
भारत भी तलछटीकरण की समस्या से अछूता नहीं है। भारतीय नदियाँ, चाहे वह हिमालयी क्षेत्र से निकलती हो या प्रायद्वीपीय पठार से, तलछटीकरण की समस्या से ग्रस्त हैं। भारतीय नदियों में विश्व की सभी नदियों का लगभग 5 प्रतिशत जल बहता है परन्तु भारतीय नदियों के रास्ते विश्व के कुल तलछटों का 35 प्रतिशत भाग महासागरों तक जाता है। गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी प्रतिवर्ष एक अरब टन तलछटों को महासागरों तक ढोती हैं जो महासागरों तक अन्य नदियों द्वारा ढोये गए कुल तलछट का लगभग 8 प्रतिशत है और विश्व के किसी भी नदी तन्त्र द्वारा ढोयी गई सबसे अधिक तलछट की मात्रा है। भारतीय नदियों में होने वाला यह तलछटीकरण यहाँ स्थित विभिन्न जलाशयों, सिंचाई प्रणालियों व जल विद्युत परियोजनाओं के लिये एक गम्भीर चुनौती के रूप में उभरा है।

इसके अलावा मानव के विभिन्न क्रियाकलापों जैसे प्राकृतिक संसाधनों (जल, वन, खनिज) के दोहन व कुप्रबंधन ने भी नदी घाटी क्षेत्रों व जलाशयों में तलछटीकरण की समस्या को बढ़ावा दिया है। भारतीय हिमालयन क्षेत्र एक सघन आबादी वाला क्षेत्र है। जब कोई क्षेत्र सघन आबादी वाला होता है तो उस क्षेत्र की जनसंख्या का वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी अत्यधिक रहता है। इसलिये इस क्षेत्र की सघन आबादी ने यहाँ के वनों, कृषि क्षेत्रों, जल संसाधनों व घास के मैदानों का भरपूर दुरुपयोग किया है। इसके अतिरिक्त आधुनिक निर्माण प्रक्रियाओं जैसे बाँध निर्माण, सड़क निर्माण, खानें खोदना आदि ने भी विस्तृत स्तर पर वन क्षेत्रों और मृदा का विनाश किया है। इन सभी क्रियाओं ने इस क्षेत्र की नदियों में तलछट की मात्रा को बढ़ाया है। हिमालयन क्षेत्र में प्रति 10 मीटर सड़क के निर्माण में लगभग 1.99 टन तलछट प्रतिवर्ष उत्पन्न होते हैं। हिमालय के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में लोग स्थानांतरित कृषि करते हैं, जिसके कारण यहाँ लगभग 30,000 वर्ग कि.मी. भूमि बुरी तरह से अपरदित है। हाल ही के वर्षो में पूर्वी हिमालयन क्षेत्र में जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि और निर्माणकारी क्रियाओं ने यहाँ के वन संसाधनों को काफी क्षति पहुँचाई है, जिसने मृदा की जल सोखने की क्षमता को काफी सीमा तक प्रभावित किया है व नदियों में जल प्रवाह व तलछट की मात्रा को बढ़ाया है। उत्तराखण्ड के कुमायुँ हिमालय में रामगंगा की सहायक गौला नदी की तलछट मात्रा अन्य कई नदियों से काफी अधिक है, जिसका मुख्य कारण है - मानव हस्तक्षेप । इस नदी के जलग्रहण क्षेत्र में 1963 से 1985 के 22 वर्षों में 13.1 प्रतिशत वनों का ह्रास हुआ जिससे अपरदन की दर 170.3 से.मी./1000 वर्ष की दर तक बढ़ गई। इससे यह पता चलता है कि मानवीय सक्रियता नदियों व जलाशयों में तलछटीकरण बढाने वाले मुख्य कारकों में से एक है।
भारतीय नदियों से उत्पादित तलछट की मात्रा के परिणाम भयावह हैं। तलछटों के निम्नीकरण से भारत की औसतन ऊँचाई 22 मि.