स्वच्छ भारत अभियान चार साल पहले शुरू हुआ था। इसने निश्चित तौर पर देश की तस्वीर बदली है और उससे भी ज्यादा बदली है लोगों की सोच। गाँव साफ होने लगे हैं। खुले में शौच जाने की आदत काफी हद तक खत्म होने लगी है। सोलह राज्य पूरी तरह शौचमुक्त घोषित हो चुके हैं। कई जिलों और गाँवों में इसके क्रियान्वयन या जागरुकता के लिये अलग-अलग तरीके से काम हो रहे हैं, ये खास तरीके चर्चित भी हो रहे हैं।
स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत दो अक्टूबर, 2014 को गाँधी जयंती के अवसर पर पाँच सालों के लिये की गई थी। अभियान का उद्देश्य भारत को खुले में शौच से मुक्त देश बनाना है। जाहिर-सी बात है कि इस कार्यक्रम को हमारे ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रखकर ही चलाया जा रहा है। अभियान के तहत देश के करीब 11 करोड़ 11 लाख शौचालयों को बनाने के लिये एक लाख चौंतीस हजार करोड़ रुपए खर्च किये जाने का लक्ष्य है। बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ग्रामीण भारत में कचरे के इस्तेमाल को पूँजी के रूप देकर उसे जैव उर्वरक और ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित करने के लिये किया जाएगा। इस अभियान को बड़े स्तर पर ग्रामीण आबादी और ग्रामीण पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद से जोड़ा जा रहा है।
‘निर्मल भारत’ अभियान कार्यक्रम केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिये चलाया जा रहा ऐसा अभियान है, जो माँग-आधारित एवं जन-केन्द्रित है। इसके जरिए कोशिश हो रही है कि लोगों को स्वच्छता सम्बन्धी आदतों को बेहतर बनाया जाये। स्व-सुविधाओं की माँग उत्पन्न करने के साथ स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाये। ऐसा होने पर ग्रामीणों का जीवनस्तर खुद-ब-खुद बेहतर हो जाएगा। गाँव न केवल स्वच्छ होंगे बल्कि काफी हद तक बीमारियों से मुक्त भी हो जाएँगे।
सरकार ने मार्च 2018 में लोकसभा में बताया कि वर्ष 2015-16 में 47,101 वर्ष 2016-17 में 1,36,981 और वर्ष 2017-18 में 1,39,478 गाँव खुले से मुक्त घोषित किये गए।
ओडीएफ गाँवों में इजाफा
ओडीएफ गाँवों की संख्या में लगातार जबरदस्त इजाफा हो रहा है। ओडीएफ का मतलब है खुले में शौच से मुक्त। केन्द्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के मुताबिक खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) का पैमाना आवश्यक रूप से शौचालय का इस्तेमाल है यानी जिस ग्राम पंचायत, जिला या राज्य (सभी ग्रामीण) के सभी परिवारों के सभी लोग शौचालय इस्तेमाल करते हों। ओडीएफ को चार-स्तरीय सत्यापन से गुजरना पड़ता है। पहले ब्लॉक-स्तर, फिर जिला, फिर राज्य-स्तर के अधिकारी और आखिर में केन्द्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अधिकारी सत्यापन करते हैं।
किस तरह बढ़ रही है स्वच्छता
पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के तहत स्वच्छ भारत अभियान (ग्रामीण) के आँकड़ों के मुताबिक, फरवरी 2018 तक करीब 6 करोड़ 13 लाख घरेलू शौचालय बनाए जा चुके हैं। पिछले दो सालों में ओडीएफ गाँवों की संख्या 2,69,565 यानी 572 फीसदी (करीब 6.7 गुनी) बढ़ी है। आँकड़ों पर भरोसा करें तो 2015 के बाद से तीन सालों में रोजाना करीब 51 हजार शौचालय गाँवों में बन रहे हैं। वर्ष 2016 से रोज करीब 370 गाँव ओडीएफ घोषित हो चुके हैं।
