वहां नहीं है नदी

Submitted by admin on Tue, 10/15/2013 - 13:39
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काव्य संचय- (कविता नदी)
वहां नहीं है नदी
लिया है बदल अपना रास्ता उसने।
घाट है सिर्फ, पुराना
सीढ़ियाँ जिसकी मिट्टी में दबी हैं
पर बजिद है वह
यही है तीर्थ उसका।
जहाँ चाहे नदी बहती रहे
वह तरा था यहीं
चाहे डुबकी-भर ही सही।

इसी जिदमें एक सूखा पाट
खोदे जा रहा है वह।

दिसंबर, 1989