मी. प्रति शताब्दी की दर से कम हो रही है। कई नदियाँ तलछटीकरण की वजह से अपना रास्ता बदल लेती हैं और जान माल की हानि पहुँचाती है। नदी मार्ग में तलछट जमा होने के कारण बिहार की कोसी नदी बार-बार अपना रास्ता बदलती है जिसके कारण उसे ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है। नदियों में तलछट की अधिक मात्रा जल विद्युत परियोजनाओं के लिये भी एक खतरा है। नदी जल में तलछट की अधिक मात्रा टरबाईनों को हानि पहुँचाती है व विद्युत उत्पादन को प्रभावित करती है। भारतीय नदी घाटियों में प्रति वर्ष आने वाली बाढ़ों का एक मुख्य कारण भी नदी मार्ग में अत्यधिक मात्रा में जमा होने वाले तलछट ही हैं। अधिक तलछट से नदी की गहराई कम हो जाती है व चौड़ाई अधिक। ऐसी स्थिति में जब अधिक वर्षा होती है तो नदियों में पानी अधिक हो जाता है और आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ के रूप में फैल जाता है। तलछट का प्रभाव यहीं तक सीमित नहीं रहता, जब बाढ़ आती है तो उपजाऊ भूमि की ऊपरी परत पानी के साथ बह जाती है। भारत के कुल 329 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्रफल में से लगभग 127 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल भू-अपरदन का शिकार है।
अपरदन की दर अधिक होने से तलछट के जमाव की दर भी अधिक होती है जो जलाशयों के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करती है। एक अनुमान है कि भारत में प्रतिवर्ष 5334 हजार मीट्रिक टन मृदा सतह से अलग होती है जिसके 10 प्रतिशत तलछटों का जमाव विभिन्न जलाशयों में होता है। जलाशयों में तलछट का जमाव उनकी जल भण्डारण क्षमता को, उनके जीवन काल और जल विद्युत क्षमता को प्रभावित करता है। सन 2050 तक भारत के कुल बाँधों में से 80 प्रतिशत बाँध ऐसे होंगे जो अपनी क्षमता का 50 प्रतिशत या इससे भी अधिक नष्ट कर चुके होंगे। भारतीय जलाशयों में तलछटीकरण की दर इनकी अनुमानित दर से अधिक रही है। मैथन बाँध जो 1956 में बना था, तब अनुमान लगाया गया था कि इसमें 163.38 टन/वर्ग कि.मी./वर्ष की दर से तलछट का जमाव होगा। परन्तु किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि इसमें जमा कुल तलछट 110206673.50 टन हैं जोकि 1321.45 टन/वर्ग कि.मी./वर्ष के हिसाब से जमा हो रहे हैं, जो अनुमानित तलछट के जमाव की दर का 8 गुणा से भी अधिक है। इसी तरह अन्य जलाशयों में देखी गई जमाव की दर उनकी अनुमानित जमाव की दर से कहीं अधिक है। निजामसागर बाँध में तलछट जमाव की दर उसकी अनुमानित जमाव की दर का 15 गुणा से भी अधिक है। इसके अतिरिक्त श्रीराम सागर जो 1970 में बना था, 1998 तक मात्र 28 वर्षों में ही अपनी आधी क्षमता तलछटीकरण के कारण खो चुका है। हिमालय के गिरीपद में स्थापित भाखड़ा बाँध में प्रतिवर्ष 35.8X106 मी3 तलछट जमा होते हैं, जिससे इस बाँध में 50 से.मी. तलछटों की मोटी परत प्रति वर्ष जमा हो जाती है।

जलाशय न केवल पानी के विशाल स्रोत का भण्डार बनाये रखते हैं बल्कि यहाँ एकत्रित पानी के जरिये समूचे वर्ष पेयजल, सिंचाई, जल विद्युत और उद्योगों को भी गति प्रदान करते हैं, जो किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। जलाशयों की वजह से जहाँ एक और अनाज का उत्पादन बढ़ा है वही दूसरी और कुछ क्षेत्रों में सूखे व बाढ़ों से निपटने में भी मदद मिली है। अतः इन जलाशयों का रख-रखाव करना और इन्हें अच्छी हालत में रखना एक बड़ी चुनौती है। भारतीय जलाशयों में तलछटीकरण के भयावह परिणामों से बचने के लिये कुछ ऐसा करने की जरूरत है जिससे कि नदियों व जलाशयों में तलछट की मात्रा कम हो सके। अतः इसके लिये आवश्यक है तलछटीकरण को सीमित करने के प्रयास किए जाएँ। तलछटीकरण की समस्या को पूरी तरह से समझने के लिये और इसके समाधान के लिये सततपोषणीय विकास जरूरी है। इसके लिये पहले उन क्षेत्रों को जानने