उत्तर प्रदेश में सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राहत पहुंचाने के हरसंभव उपाय किए ही जाने चाहिए। इन उपायों के तहत खेतों में तालाबों के निर्माण की तैयारी बेशक सही दिशा में उठाया गया कदम है। इस योजना के संदर्भ में महत्वपूर्ण यह है कि तालाबों का निर्माण राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत किया जाएगा। स्पष्ट है कि इस योजना से जहां एक ओर निर्धन आबादी को रोजगार का मौका मिलेगा वहीं सूखे की समस्या का दीर्घकालिक समाधान भी हो सकेगा। यह तभी होगा जब यह योजना उसी संकल्प और गंभीरता से लागू की जाएगी जैसा कि इस योजना की घोषणा करते हुए प्रदर्शित किया जा रहा है। ऐसी अपेक्षा इसलिए, क्योंकि विगत में इस तरह की अनेक योजनाएं या तो फाइलों से बाहर नहीं निकल सकीं और यदि निकल भी सकीं तो उनका क्रियान्वयन सही तरह नहीं हुआ। यदि इस योजना की भी निगरानी के समुचित उपाय नहीं किए गए तो फिर अभीष्ट की पूर्ति संभव नहीं। वैसे भी उत्तर प्रदेश में रोजगार गारंटी योजना के सही तरह क्रियान्वयन पर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में वर्षा जल संचयन अथवा परंपरागत जल स्त्रोतों के पुनरुद्धार की अनेक घोषणाएं जब-तब की जाती रही हैं, लेकिन कोई बुनियादी बदलाव आना तो दूर, हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। तालाब, पोखर और जलाशय रखरखाव के अभाव में न केवल सूखते जा रहे हैं, बल्कि उन पर अवैध कब्जे भी हो रहे हैं। यह तब है जब इन परंपरागत जल स्त्रोतों पर अवैध कब्जों को हटवाने के लिए उच्च न्यायालय की ओर से कई बार निर्देश जारी किए जा चुके हैं। एक ऐसे समय जब अनेक क्षेत्रों में जल संकट गंभीर होता जा रहा है तब परंपरागत जल स्त्रोतों के रखरखाव और उनके संरक्षण की योजनाएं तो शासन की प्राथमिकता सूची में होनी चाहिए। दुर्भाग्य यह है कि न तो ऐसे जल स्त्रोतों का रखरखाव किया जा पा रहा है और न ही वर्षा जल संचयन के मामले में कुछ ठोस होता हुआ नजर आ रहा है। यदि राज्य सरकार सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खेतों के अंदर तालाब बनाकर किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने की अपनी योजना के प्रति वाकई गंभीर है तो उसे इसके क्रियान्वयन में भी पूरी गंभीरता का परिचय देना होगा।
उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में वर्षा जल संचयन अथवा परंपरागत जल स्त्रोतों के पुनरुद्धार की अनेक घोषणाएं जब-तब की जाती रही हैं, लेकिन कोई बुनियादी बदलाव आना तो दूर, हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। तालाब, पोखर और जलाशय रखरखाव के अभाव में न केवल सूखते जा रहे हैं, बल्कि उन पर अवैध कब्जे भी हो रहे हैं। यह तब है जब इन परंपरागत जल स्त्रोतों पर अवैध कब्जों को हटवाने के लिए उच्च न्यायालय की ओर से कई बार निर्देश जारी किए जा चुके हैं। एक ऐसे समय जब अनेक क्षेत्रों में जल संकट गंभीर होता जा रहा है तब परंपरागत जल स्त्रोतों के रखरखाव और उनके संरक्षण की योजनाएं तो शासन की प्राथमिकता सूची में होनी चाहिए। दुर्भाग्य यह है कि न तो ऐसे जल स्त्रोतों का रखरखाव किया जा पा रहा है और न ही वर्षा जल संचयन के मामले में कुछ ठोस होता हुआ नजर आ रहा है। यदि राज्य सरकार सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खेतों के अंदर तालाब बनाकर किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने की अपनी योजना के प्रति वाकई गंभीर है तो उसे इसके क्रियान्वयन में भी पूरी गंभीरता का परिचय देना होगा।