विकास में जन भागीदारी की पहल

Submitted by birendrakrgupta on Fri, 10/17/2014 - 23:31
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डेली न्यूज एक्टिविस्ट, 14 अक्टूबर 2014
भारत यदि गंदगी जैसी समस्या से निपट लेता है तो बड़े स्तर पर यह सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर सुधार कर पाएगा, क्योंकि ज्यादातर बीमारियों की जड़ गंदगी है। सरकार के कई महत्वाकांक्षी अभियान को इस अभियान के द्वारा बल मिलेगा। एक अनुमान के मुताबिक भारत 32.6 अरब डॉलर रुपए इस प्रकार बचाने में कामयाब होगा। बैंक के मुताबिक भारत हर साल करीबन 50 अरब डॉलर गंदगी के एवज में जो धनराशि चुकाता है, उसे देश के विकास में लगाई जा सकती है। देश अब सरकारी विकास से अधिक सहकारी विकास की ओर चल पड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करके विकास को जनांदोलन बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल की है। निश्चित रूप से लोकतांत्रिक समाज में सरकारी तंत्र एक सेवक की भूमिका निभाता है और प्रशासन जिसका माध्यम होता है। संविधान भी विकास में जनभागीदारी की अपेक्षा करता है।

दो अक्टूबर का दिन इस लिहाज से भी अब एक ऐतिहासिक रूप में दर्ज हो गया है कि समाज की सबसे धरातलीय समस्या के समाधान की पहल देश के सबसे बड़े व्यवस्थापक प्रधानमंत्री के द्वारा की गई। 21वीं शताब्दी के दौर में भारत तेजी से उभरने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है। जहां एक ओर प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है, वहीं लोगों का जीवन स्तर भी ऊपर उठ रहा है।

हम अपने घर का स्तर तो संभाल रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच घर से बाहर देश के स्तर को नजर अंदाज करने लगे। नतीजतन गंदगी के ढेर, बदबूदार सड़कें, गंदगी से फैलती बीमारियों ने समस्या को एक नए रूप में प्रस्तुत किया। उदारीकरण के बाद विदेशों से आवागमन बढ़ गया। विदेशों से भारत लौटकर लोग साफ-सफाई के मामले में भारत को पिछड़ा और एक लाइलाज बीमारी मानने लगे, लेकिन आजतक किसी भी सरकार, नेता या संगठन ने इतनी बड़ी समस्या से सीधे जूझने और देश में ऐसी अलख जगाने की कोशिश नहीं की जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने की। लेकिन मोदी की शुरुआत के अभी कई आगामी आयाम भी हैं, जिसे बेहतरी से समझना बेहद जरूरी है।

दरअसल, देश की गंदगी जहां एक ओर समस्या है, वहीं ये एक संभावना भी है कि कूड़ा प्रबंधन के रूप में देश की गंदगी का प्रबंधन यदि नियोजित तरीके से किया जाए तो ये विकास में एक अहम योगदान दे सकता है। इसमें आवश्यकता है कि गंदगी का वर्ग निर्धारित हो। जैविक तथा अजैविक व पुनर्निर्माड़ी आदि, जिसके तहत रीसाइक्लिंग, खाद बनाने, ऊर्जा निर्माण जैसी तकनीकी विकसित की जानी चाहिए।

सरकार बड़ी संख्या में जन-सुविधा केंद्र बनाकर खुले में शौच जैसी समस्याओं से निपट सकती है, वहीं मानव मल को एकत्र करके इसमें पायी जाने वाली मीथेन गैस से ऊर्जा निर्माण और उसके अवशिष्ट से खाद निर्माण कर सकती है। नागपुर में इस प्रयोग को सफल तरीके से किया गया है। कूड़ा प्रबंधन के जरिए पर्यावरण सुरक्षा, जानवरों के पेट में जाने वाले प्लास्टिक पदार्थ जैसे पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

उत्तराखंड में कूड़ा प्रबंधन के लिए काफी जागरूकता के साथ काम किया जा रहा है। अन्य क्षेत्रों में भी ये पहल सरकार के स्तर पर होगी। इसका दूसरा पहलू देश के नागरिकों पर निर्भर है। सरकार को कानून बनाकर और दंडाधिरोपित करके कड़ाई से सफाई संबंधी नियमों का पालन करवाना चाहिए। दुनिया के कई विकसित देशों में जनस्थल पर गंदगी फैलाने के विरुद्ध कड़े कानून हैं। अमेरिका में 500 डॉलर अर्थदंड व सामुदायिक सेवा करने का प्रावधान है। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड में भी दंड की व्यवस्था है। भारत में भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था की दरकार है।

इसके अतिरिक्त सरकार को ग्रामीण स्तर पर जागरूकता समूह बनाने चाहिए, जिसमें स्कूल और कॉलेज के छात्रों की आवश्यक भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इसे उनके प्रायोगिक अध्ययन का एक हिस्सा बनाया जाए ताकि इस अभियान को सतत रखा जा सके, क्योंकि यह जनधन और आधार की तरह एक ही बार चलाकर लाभान्वित करने वाला कार्यक्रम नहीं है। इसमें सतत जागरूकता अभियान की सफलता के लिए जरूरी है।

सरकार को साफ-सफाई के लिए लोगों को उकसाने के लिए इसे जनधन जैसी लाभकारी योजना से भी जोड़ना चाहिए। यदि किसी परिवार में शौचालय नहीं है तो उसके लिए ओवरड्राफ्ट जैसी सुविधाएं रोकने का प्रावधान होना चाहिए। इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों में कड़ा अर्थदंड अधिरोपित करना चाहिए, ताकि लोगों को कानून के भय से सफाई करने और रखने के लिए बाध्य किया जा सके।

भारत यदि गंदगी जैसी समस्या से निपट लेता है तो बड़े स्तर पर यह सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर सुधार कर पाएगा, क्योंकि ज्यादातर बीमारियों की जड़ गंदगी है। सरकार के कई महत्वाकांक्षी अभियान को इस अभियान के द्वारा बल मिलेगा। एक अनुमान के मुताबिक भारत 32.6 अरब डॉलर रुपए इस प्रकार बचाने में कामयाब होगा। बैंक के मुताबिक भारत हर साल करीबन 50 अरब डॉलर गंदगी के एवज में जो धनराशि चुकाता है, उसे देश के विकास में लगाई जा सकती है।

सरकार ने गांधी के सपनों के भारत निर्माण में एक बड़ा सार्थक कदम उठाया है। अब बस आवश्यकता इतनी है कि नियोजित तरीके से इस अभियान को पोलियो अभियान की तरह पूरे देश स्तर पर फैला दिया जाए और जन भागीदारी को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जाए।

(ई-मेल : partho.upadhyay@gmail.com)