कई जिलों और गाँवों में इसके क्रियान्वयन या जागरुकता के लिये अलग-अलग तरीके से काम हो रहे हैं, ये खास तरीके चर्चित भी हो रहे हैं।
अलग तरह से काम करने वाले लोग
मसलन महाराष्ट्र में सोलापुर जिला पंचायत की अध्यक्ष डॉ. निशि गंधा माली गाँवों का दौरा करती रहती हैं। पंचायत सदस्यों, स्कूली बच्चों, अधिकारियों, नागरिकों से मिलती हैं। वो बहुत असरदार तरीके से लोगों को इसके फायदे और जरूरतों के बारे में बताती हैं। उन्होंने तब तक पैरों में जूते-चप्पल नहीं पहनने की शपथ ली है जब तक कि उनका जिला खुले में शौचरहित ना हो जाये। इससे अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में एक स्कूली बच्चे ने गाँवों के ऐसे लोगों के नामों को चिन्हित करते हुए गाँव की खास जगहों पर इश्तेहार लगाया। इस नए विचार ने अपने अभियान में सफल होने में समुदाय की मदद की। हिमाचल में कोठी ग्राम पंचायत के महिला मण्डल ने कचरा प्रबन्धन के लिये एक नई चीज शुरू की। ये लोग घरों से पॉलिथीन इकट्ठा करते हैं। प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके कचरा उठाने के लिये बैग तैयार किये जाते हैं, जिन्हें सड़कों के किनारे पेड़ों पर टाँग दिया जाता है, ताकि लोग सड़कों पर गन्दगी करने से बचें। राँची नगर निगम ने खुले में शौच करने वाले के खिलाफ ‘हल्ला बोल, लुंगी खोल’ अभियान छेड़ा। इसके तहत निगम अधिकारी खुले में शौच करते लोगों को पकड़ते और उनकी लुंगी जब्त कर लेते।
मंडी में ग्राम पंचायत-स्तर पर विकास निधि स्थापित की गई है, जिसमें घरों की संख्या के हिसाब से सात से 20 लाख रुपए तक की राशि इकट्ठी हो गई है। इस निधि का उपयोग गाँवों में शौचालय, खाद बनाने, वर्मी कम्पोस्ट के गड्ढे या बारिश के पानी के लिये नालियाँ विकसित करने के लिये किया जाता है, अवार्ड भी दिये जाते हैं। मंडी जिले में लगभग 70 हजार सदस्यों वाले 4,490 महिला मण्डल हैं, जो गाँवों में सफाई सुनिश्चित करने के साथ लोगों को सम्पूर्ण स्वच्छता और जल संरक्षण का महत्त्व समझाते हैं। मंडी को वर्ष 2016 में केन्द्र ने सबसे साफ-सुथरा पहाड़ी जिला घोषित किया था।
बिहार के गया के एक गाँव में स्वच्छ भारत मिशन से प्रभावित होकर एक परिवार की बहू ने घर में शौचालय बनाने के लिये अपने गहने निकाल कर सास को सौंप दिये। बहू की सोच को सही मानते हुए उनकी सास ने उसके गहने लौटा दिये और घर में दूध देने वाली गाय को बेचकर शौचालय बनवाकर ही दम लिया। ऐसे न जाने कितने उदाहरण और अच्छा काम करने वालों की सूची तैयार की जा सकती है।
16 राज्य खुले में शौचमुक्त
जब इस अभियान की शुरुआत की गई थी, तब जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, झारखण्ड और ओड़िशा में 30 प्रतिशत से कम शौचालय थे। हालांकि आज कोई राज्य इस श्रेणी में नहीं है। अलबत्ता बिहार, उत्तर प्रदेश और ओड़िशा में शौचालय निर्माण की प्रगति धीमी है। जहाँ अभी 30-60 प्रतिशत घरों में ही शौचालय बनवाए जा सके हैं।
राजस्थान खुले में शौचमुक्त की श्रेणी में आ चुका है। जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, तेलगांना और झारखण्ड में 60-90 प्रतिशत तक शौचालय बनवाए जा चके हैं। अभियान की शुरुआत के समय केवल केरल ही ऐसा राज्य था जो खुले में शौचामुक्त था। आज इस श्रेणी में 16 राज्य आ चुके हैं। करीब साढ़े छह लाख गाँवों में से साढ़े तीन लाख से अधिक गाँव खुले में शौचमुक्त हो चुके हैं।
