मानसून का बढ़ती अनिश्चितता के साथ ही जल संग्रह का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। इसका अहसास केन्द्र के साथ कमोवेश सभी राज्य सरकारों को हो रहा है। इसलिए बड़े जलाशयों के साथ ही नए जलाशयों का निर्माण भी लाजिमी हो गया है। हाल में ही मेवात की जल समस्या के समाधान के लिए हरियाणा सरकार ने कोटला झील को एक समृद्ध जलाशय के रूप में विकसित करने हेतु अकेरा गाँव में 108 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का आदेश दिया है।
प्रकृति की कौन सी मार कब दुलार में बदल जाए कहा नहीं जा सकता। उसे समझते रहने में ही भलाई है। ऐसी ही कुछ स्थिति इस साल बेमौसम बरसात के बारे में भी दिख रही है। अगर मानसून पूर्व की इस बारिश ने रबी की फसलों को नुकसान पहुँचाया और किसानों को आत्महत्या करने को मजबूर किया तो दूसरी तरफ देश के तमाम जलाशयों में पानी की मात्रा इतनी बढ़ा दी की उनसे आगे उम्मीद बनती जा रही है। उम्मीद इन अर्थों में कि अगर अलनीनो प्रभाव के बढ़ने के कारण इस साल मानसून कमजोर रहा तो यही जलाशय देश के किसानों और जनजीवन का सहारा बनेंगे। क्योंकि मौसम विभाग का अनुमान है कि इस साल जून से सितम्बर तक के बरसात के महीनों में सामान्य से कम यानी 93 प्रतिशत बारिश हो सकती है। अगर अलनीनो ज्यादा मजबूत हुआ तो वह बारिश और भी कम होगी।देश के जलाशयों में इस समय उपलब्ध पानी की अलग-अलग व्याख्या की जा रही है और एक रपट के अनुसार इन जलाशयों में पिछले साल के मुकाबले कम पानी है। देश के प्रमुख जलाशयों में इस वक्त औसतन 28 प्रतिशत पानी है जो कि पिछले साल के बराबर या उससे एक प्रतिशत कम है। यह रपट और विश्लेषण एक प्रकार से चिन्ता पैदा करती है और अल नीनो के प्रभाव की चर्चा के चलते डराती भी है। लेकिन जैसे ही इस समय जलाशयों की स्थिति को पिछले दस सालों में जलाशयों के जल स्तर से तुलना करते हैं वैसे ही उम्मीदों के जल चिराग जल उठते हैं। केन्द्रीय जल आयोग के आँकड़ों के अनुसार इस समय देश के जलाशय पिछले दस सालों के औसत के मुकाबले 35 प्रतिशत ज्यादा भरे हुए हैं।
देश के 91 मुख्य जलाशयों में 45 अरब घन मीटर पानी इस समय है जो कि उनकी क्षमता का 28 प्रतिशत है। देश के कुल जलाशयों की क्षमता 157.799 अरब घन मीटर पानी की है। जबकि पूरे देश की जल संग्रहण क्षमता 253.388 अरब घन मीटर की है। इस समय जलाशयों का औसत जल स्तर इसलिए खुशफहमी पैदा कर रहा है क्योंकि पिछले दस सालों में इनमें 21 प्रतिशत से ज्यादा पानी नहीं रहता था। बल्कि इसी साल जनवरी में इनमें पानी का स्तर इतना कम हो गया था कि चिन्ता हो रही थी। एक जनवरी को लिए गए जलस्तर के मुताबिक उनमें 15 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
रपट के अनुसार देश के 91 जलाशयों में 67 में सामान्य से 80 प्रतिशत तक जलस्तर है। जबकि दस में 50-80 प्रतिशत पानी है। अभी की स्थिति में उत्तर, पूर्व और केन्द्रीय भारत के जलाशयों की स्थिति अच्छी है। उत्तर भारत के छह जलाशयों में 42 प्रतिशत तक पानी है जो कि दस सालों के औसत के मुकाबले बहुत अच्छा है।
