लेखक
कहना न होगा कि जो समाज अपना भविष्य किसी और को सौंपकर सो जाता है, उसकी अमानत में ख्यानत का खतरा हमेशा बना रहता है। इससे उलट जो समाज अपने भूत से सीखकर अपने भविष्य की सपना बुनने में खुद लग जाता है, वह उसे एक दिन पूरा भी करता है। यदि उसके भविष्य नियंता उसकी बात नहीं सुनते तो एक दिन वह खुद अपने भविष्य निर्माता की भूमिका में आ जाता है। उत्तराखंड जन घोषणापत्र जनता द्वारा बुने एक ऐसे ही सपने का दस्तावेज है। ‘बीच सन्नाटे में पत्थर उछालने की कोशिश जरूरी’ - शीर्षक से इसी पोर्टल पर दर्ज एक लेख में मैने तमाम अन्य संदर्भों के उत्तराखंडी जन घोषणापत्र का जिक्र किया था। इस घोषणापत्र को बनाने की पहल उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान के अगुवा व हिमालयी लोक नीति के संयोजक सुरेश भाई ने की थी। हालांकि यह घोषणापत्र एक प्रारूप भर है। व्यापक संवाद व रायशुमारी के बाद इसे अंतिम रूप देना अभी बाकी है। फिर भी यह प्रारूप हमें बता सकता है कि क्या है उत्तराखंडी जनाकांक्षा के मुख्य सरोकार? जरूरी है कि सभी संबद्ध वर्ग इसे जानें और इस पर अपनी प्रतिक्रिया दें। आइए! जानें और प्रतिक्रिया दें।
“गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के चयन संबंधी केन्द्र सरकार के वर्तमान मानकों को निरस्त करेंगे। विषम पर्वतीय परिस्थितियों के अनुकूल नए मानकों का निर्धारण करेंगे।’’ उत्तराखंडी जनाकांक्षा के घोषणापत्र का यह सबसे पहला बिंदु है। जल पर जनाधिकार, आरक्षित-संरक्षित क्षेत्रों में उपयोग संबंधी अधिकार, अनुसूचित जनजाति व परंपरागत वनवासी अधिनियम-2006 को प्रभावी ढंग से लागू करना, वनवासी जनजातियों की पुश्तैनी भूमि का सुधार, पंचायती वन, प्रत्येक परिवार को न्यूनतम 63 नाली भूमि वाली भू-नीति, कृषि नीति, हिमालयी लोक नीति, युवा नीति, पंचायती राज कानून और सांसद/विधायक निधि समाप्त करने और 30 प्रतिशत बजट शिक्षा पर खर्च करने जैसे मसले घोषणापत्र की प्राथमिकता पर हैं। रोजगार नीति परिवार केन्द्रित होगी। महिला-पुरुष को समान मजदूरी जैसी होगी। उम्मीदवारों को खारिज करने तथा जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने जैसे लोकतांत्रिक कदम उठाने की घोषणा भी इस घोषणापत्र में की गई है।
इस जन घोषणापत्र में उत्तराखंड में हुए विनाश के खिलाफ चिंता साफ दिखाई देती है - “सुरंग आधारित जलविद्युत परियोजनाओं पर पर प्रतिबंध होगा।’’ छोटी नहर आधारित सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं का वैकल्पिक सपना इस घोषणापत्र में प्रमुख है: “घराट और सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं से लोग खुद बिजली पैदा करेंगे। वितरण हेतु छोटे-छोटे ग्रिड स्थापित होंगे। बिजली आधारित छोटे-छोटे कुटीर उद्योग खड़े किए जाएंगे। पंचायत स्तर पर जलविद्युत उत्पादक सहकारी समितियां गठित होंगी। वे इनका प्रबंधन करेंगी। पर्यटन को अनुशासित किया जाएगा। आपदा से पहले ही राशन, मिट्टी का तेल व वैकल्पिक ईंधन की व्यवस्था होगी। पुननिर्माण का एक रोड मैप बनेगा।’’
कहना न होगा कि जो समाज अपना भविष्य किसी और को सौंपकर सो जाता है, उसकी अमानत में ख्यानत का खतरा हमेशा बना रहता है। इससे उलट जो समाज अपने भूत से सीखकर अपने भविष्य की सपना बुनने में खुद लग जाता है, वह उसे एक दिन पूरा भी करता है। यदि उसके भविष्य नियंता उसकी बात नहीं सुनते तो एक दिन वह खुद अपने भविष्य निर्माता की भूमिका में आ जाता है। उत्तराखंड जन घोषणापत्र जनता द्वारा बुने एक ऐसे ही सपने का दस्तावेज है। अब यह उत्तराखंड के नेतृत्व को चुनना है कि जनता के इस दस्तावेज की सुने, ताकि जनता उसे चुने या फिर वह दस्तावेज को खारिज कर दे और जनता उसे।
