मानसून आ चुका है, बिहार जैसे राज्य जो कुछ दिनों पहले सूखे की मार झेल रहे थे, अब वो बाढ़ की वजह से परेशान हैं। लेकिन कुछ जगहों पर मानसून बहुत कम पहुंचा है जिस वजह से वहां सूखे के हालात बने हुए हैं। आंध्र प्रदेश के तिरुमाला-तिरुपति मानसून आने के बाद भी जल संकट से गुजर रहा है। यहां के लोग हर रोज अगले दिन के पानी की समस्या को लेकर सोते हैं। यहां के लोगों की आंखों में पानी की कमी का डर देखा जा सकता है। तिरूपति में खाली बर्तन पकड़े लोग और टैंकर आगे लगी कतार देखना आम बात है।
इस समय उत्तराखंड, बिहार और महाराष्ट्र में प्रकृति खूब पानी बरसा रही है तो तिरुपति की ओर मानसून का रूख ज्यादा नहीं दिख रहा है। मौसम विभाग का अनुमान है कि इस बार पिछली बार की तुलना में 60 प्रतिशत कम बारिश होगी। ऐसे में तिरुपति एक बड़े जल संकट की ओर जाता दिख रहा है। तिरुपति बालाजी देश में आस्था और श्रद्धा का एक बड़ा केन्द्र है। यहां हर साल लाखों तीर्थयात्री भगवान बालाजी के दर्शन करने आते हैं, इस समय यहां आने वाले श्रद्धालुओं को भी पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। अगर मानसून ने इस शहर की ओर रूख नहीं मोड़ा तो एक महीने के भीतर तिरुपति बड़े जल संकट की चपेट में होगा।
नीति आयोग की रिपोर्ट ने पूरे देश की स्थिति बता दी है, जिसमें सबसे बड़ा खतरा महानगरों को ही है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक देश के 21 बड़े शहरों से भूजल पूरी तरह से खत्म हो जायेगा। मतलब साफ है कि हम अपने स्वार्थ की वजह से लगातार पानी निकाल रहे हैं लेकिन सहेजने के लिए तनिक भी प्रयास नहीं कर रहे है। यही वजह है कि आज हम विकराल होते जल संकट की कगार पर खड़े हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में भारत में प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता घटी है। चेन्नई जैसा शहर जिसके चारों ओर पानी ही पानी था, वो भी आज जल संकट की मार झेल रहा है।आंध्र प्रदेश के तिरुपति में भी लोग पानी की किल्लत से परेशान है। इस समय यहां के लोगों को तीन दिन में एक बार नलों से पानी मिल पाता है। केन्द्र सरकार हर घर को नल से जोड़ने की बात कर रही है लेकिन जब जमीन के अंदर ही जल नहीं होगा तो जोड़ने का क्या फायदा?
इस शहर को इस समय कल्याणी डैम से पानी पहुंचाया जा रहा है। कल्याणी डैम इस क्षेत्र का एकमात्र डैम है जिससे पानी उपलब्ध कराया जा रहा है और जिसका जल भंडार अपने आखिरी चरण में है। बारिश नहीं हुई तो जल्दी ही इस डैम में पानी नहीं बचेगा। इसके अलावा शहर के पश्चिमी हिस्सों को तेलुगू गंगा जल प्रदान करती है, दक्षिणी और पूर्वी भाग में भी यहीं से पानी उपलब्ध कराया जाता है। इस समय नेल्लोर जिले के कमंडलु जलाशय में बचे हुए जल भंडार से पानी लिया जा रहा है। जलाशय से पानी को श्रीकालाहस्ती के पास स्थित कैलासगिरी टैंक में भरा जाता है, जहां से पानी को तिरुपति के लोगों के घरों तक नलों में पहुंचाया जाता है। इस टैंक से सिर्फ तिरुपति को ही नहीं पास 80 किमी. दूर स्थित गुदूर तक भी पानी को पहुंचाया जाता है। जिससे तिरुपति के लिए हालात और भी बदतर हो जाते हैं। एक ही जगह से दो जगहों तक पानी पहुंचाया जाता है, थोड़ी-सी चूक हजारों लोग के कंठ सुखा देता है। 80 किमी. दूर गुदूर तक पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन का सहारा लिया गया है। जिसमें लागत तो अधिक आई लेकिन गुदूर के लोगों को इससे बहुत राहत मिली है और तिरुपति में पानी की कमी हो रही है।
तिरुपति में लोगों को तो पानी की आवश्यकता होती ही है, इसके अलावा यहां हर रोज हजारों तीर्थयात्री आते हैं। जो मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं और भगवान को जल समर्पित करते हैं। शुद्ध जल को भगवान को समर्पित करना श्रद्धा का भाव तो है, लेकिन जल संकट के समय इस तरह पानी का उपयोग करना संकट को बढावा देना ही है। इस विषय पर सोचने और सही समाधान खोजने की आवश्यकता है। वैसे ही तो तिरुपति जल की कमी झेल रहा है, ऐसे में मंदिरों में पानी को बचाने की जरुरत है। तिरुमाला पहाड़ियों के ऊपर बने प्रोजेक्ट में जो पानी का संग्रहण है, वो भी तेजी से घट रहा है। अब उस भंडारण को बचाने का कोई तरीका अब तक सामने नहीं आया है लेकिन पहाड़ से पानी को पाइप के द्वारा नीचे लाने की मांग की जा रही है। तिरुपति के लिए श्रीशैलम जल आंवटन की मांग काफी समय से हवा में है, लेकिन इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं गया। जब तक सरकार इस स्थिति पर गंभीर होकर विचार नहीं करती है तिरुपति गहरे संकट की ओर बढ़ने की ओर पूरी संभावना है।
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