अभी पानी के मामले में बेहतर स्थिति वाले राज्य हैं- हिमाचल, पंजाब, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु। इसकी वजह यह है कि गंगा, सिंधु, नर्मदा, गोदावरी, महानदी के जलाशयों में पानी की स्थिति औसतन अच्छी है। जबकि साबरमती और कृष्णा नदी में पानी की स्थिति खराब होने के कारण राजस्थान, झारखंड, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और उड़ीसा कमजोर स्थिति में हैं।
देश के जिन बाँधों में अभी पानी की स्थिति कम बताई जाती है उनमें छत्तीसगढ़ का महानदी बाँध (-26 प्रतिशत), तेलंगाना का नागार्जुन सागर(-22 प्रतिशत), सोमसिला (-17 प्रतिशत), श्री शैलम (-15 प्रतिशत) शामिल हैं। लेकिन इनसे अलग गोविंद सागर 42 प्रतिशत (दस साल का औसत 22 प्रतिशत), टिहरी 10 प्रतिशत (4 प्रतिशत), सरदार सरोवर 84 प्रतिशत (35 प्रतिशत), रिहंद 16 प्रतिशत (12 प्रतिशत), तिलैया 29 प्रतिशत (20 प्रतिशत), गाँधी सागर 40 प्रतिशत ( 16 प्रतिशत), अपर तापी 70 प्रतिशत (24) कोयना 32 प्रतिशत (32), माताटीला 45 प्रतिशत, बाणसागर (मप्र) 41 प्रतिशत और काबिनी (कर्नाटक) 40 प्रतिशत जैसे जलाशयों में पानी की स्थिति बेहतर बताई जाती है। कमजोर स्थिति अगर है तो माइथान और दमन गंगा जैसे जलाशयों में है जहाँ इस समय तक पिछले दस सालों के जलस्तर का औसत क्रमशः 31 प्रतिशत और 30 प्रतिशत रहा है जो इस साल क्रमशः18 और 19 प्रतिशत है।
मानसून का बढ़ती अनिश्चितता के साथ ही जल संग्रह का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। इसका अहसास केन्द्र के साथ कमोवेश सभी राज्य सरकारों को हो रहा है। इसलिए बड़े जलाशयों के साथ ही नए जलाशयों का निर्माण भी लाजिमी हो गया है। हाल में ही मेवात की जल समस्या के समाधान के लिए हरियाणा सरकार ने कोटला झील को एक समृद्ध जलाशय के रूप में विकसित करने हेतु अकेरा गाँव में 108 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का आदेश दिया है। इसी के साथ मनोहर खट्टर सरकार ने 64 करोड़ रुपए भी मन्जूर किए हैं।
समाज और सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि जब अच्छी बारिश हो तो उस जल को बेकार बह जाने से रोक कर आगे के लिए बचत खाते के रूप में इस्तेमाल किया जाए। क्योंकि बारिश के जल के साथ बह जाने के अलावा वाष्पीकरण के रूप में खत्म हो जाने का खतरा तो सदैव बना ही रहता है। यह सही है कि इस साल राष्ट्रीय स्तर पर मार्च से मई तक औसत से 53 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है। उसी के कारण जलाशय़ों का जल स्तर बेहतर है। लेकिन जून से सितम्बर तक अगर कम बारिश हुई जिसकी ज्यादा आशंका है तो क्या इस जल से उस कमी को पूरा किया जा सकता है? जबकि खरीफ की फसलों की बुआई पिछले साल के मुकाबले कम से कम सात लाख हेक्टेयर ज्यादा की जा रही है।
पिछले साल इस समय तक 49.04 लाख हेक्टेयर खरीफ की फसल बोई गई थी जबकि इस साल अब तक 56.22 लाख हेक्टेयर बोई गई है। प्रतिकूल मौसम की भविष्यवाणी के बावजूद अगर किसानों में यह उत्साह बना है तो इसकी वजह वे उम्मीदों के जलाशय ही हैं जो अपनी जलराशि से खेतों का गला तर करने की आस बँधाए हुए हैं। स्पष्ट है पानी महज प्रकृति का अनमोल वरदान ही नहीं मनुष्य के संचयन तकनीक का उपहार भी है। सभ्यताएँ प्रकृति के वरदान के साथ मानव के पुरुषार्थ से चलती हैं।