उत्तराखंड जन घोषणापत्र का विस्तृत प्रारूप प्राप्त करने तथा उस पर अपनी प्रतिक्रिया/सुझाव देने के लिए आप सीधे श्री सुरेश भाई को उनके मोबाइल अथवा ईमेल पर दे सकते हैं:
सुरेश भाई
मोबाइल - 09412077896,
ईमेल - hpssmatli@gmail.com
उत्तराखंड जन घोषणापत्र की मुख्य घोषणाएं
“गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के चयन संबंधी केन्द्र सरकार के वर्तमान मानकों को निरस्त करेंगे। विषम पर्वतीय परिस्थितियों के अनुकूल नए मानकों का निर्धारण करेंगे।’’ उत्तराखंडी जनाकांक्षा के घोषणापत्र का यह सबसे पहला बिंदु है। जल पर जनाधिकार, आरक्षित-संरक्षित क्षेत्रों में उपयोग संबंधी अधिकार, अनुसूचित जनजाति व परंपरागत वनवासी अधिनियम-2006 को प्रभावी ढंग से लागू करना, वनवासी जनजातियों की पुश्तैनी भूमि का सुधार, पंचायती वन, प्रत्येक परिवार को न्यूनतम 63 नाली भूमि वाली भू-नीति, कृषि नीति, हिमालयी लोक नीति, युवा नीति, पंचायती राज कानून और सांसद/विधायक निधि समाप्त करने और 30 प्रतिशत बजट शिक्षा पर खर्च करने जैसे मसले घोषणापत्र की प्राथमिकता पर हैं। रोजगार नीति परिवार केन्द्रित होगी। महिला-पुरुष को समान मजदूरी जैसी होगी। उम्मीदवारों को खारिज करने तथा जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने जैसे लोकतांत्रिक कदम उठाने की घोषणा भी इस घोषणापत्र में की गई है।
विनाश से चिंतित समाज
इस जन घोषणापत्र में उत्तराखंड में हुए विनाश के खिलाफ चिंता साफ दिखाई देती है - “सुरंग आधारित जलविद्युत परियोजनाओं पर पर प्रतिबंध होगा।’’ छोटी नहर आधारित सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं का वैकल्पिक सपना इस घोषणापत्र में प्रमुख है: “घराट और सूक्ष्म जलविद्युत परियोजनाओं से लोग खुद बिजली पैदा करेंगे। वितरण हेतु छोटे-छोटे ग्रिड स्थापित होंगे। बिजली आधारित छोटे-छोटे कुटीर उद्योग खड़े किए जाएंगे। पंचायत स्तर पर जलविद्युत उत्पादक सहकारी समितियां गठित होंगी। वे इनका प्रबंधन करेंगी। पर्यटन को अनुशासित किया जाएगा। आपदा से पहले ही राशन, मिट्टी का तेल व वैकल्पिक ईंधन की व्यवस्था होगी। पुननिर्माण का एक रोड मैप बनेगा।’’
जो दस्तावेज की सुने, जनता उसे चुने
कहना न होगा कि जो समाज अपना भविष्य किसी और को सौंपकर सो जाता है, उसकी अमानत में ख्यानत का खतरा हमेशा बना रहता है। इससे उलट जो समाज अपने भूत से सीखकर अपने भविष्य की सपना बुनने में खुद लग जाता है, वह उसे एक दिन पूरा भी करता है। यदि उसके भविष्य नियंता उसकी बात नहीं सुनते तो एक दिन वह खुद अपने भविष्य निर्माता की भूमिका में आ जाता है। उत्तराखंड जन घोषणापत्र जनता द्वारा बुने एक ऐसे ही सपने का दस्तावेज है। अब यह उत्तराखंड के नेतृत्व को चुनना है कि जनता के इस दस्तावेज की सुने, ताकि जनता उसे चुने या फिर वह दस्तावेज को खारिज कर दे और जनता उसे।
उत्तराखंड जन घोषणापत्र का विस्तृत प्रारूप प्राप्त करने तथा उस पर अपनी प्रतिक्रिया/सुझाव देने के लिए आप सीधे श्री सुरेश भाई को उनके मोबाइल अथवा ईमेल पर दे सकते हैं:
सुरेश भाई
मोबाइल - 09412077896,
ईमेल - hpssmatli@gmail.com