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विकास संवाद द्वारा प्रकाशित 'पानी' किताब
तालाब या झील के मायने क्या हैं? मिट्टी की दीवारों के बीच सहेजा गया पानी कहीं प्राकृतिक संरचना तो कहीं इंसानी जुनून का परिणाम। यही तालाब, पोखर, झील आज सूख रहे हैं... देखभाल के अभाव में रीत रहे हैं और कहीं मैदान, कहीं कूड़ागाह के रूप में तब्दील हो रहे हैं। कितना दुखद पहलू है कि जिन झीलों में जहाज चला करते थे... जिनको नाप लेने के लिए भुजाएं आजमाईश किया करती थीं...जो प्यास बुझाते थे... जो मवेशियों का आसरा बनते थे... जो पर्यटकों को लुभाते थे... हम जिनमें स्नान कर पुण्य कमाते थे, वे ही सरोवर आज सूख रहे हैं।
कितनी बड़ी विडंबना है कि जिन तालाबों, सरोवरों का निर्माण ही हदों में हुआ उनकी ही सारी हदें मिटाई जा रही हैं! इंसान अपनी हदों को तोड़ रहा है।
पहले किसी गाँव-कस्बे में प्रवेश करते थे तो सीमाओं के पास नदी या तालाब नजर आते थे। गाँवों की जीवनरेखा थे ये तालाब। भोपाल-उदयपुर जैसे शहरों के लिए तो तालाब का होना पर्यटन उद्योग का पर्याय है। पुष्कर का सरोवर पुण्य कमाने वालों का तीर्थ है और डल झील ख्वाबों का सैरगाह। ये विरासतें सिमटने लगी हैं। हर साल यह सच और ज्यादा कड़वाहट के साथ पेश आता है।
अब किसी भी शहर में प्रवेश करें, सबसे पहले दिखाई देता है पन्नियों से अटा पड़ा कचरे का ढेर और तंगहाल झुग्गियाँ। तालाब जो गाँवों में शीतलता बाँटते थे, गाँव का आईना हुआ करते थे। कूड़े के ढेर और झुग्गियाँ केवल समस्याएं हैं और यही शहर का यथार्थ हैं। और करीब से देखें तो पाएंगे कि बदली हुई परिस्थितियाँ हमारे जीवन से गायब होती तरलता और पोलीथिन की तरह न मिटने वाले तनाव का द्योतक हैं।
तालाब सूख रहे हैं तो हमारे पहचान मिट रही है। तालाब किनारे साँस लेने वाला जीवन मिट रहा है। पनघट किनारे की खट्टी-मीठी बातें मिट रही हैं और परम्पराओं व आस्थाओं का संसार सिमट रहा है। तालाब के भी अपने कई रंग हैं। गाँव में यह परिवार के बुजुर्ग सा कई समस्याओं का समाधान बनता है तो शहरों में कई चेहरों वाला किरदार बन जाता है। जो लोग शहर में अकेले हैं, उनके लिए कचोटती साँझ बिताने का उपक्रम हैं तालाब प्रेमी जोड़ों के लिए ख्वाब बुनने का स्थल है तालाब। गरीबों के लिए पेट भरने जितनी कमाई का जरिया है तालाब कवियों के लिए सुकुमार कल्पना तो साहसिक खेलों के शौकीनों के लिए अपनी बाहों की ताकत तौलने का पैमाना है तालाब।
जरा अपने बचपन को टटोलिए तो.... या अपने बुजुर्गों से दो पल बतियाइए। तालाब से जुड़ी यादों का पूरा अलबम जीवंत हो उठेगा।
किसी झील किनारे बिताई साँझ याद तो कीजिए। यह जानकर तकलीफ होगी कि तालाबों की हदें सिमट रही हैं। पानी की परम्परा सूख रही है।
कितनी बड़ी विडंबना है कि जिन तालाबों, सरोवरों का निर्माण ही हदों में हुआ उनकी ही सारी हदें मिटाई जा रही हैं! इंसान अपनी हदों को तोड़ रहा है।
पहले किसी गाँव-कस्बे में प्रवेश करते थे तो सीमाओं के पास नदी या तालाब नजर आते थे। गाँवों की जीवनरेखा थे ये तालाब। भोपाल-उदयपुर जैसे शहरों के लिए तो तालाब का होना पर्यटन उद्योग का पर्याय है। पुष्कर का सरोवर पुण्य कमाने वालों का तीर्थ है और डल झील ख्वाबों का सैरगाह। ये विरासतें सिमटने लगी हैं। हर साल यह सच और ज्यादा कड़वाहट के साथ पेश आता है।
अब किसी भी शहर में प्रवेश करें, सबसे पहले दिखाई देता है पन्नियों से अटा पड़ा कचरे का ढेर और तंगहाल झुग्गियाँ। तालाब जो गाँवों में शीतलता बाँटते थे, गाँव का आईना हुआ करते थे। कूड़े के ढेर और झुग्गियाँ केवल समस्याएं हैं और यही शहर का यथार्थ हैं। और करीब से देखें तो पाएंगे कि बदली हुई परिस्थितियाँ हमारे जीवन से गायब होती तरलता और पोलीथिन की तरह न मिटने वाले तनाव का द्योतक हैं।
तालाब सूख रहे हैं तो हमारे पहचान मिट रही है। तालाब किनारे साँस लेने वाला जीवन मिट रहा है। पनघट किनारे की खट्टी-मीठी बातें मिट रही हैं और परम्पराओं व आस्थाओं का संसार सिमट रहा है। तालाब के भी अपने कई रंग हैं। गाँव में यह परिवार के बुजुर्ग सा कई समस्याओं का समाधान बनता है तो शहरों में कई चेहरों वाला किरदार बन जाता है। जो लोग शहर में अकेले हैं, उनके लिए कचोटती साँझ बिताने का उपक्रम हैं तालाब प्रेमी जोड़ों के लिए ख्वाब बुनने का स्थल है तालाब। गरीबों के लिए पेट भरने जितनी कमाई का जरिया है तालाब कवियों के लिए सुकुमार कल्पना तो साहसिक खेलों के शौकीनों के लिए अपनी बाहों की ताकत तौलने का पैमाना है तालाब।
जरा अपने बचपन को टटोलिए तो.... या अपने बुजुर्गों से दो पल बतियाइए। तालाब से जुड़ी यादों का पूरा अलबम जीवंत हो उठेगा।
किसी झील किनारे बिताई साँझ याद तो कीजिए। यह जानकर तकलीफ होगी कि तालाबों की हदें सिमट रही हैं। पानी की परम्परा सूख रही है।