की जरूरत है जहाँ अपरदन और तलछटीकरण की समस्या अधिक प्रबल है। ये जानने के लिये विभिन्न नदी घाटियों का निरन्तर सर्वेक्षण जरूरी है। तलछटीकरण की इस समस्या से निपटने के लिये मृदा संरक्षण परिमापों और बाँध संचालित परियोजनाओं को लागू किया जाना जरूरी है। तलछट की समस्या को कम करने के लिये जलागम प्रबंधन कार्यक्रमों को विस्तृत स्तर पर लागू करने की भी जरूरत है। जलागम प्रबंधन में मानव भूमि और जल संसाधनों को अधिक बुद्धिमता से उपयोग करता है व जल के प्रवाह को नियंत्रित करता है, जिससे जल की अपरदन करने की क्षमता कम हो जाती है। जलागम प्रबंधन कार्यक्रम अगर सुव्यवस्थित ढंग से लागू किए जाएँ तो निश्चित तौर पर नदियों में तलछट की मात्रा को नियन्त्रित किया जा सकता है।
नदियों में तलछट की उत्पत्ति भू-अपरदन का परिणाम है। मानवीय क्रियाकलाप तलछटीकरण की समस्या को अधिक जटिल बनाते हैं। मृदा और जल को मनुष्य प्रकृति का मुफ्त में दिया गया उपहार समझता है और इसी कारण से वह समझ ही नहीं पाता कि इन संसाधनों का दुरुपयोग करके वह कितनी बड़ी गलती कर रहा है। पहाड़ी प्रदेशों में मानव वर्षा के जल को व्यर्थ में ही बहने देता है, यह बहता जल मृदा की उपजाऊ ऊपरी परत को भी बहा ले जाता है। मानव की मृदा अपरदन को रोकने की और कम करने की पुरजोर कोशिश निश्चित तौर पर नदियों और जलाशयों में तलछटीकरण की समस्या से राहत देगी, परन्तु इस समस्या को जड़ से मिटा पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। मानव की लाख कोशिशें प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न तलछट को कम तो कर सकती हैं परन्तु पूर्णतया समाप्त नहीं। साथ ही तलछटों की उत्पत्ति, प्रवाह, जमाव, मापन, विश्लेषण और समाधान से सम्बन्धित विज्ञान अभी विकासशील अवस्था में है, जिसमें लगातार सुधार लाने की जरूरत है। मृदा और जल संसाधनों को संरक्षित करने के लिये जन-साधारण को निम्नलिखित पंक्तियों को ध्यान में रखना अति आवश्यक है-
‘‘अपने खेत का जल अपने खेत में, अपने खेत की मिट्टी अपने खेत में ।।’’
हम में से अगर प्रत्येक इन पंक्तियों को ध्यान में रखे तो निश्चित तौर पर भारत में तलछटीकरण की चुनौती को आसानी से रौंदा जा सकता है।
सारणी 1 हिमालय की नदियों में तलछट की मात्रा (टन/वर्ग कि.मी./वर्ष) | |||||
नदी का नाम | स्थान का नाम | तलछट मात्रा (टन/वर्ग कि.मी./वर्ष) | नदी का नाम | स्थान का नाम | तलछट मात्रा (टन/वर्ग कि.मी./वर्ष) |
अरूण | त्रिवेणी | 1201.32 | भागीरथी | दौकारणी हिमनद मुख | 2800 |
करनाली | चीसापानी | 2897.59 | भागीरथी | टिहरी | 1946 |
सप्तकोसी | सोनाकुम्भी | 1667.44 | गौला | काठगोदाम | 3703 |
सनकोसी | त्रिवेणी | 2743.82 | गंगा | फरक्का | 1235 |
तमूर | त्रिवेणी | 6121.94 | यमुना | ताजेवाला | 2128 |
त्रिशूली | टी.ब्रिज | 2825.51 | यमुना | दिल्ली | 1035 |
बुड़ी दिहांग | रोवांग | 1758.74 | मरूसुदर | तिलर | 1177 |
दिबांग | तैगांव | 2657.33 | ऊज | पंचतिर्थी | 8020 |
डिकरोग | डिकरंग घाट | 2618.88 | सपिती | खाब | 1334 |
लोहित | ढिगरू घाट | 3440.59 | किन्नौर | वांगट | 1597 |
मानस | मथौगूरी | 775.46 | गिरी | दद्हू | 957 |
नौधींग | नमसाई | 1499.25 | चेनाब | बेंजवार | 1597 |
सुबनश्री | भीमपुर ब्रिज | 1100.41 | चेनाब | प्रेमनगर | 1363 |
तिस्ता | एंडरसन ब्रिज | 9927.73 | चेनाब | धमकुण्ड | 1900 |
दिहांग | रंग घाट | 802.48 | चेनाब | सिरसी | 939 |