समाज में फैल रही है जागरुकता
राष्ट्रीय-स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन की उपलब्धि शानदार रही है। लेकिन ये भी देखने की जरूरत है कि बिहार, उत्तर प्रदेश जैसों राज्यों में आखिर कौन-सी समस्याएँ सामने आ रही हैं और इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है। चूँकि ये सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य हैं, लिहाजा उन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत भी है। वैसे ये बात सही है कि स्वच्छ भारत अभियान ने ग्रामीणों की सोच को बदला है। गाँवों में इसको लेकर जागरुकता बढ़ रही है; ये शुभ संकेत भी है। अगर समाज सचेत है, तो वो अपनी व्यवस्था भी कर लेता है। गन्दगी की तरफ वो खुद ध्यान देने लगता है।
बढ़ी सहायता राशि
अभियान के एक भाग के रूप में प्रत्येक पारिवारिक इकाई के अन्तर्गत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय की इकाई लागत को 10,000 से बढ़ाकर 12,000 रुपए कर दिया गया है और इसमें हाथ धोने, शौचालय की सफाई एवं भण्डारण को भी शामिल किया गया है. इस तरह के शौचालय के लिये सरकार की तरफ से मिलने वाली सहायता 9,000 रुपए और इसमें राज्य सरकार का योगदान 3000 रुपए होगा। जम्मू एवं कश्मीर एवं उत्तर-पूर्व राज्यों एवं विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को मिलने वाली सहायता 10800 होगी जिसमें राज्य का योगदान 1200 रुपए होगा। अन्य स्रोतों से अतिरिक्त योगदान करने की स्वीकार्यता होगी।
सरकार की इच्छाशक्ति नजर आ रही है
मोदी सरकार अगले साल गाँधी जी की 150वीं जयंती को यादगार बनाना चाहती है। इसीलिये वो देश को खुले में शौचमुक्त बनाने के इरादे से काम कर रही है। पिछली सरकारों ने भी ऐसी योजनाएँ चलाने की कोशिश की थीं लेकिन वो उस तरह से आगे नहीं बढ़ पाईं थी जिस तरह मौजूदा स्वच्छ भारत अभियान शक्ल ले रहा है। 1999 में भारत सरकार ने व्यापक ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को नए सिरे से सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के रूप में लांच किया था। बाद में मनमोहन सिंह के शासनकाल में इसका नाम बदल कर ‘निर्मल भारत अभियान’ कर दिया गया था। वर्तमान सरकार ने इसमें कुछ बदलाव करके इसे ‘स्वच्छ भारत अभियान’ नाम दिया। बहुत से देशों में गन्दगी फैलाने की आदत को सुधारने के लिये भारी जुर्माना भी लगाया जाता है। हमारे यहाँ वैसा तो नहीं है लेकिन अब स्वच्छता कर (सेस) जरूर है।
जुटे हैं सांसद भी
पिछले कुछ महीनों से सरकार ने इसके लिये सभी सांसदों से गोद लिये गए गाँवों में इस अभियान की अगुवाई करने का अनुरोध किया है। उन्होंने सांसदों से गाँवों के ‘समग्र विकास’ के लिये पंचायत-स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम शुरू करने का अनुरोध भी किया। हालांकि अच्छी बात यही है कि सरकार की योजना लगातार जारी है और इसमें उसकी पूरी इच्छाशक्ति भी नजर आ रही है। इसलिये इसमें लगातार प्रगति भी दिख रही है।
किसी भी योजना की सफलता इस पर निर्भर करती है कि उसे आम लोगों को कैसे जोड़ा जाता है तो इस मामले में ये कहा जा सकता है कि गाँवों में लोगों के दिमाग में ये बाद बैठने लगी है कि हर घर में शौचालय होना न केवल जरूरी है बल्कि अपने आस-पास के परिवेश को भी साफ रखना आवश्यक है।
