पिछले माह उत्तरप्रदेश सरकार ने “जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग” संबंधी अधिनियम बना लिया है। उत्तरप्रदेश में जल संसाधनों का अंधाधुंध दोहन अब संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आ गया है। राज्यपाल टीवी राजेस्वर ने 'उत्तर प्रदेश जल प्रबंधन एवं नियामक आयोग विधेयक 2008' को मंजूरी दे दी है। इस कानून में जल संसाधनों को विनियमित करने, इसका विवेकपूर्ण उपयोग करने, कृषि कार्यो के लिए समुचित प्रयोग करने तथा भूगर्भ जल के अंधाधुंध दोहन पर अंकुश लगाने का प्रावधान है। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने पर एक से लेकर तीन साल तक की कैद तथा अर्थदंड का प्रावधान है।
हालांकि, राज्य में तालाब, नहर, जलीय भूमि, नहर आदि के रूप में पर्याप्त मात्रा में जल संसाधन उपलब्ध है लेकिन दिन-प्रतिदिन घटते जल स्तर और अनियमित मानसून को ध्यान में रखते हुए इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
यह उम्मीद जताई जा रही है कि जल प्रबंधन की आवश्यकता को बनाए रखने के लिए आयोग सूबे की विभिन्न जल प्रणालियों का आधुनिकीकरण करेगी। विभाग राज्य के जल उपयोगकर्ता एसोसिएशनों (डब्ल्यूयूए) को भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) आधारित मानचित्र भी जारी करेगी ताकि वे मानचित्र पर विभिन्न क्षेत्रों और कैनालों की दूरी की पहचान कर सकें। बहरहाल, विभाग ने विश्व बैंक से आग्रह किया है कि वे विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित उत्तर प्रदेश वॉटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग प्रोजेक्ट (यूपीडब्लूएसआरपी) की अवधि को अगले एक साल के लिए बढ़ा दें।
पर मंथन के रेहमत भाई का कहना है कि जल संसाधन के संरक्षण के नाम पर बनाए इस कानून से किसानों के अधिकार प्रभावित होंगें। इस मुद्दे पर मंथन की टीम उत्तरप्रदेश में जागरुकता हेतु प्रयास कर रही है।
दरअसल सारा प्रयास पानी के निजीकरण के लिए है - रेहमत
रेहमत कहते हैं कि हाल ही में उत्तरप्रदेश विधानसभा द्वारा पारित जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग के गठन संबंधी कानून से स्पष्ट हो गया है कि अब देश में पानी का इस्तेमाल भी गरीबों और किसानों की पहुंच से बाहर किया जा रहा है। इस कानून के उल्लंघन को संज्ञेय अपराध माना गया है। तथा उल्लंघन करने वाले व्यक्ति अथवा संस्था पर एक लाख तक जुर्माना और एक वर्ष तक की कैद अथवा दोनों सजाएं एक साथ दी जा सकती हैं। नियामक आयोग के अधिकारों में थोक हकदारी, (किसी क्षेत्र विशेष से गुजरने वाली नदी अथवा क्षेत्र में स्थिति तालाबों और अन्य जल संसाधनों को एक मुश्त ठेके या एकाधिकार पर देना) उपयोग की श्रेणी तथा जल दरें निर्धारित करना शामिल है।
मध्यप्रदेश सरकार भी विश्व बैंक से 39.6 करोड़ डॉलर का कर्ज लेकर चंबल, सिंध, बेतवा, केन और टोंस (तमसा) नदी कछारों में मध्यप्रदेश जल क्षेत्र पुरर्रचना परियोजना संचालित कर रही हे। चूंकि यह कर्ज भी सेक्टर रिफार्म (क्षेत्र सुधार) के तहत लिया गया है अत: विश्व बैंक ने प्रदेश के जल क्षेत्र में बदलाव हेतु 14 शर्ते रखी हैं। इन्हीं में से एक शर्त पानी का बाजार खड़ा करने वाले जल नियामक आयोग का गठन करना भी है। इसके द्वारा पानी को निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा।
विश्व बैंक ने कर्ज दस्तावेज में साफ लिख दिया है कि जलक्षेत्र पुनर्रचना परियोजना (मध्यप्रदेश) का रूपांकन निजी-सार्वजनिक-भागीदारी अर्थात निजीकरण को ध्यान में रखकर किया गया है तथा जलक्षेत्र सुधार का मुख्य आधार बाजारीकरण ही होगा। परियोजना के प्रारंभिक लक्ष्यों में 1 मध्यम और 25 छोटी सिंचाई योजनाओं का निजीकरण का लक्ष्य तय कर दिया गया है। निजीकरण का प्रमुख उद्देश्य होता है मुनाफा कमाना। पानी की कीमतें अत्याधिक बढ़ने पर जिनके पास पानी खरीदने की क्षमता होगी उन्हें ही पानी मिलेगा। क्रयशक्ति विहीन लोगों को जरूरत का पानी उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी सेवा प्रदाताओं पर नहीं होगी। ऐसे में किसानों और गरीबों के जीने के हक का क्या होगा?
सूचना का अधिकार देने वाली मध्यप्रदेश सरकार जल क्षेत्र के नियामक संबंधी मामले में अत्यधिक गोपनीयता बरत रही हे। आयोग के गठन संबंधी कानून का प्रारूप मार्च 2007 के भी पहले से तैयार है लेकिन इसे प्रदेशवासियों से छिपाया जा रहा है। मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा कई बार सूचना के अधिकार के तहत इसे मांगा गया लेकिन हर बार इसे उपलब्ध करवाने से इंकार कर दिया गया। इसके विपरीत महाराष्ट्र में जब इस प्रकार का प्रारूप कानून बना तब सरकार ने कार्यशालाओं के माध्यम से इसका प्रचार कर जनता के सुझाव मांगे थे।
उत्तरप्रदेश के “जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग” संबंधी अधिनियम का मूल ड्राफ्ट संलग्न है। आशा है आपके लिए उपयोगी होगी।
संदर्भ – 1- उप्र में जल नियामक आयोग : http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=8203
2 – पानी के निजीकरण : hetkhaliyan.blogspot.com/2008/10/blog-post_20.html
3 – जागरण/ याहू : jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_4789591_1.html