चेनाब | कंठन | 5242.00 | चेनाब | कुरिया | 878 |
सारणी 2 प्रायद्वीपीय पठार की नदियों से तलछट की मात्रा (टन/वर्ग कि.मी./वर्ष) | |||||
नदी का नाम | स्थान का नाम | तलछट मात्रा (टन/वर्ग कि.मी./वर्ष) | नदी का नाम | स्थान का नाम | तलछट मात्रा (टन/वर्ग कि.मी./वर्ष) |
नर्मदा | जमातरा | 648.71 | झांजी | तातालगुरी | 634.30 |
नर्मदा | गुरूदेश्वर | 831.32 | नर्मदा | ब्रह्माघाट | 451.50 |
बराक | लक्खीपुर | 461.31 | नर्मदा | संडिया | 343.65 |
गोदावरी | मनीचेरियल | 144.16 | नर्मदा | होसंगाबाद | 534.40 |
गोदावरी | पोलावरम | 129.74 | नर्मदा | हांडिया | 575.57 |
भीमा | ताकली | 288.32 | नर्मदा | मण्डेश्वर | 499.76 |
तुंगभद्रा | बावापुरम | 105.72 | नर्मदा | राजघाट | 533.90 |
कृष्णा | देवोसुगुर | 533.39 | बूरनेर | मोहगांव | 952.60 |
पैनगंगा | पैनगंगा ब्रिज | 355.59 | बंजर | ह्रदयनगर | 229.17 |
वैनगंगा | पौनी | 538.19 | शक्कर | गद्वाडा | 701.25 |
वर्धा | बामनी ब्रिज | 384.42 | छोटा तवा | गिन्नौर | 545.91 |
टोंस | पुरुवा प्रपात | 197.02 | औरसंग | चन्दवाड़ा | 407.50 |
दिसांग | नौगलामारा घाट | 759.24 | दिक्खू | शिवसागर | 629.49 |
सारणी 3 भारत के प्रमुख जलाशयों में तलछट की मात्रा | |||
जलाशय का नाम | निर्माण वर्ष | अनुमानित तलछट जमाव की वार्षिक दर (टन/वर्ग कि.मी.) | जाँची गई तलछट जमाव की वार्षिक दर (टन/वर्ग कि.मी.) |
भाखड़ा नांगल | 1959 | 432.48 | 605.40 |
हीराकुण्ड | 1956 | 254.68 | 360.73 |
मैथून | 1956 | 163.38 | 1321.45 |
पंचेत | 1956 | 249.88 | 1009.11 |
तुंगभद्रा | 1953 | 432.48 | 658.32 |
म्यूराक्षी | 1955 | 360.40 | 1657.82 |
गांधीसागर | 1960 | 360.40 | 3370.01 |
रामगंगा | 1974 | 432.48 | 1835.81 |
गोड | 1966 | 360.40 | 1537.69 |
कंगसाबली | 1965 | 326.76 | 374.81 |
दन्तीवाडा | 1965 | 360.40 | 456.50 |
ब्यास इकाई-II | 1974 | 432.48 | 1441.59 |
माताटिला | 1958 | 144.16 | 442.09 |
निजामसागर | 1931 | 28.83 | 660.73 |
ऊकाई | 1971 | 148.96 | 1105.22 |
तवा | 1974 | 360.40 | 1124.44 |
सारणी 4 भारत के प्रमुख जलाशयों में तलछट जमाव और उनकी क्षमता | |||||
जलाशय | निर्माण वर्ष | जलग्रहण क्षेत्र (वर्ग.कि.मी.) | जमाव की दर (मी.मी./वर्ष) | आधी क्षमता समाप्त (वर्ष) | जलाशय का जीवन (वर्ष) |
श्रीरामसागर | 1970 | 91750 | 0.62 | 1998 | 56 |
निजामसागर | 1930 | 21694 | 0.64 | 1960 | 61 |
माताटिला | 1956 | 20720 | 0.44 | 2018 | 124 |
हिराकुण्ड | 1956 | 83395 | 0.66 | 2030 | 147 |
गिमा | 1965 | 4729 | 0.80 | 2045 | 161 |
तुंगभद्रा | 1953 | 28179 | 1.01 | 2019 | 132 |
पंचेतहिल | 1956 | 10966 | 1.05 | 2021 | 130 |
भाखड़ा | 1958 | 56980 | 0.60 | 2101 | 287 |
निम्न भवानी | 1953 | 4200 | 0.44 | 2205 | 504 |
म्यूराक्षी | 1954 | 1860 | 1.63 | 2054 | 201 |
मैथून | 1955 | 6294 | 1.43 | 2031 | 152 |
गांधीसागर | 1960 | 23025 | 0.96 | 2135 | 350 |
कोयनाबांध | 1961 | 776 | 1.52 | 3228 | 2533 |
उपरोक्त सारणियों में दिए गए आंकड़े लेखकों द्वारा संकलित किए गए हैं। |
सम्पर्क : डाॅ. ओमवीर सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, भूगोल विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र-136119, ई-मेलः ovshome@yahoo.com ; ovshome@gmail.com