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नगर निगम ने बीते सालों में कचरा निपटान सहित स्वच्छता के लिये बड़े स्तर पर अभियान चलाकर इसे स्वच्छ शहर बनाया है। अब इंदौर देश के स्वच्छ शहरों में सबसे ऊपर अव्वल है। बीते दिनों हुई रैंकिंग में इंदौर को देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा मिला है। नगर निगम के सफाई अभियान का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि वातावरण में हर समय उड़ने वाली धूल करीब-करीब खत्म हो गई है। सड़क-चौराहों में नियमित सफाई होते रहने से धूल की मात्रा अब काफी कम है।इंदौर शहर अब से चार साल पहले तक सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में गिना जाने वाला शहर हुआ करता था लेकिन अब यहाँ वायु प्रदूषण तेजी से कम होता जा रहा है। बीते चार सालों में यहाँ हवा में जहर करीब आधा रह गया है। उसकी पुष्टि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा आँकड़ों से हुई है। हवा में जहर से लड़ते दिल्ली और दूसरे शहरों के लिये भी यह बात समझने लायक हो सकती है कि इंदौर ने अपने वायु प्रदूषण को कम कैसे किया।
मध्य प्रदेश में इंदौर तेजी से विकसित होता हुआ शहर है। आबादी और क्षेत्रफल दोनों में ही इंदौर ने बीते तीस सालों में अपना दायरा कई गुना बढ़ा लिया है। बढ़ते शहरीकरण और दूसरी पर्यावरणीय चुनौतियों के चलते शहर में वायु प्रदूषण मानक स्तर से काफी ऊपर पहुँच गया था। यहाँ के लोगों को साफ हवा में साँस लेने में भी खासी परेशानी हो रही थी। हमेशा ही कहा जाता है कि स्वच्छता से वायु प्रदूषण कम हो जाता है। स्वच्छ वातावरण से हवा साफ होती है और जब इंदौर ने इस दिशा में काम करते हुए स्वच्छता को अपनाया तो अब उसके परिणाम चौंकाने वाले हैं।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा आँकड़े बताते हैं कि बीते चार साल में शहर ने अपने वायु प्रदूषण को 42 फीसदी तक कम कर लिया है। यानी करीब आधे स्तर तक। 2014 में जहाँ इन्दौर में पीएम 10 का आँकड़ा 143 प्रति क्यूबिक मीटर था, वह 2016 में 92 तथा अब अगस्त 2017 में घटकर महज 83 प्रति क्यूबिक मीटर रह गया है। बीते एक साल में इसमें दस फीसदी तक की कमी आई है।
बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीके वाघेला बताते हैं कि बोर्ड ने इंदौर शहर में प्रदूषण की जाँच करने के लिये सबसे अधिक प्रदूषण सम्भावना वाले सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र, घने यातायात वाले कोठारी मार्केट तथा विजयनगर में अपने जाँच केन्द्र बनाए हैं और वहाँ से नियमित जाँच होती रहती है। इन्हीं केन्द्रों पर हर दिन दर्ज होने वाले वायु प्रदूषण के आँकड़ों के आधार पर यह तुलनात्मक रिपोर्ट तैयार की गई है। उन्होंने बताया कि इसे पीएम में मापा जाता है। दरअसल पीएम वे धूल के कण होते हैं, जो एक स्वस्थ व्यक्ति के साँस लेते समय उसके शरीर में दाखिल होते हैं। हालांकि पीएम 10 का आदर्श मानक 60 प्रति क्यूबिक मीटर माना जाता है, इससे इंदौर में अभी और प्रयासों की जरूरत है।
वे बताते हैं कि शहर में वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार के लिये समन्वित प्रयासों से ही ऐसा सम्भव हो सका है। यहाँ नगर निगम ने बीते सालों में कचरा निपटान सहित स्वच्छता के लिये बड़े स्तर पर अभियान चलाकर इसे स्वच्छ शहर बनाया है। अब इंदौर देश के स्वच्छ शहरों में सबसे ऊपर अव्वल है। बीते दिनों हुई रैंकिंग में इंदौर को देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा मिला है। नगर निगम के सफाई अभियान का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि वातावरण में हर समय उड़ने वाली धूल करीब-करीब खत्म हो गई है। सड़क-चौराहों में नियमित सफाई होते रहने से धूल की मात्रा अब काफी कम है। इतना ही नहीं यहाँ प्रशासन ने खटारा वाहनों के इस्तेमाल और औद्योगिक प्रदूषण को भी काफी हद तक कम किया है।
सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र स्थित केन्द्र के आँकड़े देखें तो पीएम-10 वर्ष 2014 में 136, 2015 में 100, 2016 में 95.9 तथा अगस्त 2017 में घटकर अब तक के सबसे कम स्तर 85 तक आ गई है। कोठारी मार्केट में वर्ष 2014 में 143, 2015 में 94.4, 2016 में 87.3 तथा अगस्त 2017 में घटकर अब तक के सबसे कम स्तर 82.9 तक आ गई है। इसी प्रकार विजयनगर में वर्ष 2014 में 150, 2015 में 90.2, 2016 में 93.9 तथा अगस्त 2017 में घटकर अब तक के सबसे कम स्तर 83.3 तक आ गई है। औसतन देखें तो पीएम 10 की मात्रा वर्ष 2014 में 143, 2015 में 95, 2016 में 92 तथा अगस्त 2017 में घटकर अब तक के सबसे कम स्तर 83 तक आ गई है।
इसी तरह हवा में घुलते जहर के लिये जिम्मेदार एसओ-2 भी सांवेर रोड पर वर्ष 2014 में 11, 2015 में 10.6, 2016 में 10.7 तथा अगस्त 2017 में भी 10.7 पर स्थिर है। कोठारी मार्केट में वर्ष 2014 में 11, 2015 में 10.4, 2016 में 10.6 तथा अगस्त 2017 में 10.7 है। हालांकि यहाँ यह अपने आदर्श मानक स्तर 50 से काफी कम है। हवा को प्रदूषित करने वाला एक और कारक एसओ–एक्स भी तीनों केन्द्रों पर अपने आदर्श मानक स्तर 40 से आधी 20.5 पर ही दर्ज हुआ है।
इंदौर शहर अपने लगातार विस्तार के बावजूद प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई भी मुस्तैदी से लड़ रहा है। वर्ष 1991 में शहर की आबादी महज 57 हजार थी, जो अब बढ़कर 20 लाख से ज्यादा हो चुकी है। शहर की जनसंख्या घनत्व शहरी सीमा में लगे क्षेत्रों में 100 व्यक्ति प्रति हेक्टेयर तथा शहर के मुख्य भाग में 1.028 व्यक्ति प्रति हेक्टेयर तक पहुँच गया है। 400 साल पहले मराठा होलकर शासकों का बसाया यह शहर सन 1728 में महज 28.5 हेक्टेयर में सीमित था, जो अब बढ़कर करीब 12 हजार हेक्टेयर में फैल चुका है और अब भी लगातार बढ़ता जा रहा है।
वायु प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन होता है। यह मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों ही कारणों से होता है। ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन मानवीय स्वास्थ्य को विभिन्न स्तरों पर प्रभावित करता है। इंदौर में शहरी यातायात से कार्बन डाइऑक्साइड का कुल उत्सर्जन 1, 46, 378 मीट्रिक टन है, जिसमें सर्वाधिक 65 फीसदी दुपहिया वाहनों से है। अभी इंदौर को वाहनों से निकलने वाले धुएँ से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिये भी बहुत से कदम उठाने होंगे। वाहन उद्योग से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि अब नई गाड़ियों में भी वायु प्रदूषण से बचाने के लिये कई तकनीकें अपनाई जा रही हैं।
साँस रोगों के विशेषज्ञ डॉ कुलदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि वायु प्रदूषण के लिये जिम्मेदार मुख्य कण होते हैं–सूक्ष्म कण, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा कार्बन मोनो ऑक्साइड। इनमें सबसे ज्यादा नुकसान सूक्ष्म कणों से होता है। इन्हें ही पीएम कहते हैं। हवा में घुले ये बारीक कण साँस के साथ अनजाने ही शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और हृदय, फेफड़ों के रोगों सहित मौसमी बीमारियों के संक्रमण को बढ़ाते हैं। इनसे फेफड़ों का कैंसर भी सम्भव है। वाहनों के धुएँ से (कोयला और पेट्रोलियम उत्पादों में मौजूद सल्फर के जलने से) जहरीली सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलती है जो स्वास्थ्य के लिये कई तरह के खतरे पैदा करती है। अत्यधिक तापमान में किसी चीज के जलने से नाइट्रोजन के ऑक्साइड निकलते हैं। सर्दियों में हवा के साथ छा जाने वाला भूरा धुआँ बताता है कि हवा की गुणवत्ता कम हो रही है। नाइट्रोजन के ऑक्साइड स्वास्थ्य के लिये कई तरह के खतरे पैदा करते हैं। इसी प्रकार कार्बन मोनो ऑक्साइड भी वाहनों के धुएँ से अधजले ईंधन से पैदा होती है। यह वातावरण में बहुत ही जहरीला प्रभाव छोड़ती है और गम्भीर बीमारियों का कारण बनती है।
इन चुनौतियों के बावजूद फिलहाल इंदौर की फिजाओं में यह खबर सुखद और सुकून की है कि यहाँ की हवा में जहर घुलना कम हो गया है। आने वाले दिनों में यह और भी कम होगा। इंदौर के मॉडल को अन्य शहरों को भी अपनाना होगा।