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बिहार में गंगा और सोन नदी में बाढ़ के खतरे को देखते हुए अलर्ट जारी किया गया है। इन नदियों के किनारे बसे जिलों के निचले क्षेत्रों में पानी भरने का खतरा है। बिहार में एनडीआरफ और एसडीआरफ की टीम को अलर्ट कर दिया गया है। पटना, भागलपुर, वैशाली, गोपालगंज में बाढ़ का खतरा देखा जा रहा है। बाढ़ से लोगों को बाहर निकालने के लिये जरूर इस बार नाव की संख्या बढ़ाई गई है। बिहार में नदियों के किनारे बसे गाँवों की कहानी यही है कि वहाँ लोग अपना घर काँधे पर लेकर ही चलते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में बारिश और बाढ़ का आना नया नहीं है, नदियाँ भर रहीं हैं और उनमें आये उफान से नदियों के आस-पास बसे गाँवों में जीना मुश्किल हो गया है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे बारिश बढ़ती जाएगी, बाढ़ का दायरा बढ़ता जाएगा।
यह सब उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग पहली बार नहीं देख रहे। ना ही सरकार इससे अंजान है। फिर भी इसे आपदा कहते हैं। जबकि आपदा के आने की तारीख तय नहीं होती है। बिहार और उत्तर प्रदेश में आने वाले इस बाढ़ की तारीख तय है। इन राज्यों में दो फसल किसान काटते हैं और ये जो आपदा के बाद ‘राहत’ की फसल है, उसे राज्य के बाबू से लेकर अधिकारी तक हर साल काटते हैं।
बिहार में गंगा और सोन नदी में बाढ़ के खतरे को देखते हुए अलर्ट जारी किया गया है। इन नदियों के किनारे बसे जिलों के निचले क्षेत्रों में पानी भरने का खतरा है। बिहार में एनडीआरफ और एसडीआरफ की टीम को अलर्ट कर दिया गया है। पटना, भागलपुर, वैशाली, गोपालगंज में बाढ़ का खतरा देखा जा रहा है।
बाढ़ से लोगों को बाहर निकालने के लिये जरूर इस बार नाव की संख्या बढ़ाई गई है। बिहार में नदियों के किनारे बसे गाँवों की कहानी यही है कि वहाँ लोग अपना घर काँधे पर लेकर ही चलते हैं। बाँधों को देश में बाढ़ के निदान के तौर पर पेश किया गया था, लेकिन बाँध ने बाढ़ की भयावहता को बढ़ाने का ही काम किया है।
पटना में इस समय 65 नाव और भोजपुर में 69 नाव काम पर हैं। समस्तीपुर, वैशाली, खगड़िया और बस्तर में और अधिक नाव भेजा जा रहा है। मनेर, आरा, जैस, पटना के निचले इलाकों में गंगा नदी में पानी भर जाने के बाद बाढ़ का सबसे अधिक खतरा है।
बिहार के 75 राहत शिविरों में बाढ़ से निकाले गए 38000 बाढ़ प्रभावित लोगों के रहने की व्यवस्था की गई है। सहरसा में दो लोगों की डूबने से मौत की खबर आई है। सीतामढ़ी, शेखपुरा, पटना, पश्चिम चम्पारण, दरभंगा भी बाढ़ से प्रभावित जिलों में शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश के हालात बिहार से अच्छे नहीं है। बाराबंकी में घाघरा नदी का जलस्तर खतरे के निशान से सात सेमी ऊपर पहुँच गया है। बाराबंकी के कई गाँवों से खबर आ रही है कि पानी के तेज बहाव की वजह से कटान हो रहा है, जिससे सड़कें गायब हो रहीं हैं। सूरतगंज प्रखण्ड के खूजी गाँव का हाल ऐसा ही है।
लखीमपुर में शारदा-घाघरा का जलस्तर गिरने से लोग राहत की साँस ले रहे हैं, वहीं सीतापुर में इन नदियों से कटान जारी है। वाराणसी के हरिश्चन्द्र घाट और मणिकर्णिका घाट पर गंगा का जलस्तर बढ़ता जा रहा है। हालात ऐसे हैं कि लोगों को अपने परिजनों का अन्तिम संस्कार बनारस की गलियों में और छतों पर करना पड़ रहा है। बलिया, चन्दौली, गाजीपुर, मिर्जापुर, भदोही में बाढ़ का पानी घरों में घुस आया है।
मिर्जापुर की बेलन, अदवा, जरगो और बकहर, जौनपुर में गोमती, चन्दौली में कर्मनाशा जैसी नदियां गंगा से आये पानी के दबाव की वजह से उफन रहीं हैं। बाढ़ की वजह से जौनपुर में रेड अलर्ट घोषित कर दिया गया है। इलाहाबाद में गंगा और यमुना दोनों खतरे के निशान से ऊपर बह रहीं हैं। बारिश और बाढ़ के कहर ने उत्तर प्रदेश में 28 लोगों की जान ले ली है।
उत्तर प्रदेश में आपदा राहत विभाग की तरफ से आये आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार राप्ती, घाघरा, सरयू और शारदा नदियों के बहाव की वजह से 08 जिलों के लगभग 1500 गाँव इस समय बाढ़ के प्रभाव में है। बलरामपुर की स्थिति बहुत खराब है, राहत बचाव की टीम को वहाँ भेजा जाने वाला है। जिले के 200 गाँव बाढ़ से प्रभावित हैं और लोगों की इस वजह से जान भी गई है।
एक दर्जन लोगों के बहराइच में पानी में बह जाने की सूचना है और छह लेागों की मौत नाव पलटने से हुई। बाढ़ में फँसे हुए लेागों के लिये खाना पहुँचाने की जिम्मेवारी आर्मी के हेलिकाॅप्टर ने ली है।
उत्तर प्रदेश में गन्ना के किसान चिन्ता में हैं। इस तरह लगातार बारिश की वजह से और खेतों में पानी के लगने से गन्ना की प्रभावित होगी।
बाढ़ का स्थायी निदान जब तक हम तलाश नहीं लेते, हमें बाढ़ में आने वाले पानी के निकास की पूरी तैयारी करनी चाहिए। उसके रास्ते पर हम इमारत और बाँध बनाएँगे तो नदी अपने लिये रास्ता खुद बनाएगी और जब नदी अपने लिये रास्ता तलाशने निकलेगी, उसके बाद का परिणाम अधिक भयावह होगा। जिसका उदाहरण हम लोग चेन्नई और मुम्बई में देख चुके हैं।