खुले में शौच से कौन-सी बीमारियाँ फैलती हैं
मानव मल पर्यावरण को प्रदूषित करता है। इसका हमारे स्वास्थ्य पर बहुत खराब असर पड़ता है। मानव मल में भारी संख्या में रोगों के कीटाणु होते हैं जिससे बीमारियाँ फैलती हैं। एक ग्राम मानव मल में रोगों के इतने वाहक हो सकते हैं।
1,00,00,000 वायरस
10,00,000 बैक्टीरिया
1000 परजीवी पुटी/ अंडाणु
100 परजीवी अंडे
खुले मे शौच करने से दस्त, टाइफाइड, आँतों में कीड़े, रोहा, हुक वार्म, मलेरिया, फाइलेरिया, पीलिया, टिटनस आदि बीमारियाँ हो सकती हैं।
कैसे करा सकते हैं शौचालय का निर्माण
शौचालय निर्माण- 1. बेसलाइन सर्वे में जिसका नाम हो वह व्यक्ति स्वच्छता अधिकारी के पास नाम दर्ज कराता है।
2. अधिकारी निर्माण शुरू करने की मंजूरी की रसीद देता है।
3. 45-50 दिन में निर्माण पूरा करना होता है।
4. बने शौचालय में पानी की टंकी, रोशनी की व्यवस्था, दरवाजा होना जरूरी है।
5. काम पूरा होने की सूचना के बाद अधिकारी रसीद लेकर 12,000 की प्रोत्साहन राशि जारी करता है।
2019 तक 80 फीसदी साफ हो जाएगी गंगा
गंगा की सफाई का काम तेजी से किया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि अगले वर्ष मार्च तक नदी का 80 प्रतिशत हिस्सा स्वच्छ हो जाएगा। हम मार्च 2019 तक 70 से 80 प्रतिशत गंगा के स्वच्छ होने की उम्मीद करते हैं। जल संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़े बताते हैं कि गंगा के किनारे सक्रिय 251 सकल प्रदूषण उद्योग (जीपीआई) को बन्द कर दिया गया है। 938 उद्योगों और 211 मुख्य ‘नालों’ में प्रदूषण की ‘रियल-टाइम मॉनिटरिंग’ पूरी हो चुकी है, जो नदी को प्रदूषित करते हैं। अब परियोजनाओं को जल्द-से-जल्द पूरा करने के लिये राज्य सरकारों को केन्द्र के साथ मिलकर इसके क्रियान्वयन का काम शुरू करना है।
नमामि गंगे परियोजना कोई साधारण परियोजना नहीं है बल्कि ये उस नदी की सफाई से ताल्लुक रखती है जो 2,500 किमी, लम्बी है। ये 29 बड़े शहर, 48 कस्बे और 23 छोटे शहरों को कवर करती है। भारत के पाँच राज्य उत्तराखण्ड, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार गंगा नदी के रास्ते में आते हैं। इस लिहाज से देखा जाय तो ये परियोजना काफी चुनौतीपूर्ण है। मोदी सरकार ने गंगा की सफाई के लिये राष्ट्रीय मिशन यानी एनएमसीजी नाम का प्रोजेक्ट बनाया है। एनएमसीजी ने पिछले दो सालों में गंगा की सफाई के 16.6 अरब रुपए की राशि खर्च की है। भारत के कंट्रोलर एंड अॉडिटर जनरल यानी सीएजी के मुताबिक गंगा की सफाई के लिये केन्द्र सरकार ने 67 अरब रुपए की रकम आवंटित की है। ये आँकड़ा अप्रैल 2015 से मार्च 2017 के बीच का है। गंगा नदी की सफाई के लिये अगर सरकार अपने स्तर पर जुटी हुई है तो आम लोगों का भी कर्तव्य बनता है कि वो देश की पुण्य सलिला की सफाई को लकेर जागरूक हों। इस तरह का काम राज्य सरकारें भी लगातार कर रही हैं। वहीं ये भी जरूरी है कि ये जिन शहरों, गाँवों और कस्बों से होकर गुजरती है, वहाँ का स्थानीय प्रशासन भी इसकी सफाई में अहम भूमिका निभाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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