे हैं।

ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलाइंस नवम्बर 2014 में भारत में लाँच हुआ था। इस एलाइंस में मुख्यधारा धर्म गुरू आम जनता के बीच वॉश का संदेश लेकर जाते हैं। यह एलाइंस दावा करती है कि यह दुनिया की अपनी तरह की पहली इंटरनेशनल, इंटरफेथ पहल है, जो दुनिया के सभी फेथ को बतौर एलाइंस एक साथ इकट्ठा करती है और सुनिश्चित करती है कि दुनिया के प्रत्येक बच्चे की सुरक्षित जल, सेनिटेशन व हाईजीन तक पहुँच हो। भारत के स्वामी चिदानंद सरस्वती इस एलाइंस के सह संस्थापक हैं, उन्होंने बताया कि सभी फेथ लीडर स्वच्छ क्रांति के लिये प्रयासरत हैं। अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार संत ज्ञानी गुरबचन सिंह और नई दिल्ली अशोका मिशन के वेन लामा लोबजेंग ने इन कार्यशाला में शिरकत करके यह बताने की कोशिश की कि विकासपरक एजेंडे को हासिल करने में उनकी भूमिका भी अहम स्थान रखती है। कॉरपोरेट जगत सीएसआर के तहत स्वच्छ भारत अभियान पर पैसा खर्च कर रहा है।

असल में, सरकार भी सामाजिक, कल्याणकारी नीतियों और टिकाऊ मानव विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में कॉरपोरेट जगत का सहयोग चाहती है। स्टोन इंडिया लिमिटेड के वरिष्ठ वाइस प्रेसिडेंट सुदीप सेन बेशक पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं पर विदेशी तकनीक को भारतीय जरूरत के अनुरूप ढालने में सिद्धहस्त हैं। उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिये एरोबिक टॉयलेट बनवाये हैं। नासा तकनीक से टॉयलेट से मानव मल न्यूट्रल वॉटर में तब्दील हो जाता है। ऐसे 4000 से भी अधिक शौचालय बनवाए गए हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स की चीफ प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव गायत्री सुब्रमण्यम का कहना है कि कॉरपोरेट जगत सीआरएस के तहत स्वच्छ भारत अभियान पर पैसा खर्च कर रहा है। वे कहीं स्कूलों में खासतौर पर लड़कियों के लिये शौचालय बनवा रहे हैं तो कहीं दूर-दराज गाँवों में पहुँच कर लोगों को शौचालय के महत्व के बाबत जागरूक कर रहे हैं। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन यानी प्रधानमंत्री का सपना तय समय सीमा में पूरा करने के लिये जो दबाव बनाया जा रहा है, उसके तौर-तरीकों पर भी सवाल उठने लगे हैं।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)